भारत के एक छोटे से शहर को धर्म के नाम पर भड़काया जा रहा है। ये शहर उत्तराखंड का हल्द्वानी है जहां दावा किया जा रहा है कि मुसलमान खतरे में हैं। आरोप लग रहे हैं कि बीजेपी की सरकार उनके घर गिराने जा रही है जबकि हकीकत ये है कि ये पूरी कार्रवाई अतिक्रमण की वजह से हो रही है। क्योंकि आरोप है कि इन लोगों ने रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण किया हुआ है। अब रेलवे अपनी जमीन खाली करवा रही है लेकिन इस जमीन पर 95 प्रतिशत की आबादी मुसलमानों की है इसीलिए आगे के कुछ दिनों के लिए यहां राजनीतिक मसाला तैयार हो रहा है।

दरअसल, हाईकोर्ट ने हल्द्वानी में रेलवे ट्रैक के पास बसी अवैध कॉलोनियों को गिराने के लिए एक निर्णय सुनाया है। जिसके बाद लिबरल गैंग के अंदर खलबली मच गई है और ईमानदार पत्रकार रवीश कुमार से लेकर मोहम्मद जुबैर तक सभी लिबरल गैंग के लोग इस मामले को शाहीन बाग जैसा मामला बताने में जुट गुए हैं। हालांकि सरकार द्वारा इन अवैध कॉलोनियों पर अभी कोई कार्रवाई नहीं की गई है फिर भी लिबरल गैंग के पेट में दर्द हो रहा है।सबसे पहले जानते हैं कि पूरा मामला क्या है? तो उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे स्टेशन के किनारे लगभग 2।5 किलोमीटर लंबी पट्टी पर अवैध कॉलोनियां बसी हुई हैं और ये कॉलोनियां स्वतंत्रता के बाद से बसना शुरू हुई थीं। रेलवे के अनुसार वनभूलपुरा में अवैध कब्जे के दायरे में आने वाली ढोलक बस्ती, गफूर बस्ती के साथ ही इंदिरा नगर, लाइन नंबर 17, बड़ी ठोकर और छोटी ठोकर के इलाके शामिल हैं।

जब देश को स्वतंत्रता मिली उस दौर में इस क्षेत्र के आसपास बड़े बगीचे, लकड़ी के गोदाम और लकड़ी के कारखाने हुआ करते थे, इन्हीं बगीचों और कारखानों में काम करने के लिए रामपुर, मुरादाबाद और बरेली से मुस्लिम समुदाय के लोगों को यहां लाया गया था। बगीचों में काम करते हुए लोगों ने रेलवे लाइन के पास पहले अपनी झुग्गियां लगाईं और वे झुग्गियां कच्चे मकानों से होती हई धीरे-धीरे पक्के मकानों में परिवर्तित हो गईं। रेलवे द्वारा दिए गए आंकड़ों को देखा जाए तो यह कोई छोटा-मोटा अतिक्रमण नहीं है बल्कि 78 एकड़ भूमि पर किया गया कब्जा है जिसमें 4000 से अधिक परिवार यहां पर रह रहे हैं और इन परिवारों में अधिकतर मुस्लिम परिवार हैं।

वहीं रेलवे ने यह भी दावा किया है कि जिस जगह पर अतिक्रमण हुआ है वहां पर कभी ट्रेन की पटरियां हुआ करती थीं। जिसका नक्शा आज भी रेलवे के पास मौजूद है। ऐसे में रेलवे ने कोर्ट के आदेश के बाद उसी जगह को चिह्नित किया है जहां पटरियों के निशान आज भी मौजूद हैं। अब जब कार्रवाई की बारी आई है तो बैनर पोस्टर लेकर महिलाओं और बच्चों के साथ लोग बैठे हुए हैं। ये लोग एक तरफ कार्रवाई को गलत ठहरा रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ लिबरल गैंग के लोगों ने इसके कानूनी पक्ष की जांच परख किए बिना ही सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है और हल्द्वानी में दिल्ली जैसा शाहीन बाग बनाने के लिए गला फाड़-फाड़ कर चिल्लाने लगे हैं।

प्रश्न है कि मामला कोर्ट में कैसे पहुंचा और हाइकोर्ट ने इस पर निर्णय क्या दिया है? साल 2016 में हल्द्वानी के गौलापार निवासी रवि शंकर जोशी ने एक जनहित याचिका दायर कर इस मामले को कोर्ट में उठाया था। मामले पर लंबी सुनवाई और सभी पक्षों व साक्ष्यों को देखने और सुनने के बाद हाईकोर्ट इस नतीजे पर पहुंचा कि हल्द्वानी रेलवे स्टेशन से सटी 78 एकड़ जमीन पर अवैध रूप से कब्जा किया गया है जिसे हटाया जाना जरूरी है। 20 दिसंबर को नैनीताल कोर्ट द्वारा यह निर्णय सुनाया गया। ऐसे में प्रशासन हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्देश का पालन कर कार्रवाई कर रहा है।

ज्ञात हो कि हल्द्वानी के इस मामले से पहले साल 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम के संसद में पारित होने के बाद उसे अकारण ही एक बड़ा मुद्दा बनाने का प्रयास किया गया था। इसके अलावा NRC को लेकर भी विरोध प्रदर्शन किए गए। इन मुद्दों को माध्यम बनाकर सरकार के विरुद्ध माहौल बनाने का बहुत प्रयास किया गया और 2020 के मार्च महीने तक प्रदर्शन किया गया था। इस कथित आंदोलन का केंद्र दिल्ली का शाहीन बाग था जहां लोगों ने लगभग चार महीनों तक राष्ट्रीय राजमार्ग को बंद करके रखा था जिसके चलते बहुत सारे लोगों को आने जाने में परेशानियों का सामना करना पड़ता था।

अब आप कहेंगे कि यहां इस आंदोलन का उल्लेख करने का औचित्य ही क्या है। दरअसल, जिस तरह से शाहीन बाग में महिलाओं को आगे करके कथित आंदोलन चलाया जा रहा था और लिबरल गैंग पर्दे के पीछे से उस षड्यंत्रकारी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे उसी तरह हल्द्वानी में भी महिलाओं को आगे करके लिबरल गैंग उनका नेतृत्व कर रहा है जबकि यह साफ-साफ दिख रहा है कि भूमि पर अतिक्रमण किया गया है। ये तो ऐसा ही कि पहले चोरी करो फिर सीना जोरी करो और कहो कागज नहीं दिखाएंगे। देश संविधान से चलता है ना कि भावनात्मक या धार्मिक आधार पर। अब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँच चुका है तो नेताओं को बड़बोले बयान देने की बजाय अदालत के आदेश का इंतजार करना चाहिए। वैसे हल्द्वानी में आंदोलन का जो स्वरूप दिखाई दे रहा है उससे एक बात साबित हो गयी है कि शाहीन बाग कोई संयोग नहीं बल्कि प्रयोग था जोकि अब जगह-जगह दोहराया जा रहा है। अवैध कॉलोनियों से जब भी अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की जाती है तो उसे सियासी लोग धार्मिक रंग देने का काम करते हैं। दिल्ली में पिछले साल एमसीडी का बुलडोजर शाहीन बाग समेत कई अन्य इलाकों में पहुँचा तो इस कार्रवाई को एक धर्म विशेष के लोगों के खिलाफ अभियान करार दिया गया। अब उत्तराखंड चर्चा में है क्योंकि हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के पास रेलवे की जमीन पर बनी अवैध कॉलोनी से कब्जा हटाने का जो आदेश उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने दिया है उसके खिलाफ सियासत शुरू हो गयी है। एकदम शाहीन बाग के आंदोलन की तर्ज पर महिलाओं और बच्चों को ठंड के मौसम में आगे कर प्रदर्शन करवाया जा रहा है, कैंडल मार्च निकाले जा रहे हैं। यहाँ हमें समझना होगा कि सरकारी जमीन सार्वजनिक संपत्ति होती है किसी एक की बपौती नहीं। सरकारी जमीन से कब्जा छुड़वाने के प्रयास को अन्याय का रूप देना गलत है।

इस पूरे घटना चक्र का एक मानवीय पहलू भी हैं । उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने 20 दिसंबर को हल्द्वानी में बनभूलपुरा में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण करके बनाए गए ढांचों को गिराने के आदेश दिए थे। न्यायालय ने कहा था कि अगर जरूरत पड़े तो जिला प्रशासन अतिक्रमण हटाने के लिए पैरा मिलिट्री फोर्स की मदद ले, फिर भी कोई दिक्कत हो तो बलपूर्वक कार्रवाई की जाए। इसके बाद जगह खाली करने के लिए स्थानीय समाचार पत्रों की मदद से नोटिस दिये गये। जिसके बाद हल्द्वानी से कांग्रेस विधायक सुमित हृदयेश के नेतृत्व में क्षेत्र के निवासियों ने उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। इलाके के लोगों का कहना है कि वे लोग इस क्षेत्र में 70 साल से रह रहे हैं। वहां 20 मस्जिदें, 9 मंदिर, पानी की टंकी, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, 1970 में डाली गई एक सीवर लाइन, दो इंटर कॉलेज और एक प्राथमिक विद्यालय है इसलिए यह क्षेत्र अवैध कब्जे वाला नहीं है। इलाके के लोगों का कहना है कि हम प्रधानमंत्री, रेल मंत्री और मुख्यमंत्री से अपील करते हैं कि वे इस तथा-कथित अतिक्रमण को हटाने पर मानवीय पहलू से विचार करें। इलाके के लोग सवाल उठा रहे हैं कि अगर यह रेलवे की जमीन थी तो सरकार ने इसे पट्टे पर कैसे दिया था?

इस मामले में क्षेत्र के कांग्रेस विधायक सुमित हृदयेश ने कहा, ”करीब सौ साल से इस क्षेत्र में लोग बसे हुए हैं। यहां 70 साल पुरानी मस्जिदें और मंदिर हैं। यहां नजूल जमीन, पूर्ण स्वामित्व वाली भूमि और लीजधारक हैं।” उन्होंने कहा, ”रेलवे जिस 78 एकड़ जमीन को अपना बताता है, उसे खाली करने का विरोध करने के लिए हम व्यक्तिगत रूप से उच्च न्यायालय गये। हम उच्चतम न्यायालय भी गये जहां हमारे वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद मामले की पैरवी कर रहे हैं लेकिन जिस सरकार ने जमीन पर स्कूल एवं अस्पताल बनवाये, उसने अपने नागरिकों की कोई परवाह नहीं की।’’ विधानसभा में हल्द्वानी सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे सुमित हृदयेश ने हाल में प्रदर्शनकारियों के धरने में भी हिस्सा लिया था। हम आपको बता दें कि यह सीट पारंपरिक रूप से वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं उनकी मां इंदिरा हृदयेश जीतती थीं।

जहां तक इस पूरे मामले का सवाल है तो आपको बता दें कि उत्तराखंड उच्च न्यायायल ने हल्द्वानी के इस इलाके में रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने का 20 दिसंबर को आदेश दिया था। न्यायालय ने अतिक्रमणकर्ताओं को वह जगह खाली करने के लिए एक हफ्ते का नोटिस देने का आदेश दिया था। हालांकि बनफूलपुरा के हजारों बाशिंदों ने अतिक्रमण हटाने का यह कहते हुए विरोध किया कि वे बेघर हो जायेंगे और स्कूल जाने वाले उनके बच्चों का भविष्य तबाह हो जाएगा।

इस बीच, कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी अनुरोध किया है कि वे अतिक्रमण हटाने संबंधी इस आदेश पर मानवीय तरीके से विचार करें क्योंकि ऐसा होने पर हजारों लोग बेघर हो जाएंगे। उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नाम एक खुला पत्र लिखते हुए इसे सोशल मीडिया पर शेयर भी कर दिया है। उन्होंने मुख्यमंत्री से अपील की है कि कानूनी पक्ष के इतर मानवीय दृष्टिकोण से मामले में कोई बीच का रास्ता निकालना चाहिए। हरीश रावत ने अपने पत्र के माध्यम से सवाल भी किया है कि यदि 50 हजार से ज्यादा लोगों को हटाया जाएगा तो ये लोग कहां जाएंगे? हरीश रावत ने कहा है कि अशांति का वातावरण पूरे हल्द्वानी और कुमाऊं के अंचल में फैलेगा जोकि ठीक नहीं होगा। उन्होंने कहा कि आज भले कुछ लोग चुप हों लेकिन जब स्थितियां बिगड़ेंगी तो वो लोग भी सरकार के विवेक पर उंगली उठाएंगे। हरीश रावत ने पत्र के माध्यम से चेतावनी भी देते हुए कहा है कि जहां तक सवाल हमारे कर्तव्य का है, तो हम केवल इतना भर कर सकते हैं कि जब घर तोड़ने के लिए हथौड़ा उठेगा तो हम उसके आगे बैठ सकते हैं। वहीं एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि प्रधानमंत्री को इंसानियत की बुनियाद पर हल्द्वानी के लोगों की मदद करनी चाहिये और उन्हें वहां से नहीं निकालना चाहिए। उन्होंने सवाल किया है कि हल्द्वानी के लोगों के सर से छत छीन लेना कौन-सी इंसानियत है?

फ़िलहाल हल्द्वानी जमीन खाली करने के उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला आ गया  है। सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा दिया है। इसके साथ ही उत्तराखंड सरकार को नोटिस भी जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने अतिक्रमण और तोड़फोड़ पर रोक लगा दी है। अगली सुनवाई 7  फरवरी को होगी । दोनों पक्षों का साक्ष प्रस्तुत करने को कहा गया है । बहरहाल, मामला  जब  न्यायालय में है इसलिए प्रदर्शनकारियों को भी घरों में बैठना चाहिए और नेताओं को भी जुबान पर काबू रखना चाहिए साथ ही सोशल मीडिया पर तनाव बढ़ाने जैसी पोस्ट करने से भी बचना चाहिए। सांप्रदायिक सौहार्द्र कायम रख कर ही हम देश को आगे बढ़ा सकते हैं।हालांकि इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की गई है और ऐसे वक्त जब  को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी हैं  दोनों पक्षों को संयम रखना चाहिए ।

अशोक भाटिया

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