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शार्ट फिल्म ‘आरोही’ की स्पेशल स्क्रीनिंग सम्पन्न

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माँ बेटी के जज्बातों और संवेदनाओं की एक अनकही कहानी को बयां करती लघु फिल्म ‘आरोही’ की
स्पेशल स्क्रीनिंग का आयोजन अंधेरी(वेस्ट) मुम्बई स्थित wheather स्टूडियो में किया गया। इस कार्यक्रम में कैलिफोर्निया यू एस ए से अवॉर्ड विनिंग निर्देशक जय डोगरा भी अपनी पत्नी के साथ पहुंचे, इनके साथ टेलीविजन की दुनिया के बिग डायरेक्टर आलोकनाथ दीक्षित, संगीत के महारथी दिलीप सेन, कॉमेडी के किंग सुनील पाल, वरिष्ठ फिल्म पत्रकार काली दास पाण्डेय, जाने माने गीतकार अमिताभ रंजन, तेजी से उभरे लेखक निर्देशक आर्यन सक्सेना, हरदिल अज़ीज़ अभिनेत्री सोशल वर्कर आरती नागपाल, साउथ स्टार अभिनेत्री तृष्णा प्रीतम, अभिनेता कमल घिमिरे, राजवीर कुंडू, अभिनेत्री निराली नामदेव, मनीषा, नई अभिनेत्री प्रिशा, रोशनी, फिल्म निर्मात्री अभिनेत्री नेहा बंसल आदि ने भी फिल्म को देखकर अपनी प्रतिक्रिया व शुभकामनाएं लेखक निर्माता निर्देशक देवेंद्र खन्ना को दी। वी एस नेशन और ताल म्यूजिक एंड फिल्म्स के संयुक्त तत्वाधान में निर्मित शार्ट फिल्म ‘आरोही’ में अभिनेता वीरेंद्र मिश्रा के अलावा सभी नए कलाकारों ने काम किया है। आरोही के शीर्षक किरदार को निभाया है राधिका धुरी ने। बाकी सह कलाकारों में भारती पवार, रीटा इस्सर, शिल्पा पेरुलेकर, शोभा बंसल, सविता मायकर, नमिता चौधरी,अमरदासन नायर प्रमुख है। इनके अलावा स्पेशल अपिरियंस में एडवोकेट राज कुमार तिवारी व सी ए डॉ महेश गौर भी दिखाई देंगे। विदित हो कि ताल म्यूजिक एंड फिल्म्स के बैनर तले निर्माता-निर्देशक देवेंद्र खन्ना 20 वर्ष पहले भी फिल्में व म्यूजिक वीडियो बना चुके हैं आज 20 वर्षो बाद इसी शॉर्ट फिल्म आरोही के जरिए देवेन्द्र खन्ना बतौर लेखक निर्देशक अपनी दूसरी पारी शुरू कर रहे हैं।
‘आरोही’ की स्टोरी और मेकिंग की विस्तृत चर्चा करते हुए निर्देशक देवेंद्र खन्ना ने बताया कि जिस किसी के सपने के पीछे उसकी मां का संघर्ष और जुनून होता है उसके सपने को पूरा करने से कोई नहीं रोक सकता। ऐसा ही एक सपना था गरीब परिवार में जन्मी आरोही का, जिसे सूरो का ज्ञान था और वह जब अपने दोस्तों के बीच गाती थी तो सब वाह वाह कह उठते थे। लेकिन वह जिस घर में रहती थी जिस माहौल में रहती थी उसे देखकर वह अपने सपने को सच करने का सपना भी नहीं देख सकती थी लेकिन उसकी मां के कड़े संघर्ष ने आरोही को आखिरकार कामयाब गायिका बना दिया। मगर बेटी की कामयाबी का सुख भोगने से पहले ही वह जिंदगी की जंग हार जाती है, तभी अंतिम सांस लेते हुए बेटी को बिलखते हुए देख वह बेटी को बताती है एक इच्छा। क्या थी वो इच्छा? क्या आरोही उसे पूरा कर पाती है ? इसके बाद की कहानी जानने के लिए आपको आरोही देखनी होगी। ‘आरोही’ को बहुत जल्द ही ओटीटी प्लेटफॉर्म व यूट्यूब पर रिलीज किया जाएगा। अगले प्रोजेक्ट के बारे में पूछने जाने पर निर्देशक देवेंद्र खन्ना ने बताया कि आरोही के बाद अगले महीने एक और शॉर्ट फिल्म ‘तलाक क्यूं’ रिलीज होगी। उसके बाद शॉर्ट फिल्म ‘पीड़ा के पांच दिन’ पर काम चल रहा है। बाकी एक सोशल शो डी डी1 के लिए और एक रियल्टी शो के साथ साथ एक हिंदी फीचर फिल्म पर भी काम चल रहा है, जिसकी शूटिंग राजस्थान में होगी। इसके साथ ही कुछ म्यूजिक वीडियो की भी तैयारी चल रही है जिसके लिए कलाकारों का चयन जारी है।
प्रस्तुति : काली दास पाण्डेय

माँ ही पहली शिक्षिका, पहला स्कूल

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माँ ही पहली शिक्षिका, पहला स्कूल”

यह एक सर्वविदित तथ्य है कि पांच साल से कम उम्र के बच्चे के लिए ये सबसे अच्छी उम्र होती है, क्योंकि वह इस उम्र में सबसे ज़्यादा सीखता है। एक बच्चा पांच साल से कम उम्र के घर पर ज़्यादातर समय बिताता है और इसलिए वह घर पर जो देखता है, उससे बहुत कुछ सीखता है। छत्रपति शिवाजी को उनकी माँ ने बचपन में नायकों की कई कहानियां सुनाईं और वो बड़े होकर कई लोगों के लिए नायक बने।

बच्चों का पहला स्कूल घर

घर पर ही एक बच्चा सबसे पहले समाजीकरण सीखता है। एक बच्चा पहले घर पर बहुत कुछ सीखता है। लेकिन आज, चूंकि अधिकांश माता-पिता कमाने वाले हैं, इसलिए वे अपने बच्चों के साथ गुणवत्तापूर्ण समय नहीं बिता पाते हैं। बच्चों को प्ले स्कूलों में भेजा जाता है और अक्सर उनके दादा-दादी द्वारा उनका पालन-पोषण किया जाता है। ये बच्चे उन लोगों की तुलना में नुकसान में हैं जो अपने माता-पिता के साथ क्वालिटी टाइम बिता सकते हैं।

ऐसा इसलिए है, क्योंकि एक बच्चा सीखता है कि क्या स्वीकार किया जाता है और क्या स्वीकार नहीं किया जाता है, क्या सही है और क्या नहीं? वो अपने परिवार के साथ पर्याप्त समय बिता सकते है, जिससे उनकी बॉन्डिंग मज़बूत होती है और वो बड़ा होकर एक आत्मविश्वासी व्यक्ति बनता है।

ऐसी कई कहानियां

हमारे रिश्तेदार के एक बच्चे को उसके दादा-दादी ने पाला है, क्योंकि उसके माता-पिता अमेरिका में अपनी नौकरी में व्यस्त हैं। वह बड़ा होकर एक जिद्दी, हीन भावना वाला बच्चा बन गया। आज भी घर प्रथम पाठशाला है और माँ प्रथम शिक्षिका। यहां तक कि एक बच्चे को अपने परिवार और विशेष रूप से माँ के साथ बिताने के लिए थोड़ा सा समय भी उसके प्रभावशाली दिमाग पर बहुत प्रभाव डालता है।

किसी ने ठीक ही कहा है कि “भगवान हर जगह नहीं हो सकते इसलिए उन्होंने माँ बनाई” तो जो व्यक्ति बच्चे को सबसे ज़्यादा प्यार करता है, वो हमेशा एक माँ होती है। बच्चे के लिए माँ का सबसे ज़्यादा स्नेह होता है। वो केवल माँ ही नहीं बल्कि बच्चे की पहली शिक्षिका भी होती है। वो बच्चे को जन्म से ही पढ़ाकर स्थायी प्रभाव डालती है। माँ की शिक्षा ईश्वरीय शिक्षा है।

ऐसी कई माताएं हैं, जिन्होंने अपने बच्चों के प्रति अपने निराले प्यार से अपने बच्चों को हीरो बना दिया है। हाल ही में खबर आई थी कि एक माँ ने अपनी बेटी को घर पर पढ़ाया और वह कभी स्कूल नहीं गई और अब उसे आईआईटी में एडमिशन के लिए बुलाया है।

माँ: फिर समाज में इतने मुद्दे क्यों?

पहले दिन से शुरू हुई माँ की शिक्षा और जीवन में माँ का आशीर्वाद होने तक चलते रहें, इसकी ज़रूरत नहीं है। माँ को शिक्षा प्रदान करने के लिए उच्च शिक्षित होना चाहिए। माताओं द्वारा प्रदान की जाने वाली मूल्य शिक्षा की कहीं भी बराबरी नहीं की जा सकती। अब सवाल यह उठता है कि अगर हर माँ अपने बच्चों को मूल्य आधारित शिक्षा प्रदान कर रही है तो समाज में इतने मुद्दे क्यों हैं? इसका उत्तर यह है कि और भी कई कारक हैं, जो किसी व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करते हैं और माँ की शिक्षा कभी भी बच्चे को गलत रास्ते पर नहीं लाती।

मैं यहां, यह कहना चाहूंगी कि एक माँ अपने बच्चे के चेहरे पर पहली मुस्कान देखती है और अपनी शिक्षा और आशीर्वाद से उसे स्थायी बना देती है। मातृत्व की कला बच्चों को जीने की कला सिखाना है। घर बच्चे के समग्र विकास के लिए पहला बिल्डिंग ब्लॉक है और माँ वास्तव में सबसे अद्भुत शिक्षक है।

आज बच्चों में दृष्टिकोण का अभाव

घर पर, शिक्षाविदों के अलावा, बच्चा अपनी माँ से प्यार, देखभाल, करुणा, सहानुभूति आदि जैसे नैतिक मूल्यों को सीखता है, जो स्वयं निस्वार्थ प्रेम और बलिदान की अवतार है। अपने माता-पिता के साथ बातचीत करके बच्चे के दैनिक अवलोकन के माध्यम से, वह एक दृष्टिकोण / व्यवहार विकसित करता है, जो जीवन के महत्वपूर्ण चरणों में उसकी सोच, जीने का तरीका, समझ और निर्णय लेने में मदद करता है।

आज फास्ट लाइफ के साथ तालमेल बिठाने के लिए माँ-बाप दोनों घर से बाहर काम करने में लगे हुए हैं। माताएं अपने बच्चों को सही समय नहीं दे पाती हैं। पहले तो यह बच्चों की रुचि की उपेक्षा करता हुआ प्रतीत होता है, लेकिन साथ ही यह अनुशासन सिखाता है, आत्म-प्रेरणा उत्पन्न करता है। बच्चों में लंबे समय तक उनके चरित्र निर्माण में मदद करता है। बच्चा पहले के चरण से बदलते परिवेश में समायोजन करना सीखता है। इससे बच्चे भी घर पर अकेले रहते हुए नवोन्मेषी गतिविधियों में शामिल हो रहे हैं।

बच्चा माँ की शिक्षा को महत्व देता है, अपने चरित्र निर्माण, सम्मान, प्यार और देखभाल को घर पर आकार देता है। माँ दुख में बच्चे की सांत्वना, दुख में आशा और कमज़ोरी में ताकत और उसके जीवन को आकार देने में सबसे अच्छी शिक्षक है इसलिए आज भी, यह सच है कि घर पर माँ पहले स्थान पर है और बच्चे के पालन-पोषण में पहली शिक्षक भी।

-प्रियंका सौरभ 
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

लीजेंड दादासाहेब फाल्के अवार्ड – 2022 समारोह सम्पन्न

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कृष्णा चौहान फाउंडेशन के संस्थापक डॉ कृष्णा चौहान के जन्मदिन 4 मई के अवसर पर अंधेरी(वेस्ट), मुम्बई स्थित मेयर हॉल में आयोजित लीजेंड दादासाहेब फाल्के अवार्ड – 2022 समारोह एमएलए भारती लव्हेकर, एसीपी बाजीराव महाजन, इंटरनेशनल मोटिवेशनल स्पीकर डॉ परिन सोमानी, अभिनेता मनोज जोशी, गजेंद्र चौहान, निर्देशक मेहुल कुमार, ब्राइट आउटडोर मीडिया के योगेश लखानी, बॉलीवुड सिंगर ऋतु पाठक, अली खान, अरुण बख्शी, सुनील पाल, एहसान कुरैशी, टीनू वर्मा, आरती नागपाल, राजकुमार कनौजिया, श्याम लाल, गीतकार सुधाकर शर्मा, हरियाणवी गायक डीसी मदना और गिफ्ट पार्टनर प्रेम गड़ा की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। उपरोक्त अतिथियों को अवार्ड देकर सम्मानित किए जाने के  क्रम में स्टेज पर शानदार केक काटकर डॉ कृष्णा चौहान का जन्मदिन भी मनाया गया। डॉ. कृष्णा चौहान पिछले तीन साल से लगातार भारतीय फिल्मों के पितामह दादासाहेब फाल्के की स्मृति में श्रद्धांजलि स्वरूप इस महत्वपूर्ण अवार्ड समारोह का आयोजन कर रहे हैं। इस समारोह में निर्माता मुकेश गुप्ता, अभिनेता देव मेनारिया, गायक मंगेश, श्रीमती जीनत एहसान खुरेशी, प्रोड्यूसर अनुषा रंधावा और सुंदरी ठाकुर, आराधना सोलंकी (सोशल वर्कर) सिद्धिविनायक ट्रॉफीज एंड गिफ्ट के ओनर गणेश पाचारणे, राजपाल जी (पब्लिसिटी डिज़ाइनर), ऎक्ट्रेस रूबी अहमद, रोज़ खान, मानवी त्रिपाठी, निर्मला त्रिपाठी, पीके को भी अवार्ड दे कर सम्मानित किया गया।
कई पत्रकारों और फोटोग्राफर्स को भी लीजेंड दादा साहेब फाल्के अवार्ड 2022 से नवाजा गया, उनमें अनिल अरोड़ा, संतोष साहू, पंकज पाण्डेय, सुंदर मोरे, दिलीप पटेल, गाज़ी मोइन, काली दास पांडेय,  शमा ईरानी, नवीन पांडेय, टिंकू चौहान, समीर खान,  नेम सिंह, प्रवीण मखवाना,  दिनेश गम्भा, केवल कुमार,  जीतू सोमपुरा,
फोटोग्राफर राजेश कोरिल और दिनेश परेशां के नाम उल्लेखनीय हैं। इसके गिफ्ट पार्टनर प्रेम गड़ा थे।
समारोह परिसर में डॉ कृष्णा चौहान की प्रस्तावित वेब फ़िल्म ‘आत्मा डॉटकॉम’ का पोस्टर भी सबके लिए आकर्षण का केंद्र रहा। इस समारोह की एंकर रविका दुग्गल थीं जो एक अच्छी सिंगर भी हैं। बालिका सिया काले की परफॉर्मेंस को भी यहां लोगों ने काफी सराहा।
 डॉ कृष्णा चौहान न सिर्फ एक कामयाब फ़िल्म निर्देशक एवं समाज सेवक हैं। कृष्णा चौहान फाउंडेशन (केसीएफ) के बैनर तले डॉ कृष्णा चौहान कई अवार्ड्स शो का आयोजन करते आये हैं। समाज सेवा की दिशा में अग्रसर संस्था ‘केसीएफ’ के अंतर्गत बॉलीवुड लीजेंड अवॉर्ड, बॉलीवुड आइकोनिक अवॉर्ड, लीजेंड दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड और महात्मा गांधी रत्न अवार्ड का आयोजन पिछले कई वर्षों से किया जाता रहा है।
प्रस्तुति : काली दास पाण्डेय

संदेशपरक फिल्म ‘मेरे देश की धरती’

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कार्निवल मोशन पिक्चर्स के बैनर तले बनी फिल्म ‘मेरे देश की धरती’ की चर्चा इन दिनों बॉलीवुड में खूब हो रही है। इसकी खास वजह यह है कि इस फिल्म में ग्रामीण क्षेत्र से युवाओं के पलायन, बेरोजगारी और किसानों की समस्याओं को बहुत ही कलात्मक ढंग से स्क्रीन पर चित्रित किया गया है। इस फिल्म का प्रमोशन शो अंधेरी(वेस्ट) मुम्बई के इनफिनिटी मॉल के परिसर स्थित पीवीआर स्क्रीन 3 में सम्पन्न होने के पश्चात यह फिल्म सिनेदर्शकों तक पहुँच चुकी है। दिव्येन्दु शर्मा, अनंत विधात, अनुप्रिया गोयनका, राजेश शर्मा, विजेंद्र काला व इनामुलहक स्टारर निर्मात्री वैशाली सर्वांकर की फिल्म ‘मेरे देश की धरती’ का निर्देशन फ़राज़ हैदर ने किया है। यह फ़िल्म दो इंजीनियरिंग के छात्रों
पर बेस्ड है।
बेरोजगारी को झेलते हुए संघर्षमय सफर तय करने के बाद खेती करने में और किसानों की समस्याओं को दूर करने में उनकी रुचि जाग जाती है। सिनेदर्शकों की टेस्ट को ध्यान में रखते हुए इस फिल्म की कथावस्तु में रोमांस, कॉमेडी और ट्रेजडी का भी समावेश किया गया है।
बकौल निर्देशक फ़राज़ हैदर ‘मेरे देश की धरती’ न केवल समस्याओं और मुद्दों को उजागर करती है बल्कि समाधान भी बताती है। यह फिल्म ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं में जागरूकता लाने के साथ साथ किसानों को शिक्षित भी करेगी।
प्रस्तुति : काली दास पाण्डेय

निवि कश्यप के सपनो की उड़ान जल्द आयेगी सिनेमा के पर्दे पर

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सिनेमा शब्द ही अपने आप में बहुत सारे सपनो को समेटे हुए है। और उन्ही सपनो के संसार में बहुत से लोग जीते और मरते है। असम की उभरती हुई थिएटर कलाकार निवि कश्यप इनदिनों अपने सपनो की उड़ान को पूरा करते हुए दिखाई दे रही है।

एक लम्बे संघर्ष के बाद निवि कश्यप सान मीडिया एंड एंटरटेनमेंट के बैनर तले बन रही फिल्म ” सॉरी मदर ” , और फिल्म ” भगवा ” में काम कर रही है। इसके अलावा सान म्यूजिक द्वारा जारी होने जा रहे एक खूबसूरत म्यूजिक वीडियो में वो नजर आने वाली है।

निवि कश्यप अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए कहती है कि – अभी भी लड़ाई जारी है , मुझे बहुत से बेब सीरीज में काम करने को मौका मिला मगर उनकी शर्तो को देख कर मैं पीछे हट जाती थी ये सोच कर कि आज नहीं तो कल भगवान् मेरे साथ देंगे और मुझे अच्छा काम मिलेगा , और आज उसी का परिणाम है कि मुझे काम मिलना शुरू हो गया है। मेरा बैकग्राउंड सिनेमा का नहीं है लेकिन बचपन से मेरे अंदर एक कलाकार है जिसे शायद अब एक अच्छा प्लेटफॉर्म अब मिलने जा रहा है।
ज्ञात हो कि सान मीडिया एंड एंटरटेनमेंट पिछले २० वर्षो से सिनेमा और टेलीविजन इंडस्ट्री में काम कर रही है कंपनी का खुद का म्यूजिक कंपनी है जो सान म्यूजिक के नाम से जाना जाता है , इसी कंपनी ने निवि कश्यप को अपनी फिल्मो और म्यूजिक वीडियो के लिए साईन किया है।

गौ दान- गौमाता में देवताओं का वास माना जाता है ऐसे में अक्षय तृतीया पर गौदान अक्षय पुण्य देने वाला है.

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Akshaya Tritiya 3 May 2022: अक्षय तृतीय 03 मई यानि की कल है. इस दिन वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि है. इस दिन किए गए पुण्य कर्म का फल अक्षय होता है. यानि कि इस दिन किया गया फल का नाश नहीं होता है. इसलिए अक्षय तृतीय के दिन सिर्फ अच्छे कर्म ही करने चाहिए. मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर किया गया दान अगले जन्म में राजयोग दिला सकता है वही इस दिन किया गया बुरा कार्य बुरा फल देता है.

अक्षय तृतीया पर पंच महायोग होने से इस दिन विवाह, खरीदी, निवेश आदि करने का विशेष महत्व रहेगा.  3 मई को सूर्य (मेष राशि में), चंद्रमा (कर्क राशि में) और शुक्र (मीन राशि में) अपनी उच्च राशि में रहेंगे, वहीं गुरु (मीन राशि में) और शनि (कुंभ राशि में) अपनी स्वराशि में रहेंगे.

शुभ मुहूर्त
सुबह 05:39 बजे से दोपहर के 12:18 बजे
सोना-चांदी और घर गाड़ी समेत और खरीदारी का शुभ मूहूर्त- सुबह 05:39 बजे से अगले दिन के सुबह 05:38 बजे

क्या है अक्षय तृतीया की कथा ?
एक समय की बात है. शाकलनगर में धर्मदास नाम का वैश्य रहता था, वो धार्मिक विचारों वाला था, वो पूजा पाठ और दान पुण्य के कामों को करता रहता था. भगवान की भक्ति में उसे अटूट आस्था थी. वो ब्राह्मणों का आदर सत्कार और धर्म के अनुसार चलता था.

जब धर्मदास को अक्षय तृतीया की जानकारी मिली तो वो नियमानुसार हर साल दानपुण्य करने लगा. लेकिन उसकी पत्नी ने उसे ऐसा करने से कई बार रोका. फिर भी धर्मदास ने अपना धर्म नहीं छोड़ा. मृत्यु के बाद धर्मदास द्वारका के कुशावती में जन्मा और राजा बना. लेकिन इसकी पत्नी को ये सुख नहीं मिला.

अक्षय तृतीय पर करें ये दान 
पानी से भरा कलश दान दें- ऐसा करने पर आपको अक्षय पुण्य की प्राप्ति होगी और जीवन में सुख समृद्धि बढ़ेगी.
जौ का दान- जौ का दान, सोने के दान के समान माना जाता है, जो जीवन खुशियों से भर देगा.
अन्न का दान- अक्षय तृतीया के दिन किया गया अन्न का दान, परिवार को हमेशा धन धान्य से पूर्ण रखेगा.
सोने-चांदी का दान- अक्षय तृतीया के दिन सोना-चांदी खरीदना भी शुभ होता है और इसकी दान भी अक्षय पुण्य देता है.
गौ दान- गौमाता में देवताओं का वास माना जाता है ऐसे में अक्षय तृतीया पर गौदान अक्षय पुण्य देने वाला है.
गुड़-घी और नमक का दान- इन तीन वस्तुओं में से एक का दान आप कर अक्षय पुण्य प्राप्त कर सकते हैं.
तिल और कपड़ों का दान- अगर गृहस्थ जीवन में परेशानी हैं तो तिल और कपड़ों का दान करें.

सिवनी में गौ तस्करी के शक में दो आदिवासियों की पीट-पीट कर हत्या

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मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में गौ तस्करी के शक में उग्र लोगों ने दो आदिवासियों की पीट-पीट कर हत्या कर दी. वहीं एक आदिवासियों घायल है. इस घटना के विरोध में ग्रामीण सड़क पर उतर आए और उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 44 पर जाम लगा दिया. कई किलोमीटर दोनों ओर वाहनों की कतार लगी रही. इस मामले पर कांग्रेस का आरोप है कि इस हत्याकांड में बजरंग दल के लोग शामिल हैं.

कई किलोमीटर तक लगी वाहनों की कतार
मिली जानकारी के अनुसार, कुरई थाना क्षेत्र के सिमरिया गांव में एक घर में गौ हत्या कर मांस निकाले जाने की सूचना मिली. इस पर कुछ लोग वहां पहुंचे और जिन पर शक था उनसे मारपीट शुरू कर दी. इस मारपीट में दो की मौत हो गई, जबकि एक घायल है. इसके बाद मंगलवार की सुबह जब आदिवासी समुदाय को इस घटना की जानकारी मिली तो उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग 44 पर आकर चक्का जाम कर दिया. कुरई से कांग्रेस विधायक अर्जुन माकोड़िया सहित अनेक लोग मौके पर पहुंच गए और उन्होंने जाम लगा दिया है. सड़क के दोनों ओर कई किलोमीटर लंबी वाहनों की कतार लग गई. प्रशासन लोगों को समझाया, मगर भीड़ की मांग है कि पीड़ित परिवार को नौकरी के अलावा एक करोड़ का मुआवजा दिया जाए .

कांग्रेस ने बजरंग दल पर लगाया आरोप
कांग्रेस का आरोप है कि सिवनी जिले में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने दो आदिवासी की पीट-पीट कर हत्या की एवं एक युवक की हालत अभी भी गंभीर बनी हुई है, कांग्रेस विधायक अर्जुन सिंह माकोड़िया धरने पर बैठे और बोले, शिवराज जी, ये जंगलराज नहीं तो क्या है..?

घटना पर पूर्व सीएम कमलनाथ ने क्या कहा?

वहीं कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ ने कहा, सिवनी जिले के आदिवासी ब्लॉक कुरई में दो आदिवासी युवकों की निर्मम हत्या किये जाने की बेहद दुखद जानकारी मिली है, इस घटना में एक आदिवासी युवक गंभीर रूप से घायल है. परिवारजनों व क्षेत्रीय ग्रामीण जनों द्वारा आरोपियों के बजरंग दल से जुड़े होने की बात कही जा रही है. कमल नाथ ने सरकार से मांग की है कि, इस घटना की उच्च स्तरीय जांच की घोषणा कर, दोषियों पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जाए, पीड़ित परिवारों की हर संभव मदद की जाए व घायल युवक के सरकारी खर्च पर इलाज की संपूर्ण व्यवस्था हो.

 

धर्म दिमाग पर चढ़ जाए तो ज़हर बन जाता है

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-प्रियंका ‘सौरभ’

आये रोज आपने हनुमान चालीसा मंदिरों, घरों और यहां तक कि मन में भी पढ़ी होगी। जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिहुं लोक उजागर के बारे कहते हैं जो सच्ची श्रद्धा से हनुमान चालीसा का पाठ करता है उसके सारे दुख दूर हो जाते हैं। आपके दुश्मन परास्त हो जाते हैं। लेकिन महाराष्ट्र में हनुमान चालीसा पढ़ने को लेकर ऐसा विवाद हुआ कि महाराष्ट्र के अमरावती से निर्दलीय सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति को जेल जाना पड़ा। इसके बावजूद कि  महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे द्वारा मस्जिदों में लाउडस्पीकर का मुद्दा उठाए जाने के बाद महाराष्ट्र में विवादों का एक नया सेट सामने आया है और चेतावनी दी है कि अगर 3 मई तक उन्हें नहीं हटाया गया, तो उनकी पार्टी जोर से हनुमान चालीसा बजाएगी।

इस विवाद के बारे में जाने के लिए महाराष्ट्र सरकार ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 के प्रावधानों पर भरोसा कर सकती है। चुनाव है इसलिए धर्म भी दांव पर लगा दिया है; लम्बे चले बुलडोजर के बाद देश में अब बजरगंबली की आराधना का मुद्दा गरमा गया है। सत्तारूढ़ भाजपा ने सवाल खड़ा किया है कि हनुमान चालीसा का पाठ करना कब से राजद्रोह हो गया? वैसे, राजद्रोह के आरोप का यह कोई पहला मामला नहीं है। हाल के वर्षों में कई लोगों पर राजद्रोह के आरोप लगे तो काफी विवाद हुआ। आम लोगों पर केस की जानकारी तो सबको नहीं हुई लेकिन जब राजनीतिक हस्तियों पर आरोप लगे तो हंगामा हो गया। महाराष्ट्र ही नहीं, पूरे देश में इस बात की चर्चा है कि आखिर राजनीतिक विरोध का मामला राजद्रोह तक कैसे पहुंच गया?

भारतीय दंड संहिता राजद्रोह (धारा 124 ए) को एक अपराध के रूप में परिभाषित करती है जब “कोई भी व्यक्ति शब्दों द्वारा, या तो बोले या लिखित, या संकेतों द्वारा, या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा, या अन्यथा, घृणा या अवमानना, या उत्तेजित करने का प्रयास करता है या करता है। या भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति असंतोष को भड़काने का प्रयास करता है।” अप्रसन्नता में बेवफाई और शत्रुता की सभी भावनाएँ शामिल हैं। हालांकि, उत्तेजना या घृणा, अवमानना या अप्रसन्नता को उत्तेजित करने के प्रयास के बिना टिप्पणी, इस धारा के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।

भारत में राजद्रोह कानून का इतिहास देखे तो 1837 में थॉमस मैकाले (भारतीय शिक्षा पर अपने मैकाले मिनट 1835 के लिए प्रसिद्ध) ने 1837 में दंड संहिता का मसौदा तैयार किया। धारा 113 के रूप में दंड संहिता 1837 में देशद्रोह रखा गया। बाद में, इसे छोड़ दिया गया, केवल 1870 में सर जेम्स स्टीफन द्वारा पेश किए गए एक संशोधन द्वारा दंड संहिता में वापस पढ़ा गया। भारत में ब्रिटिश राज ने इस धारा को “रोमांचक असंतोष” शीर्षक के तहत राजद्रोह पर पेश किया था। 1898 का आईपीसी संशोधन अधिनियम: इसने 1870 में दंड संहिता के माध्यम से लाए गए परिवर्तनों में संशोधन किया। वर्तमान धारा 124ए को 1937, 1948, 1950, और भाग बी राज्यों (कानून) अधिनियम, 1951 में किए गए कुछ चूकों के साथ 1898 में किए गए संशोधनों के समान कहा जाता है।

हनुमान चालीसा विवाद के बीच महाराष्ट्र के अमरावती की सांसद नवनीत राणा और उनके पति रवि राणा को बांद्रा कोर्ट ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। राणा दंपति आज कोर्ट में पेश हुए थे. सुनवाई के दौरान कोर्ट में पुलिस ने राणा दंपति की 7 दिन की रिमांड मांगी थी, हालांकि कोर्ट ने इस मांग को खारिज कर दिया।  नवनीत राणा के खिलाफ खार पुलिस स्टेशन में एक और एफआईआर भी दर्ज की गई। पुलिस मामले की जांच कर रही है। खार पुलिस स्टेशन में अब तक 3 केस दर्ज हो चुके हैं। इसमें से 2 मामले नवनीत राणा के खिलाफ तो वहीं तीसरा केस भीड़ के खिलाफ दर्ज किया गया है।धार्मिक उन्माद फैलाने के आरोप में राणा दंपति को गिरफ्तार किया गया था। अब बांद्रा कोर्ट ने राणा दंपति को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है।

अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या बयानबाजी पर राजद्रोह के आरोप लगना ठीक है? इस पर अक्सर बहस होती रहती है कि अंग्रेजों के समय के कानून की आज के समय में क्या जरूरत है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार लोकतंत्र का एक अनिवार्य घटक है।
जो अभिव्यक्ति या विचार उस समय की सरकार की नीति के अनुरूप नहीं है, उसे देशद्रोह नहीं माना जाना चाहिए। 1979 में, भारत ने नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध की पुष्टि की, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त मानकों को निर्धारित करता है।

हालांकि, देशद्रोह का दुरुपयोग और मनमाने ढंग से आरोप लगाना भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के अनुरूप नहीं है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिए धारा 124ए का दुरुपयोग एक उपकरण के रूप में नहीं किया जाना चाहिए। केदार नाथ मामले में दी गई एससी कैविएट, कानून के तहत मुकदमा चलाने पर इसके दुरुपयोग की जांच कर सकती है। जब भी इस कानून का इस्तेमाल राजनीतिक शख्स पर होता है तो सत्तारूढ़ पार्टी पर वैसे ही आरोप लगते हैं जैसे इस समय भाजपा लगा रही है। इसे खामोश कराने का हथकंडा बताया जाता है। संबंधित राज्य के अधिकारी और पुलिस इस राजद्रोह कानून का इस्तेमाल लोगों में भय का माहौल बनाने और सरकार के खिलाफ अंसतोष को कुचलने के लिए करते हैं। देखें तो यह एक तरह से सियासत में  ‘बदलापुर’ की तरह लगता है। समयानुसार इसे बदले हुए तथ्यों और परिस्थितियों के तहत और आवश्यकता, आनुपातिकता और मनमानी के निरंतर विकसित होने वाले परीक्षणों के आधार पर जांचने की आवश्यकता है।

जिस हिन्दू राज में हनुमान चालीसा पढ़ने पर बंदिशें हों, वहां सत्ता की बू सबको समझ आती है। सत्तालोलुप होकर उद्धव ने अपने ही विचार को विस्मृत कर दिया। ऐसे विवादों की जड़ संवैधानिक त्रुटियों से फूटती हैं। दोहरे मापदण्डों ने सत्यानाश कर दिया। आज देश में समान नागरिक संहिता लागू करने का समय आ गया है और समान व्यवहार संहिता भी। अजान मंजूर और हुनमान चालीसा नामंजूर! ये कैसा दस्तूर? सड़कों पर और लोगों के घरों के सामने हनुमान चालीसा सिर्फ इस बात का संकेत है कि अपनी-अपनी आस्था को अपनी चारदीवारी में शांत तरीके से प्रतिपुष्ट करें। लोगों की शांति भंग न करें।

हमें सभी धर्मों को दिलों में रखिए सम्मान दीजिए क्योंकि धर्म जब तक दिल में होता है तो सुकून देता है, लेकिन दिमाग पर चढ़ जाए तो ज़हर बन जाता है। बजरंगबली और हनुमानचालीसा को किसी विवाद में घसीटना सनातनी संस्कृति नहीं हैं। अनेकाएक व् बारंबार पाठ करें लेकिन अपनी संस्कृति के प्रचार के लिए, किसी का विरोध करने के लिए नहीं।

-प्रियंका सौरभ 
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

हरियाणा में तूड़े पर धारा-144 लागू होने से गहराया मवेशियों के चारे का संकट

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प्रियंका ‘सौरभ’

हरियाणा में गोवंश के चारे पर भारी संकट पैदा हो गया है। प्रदेश में सबसे ज्यादा मार उन जगहों पर है जिन जिलों में गोशालाएं सबसे अधिक है। प्रदेश के  सिरसा, फतेहाबाद, हिसार जिले में सबसे अधिक गोशालाएं हैं। अभी से तूड़ी के रेट 850 रुपये क्विंटल पर पहुंच गया है। परिणामस्वरूप इससे गोशालाओं का खर्च भी दोगुना हो गया है। आंकड़ों के अनुसार औसतन 2000 गाय वाली गोशाला में अकेली तूड़ी का खर्च पहले करीब 20 लाख रुपये आता था मगर अब रेट दो गुने होने से यह खर्च भी दोगुना हो गया है। पिछली बार 6000 से 7500 रुपए प्रति क्विंटल बिकी सरसों से इस बार गेहूं और तूड़े की व्यवस्था गड़बड़ा गई है। प्रदेश भर में गत वर्ष की तुलना में कम एकड़ में गेहूं की बिजाई करने से इस बार तूड़े (गेहूं की फसल के अवशेष से बने पशु चारे) के दाम भी आसमान छू रहे हैं।

इस संकट को देखते हुए पहली बार हरियाणा के कई जिला प्रशासन ने तूड़े को लेकर धारा-144 लागू कर दी है। इसके तहत पहली बार तूड़े को राज्य की सीमा से बाहर ले जाने पर रोक लगाई गई है। राज्य में सरकार ने इन आदेशों की पालना के लिए बाकायदा प्रशासनिक अधिकारियों की ड्यूटी भी लगाई गई है। गाय-भैंसों के चारे की चिंता करते हुए यह आदेश दिए गए हैं, ताकि भविष्य में ज़िलों में पशु चारे की किल्लत ना हो। इधर, तूड़े के रेट बढ़ने से पशुपालकों के साथ ही आम आदमी पर भी इसका असर पड़ा है। अभी से दूध के दामों में 5 रुपए की बढ़ोतरी हो चुकी है, जबकि घी के दाम अधिक मांगे जाने शुरू हो गए हैं तथा 50 रुपए तक की वृद्धि की संभावना भी है।

हर वर्ष फसली सीजन में गेहूं की कटाई के साथ ही अनाज मंडी में अनाज आना शुरू हो जाता है। ऐसे में लोग सालभर के लिए गेहूं खरीद लेते हैं। इन दिनों मंडी में अनाज खरीद के लिए भीड़ रहती है, मगर इस बार मंडी तक गेहूं ही नहीं पहुंच रहा। स्थिति को समझते हुए और कम गेहूं उगाने से लोग सीधे खेत से ही खरीद रहे हैं। पिछली बार गेहूं का सरकारी समर्थन मूल्य 1975 रुपए था तथा सरकार ने 4 लाख से ज्यादा बैग खरीदे थे। इस बार 2015 रुपए प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य है, मगर मंडी में सरकारी बिक्री के लिए गेहूं बहुत कम पहुंचा है। जगह -जगह पर  गेहूं खुली बोली में ही 2100 से 2325 रुपए प्रति क्विंटल बिक रहा है।

दूसरी तरफ प्रदेश के  गोशाला संचालकों का कहना है कि लंबे समय से चारे की समस्या गोशालाओं के सामने आ रही है। अबकि बार तूड़े की गंभीर समस्या को भांपते हुए लोग स्टाक कर रहे हैं इसके कारण रेट बढ़ गए हैं। सरकार ने तूड़ी की समस्या को देखते हुए गेहूं के अवशेष जलाने और इनको जिलों  से बाहर भेजने पर पाबंदी लगा दी है। इसको लेकर कई जिला प्रशासन ने आदेश जारी किए हैं। गेंहू, सरसों के फसली अवशेषों को जलाने से होने वाले प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य व संपत्ति को होने वाले नुकसान के मद्देनजर अवशेष जलाने पर प्रतिबंध लगाया है। आने वाले दिनों में पशु चारे की कमी ना हो, इसके लिए दंड प्रक्रिया नियमावली 1973 की धारा 144 के तहत फसली अवशेषों को जलाने के साथ-साथ इन्हें जिले से बाहर भेजे जाने पर भी रोक लगाई गयी है। आदेशों की अवहेलना में यदि कोई व्यक्ति दोषी पाया जाता है, तो उसके विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 188, संपठित वायु एवं प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम 1881 के तहत कार्रवाई की जाएगी।

ईंट भट्टा, गत्ता फैक्ट्री मालिक, दूसरे राज्यों व जिलों से तूडा, भूसा व कटी फसलों के अवशेष खरीद कर अवैध रूप से अन्य राज्यों, जिले से बाहर भेजते हैं तथा वाहनों को भी ओवरलोड कर भेजा जाता है। इस कारण भविष्य में पशुओं के चारे के दामों में वृद्धि, पशुओं के लिये सूखे चारे की कमी व बरसात कम रहती है तो यह स्थिति गम्भीर हो सकती है। दूसरे प्रदेशों में अवैध रूप से तूड़ा ले जाने से प्रदेश को वित्तीय हानि भी होती है तथा ओवरलोड वाहनों के सड़काें पर चलने से सड़क दुर्घटना की संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता। प्रदेश में चारे की कमी है और यहां के पशुओं का चारा बाहर जाए न जाये; ऐसे इंतजाम किये जा रहें है।

प्रदेश के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के आंकड़ों अनुसार गत 3 सालों 2019-20, 2020-21 और 2021-22 को छोड़कर गेहूं का रकबा गत 21 सालों में 40 हजार हेक्टेयर से ज्यादा ही रहा है। उन सालों में मंडियों में भी गेहूं की आवक खूब रही और तूड़ा भी पर्याप्त मात्रा में हुआ है। पिछली बार भी 37.5 हेक्टेयर में गेहूं की बिजाई हुई थी, जो कि इस बार 30 हजार में ही रही। पिछली बार सरसों के दाम अच्छे मिले तो  इस बार किसानों ने सरसों की बिजाई ज्यादा की। पिछली बार एक एकड़ का तूड़ा 13 से 16 हजार बिका जबकि इस बार प्रति एकड़ 25 से 28 हजार तक बिक रहा है।  प्रदेश सरकार प्रत्येक पशु का एक दिन का खर्च 40 पैसे प्रति पशु के हिसाब से देती है जबकि दूसरे राज्यों राजस्थान, दिल्ली व अन्य राज्यों में 40 रुपये प्रति गाय रोजाना के हिसाब से ग्रांट दी जाती है। हरियाणा सरकार को भी ग्रांट बढ़ानी चाहिए।

देखे तो गोशालाओं के सामने चारे का भयंकर संकट है। वे आने वाले दिनों में कैसे गायों के लिए चारे का प्रबंध कर पाएंगे। सरकार की मदद के बिना ये कुछ नहीं कर सकते। वर्तमान तूड़ा संकट के चलते प्रदेश की गाेशालाओ  का वार्षिक चारा बजट बिगड़ता जा रहा है। पहले से स्टॉक किया हुआ तूड़ा खत्म होने को है। इन दिनों महंगाई के चलते हरा चारा भी दान में मिलना 70 प्रतिशत तक कम हो गया है।प्रदेश भर के  गोशाला संचालकों के समक्ष गोवंश का पेट भरना बड़ी चुनौती हो गई है। कुछ ही दिनों में बिना चारे की उपलब्धता के गोवंश का पेट भरना मुश्किल हो जाएगा। फिर लाचारी में गोवंश सड़क पर होंगे।

विषम तथा कठिन समय में मनोबल ऊंचा रखेंl विश्वास और मनोबल मनुष्य के सच्चे साथीl

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कठिन तथा विषम परिस्थितियों में मनुष्य को अपने मनोबल को सदैव ऊंचा रखना चाहिए और अपने द्वारा की गई मेहनत पर विश्वास, संयम एवं निरंतरता रखनी होगी, तब ही जीवन में सफलता के पल आपके सामने आएंगेl निराशा, हताशा और हीन भावना को कठोर श्रम के बलबूते पर ही विजय प्राप्त की जा सकती हैl
जीवन में उतार-चढ़ाव, कठिन समय और विषम परिस्थितियां आती ही रहती हैंl संकट का समय विषम परिस्थितियां जीवन के अलग-अलग पहलू हैं ।इनसे जूझ कर जो मानव आगे बढ़ता है, वह उच्च मनोबल वाला साहसी व्यक्ति होता है। व्यक्ति के जीवन में साहस, उच्च मनोबल ही सफलता की कुंजी है। जिस भी व्यक्ति ने विषमताओं में रास्ता निकलने का साहस करके आगे बढ़ने का प्रयास किया है वही सफल हुआ है। हमेशा सफलता का मूल आत्मविश्वास, कठिन श्रम और उच्च आदर्श वाले व्यक्ति की प्रेरणा ही सफलता दिलाने वाली होती है।
मनुष्य को कभी भी किसी भी परिस्थिति में मन से हार नहीं माननी चाहिए। उसे सदैव प्रयासरत रहकर परिश्रम तथा जुझारू पन से हर परिस्थिति का सामना कर सदैव अपने लक्ष्य के प्रति अग्रसर होते रहना चाहिए। मनुष्य को अपनी हर हार, हर पराजय से कुछ ना कुछ सीख लेनी चाहिए एवं इससे अनुभव प्राप्त कर फिर से खड़ा होने एवं उस पराजित मनोदशा से छुटकारा पाकर फिर से लड़ने की ऊर्जा एवं शक्ति प्राप्त करनी चाहिए, यह सफलता का बड़ा मंत्र है। सर्वप्रथम मनुष्य अपने मनोबल से किन्हीं भी परिस्थितियों को जीतने का साहस रखता है, इसीलिए मनोबल मनुष्य की पहली आवश्यकता है। मनोबल ही साहस को जन्म देता है और साहस, आत्मबल को और आत्मबल से ही मनुष्य किन्हीं भी परिस्थितियों से जूझना एवं टकराने की क्षमता पैदा करता है। जब मनुष्य के पास खोने के लिए कुछ ना हो तो वह निश्चिंत होकर साहस, क्षमता एवं संयम से आगे बढ़ने का प्रयास करता है, क्योंकि वह जानता है की पीछे पलट कर उसके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है, शिवाय आगे बढ़ने एवं सफलता के लिए अग्रसर होने के। मनुष्य का मनोबल एवं दृढ़ प्रतिज्ञा ही मनुष्य को सदैव आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देते रहते हैं। मनुष्य के जीवन का एक तथ्य और भी अत्यंत महत्वपूर्ण है वह है सकारात्मक सोच, जो उसे हमेशा आगे बढ़ने की ओर उत्साहित करती रहती है। सकारात्मक सोच एवं किसी भी परिस्थिति को अपने नियंत्रण में लाने की सुनियोजित योजना मनुष्य में आशाओं को भर देती है एवं परिस्थितियों को चुनौती देने की क्षमता का विकास करती है। यह मनुष्य ही है जो हर परिस्थिति में साहस और मनोबल के दम पर उससे विजय प्राप्त करता है। मनुष्य के जीवन और पशु के जीवन में यही फर्क है कि मनुष्य के पास सोचने के लिए मस्तिष्क होता है और वह उसके सकारात्मक उपयोग के साथ आगे बढ़ने की क्षमता रखता है। मनुष्य मुस्कुराता, हंसता और खिलखिलाता है। जबकि पशु में मुस्कुराने हंसने की क्षमता नहीं होती, और यही कारण है कि मनुष्य ने विषम परिस्थितियों पर सदैव विजय प्राप्त करने का प्रयास किया है, वह काफी हद तक सफलता पाने में सफल भी हुआ है। मनुष्य यदि परिस्थितियों में अन्य प्रतियोगिताओं में, खेल में, या युद्ध में पराजित होकर भी प्रेरणा लेकर पुनः साहस के साथ पुनःतैयार होता है तो वह आने वाले समय में सफलता का सही हकदार भी होता है, क्योंकि उसने पूरी क्षमता, साहस ,मनोबल के साथ पराजय को स्वीकार कर के उससे कुछ सीखने का प्रयास किया है। अपनी कमियों को दूर करने की हर संभव कोशिश भी की है ।इस तरह वह अगली परीक्षा में जरूर सफल होता है और यही मानव जीवन का सफल अध्याय भी होता है। कुल मिलाकर परिस्थितियां तथा घटनाएं ,दुर्घटनाएं मनुष्य को परिस्थितियों के सामने पराजित करने, झुकाने की कोशिश करती हैं किंतु मानव अपने शारीरिक, मानसिक, नैतिक, चारित्रिक एवं मानसिक आत्मबल से उसे सफलता में बदल देता है। अनवरत प्रयासरत व्यक्ति अपने साहस परिश्रम से हर चुनौतियों का सामना कर परिस्थितियों में विजय प्राप्त कर अपने जीवन को सफलता के शिखर पर पहुंचाता है। जीवन में कठिन परिस्थितियों से जूझ कर जो मानव सदैव सफल होता है वह पूरे समुदाय और समाज के लिए एक प्रेरणादाई व्यक्तित्व बन कर पूरे समाज एवं देश को मार्गदर्शन भी प्रदान करता है।
इसीलिए मनुष्य को किन्हीं भी परिस्थितियों में, खासकर विषम परिस्थितियों में अपने मनोबल और साहस को त्यागना नहीं चाहिए। उच्च मनोबल और साहस की ऊर्जा ही मनुष्य को नई दिशा, नए प्रकाश पुंज की ओर अग्रसर करती है।
संजीव ठाकुर, चिंतक, लेखक, रायपुर छत्तीसगढ़, 9009 415 415,