पवन वर्मा-
मध्य प्रदेश कांग्रेस के साथ ही देश भर में  कांग्रेस के कद्दावर नेता के रुप में अपनी अलग पहचान रखने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी का अचानक से कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने से अनेक राजनीतिक प्रश्न उठ खड़े हुए हैं। इस घटना क्रम के  राजनीतिक लोग अनेक मायने निकालने में लगे हुए हैं। सुरेश पचौरी मध्य प्रदेश की राजनीति में चार दशक से सक्रिय चेहरा है। उनका भी प्रदेश कांग्रेस में एक मजबूत गुट है, उनके कांग्रेस से जाने के बाद यह गुट अब भाजपा में जाकर कांग्रेस को धीरे-धीरे खोखला कर सकता है।
आखिर ऐसा क्या हो रहा है मध्य प्रदेश कांग्रेस में कि एक-एक कर कई बड़े नेता उसका हाथ छोड़कर भाजपा का दामन थाम रहे हैं। इसके पीछे क्या षड़यंत्र पूर्वक एक गुट  मध्य प्रदेश कांग्रेस में काम कर रहा है ? यह वह सवाल है जो प्रदेश कांग्रेस की हालत देखकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा का केंद्र बना हुआ है। कांग्रेस के कुछ नेताओं की उपेक्षा करना, नाराज नेताओं को न मनाना,  उन्हें पार्टी की ओर से कोई काम न देना ये किसी षड़यंत्र के तहत ही किया जा रहा है।
सुरेश पचौरी 1980 से लेकर 2018 तक प्रदेश कांग्रेस के मजबूत नेताओं में शुमार रहे। राजीव गांधी के दौर में उनका कद लगातार बढ़ता गया। इसी दौरान वे राज्यसभा में भेजे गए। भाषण शैली और अपनी बात को रखने में सुरेश पचौरी का कोई सानी नहीं हैं। हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों पर जबरदस्त पकड़ रखने वाले पचौरी ने धीरे-धीरे  राष्ट्रीय राजनीति में अपना दखल बढ़ाया। इसके चलते वे पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में मंत्री बनाए गए। उन्हें रक्षा उत्पादन का राज्यमंत्री बनाया गया था। इसके बाद वे मनमोहन सिंह की कैबिनेट में भी शामिल रहे। इस बार उन्हें कार्मिक और संसदीय कार्य राज्यमंत्री बनाया गया था। दोनों ही सरकार में उन्हें महत्वपूर्ण मंत्रालय सौंपे गए थे। अपने 50 वर्ष के   राजनीतिक सफर में वे भारतीय युवा कांग्रेस के महासचिव रहे। कांग्रेस सेवादल के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। इन सब के साथ वे चार बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे। उन्होंने उमा भारती के खिलाफ भोपाल लोकसभा से चुनाव भी लड़ा।
अपने पचास साल के कांग्रेस में सफर के दौरान उन्होंने मध्य प्रदेश में कई नेताओं को तैयार किया। इसमें प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एनपी प्रजापति, पूर्व मंत्री विजय लक्ष्मी साधो सहित विधायक आरिफ मसूद, पूर्व विधायक शंशाक भार्गव, संजय शुक्ला, विशाल पटेल, सांसद गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी,महिला कांग्रेस की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शोभा ओझा जैसे तमाम नेता उन्होंने प्रदेश भर में तैयार किए। इसके बाद भी ऐसे नेता की उपेक्षा करना, उन्हें उनकी काबिलियत के अनुसार काम न देना, उन्हें नजरअंदाज करना यह कई संकेत देता रहा।
पचौरी का मन बदलना आसान काम नहीं
सुरेश पचौरी कभी केंद्र में कांग्रेस के रणनीतिकारों में शामिल हुआ करते थे, लेकिन धीरे-धीरे पार्टी ने उन्हें हाशिये पर रखना शुरू किया। उनका अपना प्रभाव प्रदेश के ब्राह्मणों में हैं, पार्टी ने उनके इस प्रभाव को भी समझने का प्रयास नहीं किया। उनके समर्थकों को तवज्जो मिलना कम होती गई। उनकी सलाह के बगैर ही मध्य प्रदेश कांग्रेस में निर्णय होने लगे। पिछले 5 साल ये यही स्तिथि बनी हुई थी। इसलिए न वे, बल्कि उनसे जुडे़ कई नेता भी कांग्रेस के पूर्व और वर्तमान नेतृत्व से खफा होने लगे।
राज्यसभा में दिग्विजय सिंह ने दिया झटका
मध्य प्रदेश से राज्यसभा की चार सीटों को भरा जाना था, जिसमें से कांग्रेस के खाते में एक सीट आना थी। इस सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने अपने समर्थक अशोक सिंह को भेजने में सफलता पाई। जबकि अशोक सिंह का राजनीतिक कद प्रदेश की राजनीति में ऐसा नहीं हैं कि उसका फायदा कांग्रेस को मिल सके, इसके बाद भी सुरेश पचौरी, अरुण यादव जैसे दिग्गज नेताओं को दरकिनार कर दिग्विजय सिंह समर्थक को राज्यसभा में भेजा गया। पचौरी लंबे समय से पार्टी में  उपेक्षित चल रहे थे। पचौरी के भाजपा में जाने के बाद दिग्विजय सिंह से खफा कई नेता भी अब भाजपा की तरफ जाने से परहेज नहीं करेंगे।
ऐसे में लोकसभा चुनाव के बीच में कांग्रेस में और बड़ी टूट देखने को मिल सकती है। खास बात यह है कि कांग्रेस में उपेक्षित चल रहे नेताओं को मनाने का काम पार्टी का कोई भी नेता नहीं कर रहा है। इससे साफ है कि कांग्रेस के ताकतवर नेता भी चाहते हैं कि पार्टी में उनका ही बोलबाला रहे और उनके विरोधी भाजपा का दामन थामते रहें।
Previous articleसियासत’ जरूरी पर देश, धर्म और संस्कृति का सम्मान भी आवश्यक
Next articleअमर सिंह “चमकीला” के गीत ने पैदा किया उन्माद

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here