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जो गौशाला बनवाएगा वो वोट पाएगा’, बुधनी में गाय बनी सियासी मुद्दा

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भोपाल: मध्य प्रदेश की हाईप्रोफाइल सीट बुधनी का चुनावी मुद्दा गाय भी है. इस सीट पर एक पूरा इलाका गाय की खातिर वोट करने जा रहा है. ‘जो गौशाला बनवाएगा वो वोट पाएगा.” इस मांग के साथ छिंदगांव काछी गांव का वोटर सवाल कर रहा है. क्या सड़कों पर बैठी गांवों को आसरा मिल पाएगा? ईटीवी भारत बुधनी की ग्राउण्ड रिपोर्ट के लिए जब यहां पहुंचा तो इस इलाके में बिजली, सड़क, पानी की कहानी से कहीं आगे मुद्दा गाय थी. सड़कों पर बैठी वो गाय जो आए दिन दुर्घटना का शिकार होती हैं.

सड़कों पर गाय यानी आप छिदगांव में हैं
बुधनी विधानसभा सीट पर जब हम छिदगांव की ओर बढ़ रहे थे. इस गांव में पहुंचने के रास्ते में ही सड़कों पर गायों का समूह दिखाई दिया. सड़क पर और सड़क के किनारे हुजूम में बैठी गाएं बता रही थीं कि इस गांव में गायें भरपूर तादात में हैं. उनके शैल्टर के कोई बेहतर इंतजाम नहीं हैं. इसी गांव के नौजवान राजेन्द्र कुशवाह गायों के बंदोबस्त के लिए अभियान छेड़े हुए हैं. ईटीवी भारत को बताते हैं, ”सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि छिदगांव में गौशाला नहीं हैं. बेचारी गाय कहां जाएं. आवारा मवेशी की तरह कभी सड़क किनारे और कभी सड़क पर बैठ जाती हैं. कभी वहीं खड़ी सुस्ताती हैं. हमारी इस चुनाव में यही मांग है कि उनके लिए गौशाला बनना चाहिए.”

गौ भक्त सरकार में गायों का भी हो ध्यान
गायों के लिए संघर्ष कर रहे सतीश बताते हैं कि, ”कोई स्थाई जगह नहीं होने से गाय सड़कों पर बैठी रहती हैं और कई बार दुर्घटना की शिकार होती हैं. इतना ही नहीं गाय की वजह से भी आए दिन गांव में दुर्घटनाएं होती रहती हैं. पिछले पांच साल से स्थिति ज्यादा बिगड़ गई है. अब मुख्यमंत्री को इस मामले में आवेदन दिया है, देखते हैं सुनवाई होती है या नहीं.”

अकेले छिदगांव में दो हजार से ज्यादा गायें
बुधनी विधानसभा सीट के इस छिदगांव की आबादी दो ढाई हजार के लगभग है. हैरत की बात है कि गाय भी यहां करीब इसी तादात में हैं. एक हजार से ज्यादा गाए हैं इस गांव में. राकेश बताते हैं यहां आने वाले लोग इस गांव को गायों के नाम से ही पहचानते हैं.

गायों के लिए चुनावी सभा में लगाए गए नारे
गायों की सुरक्षा और सेहत के लिए फिक्रमंद गांव के नौजवानों का एक दल सीएम डॉ. मोहन यादव की जनसभा में पहुंचा था. इन नौजवानों ने बाकायदा गायों के लिए पहले नारेबाजी की फिर आवेदन दिया कि चुनाव में गांव को ये भरोसा दिलाया जाए कि नए विधायक के आने के बाद विधानसभा के इस गांव में गौशाला बनवा दी जाएगी और हजार से ज्यादा की तादाद में भटक रही गायों को आशियाना मिल जाएगा.

बीजेपी के साथ शिवराज का गढ़ बुधनी, जीत का पंच
बुधनी में 1998 का आखिरी चुनाव था जो कांग्रेस ने जीता था. उसके बाद से ये सीट बीजेपी का गढ़ है. 2005 में हुए उपचुनाव के बाद से तो यहां उम्मीदवार भी बीजेपी के शिवराज सिंह चौहान ही रहे. कुल 17 चुनाव हुए हैं बुधनी में, जिसमें से पांच बार कांग्रेस को जीत मिली. बीजेपी की जीत का आंकड़ा 11 पर है. बुधनी उपचुनाव को मिलाकर शिवराज अब तक 5 चुनाव जीत चुके हैं. यानी जीत का पंच उन्होंने लगाया है. 18 साल बाद ये पहला चुनाव है जब शिवराज उम्मीदवार के तौर पर मैदान में नहीं हैं. 2006 में हुए उपचुनाव के बाद 2008 का विधानसभा चुनाव, 2013, 2018 और 2023 के विधानसभा को शामिल करें तो कुल 5 चुनाव शिवराज सिंह चौहान ने जीते हैं.

बुधनी सीट पर 20 उम्मीदवार मैदान में, दो लाख से ज्यादा वोटर
बुधनी सीट पर नाम वापसी के बाद अब कुल 20 प्रत्याशी मैदान में बचे हैं. बाकी यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच है. बीजेपी से रमाकांत भार्गव और कांग्रेस से राजकुमार पटेल मैदान में हैं. बुधनी में कुल वोटर दो लाख 76 हजार 799 हैं. जिसमें से पुरुषों का प्रतिशत एक लाख 33 हजार 280 है. जबकि महिला वोटर की संख्या एक लाख 43 हजार 111 हैं. थर्ड जेंडर इस सीट पर केवल 6 हैं.

काबरा फैमिली ने मुंबई के वर्ली में खरीदे दो अपॉर्टमेंट कीमत 198 करोड़

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मुंबई: कभी इलेक्ट्रिकल गुड्स का दुकान चलाने वाले रामेश्वर लाल काबरा के परिवार ने मुंबई में 198 करोड़ रुपये में दो अपॉर्टमेंट खरीदे हैं। काबरा फैमिली की तरफ श्रीगोपाल काबरा और उनके परिवार ने वर्ली में 198 करोड़ रुपये में अपार्टमेंट की डील की है। काबरा परिवार गुजरात में वडोदरा से जुड़ा हुआ है, हालांकि सालों पहले यह परिवार बांग्लादेश से नेपाल और फिर भारत आया था। इसके बाद रामेश्वर लाल काबरा ने एक दुकान से आरआर केबल ब्रांड खड़ा किया था। काबरा फैमिली ने 13,809 वर्ग फीट में फैले दो लग्जरी अपार्टमेंट ओबेरॉय थ्री सिक्सटी वेस्ट में लिए है। यह ओबेरॉय रियल्टी का एक लग्जरी प्रोजेक्ट है। मीडिया रिपोट्स के अनुसार दोनों अपार्टमेंट मुंबई स्थित लिस्टेड रियल एस्टेट फर्म ओबेरॉय रियल्टी के एक लग्जरी प्रोजेक्ट ओबेरॉय थ्री सिक्सटी वेस्ट की 62वीं मंजिल पर स्थित हैं। दस्तावेजों के अनुसार इन्हें 1.43 लाख रुपये प्रति वर्ग फीट से अधिक की दर से बेचा गया है। काबरा फैमिली ने अपार्टमेंट के लिए 7.29 करोड़ रुपये की स्टांप ड्यूटी और 60,000 रुपये का पंजीकरण शुल्क चुकाया गया है।

कैसे हैं ये अपॉर्टमेंट?

दो अपार्टमेंट में से एक यूनिट 7,167 वर्ग फीट का है और इसमें पांच कार पार्किंग स्थल हैं। यह अपार्टमेंट 62वीं मंजिल पर स्थित है और इसकी कीमत 102.76 करोड़ रुपये है। इसे राजेश काबरा और मोनल काबरा के नाम से पंजीकृत किया गया है। उसी मंजिल पर दूसरा अपार्टमेंट 6,642 वर्ग फीट का है और इसमें पांच कार पार्किंग स्थल हैं। इसकी कीमत 95.40 करोड़ रुपये है। दस्तावेजों के अनुसार, इन्हें कृतिदेवी काबरा और श्रीगोपाल काबरा ने खरीदा है। इनमें 10 कार पार्किंग स्थल शामिल हैं। आर आर ग्लोबल के एमडी और ग्रुप प्रेसिडेंट श्रीगोपाल काबरा परिवार के मुखिया रामेश्वर लाल काबरा के बेटे हैं। इससे पहले शाहिद कपूर और उनकी पत्नी मीरा कपूर ने इस साल मई में ओबेरॉय थ्री सिक्सटी वेस्ट प्रोजेक्ट में 5,395 वर्ग फुट का अपार्टमेंट लगभग 60 रुपये करोड़ में खरीदा था। आरआर केबल अब सिलवासा और वाघोडिया में मैनुफेक्चुरिंग यूनिट हैं।

क्या हैं खूबियां?
ओबेरॉय रियल्टी का थ्री सिक्सटी वेस्ट एक बेहद पॉश प्रोजेक्ट है। थ्री सिक्सटी वेस्ट वर्ली में स्थित है। इसमें दो टावर शामिल हैं। इसमें दो टावर हैं, जिनमें 4 बीएचके और 5 बीएचके यूनिट हैं। इस प्रोजेक्ट में डुप्लेक्स अपार्टमेंट और पेंटहाउस भी हैं। एक में द रिट्ज-कार्लटन होटल है। और दूसरे में द रिट्ज-कार्लटन द्वारा प्रबंधित लक्जरी आवास हैं। प्रोजेक्ट के दोनों टावरों को सावधानीपूर्वक ऐसे एंगल पर रखा गया है ताकि प्रत्येक घर से समुद्र के शानदार नज़ारे दिखें। इस प्रोजेक्ट के निर्माण आधुनिक तकनीक के साथ तमाम सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं। इस प्रोजेक्ट को 2022 में अपना ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट मिला। सी-व्यू प्रोजेक्ट को संभवतः इसका नाम इसलिए मिला क्योंकि इसकी ऊंचाई 360 मीटर है और सभी अपार्टमेंट पश्चिम की ओर हैं।

गोपाष्टमी  2024 नंदी भगवान शिव के प्रियतम हैं – अश्विनी गुरुजी

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गोमय वसते लक्ष्मी , गोमूत्रे सर्व मंगला (पद्म पुराण 1.48.164)  हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार गाय में सभी देवों और देवियों का निवास है। नंदी भगवान शिव के प्रियतम हैं। अपने कृष्ण अवतार में श्री हरि ने गोपाल के रूप में अपना जीवन गायों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया। गोपाष्टमी वह दिन है जब उन्होंने गाय चराने वाले के रूप में जिम्मेदारी संभाली थी। यह अकारण नहीं है कि युगों-युगों तक भारतवर्ष में सभी महापुरुषों ने गौवंश का पालन-पोषण और संरक्षण किया है। पांडवों ने गौवंश की रक्षा के लिए विराटनगर का युद्ध लड़ा और 14 वर्ष का वनवास जोखिम में डाला। अर्जुन ने गौवंश की रक्षा के लिए वनवास चुना। सुरभि गाय के चोरी हो जाने पर परशुराम जी ने सहस्र अर्जुन से कई युद्ध किए। राजा कौशिक के ब्रह्मर्षि विश्वामित्र बनने का कारण कामधेनु गाय बनी।

गौ माता के अस्तित्व में कुछ ऐसा अद्भुत है जो इन्हें विशेष बनाता है। धेनु सदनं रयेनाम् – अथर्ववेद 11.1.34 में कहा गया है कि गाय सभी लाभों का भंडार है। च्यवन ऋषि ने अपने जीवन का मूल्य एक गाय के बराबर आंका। देशी गाय के दूध से निकला हुआ घी देवलोक के पोषण हेतु यज्ञ में आवश्यक सामग्री है। ऐसा कहा जाता है कि यदि आप नियमित रूप से गौमाता को चारा खिलाते हैं और वे यदि आपके सिर को चाटती हैं तो आपकी छिपी हुई मानसिक क्षमताएं फलीभूत होती हैं । यह महान संत कबीर के लिए सच था, उनकी काव्यात्मक क्षमताएं केवल तभी प्रकट हुईं जब गौमाता ने उनके सिर को चाटा। दुनिया भर में गौवंश के साथ बातचीत के लाभों को स्वीकार किया जा रहा है। पश्चिम में गौमाता को गले लगाना एक तेजी से लोकप्रिय उपचार बनता जा रहा है। इसने “काव कडलिंग” कहा जाता है।
माना जाता है कि गोधूलि की बेला मेंं जब शाम को चरने के बाद गायें घर लौटती हैं तो उनके खुरों से उड़ने वाली धूल गौवंश की सेवा करने वाले व्यक्ति को सभी बीमारियों से छुटकारा दिलाती है।

आज के आधुनिक युग और समय में भी ध्यान फाउंडेशन ने अपने 45 से अधिक गौशालाओं के माध्यम से देश भर में गौवंश का पोषण और सुरक्षा करके हमारे पूर्वजों की विरासत और ज्ञान को संरक्षित किया है। इन गौशाला में ज्यादातर बूढ़े, परित्यक्त, अनाथ, बीमार, घायल, अनुत्पादक गौवंश को पुर्नवासित किया गया है। इन्हें पुलिस और सीमा सुरक्षा बलों ने तस्करी से बचाया है।

गौमाता जैसे अद्भुत जीव का आशीर्वाद पाने के लिए गोपाष्टमी के शुभ मुहूर्त में इन गौशालाओं में यज्ञ और गो पूजा आयोजित की जाएगी। अधिक जानकारी के लिए आप dhyanfoundation.com पर लॉग इन कर सकते हैं

गौ संरक्षण एवं संवर्धन के लिए मप्र. की अभिनव पहल

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गुना: गौ संरक्षण एवं संवर्धन के लिए मप्र. की अभिनव पहल –  गुना जिले की समस्त पंजीकृत शासकीय एवं अशासकीय गौशालाओं में गोवर्धन पूजा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। डॉ. आर.के. त्यागी उप संचालक पशुपालन एवं डेयरी विभाग द्वारा बताया गया कि कलेक्टर डॉ. सतेंद्र सिंह के मार्गदर्शन में जिला स्तरीय कार्यक्रम महावीर गौशाला ए.बी. रोड गुना में आयोजित किया गया। कार्यक्रम के दौरान मुख्‍यमंत्री जी के राज्‍य स्‍तरीय आयोजन का सजीव प्रसारण दिखाया गया। गौ-ग्रास एवं गौशाला अवलोकन के बाद विधि-विधान से गोवर्धन पूजा एवं गाय का पूजन किया गया। श्री आर.के. त्यागी जी द्वारा कार्यक्रम की रूपरेखा बताई गई। जिसमें उन्होंने पशुपालन संबंधित योजनाएं, पशु एंबुलेंस एवं पशु बीमा संबंधित जानकारी साझा की।

गुना विधायक श्री पन्‍नालाल शाक्‍य ने कहा कि गौसेवा हम सबकी प्राथमिकता होनी चाहिये। प्रतिदिन एक रोटी हर घर में गाय को देने की परंपरा होनी चाहिये। इसके उपरांत कार्यक्रम में गौ कथावाचक, गौ सामग्री उत्‍पादक एवं गौ सेवा के क्षेत्र में उत्‍कृष्‍ट कार्य करने वालों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में गोपी और कृष्ण का रूप धारण करने वाले बच्चों को सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर  नगर पालिका अध्यक्ष श्रीमती सविता अरविन्‍द गुप्‍ता, भाजपा जिलाध्यक्ष श्री धर्मेन्‍द्र सिकरवार, गौशाला के अध्यक्ष श्री गिर्राज अग्रवाल, श्री विकास जैन, अन्य जनप्रतिनिधि सहित कलेक्‍टर डॉ. सिंह गोवर्धन पूजा कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। कार्यक्रम में गौपालक एवं गौ सेवक उपस्थित रहे।कार्यक्रम का मंच संचालन सीएम राइज प्राचार्य श्री आशीष टाटिया द्वारा किया गया।

Jashpur News: गौ-तस्करी कर रहे आरोपी गिरफ्तार

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जशपुर। जशपुर पुलिस को क्षेत्र के जागरूक ग्रामीणों का लगातार साथ मिल रहा है। ग्रामीणों की सूचना पर पुलिस ने कुल 13 नग गौ-वंश को तस्करी होने से बचाया। पुलिस ने रातभर कड़ी मेहनत कर पीकअप वाहन से 11 नग मवेशी को तस्करी होने से बताया एवं थाना तुमला ने भी ओड़िसा की ओर 2 नग गौ-तस्करी कर रहे आरोपी ध्रुर्वा यादव को गिरफ्तार किया।

मामले का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है कि पुलिस अधीक्षक जशपुर शशि मोहन सिंह को कांसाबेल थाना क्षेत्र के जागरूक ग्रामीणों से 5 नवबंर की रात्रि में सूचना मिला कि मवेशी तस्कर पीकअप वाहन में भारी मात्रा में गौ-वंश की तस्करी करते हुये रायगढ़ क्षेत्र की ओर से कांसाबेल के रास्ते झारखंड की ओर जाने वाले हैं। इस सूचना पर उप पुलिस अधीक्षक विजय सिंह राजपूत के नेतृत्व में पुलिस स्टाॅफ की टीम पतासाजी एवं गिरफ्तारी हेतु लगाया गया था।

पुलिस टीम द्वारा रात्रि में कांसाबेल मेन रोड में बैरिकेट लगाकर पत्थलगांव की ओर से आने-जाने वाली वाहनों को रोक-रोककर चेक किया जा रहा था, इसी दौरान पत्थलगांव की ओर से तेज रफ्तार में पीकअप वाहन क्र. JH 07 L 9443 आया, उक्त वाहन के चालक को रोकने का प्रयास किया गया जो वाहन को नहीं रोककर तेज गति से भागने लगा, पुलिस द्वारा तत्काल उक्त वाहन का पीछा किया गया, उक्त पीकअप वाहन के चालक ने कुसुमताल चैक के पास वाहन को छोड़कर अंधेरे का फायदा उठाकर भाग गया। पुलिस टीम द्वारा वाहन के तिरपाल को हटाकर देखने पर उक्त वाहन के अंदर 11 नग मवेषी मिलने पर उन्हें सुरक्षार्थ रखवाया गया है। मामले में अज्ञात आरोपी के विरूद्ध पशु तस्करी का अपराध पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया है। अज्ञात पशु तस्कर का रिकार्ड खंगाला जा रहा है। इस कार्यवाही में थाना कांसाबेल से स.उ.नि. राजेश यादव, प्र.आर. 399 इग्नासियुस एक्का, आर. 7498 प्रषांत पैंकरा, सै. पूरन खूंटे, सै. गंगा राम का योगदान रहा है।

इसी तरह थाना तुमला क्षेत्र के जागरूक ग्रामीणों से सूचना मिला कि दिनांक 05.11.2024 को थाना तुमला क्षेत्र के ग्राम कोरंगामाल के रास्ते में एक व्यक्ति 02 बैल को पैदल मारते-पीटते ओड़िसा की ओर ले जा रहा है। इस सूचना पर तत्काल थाना तुमला से पुलिस टीम मौके पर भेजकर गौ-तस्करी कर रहे आरोपी को घेराबंदी कर अभिरक्षा में लिया गया। पूछताछ में उक्त व्यक्ति ने अपना नाम ध्रुवा यादव बताया एवं उक्त मवेशी को ओड़िसा तस्करी करते हुये ले जाना बताया। आरोपी का कृत्य पशु तस्करी का अपराध घटित करना पाये जाने पर आरोपी ध्रुर्वा यादव उम्र 56 साल निवासी भगोरा थाना फरसाबहार को गिरफ्तार कर न्यायिक अभिरक्षा में भेजा गया है। प्रकरण की विवेचना कार्यवाही एवं आरोपी की गिरफ्तारी में निरीक्षक कोमल नेताम, स.उ.नि. टेकराम सारथी, प्र.आर. 358 आनंद प्रकाष लकड़ा, आर. 665 रामवृक्ष राम का योगदान रहा है।

पुलिस अधीक्षक जशपुर शशि मोहन सिंह द्वारा कहा गया है कि – “कांसाबेल एवं तुमला क्षेत्र के जागरूक गा्रमीणों की सूचना पर पुलिस द्वारा तस्करी में प्रयुक्त पीकअप वाहन एवं कुल 13 नग गौ-वंश को जप्त कर 01 आरोपी को गिरफ्तार करने में सफलता प्राप्त की है, सीमावर्ती क्षेत्र ओड़िसा की ओर भी जशपुर पुलिस की कड़ी निगाह है। अपने आस-पास किसी भी प्रकार की तस्करी हो रही हो तो तत्काल उसकी सूचना पुलिस को देवें।”

Gopashtami 2024-क्यों करते है गायों की पूजा

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Gopashtami 2024: कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन गौ पूजन करने से कभी भी दुखों का सामना नहीं करना पड़ता है। हिंदू धर्म में गायों की पूजा का विशेष महत्व है। गाय को माता का दर्जा भी दिया गया है।
इस साल गोपाष्टमी का पर्व 9 नवंबर रविवार को है। इस दिन गायों की पूजा की जाती है। गाय-बछड़े दोनों को सजाया जाता है। और सुख-समृद्धि की कामना से उनकी पूजा की जाती है। मान्यता है कि इसी दिन से भगवान श्रीकृष्ण और बलराम ने गौ चरण की लीला शुरू की थी यह पर्व मथुरा, वृदांवन और ब्रज के क्षेत्रों में प्रसिद्ध त्योहार है।

क्यों करते है गायों की पूजा

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गाय को माता माना जाता है। इसी प्रकार गाय को धन-समृद्धि की देवी और लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। इसलिए गाय को माता के रुप में पूजा जाता है। गाय का संंबध भगवान विष्णु से भी है, जिन्हें ब्रह्मांड के रक्षक और पालनकर्ता के रूप में जाना जाता है। ऐसा भी माना जाता है, गाय में 33 करोड़ देवी-देवता वास करते हैं, इसलिए गाय को पूजा जाता है। माना जाता है कि जो लोग गौ माता को पहली रोटी खिलाते हैं उनके घर से कभी बरकत खत्म नहीं होती है। गौ माता का दूध तो पौष्टिक होता ही है साथ ही साथ गौ माता के मूत्र से भी अनेक दवाईयां भी बनाई जाती हैं।
अमृत मंथन में जितने भी रत्न प्राप्त हुए थे उनमें से एक कामधेनु गाय माता भी थी, और शेष गाय उन्हीं की संतिती है। कामधेनु ऐसी गाय थी जो सबकी इच्छा पूरी कर दिया करती थी। और हिन्दू धर्म में गाय को बड़ा शुभ माना जाता है जो इसको पालन करते हैं, उनके घर में शुभता रहती है। इसलिए कहते हैं कि गायों को चारा देना और उसकी सेवा करना चाहिए। गौ माता को देव तुल्य समझा जाता है।
साथ ही कहा जाता है कि जहां गौ माता खड़ी होती हैं उस जगह का वास्तु दोष भी अपने आप ही खत्म हो जाता है। गौ माता का दूध अगर बच्चे पीते हैं तो बच्चे हष्ट- पुष्ट और बलवान बनते हैं। उनकी बुद्धि भी तीव्र होती है। गौ माता के गोबर की धूनी घर में देने से नकारात्मक दोष समाप्त होते हैं। इसके साथ ही गौ माता के दान को महादान भी माना गया है।
गाय की पूजा का महत्व 
गोपाष्टमी के दिन गाय की पूजा का बहुत महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन गाय माता की अराधना करने से जीवन में नवग्रहों के दोष दूर हो जाते है। और धन संकट की समस्या भी दूर हो जाती है।
गोपाष्टमी का महत्व
गोपाष्टमी का महत्व और किंवदंतियाँ भगवान कृष्ण और गायों के प्रति उनके प्रेम से जुड़ी हैं। दरअसल, इसी दिन भगवान कृष्ण ने तय किया था कि वे गाय चराने वाले या हिंदी में ‘ग्वाला’ बनना चाहते हैं।
हिंदू किंवदंतियों के अनुसार, भगवान कृष्ण ने अपना बचपन गोकुल और वृंदावन में बिताया, जो हरियाली और मवेशियों के झुंड से घिरा हुआ था। वहाँ, उन्हें गायों से विशेष प्रेम हो गया और उन्होंने देखा कि कैसे गायें सभी प्राणियों का पोषण करती हैं। अपने बछड़े से लेकर इंसान के बच्चे तक, गाय ही उन्हें दूध के रूप में पोषण देती थी। और इसलिए, भगवान कृष्ण गोपों में से एक बनना चाहते थे।
कुछ लोग यह भी मानते हैं कि गोपाष्टमी के दिन ही कृष्ण के पालक पिता नंद महाराज ने उन्हें गायों की देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी थी।

गोपाष्टमी पर अनुष्ठान

गोपाष्टमी का दिन कुछ सरल अनुष्ठानों और समारोहों के साथ मनाया जाता है, और परिवार के सभी सदस्य इसमें भाग ले सकते हैं। सुबह की प्रार्थना से लेकर गौ पूजा तक, गोपाष्टमी लोगों को ‘गौ माता’ के साथ उनकी निकटता का एहसास कराती है।
गोपाष्टमी के दिन, जो लोग गाय पालते हैं, वे सुबह-सुबह उन्हें नहलाते हैं और फिर उन्हें फल, फूल और अन्य चीजें अर्पित करते हैं। दरअसल, गायों को माला भी पहनाई जाती है और उनके सींगों को सुंदर रंगों से रंगा जाता है। 
उन्हें गुड़, मिठाई और उच्च गुणवत्ता वाले चारे जैसे भोजन भी दिए जाते हैं और भगवान कृष्ण की पूजा करते समय उन्हें गाय का दूध, दही, घी और अन्य चीजें चढ़ाई जाती हैं।
कुछ राज्यों में, लोग अपने घरों को गाय के गोबर से भी सजाते हैं और इस प्रक्रिया को ‘लिपाई’ कहा जाता है।
गायों को सजाने के साथ-साथ, कई गांवों में लोग गायों को एक साथ लाने के लिए जुलूस भी निकालते हैं। वे अपने बच्चों को भगवान कृष्ण की पोशाक पहनाते हैं, जिनके हाथ में बांसुरी और सिर पर मोरपंख होता है तथा गायें छोटे कृष्ण के साथ-साथ चलती हैं।

वृंदावन में भव्य समारोह

वृंदावन में विशेष रूप से गोपाष्टमी को बड़े प्रेम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। मंदिरों को रोशनी से सजाया जाता है, गायों को नहलाया जाता है और उन्हें चमकीले रंगों के कपड़े पहनाए जाते हैं, हर मंदिर में भगवान कृष्ण के मंत्र और भजन गाए जाते हैं, और भी बहुत कुछ।  वास्तव में, कुछ भक्त इस दिन गोवर्धन परिक्रमा भी करते हैं।
हिंदू धर्म में गायों के प्रति प्रेम और सम्मान मवेशी, विशेष रूप से गाय, हिंदुओं के दिल में एक पवित्र स्थान रखते हैं। हिंदुओं के लिए, गायें केवल गौशालाओं में रखे जाने वाले जानवर नहीं हैं, बल्कि उन्हें एक माँ का दर्जा प्राप्त है जो उनका पालन-पोषण करती है और उन्हें जीवन में आगे बढ़ने में मदद करती है।
कुछ लोगों के लिए, गाय एक पवित्र जानवर है जिसके अंदर हर हिंदू भगवान और देवी निवास करते हैं, और दूसरों के लिए, वह माँ लक्ष्मी का एक रूप है जो उन्हें स्वास्थ्य के धन का आशीर्वाद देती हैं। साथ ही, अनादि काल से, गायों को भगवान कृष्ण से जोड़ा गया है, और उन्हें अक्सर गायों के झुंड के साथ अपनी बांसुरी बजाते हुए देखा जाता है।
धार्मिक कारणों से अलग, भारत जैसे देश में गायों का महत्व सभी जानते हैं। ‘कृषि प्रधान’ देश होने के नाते, भारत हमेशा खेतों की जुताई, दूध और डेयरी उत्पादों के उत्पादन और खाद उपलब्ध कराने के लिए गायों पर निर्भर रहा है, जिसका उपयोग प्राकृतिक उर्वरक के रूप में किया जाता है। कई ग्रामीण घरों में गाय के गोबर का भी ईंधन के स्रोत के रूप में उपयोग किया जाता था।

सड़क पर मरे हुए गौ वंश के चलते आपस में टकराए कई वाहन एक की मौत

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हाथरस: सिकंदराराऊ कोतवाली क्षेत्र में राष्ट्रीय राज मार्ग पर देर रात गांव जिमिसपुर के निकट मरे हुए गौ वंश की वजह से बड़ा हादसा हो गया. इस दौरान एक के बाद एक कई वाहन आपस में टकरा गए. हादसे में एक महिला की मौके पर ही मौत हो गई. विभिन्न वाहनों के 11यात्री घायल हो गए. पुलिस ने मृतिका के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा है. वहीं, घायलों को इलाज के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया है.
दिवाली त्योहार के बाद सभी को अपने काम, ड्यूटी एवं अपने गंतव्य पर पहुंचने की जल्दी है. जिसके चलते बीती रात सिकंदराराऊ कोतवाली क्षेत्र के गांव जिमिसपुर के निकट एक ट्रक ने सड़क पर एक गौवंश को टक्कर मार दी थी. गौवंश सड़क पर पड़ा था. इस गौवंश से हरदोई से परिवार को ला रहा ऑटो और थ्री व्हीलर टकरा गया. वहीं उसके पीछे से आ रही हुंडई की एक कार और इको कार भी आपस में टकरा गई.
हादसे में हुंडई कार सवार एक महिला सुनीता देवी की मौके पर ही मौत हो गई. दुर्घटनाग्रस्त हुए वाहनों में 11 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं. सूचना पर पहुंची पुलिस ने सभी घायलों को एंबुलेंस की मदद से सिकंदराराऊ के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया. जहां घायलों को प्राथमिक उपचार दिया गया. प्राथमिक उपचार देने के बाद 6 से 7 लोगों को हायर सेंटर रेफर किया गया है.
फर्रुखाबाद से नोएडा जा रहे हैं शिव प्रताप सिंह ने बताया, कि गाय बीच में मरी पड़ी थी. टेंपो का एक्सीडेंट हुआ था. जब उन्होंने गाड़ी साइड में रोकी वह और जीजा कार से बाहर निकाल कर आए. मां को निकालने को ही दे तभी पीछे से ही ईको वाले ने टक्कर मार दी. इस हादसे में उनकी मां की मौत हो गई.
सीओ श्यामवीर सिंह ने बताया, कि इस सड़क हादसे में एक महिला की मौत हुई है. जबकि 11 लोग घायल हुए हैं. घायलों में 6 से 7 लोगों को अलीगढ़ और एटा रेफर किया गया है.

गौपालकों के लिए सरकार10 हजार रुपए इनाम देने जा रही है

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सुल्तानपुर: गौपालकों के लिए सरकार द्वारा खुशखबरी आई है. प्रगतिशील पशुपालक योजना के तहत अब सरकार गौपालकों को 10 हजार रुपए इनाम देने जा रही है. तो आईए जानते हैं कि इसके लिए कौन से लोग पात्र हैं और उनके द्वारा कहां और कैसे आवेदन किया जाएगा. इसके साथ यह भी जानेंगे कि इस योजना का लाभ लेने के लिए कौन-कौन से डॉक्यूमेंट लगेंगे.

इस प्रजाति की गायों पर मिलेगा लाभ
प्रगतिशील पशुपालक प्रोत्साहन योजना के तहत उन किसानों को लाभ मिलेगा जो डेयरी चलाते हैं अथवा उन्नत नस्ल एवं उच्च उत्पादकता वाली देसी गायों को पालें हैं. इसके लिए उन्हें सरकार द्वारा 10 से 15 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाएगी. इससे सुल्तानपुर जिले के पशुपालकों को इस योजना का लाभ मिल सकेगा.
क्या होनी चाहिए पात्रता
नंद बाबा दुग्ध मिशन के अंतर्गत चलाई जा रही है प्रगतिशील पशुपालक योजना में वे लोग पात्र हैं, जिनके पास अच्छे उत्पादकता वाली देसी गाय हैं. लोकल 18 से बातचीत के दौरान मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर अशोक कुमार तिवारी ने बताया कि वह लोग जिनके पास देसी गाय हैं और 24 घंटे में 10 से 12 लीटर दूध देती हैं, उनको इस योजना के तहत प्रोत्साहन राशि सरकार द्वारा दी जाएगी. मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि इसके लिए गाय की फोटो, आधार कार्ड और चार बार दुहान की फोटो लगेगी. 15 सितंबर से आवेदन लिए जा रहे हैं और 15 नवंबर तक लिए जाएंगे. अगर कोई पशुपालक इस योजना का लाभ लेना चाहता है, तो वह निर्धारित मानदडों के तहत अपने नजदीकी पशु चिकित्सा केंद्र पर डॉक्यूमेंट के साथ आवेदन कर सकता है.

पौराणिकता, धार्मिकता, लोक संस्कृति, और प्रकृति की आराधना से परिपूर्ण  छठ पर्व* 

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(विजया भारती-विभूति फीचर्स)
लोक आस्था का महापर्व, छठ पर्व मेरा सबसे प्रिय पर्व है। इसलिए भी क्योंकि छठ लोक का पर्व है और यह अपने भीतर पौराणिकता, धार्मिकता, लोक संस्कृति, और प्रकृति की आराधना का अनोखा संगम समेटे हुए है। इस पर्व में सूर्यदेव की पूजा के माध्यम से हम अपनी जड़ों से जुड़ते हैं, अपनी आस्थाओं को पोषित करते हैं। यह पर्व सिर्फ पूजा नहीं, बल्कि यह ईश्वर के प्रति लोक आस्था के जनज्वार जैसा है, जो पीढ़ियों से हमें विरासत में मिला है। जब भी छठ का समय आता है, मानो मेरे अंदर एक अलग ऊर्जा और उल्लास का संचार हो जाता है। यह पर्व हमारी लोक संस्कृति और पहचान का वह हिस्सा, वह अहसास है जो मुझे मेरे पूर्वजों, मेरे गांव और हमारी सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ता है।
हम बिहारियों के लिए तो छठ पर्व हमारी सांस्कृतिक पहचान है। यह हमारा बड़का पर्व है। बिहारी जहाँ जहाँ गये, अपना छठ पर्व भी लेकर गये और इसीलिए यह दुनिया भर  में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।  भगवान सूर्यदेव की पूजा-आराधना का यह पवित्र पर्व आज दुनिया के उन तमाम देशों में भी मनाया जाता है, जहां भारतीय खासकर उत्तर भारत के लोग निवास करते हैं।
    छठ पर्व, छठ या षष्‍ठी पूजा के अनुपम लोकपर्व के रूप में सुविख्यात कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला सूर्योपासना का यह हिन्दू पर्व कई अन्य धर्मावलम्बी लोगों द्वारा भी मनाया जाने लगा है।
छठ व्रत का यह समय आते ही नदियों और तालाबों पर लोगों का जनसैलाब उमड़ता है। मेरे मन में यह भाव आता है कि छठ पूजा के ये दृश्य न केवल एक आस्था के हैं, बल्कि यह एक जनसंस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो एक समान धरातल पर आस्था और उल्लास को लाकर खड़ा कर देती है।
 *धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व*
छठ पूजा का धार्मिक पक्ष अत्यंत पवित्र और गहन है। ऋग्वेद से लेकर स्कंद पुराण तक, सूर्य की उपासना का यह पर्व हमारे शास्त्रों में प्राचीनतम स्वरूपों में वर्णित है। प्राचीन कथाओं में देवताओं और असुरों की रक्षा हेतु सूर्य का आवाहन अदिति द्वारा किया गया था, जिन्होंने मार्तंड सूर्य का जन्म किया। उन्हीं सूर्यदेव के उगते और डूबते स्वरूप की आराधना छठ पर्व के मुख्य अनुष्ठान में होती है। हमारे ऋषि-मुनियों ने सूर्य को प्राणों का आधार माना और उनकी उपासना से जीवन में ऊर्जा, स्वास्थ्य और धन की प्राप्ति का मार्ग दिखाया। इस पर्व की पवित्रता ही इसका सबसे बड़ा आकर्षण है। व्रतियों का विश्वास है कि सूर्य उपासना से उनके सारे कष्ट दूर होंगे, जीवन में सुख और समृद्धि आएगी।
छठ पर्व का धार्मिक महत्व तो अद्वितीय है ही, लेकिन इसमें सांस्कृतिक रंग भी कम नहीं। हमारे समाज में छठ न केवल पूजा है बल्कि यह एक सामाजिक कार्यक्रम बन चुका है, जहां सब एक साथ मिलकर पूजा करते हैं। बचपन से मैंने अपने घर में नानी, दादी, माँ और अन्य रिश्तेदारों को छठ व्रत करते देखा है। उस समय जो सामूहिक उत्साह और जोश का माहौल होता था, वह अनुभव मेरे भीतर आज भी जीवित है।
 *लोक संस्कृति और संगीत*
छठ पर्व की एक खास विशेषता इसके साथ गाए जाने वाले भक्ति-लोकगीत हैं, जो पूजा को न केवल आध्यात्मिक बल्कि संगीतात्मक रूप में भी समृद्ध करते हैं। बचपन से मैंने पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी और पद्मभूषण शारदा सिन्हा जैसी महान कलाकारों के कंठों से छठ गीतों को सुना और सीखा। उनके गाए “कांचहिं बांस के बहंगिया” और “केरवा जे फरेला घवद से” जैसे गीत हर छठ के समय मन को उसी पुरानी भावनाओं से भर देते हैं। इन गीतों को सुनते ही मानो छठ का माहौल चारों ओर फैल जाता है। बाद में मुझे इन गीतों को सीखने और गाने का सौभाग्य अपने गांव घर की बुजुर्ग महिलाओं से मिला। माँ, नानी, चाचियों और मौसियों ने मुझे सिखाया कि इन गीतों में हमारी आत्मा, हमारी संस्कृति की ध्वनि समाहित है। छठ के गीत भोजपुरी ही नहीं, बिहार की अन्य लोक भाषाओं – मैथिली, अंगिका, वज्जिका आदि में भी खासे गाये और सुने गये हैं। लेकिन उनका मूल सुर और स्वर रवीन्द्र संगीत की तरह अक्षुण्ण रहा है। मेरे मन में एक खास जगह है इन छठ गीतों की, क्योंकि ये केवल शब्द नहीं, बल्कि हमारी भावनाओं की अभिव्यक्ति हैं।
छठ गीतों के कई रूप और शैलियां हैं। मैथिली, अंगिका, वज्जिका, और मगही बोलियों में गाए जाने वाले इन गीतों का अंदाज और भाव दोनों अपने-अपने ढंग के होते हैं। भोजपुरी में जैसे “कोपि कोपि बोलेली छठी माई,” तो मगही में “चलs चलs अरघ के बेरिया” जैसे गीतों में लोक संस्कृति की गूंज है। आज संगीत कंपनियों और सोशल मीडिया के माध्यम से ये गीत पूरी दुनिया में बजते हैं, लेकिन उस पुराने दौर की सादगी और भक्ति भरी धुन आज भी दिल को छू जाती है।
 *आधुनिकता में पारंपरिकता का संगम*
आज के युवा कलाकार भी छठ गीतों को नयी धुनों पर गाने की कोशिश करते हैं, लेकिन जो कर्णप्रियता और आत्मीयता पारंपरिक धुनों में है, वह अनमोल है।
छठ पर्व भारतीय लोक संस्कृति में सबसे ज्यादा भक्ति भाव, नेम धर्म और पवित्रता के साथ मनाया जाता है। इसीलिए इस पर्व के अवसर पर गाये जाने वाले भक्ति के गीत भी घरों, घाटों और गांवों-चौबारों में काफी प्रचलित हैं। आकाशवाणी के माध्यम से ये गीत जब घर-घर में पहुंचे, तो इनकी लोकप्रियता ने एक नया आयाम छू लिया। बाद में ये दूरदर्शन, मंचों और फिर संगीत कंपनियों से होते हुए आज निजी चैनलों और सोशल मीडिया के माध्यम से दुनिया भर में लोकप्रिय हो गये हैं।
आज बाजार में छठ गीतों का स्वरूप बदल चुका है। कई कंपनियों ने इन गीतों को एक नए रूप में प्रस्तुत किया है, जहां अनुराधा पौडवाल, उदित नारायण, सोनू निगम जैसे कलाकारों की आवाजें भी इन गीतों में गूंजने लगी हैं। परंतु जो सरलता, भावुकता, और अपनत्व पुराने गीतों में है, उसे कोई छू नहीं सकता।
जिन कलाकारों के छठ गीत घाटों पर ज्यादा बजते और सुने जाते हैं वे हैं – विंध्यवासिनी देवी, शारदा सिन्हा, भरत शर्मा व्यास, कल्पना पटवारी और विजया भारती आदि हैं, परंतु छठ गीतों की लोकप्रियता के मामले में पद्म भूषण शारदा सिन्हा सर्वोपरि हैं।
    मेरे लिए छठ के गीत, चाहे वह नए हों या पुराने, अपनी पवित्रता में संजीवनी की तरह हैं। कई नए गीतकार भी छठ गीतों को अपने ढंग से प्रस्तुत कर रहे हैं। परंतु पारंपरिक गीतों से जुड़ी आस्था और भक्ति को बनाए रखना हम सबका कर्तव्य है। जरूरी है कि इस पर्व पर गाए जाने वाले गीत पवित्रता की सीमा में ही रहें, तो उनके माध्यम से छठ और छठ गीतों की गरिमा बची रहेगी।
 *छठ: आस्था का महोत्सव*
जब सूर्य के डूबने और उगने पर अर्ध्य देने का समय आता है, घाट पर खड़े होकर मैं महसूस करती हूं कि यह क्षण कितना विराट है। मुंबई में जुहू बीच पर छठ का बड़ा आयोजन संजय निरुपम पिछले तीन दशकों से करते आ रहे हैं। उस कार्यक्रम की शुरुआत 17 सालों तक मेरे गाये छठ गीतों से होती रही है। जन आस्था के उस समंदर में गोता लगाते हुए श्रोता दर्शक चारों ओर गूंज रहे छठ गीतों के मधुर स्वर को सुन जिस तरह भक्तिरस से आह्लादित व तरंगित हो उठते हैं, वह देखने लायक होता है। छठ गीत न केवल छठ का पर्याय हैं बल्कि हमारी उस आत्मीयता के प्रतीक हैं जो हमें हमारी माटी से जोड़ते हैं। यह केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि वह बंधन है जो मुझे अपने पूर्वजों और अपने लोक से जोड़ता है।
इस पर्व में विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोग भी शामिल होते हैं। छठ का यह अनूठा पर्व आज देश की सीमाओं को पार कर विदेशों तक अपनी जगह बना चुका है। मुझे गर्व है कि मैं इस परंपरा का हिस्सा हूं, और हर वर्ष छठ के आते ही मेरे अंदर का यह भाव और मजबूत हो जाता है कि हमारी संस्कृति, हमारी आस्था और हमारा लोक कभी पुराना नहीं होता।(लेखिका विजया भारती आकाशवाणी-दूरदर्शन की टॉप ग्रेड कलाकार, बिहार की सुप्रसिद्ध लोकगायिका, कवयित्री और लोक संस्कृति की मर्मज्ञ हैं। उन्होंने भारतीय लोक संगीत को देश और दुनिया में पहुंचाया है।विजया भारती के 8 काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विजया जी को पत्र लिखकर कुपोषण और बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया है। *(विभूति फीचर्स)*