एक महान समाज सुधारक, भारत की सामाजिक क्रांति के पथ प्रदर्शक, महान विचारक, महान दार्शनिक, लेखक और महान क्रन्तिकारी महात्मा ज्योतिबा गोविंदराव फुले का जन्म ब्रिटिश भारत में पुणे के खानबाड़ी नामक स्थान पर 11 अप्रैल 1827 को हुआ था। इनका जन्म एक ‘माली’ जाति में हुआ था, जिसे सामाजिक व्यवस्था के अनुसार पिछड़ी जाति (शुद्र) माना जाता था। इनका परिवार कई पीढ़ियों से फूलों के गज़रे बनाने का काम करता था इसलिए उन्हें “फुले” कहा जाता था। बचपन में ही इनकी माता का देहांत हो गया था, इसलिए इनका पालन- पोषण एक बाई ने किया था। बाद में इनके पिता ने दूसरा विवाह कर लिया था। ज्योतिबा फुले ने कुछ समय तक मराठी में अध्ययन किया, परन्तु सामाजिक भेदभाव के कारण इनको पढाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। बाद में, 21 वर्ष की आयु में उन्होंने अंग्रेजी विषय के साथ सातवीं कक्षा पास की।

एक प्रसंग है, जिसने ज्योतिबा फुले के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला था। एक बार वे अपने एक परिचित की शादी में जातिगत भेदभाव के कारण बुरी तरह अपमानित हुए थे। उन्हें धक्के देकर मंडप से बाहर कर दिया गया था। घर आकर उन्होंने अपने पिता जी से इसका कारण पूछा। पिता जी ने बताया कि,” सदियों से यही सामाजिक व्यवस्था है कि हमें उनकी बराबरी नहीं करनी चाहिए। वे भूदेव यानि भूमि के देवता है, ऊँची जाति के लोग हैं और हम नीची जाति के लोग हैं। अतः हम उनकी बराबरी नहीं कर सकते हैं।” ज्योतिबा फुले ने अपने पिताजी से बहस की और कहा “मैं उनसे ज्यादा साफ़ सुथरा था, मेरे कपड़े अच्छे और साफ़ थे, मैं पढ़ा-लिखा और होशियार हूँ, फिर मैं उनसे नीच कैसे हो गया?” पिताजी गुस्से में आकर बोले, “मुझे यह नहीं पता परन्तु सदियों से ऐसा होता आ रहा है। हमारे सभी धर्म-ग्रंथों और शास्त्रों में यही लिखा है। हमें भी यही मानना पड़ेगा, क्योंकि यही परम्परा है और यही सत्य है।” ज्योतिबा फुले सोचने लगे कि धर्म तो जीवन का आधार है फिर भी धर्म को बताने वाले ग्रंथों में ऐसा क्यों लिखा है जिसके कारण समाज में इतनी गैर बराबरी और छुआछूत है। यह परम सत्य कैसे हो सकता है। यह असत्य है। यदि यह असत्य है तो मुझे सत्य की खोज करनी पड़ेगी। इसी विचार के साथ कार्य करते हुए उन्होंने 1873 में “सत्य शोधक समाज” की स्थापना की। सत्य शोधक का अर्थ है सत्य का शोधन वाला अर्थात् सत्य को जानने वाला।
महामना ज्योतिबा फुले के जीवन का मूल उद्देश्य महिलाओं को शिक्षा का अधिकार प्रदान करना, बाल-विवाह का विरोध, विधवा-विवाह का समर्थन, कुप्रथाओं और अन्धविश्वास का अंत करना था। इनका विवाह 1840 में माता “सावित्री बाई” से हुआ जो बाद में स्वयं एक महान समाज सुधारक बनी। डिप्रेस्ड क्लास और महिला शिक्षा के लिए दोनों ने मिलकर काम किया।
19 वीं सदी में महिलाओं को शिक्षा नहीं दी जाती थी। उन्हें इस भेदभाव से मुक्ति दिलाने के लिए ज्योतिबा फुले ने स्वयं अपनी पत्नी को पढ़ाने का निश्चय किया। अपनी पत्नी ‘सावित्री बाई फुले’ को पढ़ाकर उन्हें देश की पहली महिला शिक्षक बनाया। महिलाओं की शिक्षा व उत्थान के लिए ज्योतिबा फुले ने अपनी पत्नी के साथ मिलकर लड़कियों के लिए देश का पहला स्कूल खोला। जब उच्चवर्णीय समाज को इस बात की जानकारी हुई तो उनका घोर विरोध किया और समाज में महिला की शिक्षा को अधर्म और समाज का अपमान बताया। समाज के लोगों ने इनके पिता गोविंदराव फुले पर इसे रोकने का दबाव बनाया। अपने पिता के कहने पर भी ज्योतिराव जब नहीं माने तो उन्हें घर छोड़ने की धमकी दी गई। ज्योतिबा फुले ने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया और पत्नी के साथ घर छोड़ कर चले गए।
ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी जब पाठशाला जाते थे तो लोग उन पर पत्थर, गोबर और कीचड़ फेंकते थे, मगर वे जरा भी विचलित नहीं होते थे और हिम्मत के साथ समाज सुधार और शिक्षा के काम में लगे रहते थे। अछूतों के साथ जातिगत भेदभाव के चलते उन्हें सार्वजानिक तालाबों से पानी लेने पर पाबंदी थी। सार्वजानिक रास्तों का प्रयोग करने, तालाबों या कुओं के पास चले जाने पर उन्हें कठोर दंड दिया जाता था। ज्योतिबा फुले इस अमानवीय व्यवहार से बहुत दुखी होते थे। उन्होंने अछूतों के लिए अपना निजी कुआं खोल दिया और सभी को वहां से पानी भरने का आवाह्न किया। उनका मानना था कि,
“विद्या बिन मति गई,
मति बिन गति गई,
गति बिन नीति गई,
नीति बिन धन गया,
धन बिन शूद्र पतित हुए।”
विद्या हासिल न होने के कारण इतना घोर अनर्थ हुआ। शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए ज्योतिबा फुले पैदल गाँव – गाँव जाकर लोगों को शिक्षा के लिए प्रेरित करते थे। सामाजिक भेदभाव, जाति प्रथा, अशिक्षा,अज्ञान, कुप्रथा, अन्धविश्वास के विरुद्ध संघर्ष करते हुए ज्योतिबा फुले ने समाज को एक नई दिशा प्रदान की। उनके कार्यों से प्रभावित होकर सन 1888 में बम्बई की एक विशाल जनसभा में उन्हें “महात्मा” की उपाधि दी गई। उन्होंने किसानों की भलाई के लिए बहुत काम किये। इनके कार्यों से प्रभावित होकर अंग्रेजों ने ‘कृषि एक्ट’ बनाया। अंग्रेज़ उन्हें महिला शिक्षा का पुरोधा मानते थे। महात्मा ज्योतिबा फुले ने अपने ज्ञान और अनुभव से साहित्य के क्षेत्र में भी योगदान दिया। “गुलामगिरी”, “तृतीय रत्न छत्रपति शिवाजी महाराज”, “राजा भोंसले का पखड़ा”, “किसान का कोड़ा”, “अछूतों की कैफियत” आदि इनकी प्रमुख साहित्यिक रचनाएं हैं।
28 नवम्बर 1890 को पुणे में उनकी मृत्यु हो गई। बाबा साहेब डॉ० भीमराव अंबेडकर महात्मा फुले के जीवन संघर्ष, उनके विचारों और कार्यों से बहुत प्रभावित हुए थे। इनके द्वारा शुरू किये गए महान कार्यों को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने फुले की नीतियों को संविधान में कानूनन रूप प्रदान किया और पिछड़ों, अछूतों और महिलाओं की तरक्की का मार्ग प्रशस्त किया।
आज भारत का पिछड़ा वर्ग और महिलाएं ,सम्मानजनक जीवन जी रही हैं, और राष्ट्र-निर्माण में अपना सहयोग कर पा रही हैं , तथा बहुजन हिताय सर्वजन हिताय समाज के लोग अपने जीवन को सुखी बना पा रहे हैं, तो इसका बहुत बड़ा श्रेय महात्मा ज्योतिबा फुले को जाता है।
आज 11 अप्रैल के दिन उनके जन्मदिन के सुअवसर पर हम उन्हें शत-शत नमन करते हैं, और विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उनके द्वारा किये गए समाज-सुधार के कार्यों के लिए उन्हें सदैव याद किया जायेगा। उन जैसा समाज सुधारक पाकर भारत भूमि धन्य हो गई।
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