धनत्रयोदशी के अवसर पर गड़ा हुआ धन मिला है. महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के वटराणा इलाके में गड्ढा खोदते वक्त चांदी के सिक्के मिले हैं. इन सिक्कों पर फारसी भाषा में कलमा उकेरा हुआ है. ये चांदी के सिक्के मुगल बादशाह अकबर और औरंगजेब के काल के हैं. इसका काल 15 वीं और 16 वीं सदी का है. ये चांदी के सिक्के गोंडपिपरी तालुका में रहने वाले नीतेश मेश्राम को गड्ढा खोदते वक्त मिले. नीतेश ने ये सिक्के संभाल कर रखे हैं. इन सिक्कों के मिलने से इतिहास की समझ को बढ़ाने में मदद मिलेगी.
चंद्रपुर जिले के लोगों के लिए यह उत्सुकता से भरे क्षण हैं. ऐतिहासिक विरासत हाथ लगी है. इन सिक्कों से जुड़े कुछ सवाल हल हो सकते हैं. चंद्रपुर का इतिहास वैभवशाली रहा है. एब ये सिक्के उनके बारे में और भी ज्यादा जानने और समझने में मदद करेंगे. चंद्रपुर के गोंडपिपरी तालुके के वटराणा के स्थानीय इलाकों के बारे में भी जानने में ये सिक्के मददगार साबित हो सकते हैं. वटराणा के रहने वाले नीतेश मेश्राम गड्ढा खोद रहे थे, उसी दौरान उन्हें दो चांदी के सिक्के मिले. उन्होंने उन सिक्कों को उत्सुकता वश उठाया तो गौर करने पर पाया कि ये सिक्के तो बहुत मूल्यवान हैं.
इन चांदी के सिक्कों का 11 ग्राम वजन, भाषा है पर्शियन
इन चांदी के सिक्कों का वजन 11 ग्राम है. इनमें फारसी भाषा में कलमा लिखा गया है. मेश्राम ने इन सिक्कों को संभाल कर रखा है. मेश्राम ने इन सिक्कों को अपनी पहचान के इतिहासप्रेमी नीलेश झा़डे को दिखाया. नीलेश झाडे ने इसे इतिहास के शोधार्थी अशोक सिंह ठाकुर से संपर्क साधा.
15 वीं और 16 वीं सदी के हैं सिक्के, बता रहे मुगल काल से जुड़े किस्से
अशोक सिंह ठाकुर ने इन सिक्कों पर लिखे कलमे को पढ़ कर बताया कि यह मुगल बादशाह आकबर और औरंगजेब के समय के हैं. इनका काल 15वीं और 16वीं सदी है. गोंडपिपरी तालुका मुगलों के ही अधीन था. वटराणा में यहां उस दौर में बड़ी बस्ती रही होगी. और रिसर्च किया जाए तो इस इलाके से जुड़ी मुगल हिस्ट्री के बारे में और जानकारियां मिल सकती हैं. इतिहासकारों ने यह राय दी है.