Home Blog Page 35

भारत की चरणवंदना क्यों कर रही यूरोपीय यूनियन?

0

– आचार्य श्रीहरि

यूरोपीय यूनियन के अध्यक्ष उर्सूला वाल डेर लेयेन का भारत दौरा काफी चर्चित रहा है। भारत के साथ ही साथ यूरोप में काफी चर्चित रहा और अमेरिका में भी चर्चित रहा। भारतीय मीडिया ने थोड़ा कम महत्व दिया पर यूरोपीय यूनियन मीडिया और अमेरिकी मीडिया में अपने-अपने तरीके से विश्लेषण करने और अवधारणा बनाने की पूरी कोशिश की थी, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि यूरोपीय यूनियन मीडिया और अमेरिकी मीडिया के बीच उर्सूला के भारत दौरे को लेकर जंग छिडी थी और एक-दूसरे के हितों के खिलाफ कुठराघात वाली टिप्पणियां भी हो रही थी। उर्सूला की भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बैठकें भी हुई और वाताएं भी हुई। उर्सूला का बयान भी काफी महत्वपूर्ण था। उर्सूला कहती है कि भारत हमारे लिए अति महत्वपूर्ण देश है और हम भारत के विकास और उन्नति को लेकर आश्चर्यचकित है, भारत के पास नरेन्द्र मोदी जैसा कुशल और भविष्य दृष्टि वाला नेता है जो अपने नेतृत्व से दुनिया को चकित भी करते हैं। भारत के पास बाजार की प्रचुरता है, समृद्धि भी है जो पूरी दुनिया के लिए अवसर के सामान है, भारत के बाजार में पूरी दुनिया को मंदी और अस्थिरता के भंवर से निकालने की शक्ति है।


यूरोपीय यूनियन न केवल भारत के साथ व्यापार और साझीदारी को एक नया आयाम देने के लिए तैयार है बल्कि भारतीय के हुनर का यूरोपीय यूनियन अवसर भी देने के लिए तैयार है। इसके साथ ही साथ वैश्विक कूटनीति के क्षेत्र में भी यूरोपीय यूनियन भारत के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार है। वैश्विक कूटनीति में कई ऐसी बाधाएं, अवरोधक हैं और विसंगतियां हैं जो हिंसक है, तानाशाही हैं और सामान अवसर के खिलाफ है। भारत की सहायता से हम ऐसी विसंगतियों और अवरोधकों पर विजयी प्राप्त कर सकते है। यानी कि यूरोपीय यूनियन को न वेवल आर्थिक क्षेत्र में बल्कि कूटनीति क्षेत्र और सामरिक क्षेत्र में भी भारत की सहायता और समर्थन चाहिए।

उर्सूला के सामने डर और दंड की चुनौतियां हैं। यह सही है कि जिन बातों को लेकर उर्सूला चिंतित है और संकट में खडा है उन बातों के प्रति खुलकर बोल नहीं सकी, पर अप्रत्यक्ष तौर पर उन्होने उल्लेख तो जरूर कर दिया है। डर और दंड किस बात का। डोनाल्ड ट्रम्प का डर और दंड। डोनाल्ड ट्रम्प डर और दंड जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं। डोनाल्ड ट्रम्प कहते हैं कि हम अपने विरोधियों को दंड भी देंगे और डर भी दिखायेंगे। डोनाल्ड ट्रम्प ने डर भी दिखाया है और दंड भी दिखाया है। यूरोपीय यूनियन ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया डोनाल्ड ट्रम्प की इस थ्योरी और चाबूक से हलकान है, परेशान है और भयभीत है। टैरिफ वार से यूरोपीय यूनियन भी हलकान है। डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन, कनाडा, मैक्सिकों पर भारी टैरिफ वार किया है और यूरोपीय यूनियन को भी धमकी दी है कि वे अमेरिकी हितों को सुरक्षित रखें और समृद्ध करें अन्यथा टैरिफ दंड भोगने के लिए तैयार रहें। यूरोपीय यूनियन को भी अमेरिका अपने हितों के आधार पर मदद देने या फिर समृद्ध करने के लिए तैयार नहीं है। डॉलर के सामने यूरों को रूग्न रखने की अमेरिकी चाल भी बहुत तेज है। यूरों का संकट भी बढने की आशंका है। सबसे बडी बात यह है कि नाटो को लेकर अमेरिका अब पैंतरेबाजी पर पैंतरेबाजी दिखा रहा है, नाटो का प्रभुत्व यूरोपीय देशों पर है। यूरोपीय देशों का रक्षाकवच नाटो है। नाटो के साथ अमरिका का सहयोग और समर्थन भी प्रमुख रहा है। नाटो के देश यूक्रेन को सदस्यता देने के पक्षधर रहे हैं। इसी आधार पर यूक्रेन पर रूस ने हमला कर दिया और यूक्रेन को अपना प्रदेश बनाने के लिए रूस ने यूक्रेन के साथ भयानक युद्ध और हिंसा की विभत्स कहानी लिख डाली। नाटो रूस के खिलाफ यूक्रेन की मददगार है। जो बाइडेन के समय में अमेरिका भी यूक्रेन की एकता और अखंडता को अक्षुण रखने के लिए अडिग था। पर अब डोनाल्ड ट्रम्प ने ब्लादमीर पुतिन के साथ दोस्ती बढा डाली। यूक्रेन से कीमत वसूलने की चौधराहट भी दिखानी शुरू कर दी। यही कारण है डोनाल्ड ट्रम्प और जलेस्की के बीच वार्ता वाकयुद्ध में तब्दील हो गया, जलेस्की सीधे तौर ट्रम्प के साथ उलझ गये और झुकने से भी इनकार कर दिया। यूक्रेन में रूस को  किसी तरह का लाभ मिला तो फिर यह नाटो और यूरोपीय यूनियन के लिए अच्छा या पक्षधर नहीं हो सकता है। क्योंकि यूरोपीय यूनियन अपने अस्तित्व के लिए ब्लादमीर पुतिन और रूस की अराजक और हिंसक शक्ति को खतरनाक और अमानवीय मानता है।
दोपक्षीय साझेदारी के मुद्दे क्या-क्या है जिन पर यूरोपीय यूनियन और भारत का आगे बढना है। द्विपक्षीय फी ट्रेड एंग्रीमेंट पर अभी समझौता नहीं हुआ है। कई दौर की बातचीत के बावजूद यह मुद्दा अभी भी लंबित है। लेकिन इस पर सहमति बढ रही है और एक-दूसरे के हितों के प्रति भी गंभीर मंथन भी हुआ है। उर्सूला का कहना है कि कुछ रूकावटें हैं जिस पर हम काम कर रहे हैं और उन रूकावटों को दूर कर लिया जायेगा। इस वर्ष के अंत तक यह उम्मीद की जा रही है कि फ्री टेªेड एग्रीमेंट हो जायेगा। अगर भारत और यूरोपीय यूनियन के बीच फी ट्रेड एग्रीमेंट हुआ तो फिर यह बहुत बडी सफलता होगी और यूरोपीय यूनियन-भारत के बीच व्यापार का नय इतिहास बनेगा। इसी प्रश्न को लेकर अमेरिका, चीन और रूस की नजरे लगी हुई हैं, ये तीनों शक्तियां यह नहीं चाहती है ंकि यूरोपीय यूनियन और भारत के बीच फ्री ट्रेड एग्रीेमेंट संभन बने। फ्री टेªड एगीमेंट से खासकर भारत को कुछ ज्यादा ही लाभ होगा। अमेरिका और रूस तो कम प्रभावित होंगे बल्कि चीन की परेशानी बढेगी और चीन की अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह से प्रभावित होगी। चीन अभी भी यूरोपीय यूनियन के बाजार का सर्वाधिक लाभ उठा रहा है और यूरोपीय यूनियन के निवेशक भी चीन के सस्ते श्रम शक्ति और संरक्षण मुक्त चीनी तानाशाही के कारण लाभार्थी होते हैं। पर भारत भी विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर रहा है। भारत भी अपने संसाधनों और दक्ष श्रम शक्ति के बल पर विदेशी निवेशकों के लिए पंसदीदा जगह है। चीन में निवेशक कपंनियां हाल के दिनों में अपना बोरिया-विस्तर समेट कर बाहर निकल रही हैं। निवेशकों के लिए चीन अब नीरस और कम उपयोगी, लाभकरी देश बन गया है।
रक्षा के क्षेत्र में भी दोनो पक्ष साझेदारी करने के इच्छुक है। भारतीय नेवी और ईयू मैरीटाइम सेक्योंरिटी एंटीटीज के बीच साझा अभ्यास हो चुके हैं। भारत ईयू के साथ स्थायी तौर पर स्ट्रक्चर्ड कोऑपरेशन प्रोजेक्ट से जुडना चाहता है। हिंसा और आतंकवाद पर भी दोनों पक्ष गंभीर है। मुस्लिम आतंकवाद को लेकर अब यूरोपीय यूनियन के देशों में भी चुनौतियां बढी हैं और शांति पर संकट खडा हुआ है। यूरोपीय देशों में मुस्लिम कट्टरपंथियों की हिंसा भी बढी है। यूरोपीय यूनियन के कई देश मुस्लिम शरणार्थियों की समस्याओं से जूझ रहे हैं और इन्हें शरणार्थी नहीं बल्कि मुस्लिम हिंसक गिरोह के तौर पर देखते हैं। यूरोपीय यूनियन अब मुस्लिम आतंकवाद को संरक्षण देने वालों के खिलाफ कठोर नीति रखती है। भारत भी मुस्लिम आतंकवाद से पीडित है। इसलिए इस प्रश्न पर दोनों पक्ष एक-दूसरे के लिए लाभकारी बन सकते हैं।

यूरोपीय यूनियन को अपने व्यापारिक घाटे से बाहर निकलने के लिए भारत का साथ चाहिए। डोनाल्ड ट्रम्प की धमकियों और टैरिफ वार से बाहर निकलने के लिए यूरोपीय यूनियन को भारत का साथ चाहिए। चीन और रूस की अराजक और हिंसक आर्थिक नीतियों से भी लडने के लिए यूरोपीय यूनियन को भारत का साथ चाहिए। नये भारत में दुनिया का नेतृत्व करने की शक्ति निहित है। इसी कारण यूरोपीय यूनियन भारत की चरणवंदा कर रही है।

गौ माता को राष्ट्र माता का दर्जा दिलाने की मुहीम

0

गोरखपुर : ज्योतिष्पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के शिष्य शनिवार को गाय को राष्ट्रमाता का दर्जा दिलाने के लिए अभियान पर निकले. शनिवार की सुबह उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय परिसर में मॉर्निंग वॉक पर आने वाले लोगों से संपर्क किया. संपर्क के दौरान उन्होंने लोगों से इस अभियान से जुड़ने की अपील की. टीम के सदस्यों ने शंकराचार्य के विचारों से संबंधित एक पत्र भी लोगों को सौंपा. इस दौरान उन्होंने पत्र में लिखे मोबाइल नंबर पर मिस कॉल देकर अभियान को समर्थन देने की अपील भी की.

इस संबंध में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के दीक्षित शिष्य और गोरखपुर गोरक्षा दल को नेतृत्व दे रहे मनीष पाण्डेय ने बताया कि, शंकराचार्य का कहना है कि, आजादी के 77 वर्ष से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी इस देश में ऐसी कोई सरकार अभी तक नहीं आई जिसने गौ माता के प्राणों की रक्षा के लिये कोई प्रभावकारी कदम उठाया हो. हमारी गौमाता को गाजर-मूली की तरह काट करके उनके मांस को विदेश में निर्यात किया जा रहा है. यह हम हिंदुओं के लिए बहुत ही शर्मनाक और पीड़ादायक है, जबकि हमारे धर्म शास्त्रों में गौ माता को विश्व की माता कहा गया है. ऐसे में हमारी यह पहली धार्मिक जिम्मेदारी बनती है कि हम गौ माता को कटने से बचाएं और उसके लिए संकल्पबद्ध होकर, सरकारों पर प्रभावकारी दबाव बनाएं कि, वह गौ माता को पशु की श्रेणी से निकालकर राष्ट्र माता का दर्जा दें और गौहत्या के लिए कड़े से कड़े कानून बनाएं. यह तभी संभव है जब सभी हिंदू लोग इसमें सहयोग करें.

उन्होंने कहा कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने भारत सरकार से निवेदन किया है कि 17 मार्च 2025 तक इस संबंध में अपना रुख स्पष्ट करे नहीं तो वह दिल्ली में गौ माता को राष्ट्र माता का दर्जा दिलाने के लिए अनशन पर बैठने का कार्य करेंगे. मनीष पांडेय ने बताया कि शंकराचार्य भगवान के निर्देश पर लोगों से संपर्क कर इस अभियान को गति देने का कार्य किया जा रहा है, जिसके क्रम में विश्वविद्यालय परिसर में शनिवार की सुबह लोगों से संपर्क किया गया और उनसे अभियान को समर्थन देने के लिए मोबाइल नंबर (8448531008) पर मिस कॉल करने को कहा गया है. इस दौरान बड़ी संख्या में लोगों ने मिस कॉल भी किया.

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर मुंबई पंहुचा सनफीस्ट डार्क फैंटेसी का ‘बिग फैंटेसी स्पेसशिप’

0
मुंबई (अनिल बेदाग): बेंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद जैसे दक्षिण भारत के प्रमुख शहरों में अपनी सफलता के सफर को जारी रखते हुए, सनफीस्ट डार्क फैंटेसी का प्रसिद्ध फैंटेसी स्पेसशिप अब मुंबई पहुंच चुका है। यह 28 फरवरी को मनाए गए राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर यहां लाया गया है। “बिग फैंटेसीज़: अपनी कल्पना को पंख दें” कैम्पेन के तहत, यह स्पेसशिप बच्चों की रचनात्मकता और कल्पनाशक्ति को प्रोत्साहित करने के लिए कला और तकनीक का अनूठा मेल प्रस्तुत करता है। इस पहल पर अपने विचार साझा करते हुए, आईटीसी लिमिटेड के फूड्स डिवीजन, बिस्किट्स और केक्स क्लस्टर के सीओओ, अली हारिस शेर ने कहा, “राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर नेहरू साइंस सेंटर के साथ साझेदारी करना युवा प्रतिभाओं और उनकी असीम संभावनाओं को प्रोत्साहित करने का एक अद्भुत तरीका है।
हर क्षण हमें यह याद दिलाता है कि उनके भीतर कितनी अद्वितीय रचनात्मकता समाई हुई है। हम आने वाले दिनों में और भी अधिक युवा सपने देखने वालों का स्वागत करने और उनकी कल्पनाओं को नई दिशाओं में उड़ान भरते देखने के लिए बेहद उत्साहित हैं!”
इस अनोखे अनुभव से उत्साहित होकर, प्रतिभागी राहुल ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा, ” मुझे सुपरहीरो बहुत पसंद हैं, और आज मैंने अपनी ड्राइंग को बड़े पर्दे पर एक असली डिजिटल सुपरहीरो में बदलते हुए देखा! यह मेरी कल्पना के सच होने जैसा था।” उनकी मां अंजली ने अपनी खुशी व्यक्त करते हुए कहा, “एक माता-पिता के रूप में, मैं हमेशा ऐसे अवसरों की तलाश में रहती हूं जो मेरे बच्चे की रचनात्मकता को बढ़ावा दें। यह अनुभव सच में जादुई था, जिसमें विज्ञान और कल्पना का अनोखा मेल देखने को मिला। उसके चेहरे पर खुशी देखना मेरे लिए मेरे जीवन का सबसे अनमोल पल था!” आईटीसी सनफीस्ट डार्क फैंटेसी की यह पहल कला, विज्ञान और तकनीक को एक साथ जोड़कर युवा प्रतिभाओं को प्रेरित करने और उनकी असीमित रचनात्मकता को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई है। इस रोमांच को और भी खास बनाते हुए, चयनित बच्चों को नासा की एक विशेष यात्रा पर जाने का अवसर मिलेगा, जिससे उनके अंतरिक्ष अन्वेषण के सपने साकार हो सकें

अधूरा रह गया गौ अभ्यारण्य, अब भाजपा सरकार ने खड़े किए हाथ

0

जयपुर। राजस्थान में करीब छह साल पहले गौ अभ्यारण्य बनाने की योजना अमल में लाई गई। इसके लिए बाकायदा जमीन भी चिन्हित की गई। बजट में भी प्रावधान रखा गया है। लेकिन अब भाजपा सरकार में गौ अभ्यारण्य बनाने की कोई योजना नहीं है। इसका खुलासा खुद गोपालन मंत्री ने विधानसभा में किया है। मंत्री ने लिखित में बताया है कि वर्तमान में राज्य सरकार द्वारा मध्य-प्रदेश व उड़ीसा की तर्ज पर प्रदेश में गौ अभ्यारण्य स्थापित करने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है।

यह है पूरा मामला

राजस्थान विधानसभा में गुरुवार को एक विधायक में सवाल उठाया कि क्या राज्य सरकार मध्यप्रदेश व उड़ीसी की तर्ज पर राजस्थान में भी गो अभ्यारण्य स्थापित करना चाहती है? इस पर गोपालन मंत्री जोराराम कुमावत ने कहा कि मध्य-प्रदेश व उड़ीसा की तर्ज पर प्रदेश में गौ अभ्यारण्य स्थापित करने की दिशा में राज्य सरकार द्वारा इन राज्यों से आवश्यक जानकारी एकत्र की जा रही है। परीक्षण के पश्चात् प्रदेश की भौगोलिक स्थिति के अनुरूप वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता अनुसार इस संबंध में निर्णय लिया जाएगा।

छह साल पहले यह बनी थी योजना, लेकिन धरातल पर नहीं हुआ काम

गोपालन मंत्री ने बताया कि वर्ष 2018-19 में तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा बीकानेर जिले के नापासर ग्राम में 5 करोड़ रुपए की लागत से गौ अभ्यारण्य स्थापित करने की घोषणा की थी। इस गौ अभ्यारण्य की स्थापना के लिए राज्य सरकार द्वारा 5 करोड़ रुपए एवं एमओयू की सहभागी संस्था द्वारा भी 5 करोड़ रुपए की राशि दिए जाने का प्रावधान किया गया था।

निदेशालय गोपालन द्वारा इस सम्बन्ध में दिशानिर्देश जारी कर जिला कलक्टर बीकानेर की अध्यक्षता में जिला गोपालन समिति द्वारा गौ अभ्यारण्य के प्रबंधन के लिए सोहनलाल बुलादेवी ओझा गौशाला समिति नापासर, बीकानेर का चयन किया गया था। तत्पश्चात् जिला कलक्टर, बीकानेर एवं इस समिति के मध्य एमओयू किया गया। राजस्व ग्रुप 3 द्वारा गौ अभ्यारण्य के लिए 221.31 हेक्टेयर चरागाह भूमि भी प्रदान की गई। लेकिन संस्था द्वारा अनुबंध की शर्तों की पालना नहीं किए जाने के कारण वर्ष 2020 में तत्कालीन सरकार द्वारा एमओयू निरस्त करने के निर्देश दिए गए।

प्रदेश में कुल 1 करोड़ 39 लाख गौवंश

कुमावत ने बताया कि प्रदेश में कुल 1 करोड़ 39 लाख गौवंश हैं। निराश्रित गौवंश के संरक्षण एवं संधारण के लिए प्रदेश में 4 हजार 140 पंजीकृत गौशालाएं हैं। राज्य सरकार द्वारा इन पात्र गौशालाओं को गौवंश के भरण-पोषण के लिए बड़े गौवंश को 44 रुपए एवं छोटे गौवंश को 22 रुपए का अनुदान दिया जाता है। इस वर्ष के बजट में यह अनुदान 15 प्रतिशत बढाकर बड़े गौवंश को 50 रुपए एवं छोटे गौवंश को 25 रुपए करने की घोषणा की गई है। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2024-25 में 21 फरवरी, 2025 तक 1147 करोड़ रुपए का अनुदान जारी कर दिया गया है।

एमपॉवरिंग माइंड्स समिट 2025 में’ परिवर्तनकारी कंसोर्टियम लॉन्च किया

0
मुंबई (अनिल बेदाग) : “आदित्य बिड़ला एजुकेशन ट्रस्ट (एबीईटी) के तहत संचालित एमपावर की एक पहल ‘एमपावरिंग माइंड्स समिट 2025’ में हार्वर्ड मेडिकल स्कूल, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम, मेंटल हेल्थ फर्स्ट एड (एमएचएफए) ऑस्ट्रेलिया के विशेषज्ञों तथा प्रतिष्ठित मनोचिकित्सकों, मनोवैज्ञानिकों, शिक्षाविदों एवं प्रमुख नीति निर्माताओं को युवाओं के बढ़ते मानसिक स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए बुलाया गया। शिखर सम्मेलन ने भारत में अब सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए आपातकाल बन चुके इस संकट से निपटने के लिए, हर सेक्टर के हस्तक्षेप की तत्काल जरूरत को रेखांकित किया। भारत एक ऐसा देश है, जिसका आर्थिक भविष्य उसके युवाओं की भलाई के साथ गुंथा हुआ है।”
शिखर सम्मेलन का एक बड़ा आकर्षण था- “अनवीलिंग द साइलेंट स्ट्रगल: एमपॉवर रिसर्च रिपोर्ट”- जो युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य एवं कल्याण को बढ़ावा देने के लिए, पूरे भारत के कॉलेजी छात्रों में व्याप्त अकेलापन, अनिद्रा और तनाव का सहसंबंध स्थपित करती है। रिपोर्ट का अनावरण आदित्य बिड़ला एजुकेशन ट्रस्ट की संस्थापक एवं अध्यक्ष श्रीमती नीरजा बिड़ला के साथ मिलकर महाराष्ट्र सरकार के उद्योग एवं मराठी भाषा मंत्री माननीय श्री उदय सामंत, स्वास्थ्य सचिव श्री निपुण विनायक और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के निदेशक डॉ. भाविसकर ने किया। यह रिपोर्ट युवाओं में बढ़ती मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों पर प्रकाश डालती है, जिसमें बताया गया है कि 50% लक्षण 14 वर्ष की आयु तक उभर आते हैं और प्रारंभिक हस्तक्षेप पर्याप्त नहीं होता। प्रमुख निष्कर्षों में शामिल हैं: 38% छात्र शैक्षणिक चिंता का सामना करते हैं, 50% छात्रों के प्रदर्शन में गिरावट आ जाती हैं, 41% सामाजिक अलगाव अनुभव करते हैं, और 47% नींद की समस्या से जूझते हैं, छात्राओं पर इसका बहुत ज़्यादा प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। चिंताजनक रूप से, 9% को नींद की गंभीर समस्याएँ झेलनी पड़ती हैं, 8.7% ने तो शैक्षणिक दबाव के चलते आत्महत्या के बारे में सोचा, और केवल 2% छात्र ही पेशेवर लोगों की मदद माँगते हैं। इस अध्ययन में भी यह खुलासा भी हुआ है कि अकेलेपन और नींद की गड़बड़ी (35% सहसंबंध) तथा तनाव (47% सहसंबंध) के बीच बहुत गहरा संबंध है, जो प्रणालीगत मानसिक स्वास्थ्य सुधारों की तत्काल आवश्यकता पर जोर देता है।
स्थायी महत्व का बहुत बड़ा कदम उठाते हुए, श्रीमती नीरजा बिड़ला ने ग्लोबल मेंटल हेल्थ कंसोर्टियम को लॉन्च करने का ऐलान किया, जो भारत और उसके बाहर मानसिक स्वास्थ्य के परिदृश्य में प्रणालीगत बदलाव लाने की दृष्टि से एक सहभागिता वाली पहल है।

शांति के अग्रदूत रामकृष्ण परमहंस* 

0
(बिजेन्द्र कोहली-विभूति फीचर्स)
श्री राम कृष्ण परम हंस एक सच्चे त्यागी और सात्विक व्यक्तित्व के स्वामी थे। बंगाल का ग्राम कामारपूकूर धन्य हो गया जब श्री खुदीराम जी के घर एक दिव्य पुंज ने जन्म लिया। मां चंद्रादेवी के पुत्र रत्न रामकृष्ण का बचपन का नाम गदाधर था। सात वर्ष की आयु में पिता का साया उसके सिर से उठ गया था। उनका जीवन संघर्षमय था। सांसरिक सुख और धन दौलत के पीछे वे नहीं फिरे। उनके भक्त हजारों रूपये उनको भेंट के रूप में दे देते  थे परन्तु वे स्वीकार न करते थेे।
           हिन्दी पंचांग के अनुसार रामकृष्ण परमहंस का जन्म फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर हुआ था। अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से परमहंसजी का जन्म 18 फरवरी 1836 को बंगाल के कामारपुर में हुआ था। उनकी मृत्यु 16 अगस्त 1886 को कोलकाता में हुई थी।
          जन्म के 23 वर्ष बाद वे कलकत्ता में रानीरसमणि के मंदिर में पुरोहित पद पर आसीन हुये। रामकृष्ण जी काली मां की आराधना एवं पूजा अर्चना में संलग्न रहते। मंदिर की सेवा करते और सादा जीवन उच्च विचार रखते। उनका मानना था कि जब ईश्वर कृपा हो जाए तो दुनिया के दुख नहीं रहते। यदि हम ईश्वर की दी हुई शक्तियों का दुरूपयोग करेंगे तो वह हमसे शक्तियां छीन लेगा। पुरूषार्थ से ईश्वर कृपा का पात्र बना  जा सकता है। सिर्फ राजहंस ही दूध में से दूध का दूध और पानी का पानी कर पाता है परन्तु दूसरे पक्षी ऐसा नहीं कर सकते।  इसी प्रकार साधारण पुरूष माया  के जाल में फंस कर परमात्मा को नहीं देख सकते। चिंताओं और दुखों का रूक जाना ही ईश्वर पर पूर्ण निर्भर रहने का सच्चा स्वरूप है। मात्र ईश्वर ही विश्व का पथ प्रदर्शक और सच्चा गुरू है। जिसने आध्यात्मिक ज्ञानप्राप्त कर लिया उस पर क्राम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार का  विष प्रभाव नहीं करता। इन्हीं गुणों एवं उपदेशोंं के फलस्वरूप स्वामी विवेकानंद उनके परम शिष्य बन गए। श्री रामकृष्ण परमहंस के परलोकगमन के बाद उनकी संस्थाओं की गद्दी पर स्वामी विवेकानंद बैठे।
1886 को स्वामी रामकृष्ण परमहंस गले के रोग के कारण मृत्यु शैया पर पड़ गए। 16 अगस्त 1886 वे नश्वर शरीर को त्याग कर इस भवसागर को पार कर गए। उनका अंतिम संस्कार काशीपुर घाट पर किया गया। चन्दन की चिता पर श्री राम कृष्ण परमहंस के शरीर के तत्व धरा और वायुमंडल में समा गए और हमें आत्मज्ञान आत्म गौरव का पाठ पढ़ा गए।  (विभूति फीचर्स)

विविधता में एकता की अवधारणा और – एक राष्ट्र एक चुनाव

0
*
      –  न्यायमूर्ति रोहित आर्य
       प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जॉन मेनार्ड कीन्स ने एक बार कहा था, ‘कठिनाई नए विचारों को विकसित करने में नहीं, बल्कि पुराने विचारों से मुक्त होने में है।‘ संभवत: एक देश एक चुनाव का विरोध कर रहे राजनीतिक दल और नेता पुराने विचारों से मुक्‍त होने में ही कठिनाई महसूस कर रहे हैं, या सिर्फ विरोध की राजनीति के तकाजे उन्‍हें इस अभिनव प्रयास का समर्थन करने से रोक रहे हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जिसकी नींव  विविधता में एकता की अवधारणा पर टिकी हुई है। “एक राष्ट्र, एक चुनाव” इसी विचारधारा को सशक्त बनाता है, जिससे संसद और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराये जा सकें। यह विषय न केवल प्रशासनिक सुधार से जुड़ा है, बल्कि यह हमारे लोकतंत्र को अधिक संगठित, कुशल और प्रभावी बनाने की दिशा में एक एतिहासिक कदम भी है। यह प्रणाली चुनावी प्रक्रिया को सरल बनायेगी, शासन को स्थिरता प्रदान करेगी और अर्थव्यस्था पर पड़ने वाले अनावश्यक बोझ को कम करेगी।
*पहले भी होते रहे हैं एक साथ चुनाव*
हालांकि “एक राष्ट्र, एक चुनाव” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस दिशा में की गई पहल के बाद से चर्चा का विषय बना है, लेकिन यह कोई नया विचार नहीं है। भारत में 1952 के पहले आम चुनाव से ही लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराये जाते थे, इसके बाद राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव होते थे। उससे पहले यही प्रकिया ब्रिटिश सरकार द्वारा 1935 के भारत शासन अधिनियम में भी अपनाई गई थी। हालांकि, 1967 के बाद राजनैतिक और सामाजिक बदलावों के कारण यह व्यवस्था टूट गई। 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने संसद को भंग कर समय से पहले चुनाव कराए, जिसके बाद यह प्रवृत्ति और मजबूत हो गई। नतीजा यह हुआ कि आज हम वर्षभर में कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अलग-अलग चुनाव होते हुए देखते हैं। इसका प्रतिकूल प्रभाव शासन व्यवस्था, आर्थिक संसाधनों और प्रशासनिक कार्यों पर पड़ा है। 1962 में भारतीय चुनाव आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि “अगर संभव हो तो प्रयास और खर्च की पुनरावृत्ति से बचना चाहिये “। 1983 की वार्षिक रिपोर्ट में भी संसदीय और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने की आवश्यकता को दोहराया गया। 170वीं विधि आयोग की रिपोर्ट ने तो इसे और आगे बढ़ाते हुये अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग को इसका प्रमुख कारण बताया। इस अनुच्छेद का अत्यधिक प्रयोग भारत के संघीय ढांचे के लिये चिन्ता का विषय बना रहा है। 2015 में 79वी स्थाई समिति की रिपोर्ट ने भी एक साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन किया।
*दूषित हो गई लोकतांत्रिक प्रणाली*
देश में होने वाले बहु-चरणीय चुनावों ने कई समस्याओं को जन्म दिया है और इनके कारण पैदा हुई बुराईयों ने हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को ही दूषित कर दिया है। चुनावों में बाहुबल का बढ़ता प्रयोग लोकतंत्र के लिये खतरा बन गया है। मतदान के दौरान होने वाली हिंसा जैसी घटनाएं चुनावी प्रक्रिया को बाधित करती हैं। बहु-चरणीय चुनावों में कानून व्यवस्था पर गंभीर असर पड़ता है। चुनावों में फर्जी समाचार, सोशल मीडिया में दुष्प्रचार और मतदाताओं को गुमराह करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिल रहा है। बार-बार होने वाले चुनावों के कारण ध्यान शासन से हटकर चुनाव प्रचार पर  चला जाता है, जिससे नीतियों के कियान्वयन में देरी होती है। इससे मुफ्तखोरी की राजनीति की शुरुआत हुई जो राज्‍य की वित्‍तीय स्थिति को नुकसान पहुंचाती है। बार-बार होने वाले चुनावों के दौरान आदर्श आचार संहिता विकास कार्यक्रमों और प्रशासन को बाधित करती है, जिससे नीतिगत गतिरोध उत्पन्न होता है और कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में देरी होती है। हर बार के चुनावों में भारी सुरक्षा बल और कर्मचारियों की तैनाती होती है, जो न सिर्फ सरकारी संसाधनों पर दबाव डालती है, बल्कि‍ आवश्‍यक सेवाओं को भी बाधित करती है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में ही 70 लाख अधिकारियों की तैनाती हुई थी। बार-बार के चुनावों से मतदाताओं पर सामाजिक और आर्थिक प्रभाव पडता है। वे उदासीनता और थकान महसूस करने लगते हैं। जनजातीय और दूरस्थ क्षेत्रों के लोगों की भागीदारी सीमित हो जाती है।
*देश के लिए हितकारी*
केन्द्र सरकार ने ‘एक देश, एक चुनाव’ के विचार को आगे बढ़ाने के लिये पूर्व राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्‍यक्षता में “कोविन्द समिति ” का गठन किया था। इस समिति के सुझावों के आधार पर 129वां संवैधानिक संशोधन विधेयक पेश किया गया। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एक साथ चुनाव होने से खर्च और प्रशासनिक लागत की  बचत होगी। कम चुनाव निर्बाध शासन और नीतियों का क्रियान्‍वयन सुनिश्‍चित करेंगे। एक साथ होने वाले चुनाव केन्द्र और राज्य की नीतियों के बीच समन्वय में सुधार करेंगे। मतदान प्रतिशत बढेगा और एक साथ होने वाले चुनावों से राजनीतिक स्थिरता तथा आर्थिक विकास की राह प्रशस्‍त होगी, जो निवेशकों के विश्वास को बढ़ावा देगी। समिति ने वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव का अनुमानित खर्च 1.35 लाख करोड़ बताया है। समिति के अनुसार एक देश, एक चुनाव से कम से कम 12000 करोड़ की बचत तो होगी ही, काले धन और भ्रष्‍टाचार पर भी रोक लगेगी। समिति के अनुसार ‘एक देश, एक चुनाव’ देश के जीडीपी के 1.5 प्रतिशत की बचत कर सकता है। इससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा, अप्रत्याशित प्रचार खर्च कम होंगे और चुनाव के बाद मुद्रास्फीति में कमी होगी। यदि सभी चुनाव एक साथ कराए जाएँ, तो सरकार को पूरे पाँच साल तक निर्बाध रूप से कार्य करने का अवसर मिलेगा। इससे विकास की गति तेज होगी, सामाजिक योजनाओं को प्रभावी रूप से लागू किया जा सकेगा और जनता को वास्तविक लाभ मिलेगा।
*सबका साथ, सबका विश्‍वास के साथ आगे बढती प्रक्रिया*
कोविंद समिति ने एक देश, एक चुनाव के मुद्दे पर व्‍यापक विचार विमर्श किया। समिति ने कुल 62 राजनीतिक दलों से इस प्रस्ताव पर सुझाव मांगे। इनमें से 47 दलों ने अपनी प्रतिक्रिया दी, जिनमें से 32 दलों ने इसका समर्थन किया और 15 ने इसका विरोध किया। इसके अतिरिक्त, भारत के चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने भी अपनी राय दी और सभी ने इस कदम का समर्थन करते हुए कहा कि यह संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन नहीं है। उच्च न्यायालयों के 9 पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकी 3 ने असहमति व्यक्त की। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने भी समकालिक चुनावों के पक्ष में राय दी। इसके साथ ही समिति ने पूर्व राज्य चुनाव आयुक्तों, बार कॉंसिल, एसोचेम , फिक्की  और सी.आई. आई.  के अधिकारियों से भी चर्चा की। जनता से मांगे गए सुझावों में से 83 प्रतिशत प्रतिक्रियाएं (13,396) एक देश, एक चुनाव के पक्ष में थीं, जबकी केवल 17 प्रतिशत (2,276) ने इसका विरोध किया। इससे साफ है कि वर्तमान विधेयकों को प्रस्तुत करने से पहले एक व्यापक परामर्श प्रक्रिया अपनाई गई थी।
सार रूप में कहें तो “एक राष्ट्र एक चुनाव” भारत के संविधान की मूल संरचना से प्रेरित है। इस देश के लोगों ने स्वयं ये संविधान अपनाया है, इस भावना से कि प्रत्येक नागरिक को आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक न्याय सुलभ होगा। आर्थिक एवं सामाजिक न्याय के परिप्रेक्ष्‍य में तो केन्द्र एवं राज्य सरकारों ने अतीत में कई कदम उठाए हैं, कई नीतियां बनाई हैं, परंतु राजनैतिक न्याय के क्षेत्र में प्रयास नगण्य ही रहे हैं। “एक राष्ट्र, एक चुनाव” का विचार हालंकि नया नहीं है, परंतु इच्छा शक्ति के अभाव में इसके क्रियान्‍वयन के प्रयास नहीं किए गए। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के अथक प्रयासों से इस सोच पर नए सिरे से विमर्श शुरू किया गया, ताकि धरातल पर इसका क्रियान्वयन संभव हो सके। यह कदम संविधान की अधोसंरचना के अनुरूप है, क्योंकि “एक राष्ट्र एक चुनाव” जनता को राजनैतिक न्याय दिलाने की दिशा में एक साहसिक एवं अहम पहल है, जो कि देश के नागरिकों के संदर्भ में निश्चित रूप से सार्थक भी  है।
*निष्कर्ष*
जॉन एफ. कैनेडी ने कहा था, “छत की मरम्मत का सही समय तब होता है जब धूप खिली हो”। अब समय आ गया है कि समाज के विकास और सुशासन के लिए “एक राष्ट्र, एक चुनाव” के विचार को अपनाया जाए। जो “जो अधिकतम शासन न्यूनतम सरकार ” के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम होगा।
“एक राष्ट्र एक चुनाव ” केवल एक प्रशासनिक सुधार नहीं है, बल्कि यह भारत के लोकतंत्र को अधिक संगठित और प्रभावी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
  प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने इस विचार को आगे बढ़ाते हुए कहा “एकता के अपने प्रयासों के तहत, हम अब एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर काम कर रहे हैं, जो भारत के लोकतंत्र को मजबूत करेगा, संसाधनों का अधिकतम उपयोग करेगा और ‘विकसित भारत’ के सपने को नई प्रगति और समृद्धि की ओर ले जाएगा।”
आइए, हम सब इस ऐतिहासिक पहल का समर्थन करें और भारत को एक अधिक संगठित, शक्तिशाली और समृद्ध लोकतंत्र बनाने में अपना योगदान दें।”एक भारत, श्रेष्ठ भारत”।
(विभूति फीचर्स) *(लेखक उच्‍च न्‍यायालय के पूर्व न्‍यायमूर्ति हैं।)*

गोदरेज ने लॉन्च की स्मार्ट सिक्योरिटी की नई रेंज 

0
मुंबई (अनिल बेदाग) : गोदरेज एंटरप्राइजेज ग्रुप के सुरक्षा समाधान व्यवसाय ने प्रीमियम, तकनीक-सक्षम होम लॉकर्स की अपनी नवीनतम रेंज पेश की है, जिससे सुरक्षा क्षेत्र में इसके पोर्टफोलियो और बाजार हिस्सेदारी को मजबूती मिली है। आधुनिक घरेलू सौंदर्य के साथ सहजता से डिजाइन किए गए, ये होम लॉकर्स सोफस्टिकेटेड डिजाइन को तकनीक के साथ जोड़ते हैं, जिससे बिना किसी समझौते के सुरक्षा और आकर्षक अपील दोनों सुनिश्चित होती है। व्यवसाय ने वित्त वर्ष 26 में 20% की वृद्धि का लक्ष्य रखा है।
गोदरेज एंटरप्राइजेज ग्रुप के एक्जीक्यूटिव वाइस-प्रेजिडेंट  और सुरक्षा समाधान व्यवसाय के व्यापार प्रमुख श्री पुष्कर गोखले ने कहा, “एक सदी से भी अधिक समय से एक पसंदीदा ब्रांड के रूप में, हमने लगातार खुद को नया रूप दिया है और एक ऐसी श्रेणी बनाई है जो भारतीय घरों के साथ-साथ विकसित हुई है। होम लॉकर्स की हमारी नवीनतम रेंज के साथ, हम एक बार फिर सुरक्षा को नए सिरे से परिभाषित कर रहे हैं। हम लॉकर्स की अपनी नई रेंज लॉन्च करने के लिए उत्सुक हैं जो उपभोक्ताओं की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कई अनूठी विशेषताओं, मजबूत सुरक्षा और विशाल डिजाइन से लैस हैं। हमने अपने ब्रांड की उपस्थिति को और मज़बूत करने के लिए टियर 2 बाजारों को ध्यान में रखते हुए लॉकर्स भी लॉन्च किए हैं। हम बाजार में आगे रहने के लिए लगातार नई तकनीकी साझेदारी और निवेश की खोज कर रहे हैं। हमने उन्नत सुरक्षा उत्पादों और समाधानों का एक मज़बूत पोर्टफोलियो बनाने के लिए पिछले 3 वर्षों में काफ़ी निवेश किया है।”
उन्होंने आगे कहा, “हम होम लॉकर श्रेणी में अग्रणी बने हुए हैं और हमारा लक्ष्य वित्त वर्ष 2026 तक इस श्रेणी में करीब 70% बाजार हिस्सेदारी हासिल करना है, और ये अत्याधुनिक उत्पाद सिक्योरिटी सॉल्यूशंस बाजार में हमारे नेतृत्व को और मजबूत करेंगे”।
घरों, संस्थानों, बीएफएसआई और बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं में सुरक्षा समाधानों का एक व्यापक सूट प्रदान करने वाली एकमात्र कंपनी के रूप में, गोदरेज रणनीतिक रूप से उपभोक्ता और संस्थागत दोनों क्षेत्रों में अपने स्टोर का विस्तार करने के लिए तैयार है। इस गति को आगे बढ़ाते हुए, कंपनी की नवीनतम होम लॉकर रेंज विविध उपभोक्ता आवश्यकताओं को पूरा करती है; विवेकपूर्ण, जगह बचाने वाले डिज़ाइन से लेकर प्रीमियम और सौंदर्यपूर्ण मज़बूत सुरक्षा समाधान तक। इस वृद्धि का एक प्रमुख चालक अनुसंधान और विकास में निरंतर निवेश है जिसमें गोदरेज महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। होम लॉकर्स की नई रेंज भविष्य के लिए तैयार सुरक्षा समाधान पेश करने की गोदरेज की प्रतिबद्धता को पुष्ट करती है जो विकसित हो रही उपभोक्ता आवश्यकताओं के अनुरूप है।
होम लॉकर्स की नई लॉन्च की गई रेंज में एनएक्स प्रो स्लाइड, एनएक्स प्रो लक्स, राइनो रीगल और एनएक्स सील शामिल हैं। विभिन्न उपभोक्ता आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए डिज़ाइन किए गए इन उत्पादों में डुअल-मोड एक्सेस (डिजिटल और बायोमेट्रिक), इंटेलिजेंट इबज़ अलार्म सिस्टम, कुशल स्टोरेज और सुरुचिपूर्ण इंटीरियर हैं जो आधुनिक घर के सौंदर्यशास्त्र के साथ सुरक्षा को सहजता से एकीकृत करते हैं। इसके अलावा, गोदरेज ने डिफेंडर ऑरम प्रो रॉयल क्लास ई सेफ भी लॉन्च किया है, जो ज्वैलर्स के लिए डिजाइन किया गया एक बीआईएस-प्रमाणित उच्च-सुरक्षा वाला सेफ है, जो जून 2024 से प्रभावी नए गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (क्यूसीओ) को पूरा करता है। एक्यूगोल्ड आईईडीएक्स सीरीज़ ज्वैलर्स, बैंकों और हॉलमार्किंग केंद्रों के लिए सटीक, गैर-विनाशकारी सोने की जांच को सक्षम बनाती है। गोदरेज एमएक्स पोर्टेबल स्ट्रांग रूम मॉड्यूलर पैनल उच्च सुरक्षा, आसान परिवहन और सेटअप प्रदान करते हैं।

*प्रयागराज महाकुंभ में साकार हुई मोदी-योगी की संकल्पना*

0
                (सुरेश पचौरी-विनायक फीचर्स)
*माघे मासे गंगे स्नानं यः कुरुते नर: ।*
*युगकोटिसहस्राणि तिष्ठंति पितृदेवताः।।*
            स्कंद पुराण में उल्लेख है कि माघ मास में गंगा में स्नान करने वाले व्यक्ति के पितर युगों-युगों तक स्वर्ग में वास करते हैं। कितना ही बिरला अवसर है कि प्रयागराज में संगम किनारे श्रद्धा का महाकुंभ आयोजित हुआ और सनातनियों ने आस्‍था की डुबकी लगाई। यूं तो यह आयोजन सदियों से चला आ रहा है लेकिन इस वर्ष इस आस्‍था को सम्‍मान देने में भाजपा की सरकारों का अथक योगदान भी रहा है। महाकुंभ जैसे महाआयोजन में करोड़ों श्रद्धालुओं का सुचारू रूप से प्रबंधन एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्‍व में उत्‍तर प्रदेश की योगी सरकार ने जिस कुशलता से इस वृहत्‍तर दायित्‍व को संभाला है वह वर्षों तक सराहना के साथ याद किया जाएगा। धर्म के प्रति निष्‍ठा और समर्पण के इस अद्भुत आयोजन ने ऐसा संगम रचा जो कल्‍पनातीत है। सुरक्षा, सुविधाएं और सुगमता प्रदान करने के जतन के साथ ही साथ इस आयोजन को पर्यावरण अनुकूल बनाने के विशेष प्रयास हुए यह स्‍तुत्‍य है। इन प्रयासों ने महाकुंभ को केवल धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक एवं पर्यावरणीय सरोकरों के प्रति चेतना का संदेश भी दिया।
          हमारी भारतीय सनातन संस्कृति और परंपरा में कुंभ पर्व सहस्राब्दियों से श्रद्धा, आस्था और ज्ञान की साधना का पर्व रहा है। भगवान आदि शंकराचार्य ने भारतीय जनमानस में धर्म की भावना जगाने और संस्कृति की चेतना मजबूत करने के लिए देश के चार कोनों पर चार मठ बनाये। पूर्व में जगन्नाथपुरी, पश्चिम में द्वारिका, उत्तर में जोशीमठ तथा दक्षिण में श्रृंगेरी मठ। आदि शंकराचार्य जी ने देश की चार प्रमुख नदियों गंगा, यमुना, क्षिप्रा व गोदावरी के तट पर चार शहरों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में चार कुंभ-मेलों के आयोजन की रूपरेखा रची। कुंभपर्व का आधार खगोलीय घटना है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ग्रहों की गति और उनके मानव शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन कर कुंभ मेलों के आयोजन की तिथियां और स्थान तय होते है। 12 साल के अंतराल से सूर्य और गुरू की राशि विशेष में स्थिति कुंभ पर्व का समय और स्थल निर्धारित करते है।
    गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में उल्लेख किया है: *“ माघ मकरगत रवि जब होई। तीरथ पतिहि आव सब कोई’’* अर्थात् मकरराशि में सूर्य एवं वृषभ राशि में गुरू का प्रवेश होता है तब तीर्थ राज प्रयाग में कुंभ पर्व आयोजित होता है।
        कुंभ को लेकर पौराणिक आधार भी है। देवताओं और दानवों ने समुद्रमंथन किया। इस मंथन में अमृत निकला। अमृत के बंटवारे की छीना छपटी में अमृत कलश से कुछ बूंदे छलकी। ये अमृत बूंदे प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में गिरीं। इन शहरों के पास से बहने वाली नदियां गंगा, यमुना, गोदावरी, एवं क्षिप्रा अमृतमयी हो गई। इन्ही स्थलों पर कुंभपर्व आयोजित किया जाता है।
         कुंभ पर्व नदियों के महत्व का महापर्व है। यह विविधता में एकता प्रदर्शित करने में केन्द्रीय भूमिका निभाता है। कुंभ पर्व ‘वसुधैव कुटंबकम‘ की भावना को साकार करता है। यह आयोजन सर्वसमावेशी संस्कृति एवं भारतीय चिंतन की वैज्ञानिकता का प्रतीक है। कुंभ महापर्व हमें आत्मशुद्धि, परोपकार एवं सामाजिक सद्भाव का संदेश देता है। महाकुंभ के माध्यम से भारतीय संस्कृति और भारतीय जीवन दर्शन को वैश्विक पहचान मिली है। कुंभ पर्व भारतीय संस्कृति की गहराई, सहिष्णुता और एकता का अद्भुत संगम है। यह पर्व केवल स्नान का पर्व नही है बल्कि जीवन के गूढ़ रहस्यों को जानने आत्मचिंतन करने और मानवता के प्रति समर्पण व्यक्त करने का अवसर है। भारतीय सनातन परंपरा में यह आयोजन अनूठी आस्था, संस्कृति और दर्शन का सदियों से परिचायक रहा है और आगे भी रहेगा।
          इस वर्ष 2025 में प्रयागराज में आयोजित कुंभ अपने आयोजन के आरंभ से ही अद्भुत दृश्‍य प्रस्‍तुत करता रहा है। मकरसंक्रांति से महाशिवरात्रि तक लगभग 45 दिन चलने वाले कुंभ महापर्व की छटा ही निराली रही है। प्रतिदिन औसतन 1.5 करोड़ लोग कुंभ में गंगा स्नान के लिए प्रयागराज पहुंचे हैं। देश ने सनातन की ऐसी जबरदस्त ताकत पहले कभी नहीं देखी। विश्व चकित है। पूरी दुनिया अचरज से सनातन संस्कृति की प्रस्फुटित होती इस शक्ति को समझने की कोशिश कर रही है। महाकुंभ के भव्‍य दृश्‍यों ने हमें हतप्रभ किया है और अपनी संस्‍कृति और धार्मिक मान्‍यताओं के प्रति गहन आस्‍था और गौरव से भर दिया है।
         महाकुंभ का संपूर्ण मानवता को स्पष्ट संदेश है कि आस्था और आध्यात्म में कोई भेद नहीं होता। यहां कोई भी जाति या वर्ग का भेद नहीं होता। यहां राजा हो या रंक, साधु हो या गृहस्थ सब मां गंगा की गोद में पुण्य अर्जित करने आते है। यह समरसता ही कुंभ की सबसे बड़ी विशेषता है। प्रयागराज का कण-कण अलौकिकता का स्मरण कराता है। त्रिवेणी स्नान के दौरान जो शान्ति और दिव्यता का अनुभव होता है उसे शब्दों में व्यक्त करना असंभव है। महाकुंभ में स्नान केवल धार्मिक कार्य मात्र नहीं है, बल्कि आत्मशुद्धि की प्रक्रिया है। महाकुंभ में आकर यह अनुभव होता है कि सनातन धर्म केवल पूजा पद्धति नहीं बल्कि जीवन जीने की एक महान परंपरा है। साधु संतो के प्रवचन मंत्रों की ध्वनि अखाड़ों की भव्यता और गंगा आरती का सौन्दर्य मन में ईश्वरीय अनुभूति  कराता है।
      मेरे लिए वे असीम शांति और गौरव के पल थे जब मैंने पुण्य भूमि प्रयागराज स्थित त्रिवेणी संगम में स्नान कर मां गंगा की पूजा-अर्चना कर अपनी आस्‍था प्रकट की। किसी भी श्रद्धालु की तरह मेरे लिए भी यह असीम आनंद के क्षण थे। गंगा तटों पर गूंजती मंत्रध्वनियां, हवनकुडों से उठती धूप की सुवास आयोजन को दिव्यता प्रदान करती है। इस संकल्पना के लिए माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्‍यनाथ जी का नेतृत्‍व स्तुत्य और स्मरणीय है। मैंने अनुभव किया कि गंगा मैया में लगाई गई हर डुबकी एक अलौकिक आनंद की अनुभूति करवाती हैं। आत्मा निर्मल होकर परमतत्व से साक्षात्कार करती है। इसी साक्षात्‍कार के उपरांत यह कह सकता हूं कि 2025 का प्रयागराज महाकुंभ एक आयोजन ही नहीं अपितु सनातन की जीवंत धरोहर बनकर प्रकट हुआ है।
     इस दिव्‍यता को माननीय मोदी जी के कथन में भी अनुभूत किया जा सकता है। प्रयागराज में गंगा स्‍नान के उपरांत  यशस्वी एवं तपस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सोशल मीडिया पर लिखा था, “प्रयागराज में महाकुंभ में आकर धन्य हो गया। संगम पर स्नान एक दिव्य जुड़ाव का क्षण है और इसमें भाग लेने वाले करोड़ों अन्य लोगों की तरह मैं भी भक्ति की भावना से भर गया। मां गंगा सभी को शांति, ज्ञान, अच्छे स्वास्थ्य और सद्भाव का आशीर्वाद दें।”
       प्रधानमंत्री मोदी जी की प्रार्थनाओं में हमारी प्रार्थना के स्‍वर भी शामिल हैं। यशस्वी एवं तपस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत के सभी सनातनधर्मियों को नया गौरव प्राप्त हुआ है। उनके शासनकाल में हमारी आस्था के प्रतीकों और धार्मिक स्थलों का पुनरूत्थान हुआ है। मोदी जी के कार्यकाल में अयोध्या में रामलला की प्राणप्रतिष्ठा, काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरीडोर, महाकाल लोक परियोजना, केदारनाथ मंदिर एवं जगन्नाथ मंदिर का सौंदर्यीकरण जैसे श्रेष्‍ठतम कार्यों से भारत का सांस्कृतिक वैभव प्रतिष्ठित हुआ है  तथा लोक आस्था के महत्व में अद्वितीय वृद्धि हुई है।
        भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का यह महाकुंभ उत्सव सभी के जीवन में नयी ऊर्जा और उत्साह का संचार करे, यही ईश्वर से प्रार्थना है। मेरा मानना है कि महाकुंभ 2025 के माध्यम से जागृत हुई सनातन की यह चैतन्य धारा राष्ट्रहित में प्रवाहित होकर एक नये भारत के निर्माण में सहायक सिद्ध होगी। (लेखक भाजपा के वरिष्‍ठ नेता तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं।)(विनायक फीचर्स)

दिल्ली सरकार :आकांक्षाओं,अपेक्षाओं पर खरे उतरने की चुनौती* 

0
दिल्ली सरकार :आकांक्षाओं,अपेक्षाओं पर खरे उतरने की चुनौती*
             (जोगिंदर पाल जिंदर-विनायक फीचर्स)
     दिल्ली की नवनिर्वाचित मुख्य मंत्री रेखा गुप्ता की प्रेस कांफ्रेंस से स्कूली दिनों की याद ताजा हो गई । जैसे ही हम पुरानी क्लास से नयी क्लास में जाते तो नयी क्लास के टीचर कहते पिछली क्लास में क्या पढ़ कर आए हो ? और अगले साल फिर यही क्रम दोहराया जाता । नयी क्लास में फिर टीचर पूछते पिछली क्लास में क्या पढ़ कर आए हो ? यही हाल सरकारों का है जब भी कोई नयी सरकार बनती है आते ही पिछली सरकार पर पहला सीधा हमला, ” पिछली सरकार खजाना खाली कर के गयी है ।” पिछली क्लास में क्या पढ़ कर आए हो की तरह यह वाक्य बार-बार दोहराया जाता है चाहे सरकार जिस की भी बने ।
      ढेर सारे वादे और योजनाएं पुरानी आप सरकार की हैं । बहुत से वादे भाजपा भी कर के आई है कि पिछली सभी योजनाओं के साथ-साथ उसके दावों का अतिरिक्त लाभ दिल्ली की जनता को मिलेगा । इतना ही नहीं इस बार स्वयं मोदी की भी गारंटी है ।
            अब अगली बात यह कि दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी ने भी  मुख्यमंत्री के कार्यालय में लगी बाबा साहब अंबेडकर और भगत सिंह की फोटो हटाने का आरोप लगाया । जिस पर स्पष्टीकरण यह आया कि हटाई नहीं बल्कि स्थान बदला गया है । चलो इसी बहाने से जनता को पता तो चला कि बाबा साहब भीम राव अंबेडकर  और भगत सिंह का इनके दिलों में कितना और कहां स्थान है ? या फिर बाबा साहब और भगत सिंह के  नाम का उपयोग मात्र उनके अनुयायियों को भ्रमित करने के लिए प्रयोग किया जाता है ?
     इस मामले में आम आदमी पार्टी भी कोई दूध की धुली हुई नहीं है । इनका भी बाबा साहब, भगत सिंह और दलित‌ प्रेम दिखावा मात्र ही था । क्योंकि यह वही पार्टी है जिसने बाबा साहब की 22 प्रतिज्ञाएं लेने पर अपने ही मंत्री राजेंद्र पाल गौतम से इस्तीफा ले लिया था । केजरीवाल करेंसी नोटों पर किसी विशेष देवी-देवता का चित्र प्रकाशित करने के हिमायती थे । खुद को हनुमान भक्त साबित करते थे । बुजुर्गों को तीर्थ यात्राएं करवाते थे । इतने अधिक धार्मिक लोग बाबा साहब और भगत सिंह के अनुयाई कैसे हो सकते हैं ?
     खैर नयी सरकार को आते ही नया कुछ करना ही पड़ता है चाहे फोटो लगाई जाएं या हटाई जाएं ‌। अपनी-अपनी सुविधा, आस्था और विश्वास का मामला है । जनता को इससे क्या सरोकर ! दिल्ली चुनाव प्रचार की एक बात अच्छी लगी कि इसमें बंटोगे तो कटोगे का नारा नहीं दिया गया । समझदार दिल्ली की जनता ने भाजपा के सर पर ताज रखा है । बस नयी सरकार जनता की आशाओं, अपेक्षाओं पर खरी उतरे, यही कामना की जानी चाहिए ।(विनायक फीचर्स)