गुजरात के पाटण जिले के सरस्वती तालुका के भटसन गांव में रहने वाले 58 वर्षीय किसान नरसिंहभाई प्रजापति ने तीन साल पहले एक बड़ा फैसला लिया. उन्होंने पारंपरिक खेती के तरीकों को छोड़कर प्राकृतिक खेती को अपनाया. उनके बेटे जयेशभाई प्रजापति, जो बनास डेयरी में काम करते हैं, भी इस पहल में उनके साथ हैं. दोनों बाप-बेटे अब 7 बीघा जमीन पर प्राकृतिक तरीके से खेती कर रहे हैं और सालाना एक लाख रुपये तक की कमाई कर रहे हैं.

अगर बच्चों को ज़हर नहीं देते तो धरती को क्यों?”
जयेशभाई कहते हैं, “अगर हम अपने बच्चों को ज़हर नहीं देते, तो धरती को भी ज़हर क्यों दें?” यह सोच ही उनकी खेती की दिशा को बदलने की वजह बनी. उन्होंने महसूस किया कि रासायनिक खेती न केवल जमीन को नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि अनाज भी जहरीला बना रही है. यही कारण है कि उन्होंने और उनके पिता ने जीवनभर गौ-आधारित प्राकृतिक खेती करने का संकल्प लिया.

गौ आधारित खेती से मिली ज़मीन को नई जान
नरसिंहभाई ने गिर नस्ल की देसी गायें पाल रखी हैं. गाय के गोबर और मूत्र से वह ठोस जीवामृत और तरल जीवामृत तैयार करते हैं. यह जैविक मिश्रण फसल की बढ़वार और उपज को बढ़ाता है. वे ठोस अमृत को 15 दिन में खेत में मिलाते हैं और 30-35 दिन में तैयार खाद खेत में डालते हैं. जीवामृत का उपयोग फसल की ज़रूरत के अनुसार 15 से 21 दिन में किया जाता है.

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