Bhilwara Breaking News: राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्टाम्प पेपर पर लड़की बेचने का मामला सामने आया है. राजस्थान में बेटियों की खुलेआम नीलामी चल रही है. जब ये मामला संज्ञान में आया तो इस मामले को लेकर भीलवाड़ा सांसद सुभाष बहेड़िया ने लिखा सीएम अशोक गहलोत को पत्र लिखकर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग की. भीलवाड़ा जिले के गांव पण्डेर, जहाजपुर क्षेत्र का मामला है जहां कर्ज में डूबे गरीब लोगों को मजबूरी में यह काम करना पड़ता है.

लड़कियों के खरीद-बिक्री का मामला
बता दें कि राजधानी जयपुर से करीब 340 किलोमीटर दूर भीलवाड़ा जिले के एक गांव पंडेर में लड़कियों की खरीद-बिक्री का मामला सामने आया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि गांव की कई बस्तियों में लड़कियों को बेचकर देह व्यापार करवाया जाता है. भीलवाड़ा के पंडेर गांव की कई बस्तियों में गरीब परिवारों की लड़कियों को दलाल स्टाम्प पेपर पर खरीदकर सौदा करते हैं. गांव में कई ऐसी बस्तियां हैं जहां दो पक्षों के किसी विवाद पर जातीय पंचायत बैठती है यहां से लड़कियों की निलामी का खेल शुरू किया जाता है. बेटियों का सौदा कराने में दलाल की अहम भूमिका होती है.

लड़की को बेचने की पूरी प्रक्रिया स्टांप पेपर पर होती
जानकारी के मुताबिक किसी भी विवाद में जातीय पंचायत जिसको दोषी मानती है उस पर 5 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जाता है और जुर्माना नहीं होने पर पंचों की ओर से घर की बहन-बेटी को बेचने का दबाव बनाया जाता है. इसके बाद यही पंच दलाल बनकर लड़कियों को खरीदने और बेचने का काम करते हैं और अपना कमीशन लेते हैं. बताया गया है कि पंचों द्वारा किसी भी लड़की को बेचने की पूरी प्रक्रिया स्टांप पेपर पर होती है.

बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने साधा निशाना
इस मामले को लेकर बीजेपी ने कांग्रेस और राजस्थान सरकार पर बड़ा हमला किया है. बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कांग्रेस को आड़े हाथों लिया है. पात्रा ने आरोप लगाया है कि राजस्थान में बेटियों की खुलेआम नीलामी चल रही है और कांग्रेस के कुशासन से तंग आकर राजस्थान में बेटियों का रहना मुश्किल हो गया है.

सीधा निशाना इनके घर की लड़कियों पर
भीलवाड़ा में कई बस्तियां हैं, जहां आपसी विवाद हो या किसी तरह का झगड़ा, ये लोग पुलिस के पास नहीं जाते. यहां विवाद का निपटारा के लिए जातीय पंचायत बुलाई जाती है. इन लोगों का सीधा निशाना इनके घर की लड़कियों पर होता है. यहीं से लड़कियों को खरीग फरोख्त का धंधा शुरू होता है. कोई भी विवाद हो, जातीय पंचायत कभी भी पहली मीटिंग में फैसला नहीं सुनाई जाती, कई बार पंचायत बैठाई जाती है. हर बार जातीय पंचों को बुलाने के लिए दोनों पक्षों को करीब 50-50 हजार रुपए का खर्चा करना पड़ता है. इसके बाद जिस पक्ष को पंचायत दोषी करार देती है उसे 5 लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ता है.

दलाल बनकर बहन-बेटियों को बिकवाते हैं
इतना भारी भरकम जुर्माना भरना इनके लिए आसान नहीं होता. जातीय पंचायत अब उस लोगों के घर की बहन-बेटी को बेचने के लिए दबाव डालते हैं. कर्जा नहीं चुकाने पर समाज से बाहर करने की धमकी दी जाती है. इसके बाद पंच दलाल बनकर लड़कियों को खरीदारों के जरिए बोली लगाते है. पंचों को हर डील में कमीशन तय होता है. इसी कमीशन के लिए जातीय पंच गरीब परिवारों पर लाखों रुपए का जुर्माना ठोकते हैं, ताकि वह कर्जा उतारने के लिए अपने घर की लड़कियों को घर की दहलीज लांघनी पड़ती है और एक बाप को अपनी बेटी और एक भाई को अपनी बहन को बेचने के लिए मजबूर किया जाता है.

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