विश्वकर्मा के जन्मदिवस के रूप में विश्वकर्मा पूजा की जाती है। ऋग्वेद के अनुसार विश्वकर्मा भगवान यांत्रिकी और वास्तुकला ज्ञाता माने जाते हैं। कुछ किंवदंती की मानें, उन्होंने भगवान कृष्ण के पवित्र शहर द्वारिका का निर्माण किया था। आज हम इस लेख में भगवान विश्वकर्मा की पूजा कब और कैसे की जाती है, इस संबंध में विस्तार से जानेंगे। साथ ही उनके कुछ रोचक विवरण का भी यहां उल्लेख किया गया है।

पूजा का शुभ मुहूर्त

– इस वर्ष 17 सितंबर शनिवार को चंद्रमा वृषभ राशि में होगा। जबकि शुभ रोहिणी नक्षत्र दोपहर के 12:21 तक रहेगा।

– संक्रांति का 1 : 46 तक रहेगा और राहुकाल 17 सितंबर को 9 से 10 : 30 मिनट तक रहेगा।

– विश्वकर्मा पूजा के लिए शुभ मुहूर्त चौघड़िया प्रात:काल 7 : 38 से 9 : 11 तक होगा।

– विश्वकर्मा पूजा चौघड़िया दोपहर 12 : 15 से 1: 47 तक होगा और लाभ चौघड़िया दोपहर 1 : 47 से लेकर 3 : 20 तक होगा।

– ऊपरोक्त सभी समय और तिथि जानने के बाद आप घर में सुबह 7 : 38 से 9 बजे तक विश्वकर्मा की पूजा कर सकते हैं।

– जो लोग वाहनों का कारोबार करते हैं, उन्हें इस दिन 12 : 15 से 1 : 46 तक विश्वकर्मा पूजा करने के लिए शुभ मुहूर्त है।

– कल-कारखाने में भी विश्वकर्मा पूजा का समय दोपहर 12 से लेकर 1 : 46 तक काफी शुभ रहेगा।

पूजा का विधि-विधान

विश्वकर्मा पूजा के संबंध में विशेषज्ञों का कहना है कि पूजा के दिन सुबह-सुबह पूजा करनी चाहिए। इसके लिए पूजा के दिन फैक्ट्री, वर्कशॉप, दुकान आदि के स्वामी को प्रात:काल स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद साफ-सुथरे वस्त्र धारण करके पूजा के शुभ मुहूर्त के दौरान पूजा स्थल पर बैठ जाना चाहिए। पूजा के दौरान भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा को अपने सामने रखें। इसके लिए बेहतर रहेगा कि जातक पूजा चौकी पर भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा को स्थापित करें। इसके बाद अपने सामने पूजा की सभी सामग्री रखें। इसमें हल्दी अक्षत और रोली भी शामिल करें। इसके साथ ही भगवान विश्वकर्मा को अक्षत, फूल, चंदन, धूप, अगरबत्ती, दही, रोली, सुपारी, रक्षा सूत्र, मिठाई, फल आदि अर्पित करें और भगवान केसामने धूप-दीप जलाएं और इससे आरती करें। आपको भगवान के सामने वे सभी यंत्र या लौहे के सामान भी रखने के चाहिए जो आपके कामकाजी जीवन के लिए उपयोग में आते हैं। इसके बाद कलश को हल्दी और चावल के साथ रक्षासूत्र चढ़ाते हुए ‘ॐ आधार शक्तपे नम: और ॐ कूमयि नम’, ‘ॐ अनन्तम नम:’, ‘पृथिव्यै नम:’ मंत्र का जप करें। मंत्र जाप करने के लिए रुद्राक्ष की माला का उपयोग करें। अंत में विश्वकर्मा भगवन की आरती करें और पंडित को दान-दक्षिणा दें। इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि पूजा के समय आपका मन बिल्कुल साफ होना चाहिए। शुद्ध मन से की गई पूजा ही सफल होती है।

 

कहां मनाई जाती विश्वकर्मा जयंती

विश्वकर्मा पूजा के दिन सूर्य सिंह राशि से कन्या राशि में प्रवेश करता है। इस दिन का औद्योगिक क्षेत्र, भारतीय कला, मजदूर, अभियंत्रिकी आदि का विशेष महत्व होता है। विश्वकर्मा जयंती को भारत के जम्मू कश्मीर, पंजाब, हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा, त्रिपुरा, बिहार और झारखंड जैसे कई राज्यों में मनाया जाता है। नेपाल में भी विश्वकर्मा पूजा को बड़े उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है।

ये हैं कुछ रोचक विवरण

पौराणिक कथाओं में विश्वकर्मा द्वारा कई उत्कृष्ट नगरियों के निर्माण के रोचक विवरण मिलते हैं जैसे स्वर्गलोक की इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, रावण की स्वर्ण नगरी लंका, भगवान श्रीकृष्ण की समुद्र नगरी द्वारिका। इन सब अद्भुत कीर्तियों के निर्माण का श्रेय विश्वकर्मा भगवान को ही जाता है। यही नहीं उन्होंने पांडवों की राजधानी हस्तिनापुर का भी निर्माण किया है। पौराणिक कथाओं में इन मिलते हैं। इसके अलावा उड़ीसा का जगन्नाथ मंदिर भी विश्वकर्मा के कौशल का ही अप्रतिम उदाहरण है।

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