भारत के ऐतिहासिक विरासत की समृद्धता को लेकर कोई आपसे प्रश्न करे तो उसे योग का उदाहरण दीजिएगा। दशमलव और शून्य की खोज के बारे में तो हमें बचपन से पढ़ाया जाता आ रहा है, पर क्या हमने अपने पाठ्यक्रमों में योग की महत्ता को वह दर्जा दिया? 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है, पर क्या यह सिर्फ एक इवेंट भर है जिसमें योग करते हुए फोटो खींचकर सोशल मीडिया पर चिपका दिया जाए? बस कहानी खत्म? नहीं- योग को सीमित दायरों में बांधना संभव नहीं है।योग तो हमारे पूर्वजों द्वारा हमें दिया गया अतुलनीय उपहार है, हमारी वैश्विक पहचान, हमारा गर्व है।
वैदिक युग की शुरुआत के साथ ही योग मानवता का हिस्सा बना। ऋषि-मुनियों ने इसके प्रभाव को समझते हुए लोगों को योग करने के लिए प्रेरित किया। उस काल में न तो मेडिकल साइंस था, न ही दवाइयां, एक योग ही था जो सुरक्षाकवच बनकर लोगों के संपूर्ण स्वास्थ्य की रक्षा करता था।
देश पर बाहरी आक्रांताओं ने राज किया, उन्होंने उन सभी चीजों को लक्षित किया जो हमारी पहचान थीं, योग भी निशाने पर आया। लिहाजा आजादी के बाद हमने मेडिकल साइंस को बढ़ाने के लिए तो लाख प्रयास किए पर योग जैसी पुरातन और ‘ब्रह्मास्त्रीय विज्ञान’ की तरफ 2014 के पहले कितना ध्यान दिया गया ये किसी से छिपा नहीं है।
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस
इस मामले में नरेंद्र मोदी सरकार 110 प्रतिशत तारीफ की काबिल है। इसमें न सिर्फ योग को नई दशा और दिशा मिली, साथ ही योग वैश्विक चर्चा का विषय बना। इसी क्रम में हम इस बार 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की आठवीं सालगिरह है।
8 साल पीछे चलें तो योग दिवस को लेकर भी देश में हर योजनाओं की तरह खूब विरोध हुआ, कारण वही राजनीतिक वोट बैंक। कहा गया योग वैदिक काल, मंत्रोच्चार, ध्यान, साधना जैसी क्रियाओं का समायोजन है, ऐसे में यह एक धर्म विशेष का विषय है। कुछ बुद्धिजीवियों ने कहा- योग को जीवनशैली में शामिल करा कर सरकार देश के अल्पसंख्यकों के अस्तित्व को खत्म करने का प्रयास कर रही है। खैर, समय के साथ जैसे-जैसे इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर महत्व दिया जाने लगा.
हमारे समृद्ध इतिहास का प्रमाण है योग
माना जाता है कि योगाभ्यास की शुरुआत सभ्यता के साथ ही हुई थी। योग विद्या में, शिव को पहले योगी या आदि गुरु के रूप में देखा जाता है। पुराणों में जिक्र मिलता है कि कई हजार साल पहले, हिमालय में कांतिसरोवर झील के तट पर आदियोगी ने अपने गहन ज्ञान की शिक्षा सप्तर्षियों को दी जिन्होंने इस शक्तिशाली योग विज्ञान को एशिया, मध्य पूर्व, उत्तरी और दक्षिण अमेरिका सहित दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाया।
सिंधु सरस्वती घाटी सभ्यता के मुहरों और जीवाश्म अवशेषों में भी योग के प्रमाण मिलते हैं। इसके अलावा वैदिक और उपनिषद विरासत, बौद्ध और जैन परंपराओं, महाभारत और रामायण महाकाव्य, शैव, वैष्णव आदि परंपराओं में भी योग और साधना का जिक्र मिलता है।
यद्यपि पूर्व-वैदिक काल से ही योग का अभ्यास किया जाता रहा था, पर महान ऋषि महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्रों के माध्यम से इसे व्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महर्षि पतंजलि के बाद, कई ऋषियों और योग गुरुओं ने इसे प्रलेखित प्रथाओं और साहित्य के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया।
ऋषि-मुनियों के बाद आधुनिक युग में योग के प्रचार-प्रसार की चर्चा प्रधानमंत्री मोदी के बिना अधूरी मानी जाएगी। 2014 में सत्ता में आने के बाद से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने राजनीतिक दृष्टि से क्या-क्या उपलब्धि हासिल कीं, इससे इतर इस सरकार की सबसे बड़ी कामयाबी योग को वैश्विक मंच पर न सिर्फ लाना, बल्कि पश्चिमी देशों को भी योग के प्रति आकर्षित कर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की शुरुआत कराना है।