जब माता तुल्य गौ को मन गया है तो एक खबर हम आपको बताने जा रहे हैं जहाँ गौ माता का लोगों ने पुत्र के रूप में अंतिम संस्कार किया खबर मध्यप्रदेश से है जहाँ एक गौ माता की शव यात्रा को पूरे विधि विधान से निकला गया।
हिन्दू धर्म में गौ को माता माना गया है, गौ को पूजा जाता है, पुराणों में धर्म को भी गौ रूप में दर्शाया गया है, भगवान श्रीकृष्ण गाय की सेवा अपने हाथों से करते थे और इनका निवास भी गोलोक बताया गया है। इतना ही नहीं गाय को कामधेनु के रूप में सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला भी बताया गया है। हिंदू धर्म में गाय के इस महत्व के पीछे कई कारण हैं जिनका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी है। शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की थी तो सबसे पहले गाय को ही पृथ्वी पर भेजा था। सभी जानवरों में मात्र गाय ही ऐसा जानवर है जो मां शब्द का उच्चारण करता है, इसलिए माना जाता है कि मां शब्द की उत्पत्ति भी गौवंश से हुई है।
जब माता तुल्य गौ को मन गया है तो एक खबर हम आपको बताने जा रहे हैं जहाँ गौ माता का लोगों ने पुत्र के रूप में अंतिम संस्कार किया खबर मध्यप्रदेश से है जहाँ एक गौ माता की शव यात्रा को पूरे विधि विधान से निकला गया। घटना दमोह जिले के हटा की है। यहाँ हाथी के नाम से यह गाय प्रसिद्ध थी। इसकी जानकारी मिलते ही शहर के लोग इकट्ठे हो गए और उन सभी ने मिलकर पूरे रीति-रिवाज के साथ गाय की शव यात्रा निकाली।
सुरभि गौशाला के गौ सेवक अंशुल तिवारी कहते हैं कि यह गया करीब डेढ़ साल पहले सड़की पर पड़ी मिली थी। बीमारी के कारण पूरी तरह से उसका शरीर जर्जर हो गया था। लेकिन बाद हटा भूतेश्वर महादेव मंदिर में चलाई जा रही गौशाला में उसे लाया गया। गौशाला में लाने के बाद उसका इलाज शुरू कर दिया गया। करीब एक हफ्ते के इलाज के बाद आखिरकार गाय स्वस्थ हुई।
लेकिन फिर भी कोई उसे लेने के लिए नहीं आया। गौशाला में गाय का बहुत ही अच्छे तरीके से ख्याल रखा जाता था, जिस कारण से जल्द ही वह हट्टी-कट्टी भी हो गई। इसी कारण से लोगों ने उसे ‘हाथी’ कहना शुरू कर दिया। गाय इतनी सीधी थी कि गौशाला में अगर किसी गाय की मौत हो जाती थी तो वो उसके बछड़ों को अपना दूध पिलाती थी। इसके अलावा छोटे बच्चे तक उसके थन में मुँह लगाकर दूध पी लेते थे।
अपने इसी सीधेपन के कारण वो सभी के लिए चहेती बनी हुई थी। हाल ही में ‘हाथी’ बीमार हो गई थी, जिसके बाद अब उसकी मौत हो गई। उसकी मौत के बाद गौसेवकों ने उसकी शव यात्रा निकालने का निर्णय लिया। इसके तहत उसके शव का श्रृंगार कर उसे लाल चुनरी और फूल-माला से सजाया गया और बैंड बाजे के साथ उसकी अंतिम यात्रा निकाली गई। इस मौके पर लोगों ने गौमाता के जयकारे लगाए।