जियो वर्ल्ड सेंटर में आयोजित होने वाले वेव्स समिट के ग्रैंड फिनाले के लिए 30 फाइनलिस्ट का चयन किया गया
Mumbai – वर्ल्ड ऑडियो विजुअल एंड एंटरटेनमेंट समिट (वेव्स) के अंतर्गत 19 अप्रैल 2025 को मुंबई के ठाकुर कॉलेज ऑफ साइंस एंड कॉमर्स में वेव्स कॉस्प्ले चैंपियनशिप वाइल्डकार्ड शोडाउन का भव्य आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में प्रस्तुतियों से सपनों का शहर मुंबई प्रशंसकों की गैलक्सी में बदल गया। यह कार्यक्रम क्रिएटर्स स्ट्रीट, इंडियन कॉमिक्स एसोसिएशन (आईसीए) और मीडिया एंड एंटरटेनमेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एमईएआई) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था। इस पहल को भारत में आगामी पॉप-कल्चर महोत्सव एपिको कॉन द्वारा समर्थित किया गया।
यह शानदार कार्यक्रम वेव्स कॉस्प्ले चैम्पियनशिप के भव्य समापन की तैयारी के रूप में आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम में 50 से अधिक प्रसिद्ध कॉस्प्लेर्स ने भाग लिया। उनके शानदार प्रदर्शन, सिल्वर स्क्रीन-योग्य वेशभूषा और प्रशंसकों के उत्साहवर्धन ने पूरे मंच को ऊर्जा से भर दिया।
व्हार्फ स्ट्रीट स्टूडियो के संस्थापक और सीईओ वेंकटेश, फॉरबिडन वर्स के अजय कृष्ण और कॉमिक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सचिव अनादि अभिलाष सहित निर्णायकों के एक पैनल ने 30 वाइल्डकार्ड प्रतियोगियों का चयन किया। अब ये प्रतियोगी 1 से 4 मई 2025 तक मुंबई के जियो वर्ल्ड सेंटर में आयोजित होने वाले वेव्स समिट के ग्रैंड फिनाले में भाग लेंगे।
इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण भगवान नरसिंह की छवि की शक्तिशाली और प्रभावशाली प्रस्तुति थी, जो भारत की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती थी। इसी प्रकार, भारत में बढ़ते कॉस्प्ले क्षेत्र से जुड़े प्रसिद्ध हस्तियों, कंटेंट क्रिएटर्स और प्रभावशाली लोगों की भागीदारी भी इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रही। प्रशंसकों की ऊर्जा से भरपूर इस कार्यक्रम में कलाकारों के साथ फोटो खिंचवाने, जीवंत प्रदर्शन और दिलचस्प घटनाओं के क्षण भी देखने को मिले, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए।
हाई-एनर्जी मीटअप से भरपूर यह आयोजन सिर्फ एक क्वालीफाइंग राउंड नहीं था – यह एक सांस्कृतिक कार्यक्रम बन गया। यहां घटित प्रत्येक क्षण भारत की तेजी से बढ़ती कॉस्प्ले क्रांति में समुदाय, रचनात्मकता और युवा अभिव्यक्ति की शक्ति का प्रमाण था। वाइल्डकार्ड शोडाउन कार्यक्रम बहुत सफल रहा और इसने भारत में अब तक के सबसे बड़े कॉस्प्ले मूवमेंट के लिए माहौल तैयार किया। अविश्वसनीय शिल्प कौशल से लेकर प्रभावशाली प्रदर्शन तक, मुंबई में यह प्रदर्शन इस बात का जीवंत उदाहरण था कि भारत में कॉस्प्ले सिर्फ बढ़ ही नहीं रहा है, बल्कि फल-फूल रहा है।
जूरी के एक सदस्य ने कहा, “यह शो दिखाता है कि भारत में कॉस्प्ले मूवमेंट कितना प्रभावशाली हो रहा है।” उन्होंने कहा, “ऊर्जा, प्रयास, पात्रों के प्रति प्यार – यह सब वास्तविक है और यह हर साल बढ़ता जा रहा है।”
अंतिम राउंड में भारत भर से सर्वश्रेष्ठ कॉस्प्लेर्स भाग लेंगे और विजेताओं को नकद पुरस्कार के साथ-साथ विशेष प्रदर्शन का अवसर भी दिया जाएगा। जूरी में एनीमेशन, फिल्म और गेमिंग क्षेत्र के प्रमुख स्टूडियो के प्रतिनिधि शामिल होंगे। इस चैम्पियनशिप का एक विशेष आकर्षण आईसीए, फॉरबिडेन वर्स, टीवीएजीए, एमईएआई, क्रिएटर स्ट्रीट और पॉप कल्चर पावरहाउस एपिको कॉन के साथ इसकी सहयोगी साझेदारी है।
महाराष्ट्र में राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच सुलह की अटकलें
Maharashtra Politics: एक दूसरे से अलग हो चुके चचेरे भाइयों उद्धव और राज ठाकरे के बीच सुलह की अटकलें हैं. इस बीच जब पत्रकारों ने महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से मामले पर रिएक्शन मांगा तो वे नाराज हो गए. उन्होंने कहा कि वह सरकार के काम के बारे में बात करें. जब शिंदे सतारा जिले में अपने पैतृक गांव दरे में थे, तो टीवी मराठी के एक पत्रकार ने उनसे शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के अध्यक्ष राज ठाकरे के बीच सुलह की चर्चा पर प्रतिक्रिया मांगी. इसपर शिंदे चिढ़ गए और उन्होंने पत्रकार की बात अनुसनी कर दी. शिवसेना नेता ने कहा, “काम के बारे में बात करें.”
दो दशक के बाद हाथ मिला सकते हैं राज और उद्धव
राज ठाकरे ने फिल्म निर्माता महेश मांजरेकर को दिए इंटरव्यू में कहा कि उन्हें अविभाजित शिवसेना में उद्धव के साथ काम करने में कोई समस्या नहीं थी. इस बयान के बाद सुलह की अटकलें शुरू हुईं. राज ठाकरे ने कहा कि सवाल यह है कि क्या उद्धव उनके साथ काम करना चाहते हैं. उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बीच संभावित सुलह की अटकलों को हवा देते उनके बयानों से संकेत मिलता है कि वे मामूली मुद्दों” को नजरअंदाज कर सकते हैं और लगभग दो दशक के कटु मतभेद के बाद हाथ मिला सकते हैं.
छोटी-मोटी लड़ाइयां भूलने के लिए तैयार : उद्धव ठाकरे
एक ओर, मनसे प्रमुख ने कहा है कि ‘मराठी मानुष’ के हित में एकजुट होना कठिन नहीं है, तो वहीं पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा कि वह छोटी-मोटी लड़ाइयां भूलने के लिए तैयार हैं, बशर्ते कि महाराष्ट्र के हितों के खिलाफ काम करने वालों को तरजीह न दी जाए. उद्धव का इशारा संभवत: हाल ही में राज ठाकरे आवास पर उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की मेजबानी करने की ओर था.
अपने चचेरे भाई का नाम लिए बिना उद्धव ठाकरे ने कहा था कि ‘चोरों’ की मदद करने से कुछ हासिल नहीं होने वाला. उनका स्पष्ट इशारा बीजेपी और शिंदे नीत शिवसेना की ओर था. साल 2022 में उद्धव ठाकरे को उस समय बड़ा झटका तब लगा था जब एकनाथ शिंदे ने शिवसेना को तोड़कर उनकी सरकार गिरा दी थी. इसके बाद शिंदे ने बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाई थी.
2024 के चुनाव में खाता भी नहीं खुला मनसे का
पिछले वर्ष 288 सदस्यीय राज्य विधानसभा के लिए हुआ चुनाव शिवसेना (यूबीटी) ने विपक्षी गठबंधन महा विकास आघाडी के तहत लड़ा था. पार्टी ने 95 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन 20 सीट पर ही उसे जीत मिली थी. शिवसेना के संस्थापक दिवंगत बाल ठाकरे के भतीजे राज ने जनवरी 2006 में पार्टी छोड़ दी थी और अपने फैसले के लिए उद्धव को जिम्मेदार ठहराया था. इसके बाद उन्होंने मनसे की स्थापना की जिसने शुरू में उत्तर भारतीयों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया. लेकिन 2009 के विधानसभा चुनाव में 13 सीटें जीतने के बाद मनसे सिमटती चली गई. 2024 के विधानसभा चुनाव में उसका खाता भी नहीं खुला.
महाराष्ट्र को तमिलनाडु बनाने की राह पर राज ठाकरे*
अंजलि शर्मा अपने अभिनय से प्रभावित करने की कोशिश करती रहेगी
अभिनेत्री अंजली शर्मा पंजाबी फिल्म और टीवी इंडस्ट्री की जानी मानी अभिनेत्री हैं। उन्होंने पंजाब के बाद बॉलीवुड में कदम रखा है और यहाँ उनकी एक बेहतरीन शरुआत हो चुकी है। जल्द ही उनकी हिंदी वेब सीरीज आने वाली है जिसमें वह एक अमीर महिला का किरदार निभा रही हैं। इस सीरीज में उनकी भूमिका बड़ी दिलचस्प है। अंजली शर्मा ने इससे पहले पंजाबी इंडस्ट्री में काम किया है। फिल्म डबल दी ट्रबल, दिलदारियां और मुंडा पंगेबाज, वेब सीरीज “द लास्ट कोम्प्रोमाईज़”, शॉर्ट फिल्म “लॉटरी” और कई म्यूजिक वीडियो सांग्स किए हैं। एशियन पेंट, सोनालिका ट्रैक्टर, परंपरा होम डेकॉर, मेमसाहब एथनिक वीयर, दिवा ब्यूटी आदि के एड फिल्मों में वह अपनी कला का जौहर दिखा चुकी है। अंजली शर्मा पंजाब के छोटे से शहर फाजिल्का में पैदा हुई हैं और चंडीगढ़ में वह पली बढ़ी और शिक्षित हुई हैं। अंजली को बचपन से एक्टिंग का शौक रहा, इस शौक को पूरा करने के लिए शुरुआत में उन्होंने छुपकर डांस क्लास जॉइन की और पंजाब दूरदर्शन के लिए ऑडिशन दिया। उन्हें पंजाब दूरदर्शन में फूल कलियां कार्यक्रम में काम करने का मौका मिला। इस प्रकार उन्होंने अभिनय की पहली सीढ़ी चढ़ी और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। तू पतंग मैं डोर में उन्होंने नकारात्मक किरदार निभाया जो दर्शकों को बेहद पसंद आई।
अंजली शर्मा कहती हैं कि उन्हें क्राइम थ्रिलर और मिस्ट्री फिल्मों में अभिनय करने का बेहद शौक है। सस्पेंस, थ्रिल, ट्विस्ट और जटिल किरदारों को निभाना उन्हें बेहद पसंद है। वह कहती हैं कि ऐसी भूमिका जो बेहद चैलेंजिंग हो और जो उनकी कम्फर्ट जोन से बाहर हो, ऐसे किरदार करने के लिए वह सदा उत्साहित रहती है। वह कहती हैं कि मिर्ज़ापुर, कोहरा, द फैमिली मैन जैसे शोज की कहानी ऐसे ही जोनर में बनी है। इन शोज़ ने एक नया लेवल सेट किया है और ऐसे अलग जोनर की शोज़ का हिस्सा बनने को वह उत्साहित हैं। अंजली शर्मा ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत और अपने जीवन के अनुभवों के बारे में बताया कि सोलह साल की उम्र में ही उन्होंने एक्टिंग की दुनिया में कदम रखा। वह किसी फिल्मी बैकग्राउंड से नहीं है, ना ही उन्हें किसी का समर्थन मिला। फिर भी अपने सपनों को पूरा करने का संकल्प उन्होंने लिया और अपनी मंजिल की ओर निकल पड़ी। पंजाब में अपने गांव से चंडीगढ़ और चंडीगढ़ से मुम्बई तक पहुंचने के उनके सफर में कई पड़ाव आये पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने सपनों को साकार करने की दौड़ में आगे बढ़ती रही। उन्होंने बताया कि इस लंबे सफर में काफी कुछ सीखा और अनुभव बटोरे। मायानगरी मुंबई ने उन्हें नए अवसर और चुनौतियाँ दी। वह अपने काम के प्रति समर्पित है और अपनी योग्यता और मेहनत करने में विश्वास रखती हैं।
उनका मानना है कि जुनून और मेहनत से कुछ भी हासिल किया जा सकता है।
अंजली शर्मा ने कहा कि वह अपने प्रशंसकों की आभारी है और आगे भी वह उन्हें अपने अभिनय से प्रभावित करने की कोशिश करती रहेगी। वह ऐसे किरदार निभाना चाहती है जो लोगों के हृदय में एक अलग छाप छोड़ जाए।
मुंबई गोरेगांव में Amigos Automotive का दो पहिया वाहनों की सर्विसिंग का बेहतर ऑफर
मुंबई: भारत का पहला गौवंश पर केंद्रित राष्ट्रीय समाचारपत्र “गऊ भारत भारती” पिछले 10 वर्षों से गौ संरक्षण और संवर्धन की दिशा में अद्वितीय कार्य कर रहा है। यह प्रकाशन गौसेवा से जुड़े व्यक्तियों, संस्थाओं और उनकी गतिविधियों को प्रमुखता से प्रस्तुत करता है। सीमित संसाधनों के बावजूद, गऊ भारत भारती ने “गौवंश और पर्यावरण बचाओ” अभियान को जन-जन तक पहुँचाकर एक नई चेतना जागृत की है।
अब गऊ भारत भारती प्रकाशन समूह से जुड़ी कंपनी गऊ भारत भारती पेट्रोलियम प्रा. लिमिटेड ने अपने पहले उत्पाद – दोपहिया वाहनों के लिए इंजन ऑयल “HP Horse Power – इंजन की खुराक” का विज्ञापन लॉन्च किया है। कंपनी के प्रमोटर्स का परिवार पिछले 73 वर्षों से ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है।
इसी क्रम में कंपनी ने M/s Health Graffiti Incorporation के साथ डिस्ट्रीब्यूशन समझौता किया है, जिसके अंतर्गत Amigos Automotive को ब्रांड के रूप में दोपहिया व चारपहिया वाहनों की बेहतरीन सर्विसिंग सेवाएं देने के लिए चुना गया है। Amigos Automotive अपने उत्कृष्ट तकनीकी सेवा व ग्राहक संतुष्टि के लिए जाना जाता है।
कंपनी के पार्टनर श्री आशीष तिवारी ने बताया कि वे गऊ भारत भारती पेट्रोलियम के साथ जुड़कर सर्विस इंडस्ट्री में नई गुणवत्ता और सेवा का मानक स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
ग्राहकों के लिए विशेष ऑफर:
अब ग्राहक Shop No. 5, CTS No. 76, तिवारी कंपाउंड, मृणाल ताई गोर फ्लाईओवर के नीचे, राम मंदिर स्टेशन के पास, महात्मा ज्योतिबा फुले नगर, गोरेगांव (पश्चिम), मुंबई – 400104 स्थित Amigos Automotive Garage पर अपनी स्कूटर या किसी भी कंपनी के दोपहिया वाहन की सर्विसिंग अनुभवी मैकेनिक से करवा सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: 📞 070212 44844
भविष्य की योजनाएँ:
गऊ भारत भारती पेट्रोलियम प्रा. लि. के निदेशक श्री अजय शर्मा ने बताया कि कंपनी ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के हैवी व्हीकल्स क्षेत्र में पहले से ही स्थापित है। यह कारोबार उनके दादा त्रिवेणी प्रसाद विश्वकर्मा, पिता श्री रमाशंकर विश्वकर्मा, और अब उनके नेतृत्व में लगातार विस्तार पा रहा है। कंपनी वर्तमान में भायंदर महानगरपालिका, मालेगांव महानगरपालिका और कोणार्क जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं के साथ कार्यरत है।
गौ आधारित ऊर्जा की दिशा में कार्य:
कंपनी अब गौ आधारित हरित ऊर्जा के क्षेत्र में भी कदम रख चुकी है। इसका उद्देश्य बायोगैस, गोबर आधारित ऊर्जा तथा आत्मनिर्भर ऊर्जा मॉडल को विकसित करना है। इसके माध्यम से महाराष्ट्र के किसानों व गौपालकों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने का लक्ष्य है।
भविष्य की योजना:
कंपनी के प्रवक्ता के अनुसार, महाराष्ट्र में बायोगैस तकनीक का विस्तार बड़े पैमाने पर किया जाएगा, जिससे किसानों को आर्थिक लाभ होगा। यह परियोजना वेंचर कैपिटल के सहयोग से संचालित की जा रही है। महाराष्ट्र सरकार, विशेष रूप से मुख्यमंत्री श्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में गौ संरक्षण की दिशा में सजग कार्य कर रही है।
गौ आधारित प्राकृतिक खेती” के लिए लोगों को किया जाए जागरूक
अयोध्या। गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष श्याम बिहारी गुप्ता व मंडलायुक्त गौरव दयाल ने गौ वंश संरक्षण की समीक्षा की। बैठक आयुक्त सभागार में आयोजित हुई। आयोग के अध्यक्ष ने गौ आधारित प्राकृतिक खेती के लिए लोगों को जागरूक किया जाए। कहा कि सभी गौशालाओं में चारा, पानी, छाया, चिकित्सा की व्यवस्था समुचित रूप से उपलब्ध रहे। गौ आधारित उत्पादों के संवर्धन हेतु स्वयं सहायता समूहों की भागीदारी किए जाने को कहा। उन्होंने कहा कि जिसके घर में जानवर उसके घर हरा चारा को अभियान के रूप में लिया जाय। गांवों में उपलब्ध पशुचर की भूमि पर नेपियर घास सहित अन्य पौष्टिक हरे चारे को उगाया जाय। मुख्यमंत्री गौवंश सहभागिता योजना का व्यापक प्रचार प्रसार करते हुये लोगों को इससे जोड़ा जाए।
मण्डलायुक्त गौरव दयाल ने कहा कि गौ सेवा आयोग से पंजीकृत प्राइवेट गौशालाओं को खोलने हेतु लोगों को प्रेरित किया जाय। आईजी प्रवीण कुमार ने कहा कि थानावार गौशालाओं की सूची थानों में उपलब्ध कर दी जाय जिससे कि निराश्रित गोवंशों को आश्रय स्थल पहुंचाने में सुविधा मिल सकें।
बैठक में आयोग के उपाध्यक्ष जसवन्त सिंह, महेश शुक्ल, सदस्य राजेश सिंह सेंगर, संयुक्त निदेशक पशुपालन, संयुक्त निदेशक कृषि सहित मण्डलीय अधिकारी एवं मण्डल के सभी जनपदों के सीवीओ उपस्थित रहे।
चुनिंदा सेंसरशिप क्यों?
चुनिंदा सेंसरशिप क्यों?
– कल्पना पांडे
‘द स्टोरीटेलर’ जैसे गुणवत्तापूर्ण, संवेदनशील और अर्थपूर्ण फिल्म बनाने वाले राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अनंत महादेवन निर्देशित ‘फुले’ फिल्म प्रदर्शन से पहले ही जबरदस्त विवादों में फँस गई है। ‘फुले’ मूलतः 11 अप्रैल 2025 को प्रदर्शित होने वाली थी, लेकिन महाराष्ट्र की कुछ ब्राह्मण संघटनों द्वारा जातीय भेदभाव को बढ़ावा देने के आरोपों के कारण इसे 25 अप्रैल 2025 तक स्थगित कर दिया गया है।
शिक्षा के माध्यम से भारत में लड़कियों के लिए पहली स्कूल की स्थापना और तथाकथित पिछड़ी जातियों के उत्थान का काम फुले दंपत्ति के सामाजिक न्याय के सिद्धांत का केंद्र है। फिल्म में प्रतीक गांधी ने ज्योतिराव फुले की भूमिका निभाई है और पत्रलेखा ने सावित्रीबाई फुले की भूमिका। यह फिल्म 19वीं सदी के भारत में शिक्षा और सामाजिक समानता के लिए उनके अग्रणी प्रयासों की समीक्षा करती है, जिसमें 1848 में लड़कियों के लिए देश की पहली स्कूल की स्थापना शामिल है। अनंत महादेवन द्वारा निर्देशित इस फिल्म का उद्देश्य जाति और लिंग भेदभाव के खिलाफ उनके अथक संघर्ष को उजागर करना है। ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित यह फिल्म उनके इस संघर्ष को मुख्यधारा में लाने का प्रयास करती है।
ब्राह्मण संगठनों की आपत्तियों के जवाब में सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) ने फिल्म में कुछ बदलाव सुझाए हैं। सीबीएफसी ने ‘मांग’, ‘महार’, ‘पेशवाई’ जैसे जातीय संदर्भ वाले शब्दों को हटाने या परिवर्तित करने का सुझाव दिया है। इसी प्रकार, ‘3000 वर्ष की गुलामी’ संवाद को ‘अनेक वर्षों की गुलामी’ में बदलने का प्रस्ताव रखा गया है। वास्तव में, इससे फुले की चाल में जातीय अत्याचारों की सख्त ऐतिहासिक सच्चाई को नरम किया जा रहा है। यह काटछाँट या बदलाव फुले की वैचारिक विरासत की प्रामाणिकता और वंचित समुदायों के ऐतिहासिक संघर्ष पर अन्याय करती है। विभिन्न सामाजिक संगठनों ने इस निर्णय की आलोचना की है और सीबीएफसी पर पक्षपात का आरोप लगाया है।
पहला सवाल यह है कि क्या हमारे देश में फिल्मों के अनुमोदन के मानदंड अलग-अलग हैं? विवादित बयानों और तथ्यों वाली ‘द केरला स्टोरी’ और ‘द कश्मीर फाइल्स’ जैसी फिल्मों को सेंसर बोर्ड ने आसानी से प्रमाणित कर दिया, जबकि ऐसी अन्य फिल्मों को इस तरह की छंटनी का सामना नहीं करना पड़ा। परंतु सामाजिक सुधार और ब्राह्मणवादी जातिव्यवस्था विरोधी संघर्ष को चित्रित करने वाली ‘फुले’ पर कई बदलावों का सुझाव जानबूझकर दिया जा रहा है। महात्मा फुले का जन्म 11 अप्रैल को हुआ था और उनकी जयंती के अवसर पर यह फिल्म रिलीज़ करने का व्यावसायिक लाभ भी होते। फिल्म के समय पर रिलीज़ न होने से इसकी सफलता पर प्रभाव पड़ेगा, इसलिए ये बदलाव सुझाए गए और प्रमाणन में देरी हुई। यह असंगति दर्शाती है कि सीबीएफसी सभी फिल्मों पर समान नियम लागू नहीं करता। जिन फिल्मों की कथा किसी विशिष्ट दृष्टिकोण का समर्थन करती है, उन्हें सुविधा होती है, जबकि चुनौतीपूर्ण विषयों वाली फिल्मों को रोका जाता है। यह चयनात्मकता सीबीएफसी की निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह लगाती है और कलात्मक स्वतंत्रता व ऐतिहासिक सत्य पर बंधन लगाती है।
दूसरी बात यह है कि भारत में जाति एक अति संवेदनशील मुद्दा है। जाति आधारित भेदभाव आज भी मौजूद है। ‘फुले’ जैसी फिल्में जो इन प्रश्नों का सीधा सामना करती हैं। सेंसर बोर्ड में शामिल लोगों के नाम और पृष्ठभूमि की जांच से स्पष्ट होता है कि सीबीएफसी की यह कार्रवाई राजनीतिक दबाव या सामाजिक स्थिरता के नाम पर हो रही है। ‘फुले’ जैसी फिल्म पर सख्त नियम लगाना यह दिखाता है कि सीबीएफसी सामाजिक सुधारों पर बोलने वाली फिल्मों को नियंत्रित करना चाहता है, जबकि विभाजनकारी कथानकों को छूट देता है।
तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि ‘फुले’ को समय पर रिलीज़ न करने में ब्राह्मण संगठनों की शिकायतों का बड़ा हाथ है। इन संगठनों का मानना है कि ज्योतिराव और सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित इस फिल्म में ब्राह्मण समुदाय का प्रतिकूल चित्रण किया गया है, जिससे ब्राह्मणों को खलनायक के रूप में दिखाया गया है या उन पर अन्यायपूर्ण आरोप लगाए गए हैं। इन शिकायतों के कारण सीबीएफसी ने फिल्म के प्रदर्शन पर प्रश्नचिन्ह लगाया, कुछ दृश्यों और संवादों पर आपत्ति जताई और बदलाव सुझाए, जिससे फिल्म की रिलीज़ में देरी हुई। दूसरी ओर, फिल्म निर्माताओं का दावा है कि फिल्म ऐतिहासिक रूप से सटीक है, इसमें फुले दंपत्ति के कार्य को समर्थन देने वाले ब्राह्मण पात्र भी हैं, और किसी भी समुदाय को बदनाम करने का उद्देश्य नहीं है। फिर भी, सीबीएफसी ने ब्राह्मण संगठनों की शिकायतों को प्राथमिकता दी, निर्माताओं की ऐतिहासिक सटीकता की दावों की अनदेखी करते हुए जाति संबंधित शब्दों या प्रसंगों को बदलने पर जोर दिया। इससे सीबीएफसी की निष्पक्षता संदिग्ध हो जाती है, क्योंकि यह एक विशिष्ट समूह की भावनाओं को अधिक महत्व देता प्रतीत होता है और निर्माताओं की कलात्मक दृष्टि की अनदेखी करता है। परिणामस्वरूप, यह प्रश्न उठता है कि क्या सीबीएफसी स्वतंत्र रूप से निर्णय ले रहा है या संगठनों के दबाव में काम कर रहा है। यदि सीबीएफसी दबाव में आकर ऐतिहासिक सत्य या कलात्मक दृष्टिकोण बदलने के लिए मजबूर हो रहा है, तो फिल्म निर्माताओं का मूल संदेश कमजोर होता है और दर्शकों के अधिकार पर असर पड़ता है। इसलिए, सीबीएफसी की कार्यप्रणाली और विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाना स्वाभाविक और आवश्यक है।
चौथा मुद्दा कलात्मक स्वतंत्रता का है। फुले के उद्देश्य का मूल तत्व शोषण आधारित सुधार था, इसलिए उस समय उन्हें बड़ा विरोध और कठोर सामाजिक संघर्ष झेलना पड़ा। इन संपादनों से फिल्म की ऐतिहासिक सटीकता प्रभावित होगी। इससे निर्माताओं की कलात्मक दृष्टि और दर्शकों के अप्रतिबंधित सूचना अधिकार के साथ अन्याय होगा। यह ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित सामाजिक भयावहता की कलात्मक अभिव्यक्ति और वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में संघर्ष को प्रतिबिंबित करता है।
चाहे फिल्म को अनुमति मिले या विरोध, एक बात निश्चित है—यह फिल्म हमारे सामाजिक इतिहास का आईना बनकर ज्वलंत वास्तविकता सामने ला रही है। इसमें शिक्षा के लिए संघर्ष करती महिला, जाति की दीवारें तोड़ने वाला शिक्षक, ब्राह्मणवादी वर्चस्व पर आधारित हिंदू धर्म की जाति व्यवस्था, सामाजिक बहिष्कार, धार्मिक आतंक; महात्मा फुले का जीवन—ये सभी शामिल हैं।
महात्मा फुले का कार्य उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले के योगदान के बिना पूरा नहीं हो सकता था। महात्मा फुले ने एक अशिक्षित कम उम्र की अपनी विवाहिता पत्नी सावित्री को पढ़ाया लिखाया और समाज में पहली महिला शिक्षिका के रूप में स्थापित किया। इस महिला ने सामाजिक बहिष्कार का सामना करते हुए शिक्षा का दीपक जलाए रखा। फुले ने जातिवादी वर्चस्ववाद पर आधारित शिक्षा व्यवस्था की दीवारें ढहा दीं। उन्होंने अस्पृश्य, दलित और शूद्र बच्चों के लिए अलग स्कूल खोले। उनकी स्कूलों में जाति नहीं पूछी जाती थी, जो उस समय क्रांतिकारी था। फुले ने ‘गुलामगिरी’ जैसे ग्रंथ में जातिगत व्यवस्था का पर्दाफाश किया और ब्राह्मणवादी वर्चस्ववाद पर सीधा प्रहार किया। उन्होंने कहा, “जब तक समाज शिक्षित नहीं होगा, वह गुलाम ही रहेगा।”
महात्मा फुले द्वारा आरंभ किया गया सामाजिक आंदोलन सत्ता समर्थित वर्णव्यवस्था के खिलाफ थी। इससे उन्हें समाज से व्यापक विरोध सहन करना पड़ा। समाज ने उन्हें बहिष्कृत किया। सावित्रीबाई के अपमान और फेंकी गंदगी से वे नहीं डिगीं। धार्मिक आतंक का स्वरूप भी उन्होंने सहन किया। उन्होंने ईश्वर, धर्म और पूजा पद्धतियों पर प्रश्न उठाए। “ईश्वर ने इंसान को नहीं बनाया बल्कि ईश्वर खुद मनुष्य कि निर्मिती है” उन्होंने स्पष्ट कहा। इन विचारों के कारण उन्हें ‘नास्तिक’ और ‘धर्मद्रोही’ कहा गया, फिर भी वे दोनों अपने मार्ग से विचलित नहीं हुए।
महात्मा फुले का कार्य केवल शिक्षा तक सीमित नहीं था। उन्होंने सत्यशोधक समाज की स्थापना करके सामाजिक समानता का नया मार्ग खोला। विधवाओं का पुनर्विवाह, महिलाओं के गर्भपात अधिकार, लड़कियों की शिक्षा की आवश्यकता, कृषि शोषण और ब्राह्मण-पूजक वर्ग का वर्चस्व—इन सभी मुद्दों पर उन्होंने लेखन और कार्य किए। उन्होंने संघर्ष नहीं रोका और सत्यशोधक समाज की नींव रखी, जिसका मुख्य उद्देश्य जातिगत समानता स्थापित करना और ब्राह्मणवादी वर्चस्व का विरोध करना था।
सत्यशोधक समाज ने विवाह, नामकरण, अंत्यसंस्कार जैसे धार्मिक अनुष्ठानों को ब्राह्मणों के बिना संपन्न करना शुरू किया। जातिगत भेदभाव को त्यागकर एक साथ भोजन और सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित करने की परंपरा चलाई। सभी जातियों के लोगों ने मिलकर ‘सत्यशोधक’ के रूप में अपनी पहचान बनाई। सत्यशोधक समाज ने पहली बार दलित, शूद्र, महिलाएं—इन सभी को ‘अपना’ महसूस कराने वाला सामाजिक मंच प्रदान किया। समाज में शिक्षा के समान अधिकारों का आंदोलन हुआ।
महात्मा फुले के बढ़ते उम्र, खराब होते स्वास्थ्य के बाद भी समाज के लिए कार्य करने की उनकी ऊर्जा कम नहीं हुई। उनकी मृत्यु के बाद भी सत्यशोधक समाज आंदोलन जारी रहा। बाद में शाहू महाराज, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, पेरियार जैसे नेताओं ने सत्यशोधक विचारधारा से प्रेरणा ली। आज भी जातिगत भेदभाव के आधार पर लोगों की हत्या होती है, देव-धर्म के नाम पर अंधविश्वास कि घटनाएं घटित होती हैं। आदिवासी, महिलाओं, दलितों, ओबीसी के अधिकारों पर प्रहार होता है।
निर्देशक अनंत महादेवन ने फिल्म का बचाव करते हुए स्पष्ट कहा है, “मेरी फिल्म का कोई एजेंडा नहीं है। यह भारतीय समाज के चेहरामोहरे बदलने वाले समाज सुधारकों को सच्ची सिनेमाई श्रद्धांजली है।” उनके अनुसार, फिल्म का उद्देश्य भड़काना नहीं, बल्कि शिक्षित करना और प्रेरित करना है। फुलेवाद केवल एक फिल्म तक सीमित नहीं; यह भारत में जातिगत चर्चाओं के आसपास उभरी अस्वस्थता है। फुले का कार्य शैक्षणिक रूप से मनाया जाता है, फिर भी मीडिया में उनके सामाजिक परिवर्तनकारी विचारों को चित्रित करने के प्रयासों को अब भी रोका जा रहा है।
जातिगत विषमता को चुनौती देकर दलित–पीड़ित समुदायों को सशक्त करने के लिए फुले दंपत्ति ने अनवरत संघर्ष किया। महात्मा फुले द्वारा आरंभ की गई विचारधारा का संघर्ष आज भी हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। शिक्षा, समानता और न्याय की दिशा में हर कदम पर महात्मा फुले की प्रेरणादायी विरासत दिखाई देती है। महात्मा फुले और सावित्रीबाई फुले द्वारा प्रदर्शित ‘सत्यशोधक’ मार्ग आज भी अनेक विचारों को दिशा देता है।
— कल्पना पांडे
kalpana2810283@gmail.com
(9082574315)
बछड़ी की मौत के बाद सूखा गाय का थन, मालिक ने निकाला ऐसा जुगाड़, देने लगी बाल्टी भर-भरकर दूध
भारत में गाय को मां का दर्जा दिया जाता है. इंसान के दूध में बच्चे के पोषण के लिए जो न्यूट्रिएंट्स होते हैं, वहीं गाय के दूध में भी होते हैं. इस वजह से जब बच्चा एक साल का हो जाता है, उसके बाद डॉक्टर्स उसे गाय का दूध देने की सलाह देते हैं. गाय के दूध देने की भी एक प्रक्रिया है. जब गाय बछड़े को जन्म देती है तो उसके गंध से मां की बॉडी में ऐसे होर्मोनेस एक्टिव होते हैं, जो उसे दूध देने में मदद करते हैं. ऐसे में जब गाय के आसपास बछड़ा नहीं होता तो वो दूध देना बंद कर देती है.
पाली के एक गांव में एक किसान की गाय ने भी बछड़ी को जन्म दिया था. इसके बाद गाय दूध देने लगी थी, जिसे किसान बेचा करता था. लेकिन कुछ दिनों के बाद बछड़ी की मौत हो गई, जिसके कारण गाय ने दूध देना बंद कर दिया. इसपर किसान ने जो तरीका निकाला, उसने सबको हैरान कर दिया. किसान के इस खौफनाक जुगाड़ की वजह से गाय दूध तो देने लगी लेकिन बाद में पुलिस को इस मामले में दखलंदाजी करनी पड़ी. पूरा गांव ही किसान के खिलाफ हो गया. आखिर ऐसा क्या जुगाड़ अपनाया था किसान ने?
ले आया दूसरी बछड़ी की खाल
पाली के रामदेव रोड के पास स्थित बालाजी मंदिर के पास मंगलवार को एक पेड़ पर बछड़ी का शव टंगा मिला. इसके बाद इलाके में सनसनी फ़ैल गई. जांच में पता चला कि ये बछड़ी पास के गांव में रहने वाले रुस्तम नाम के शख्स का था. उससे पूछताछ में खौफनाक खुलासा हुआ. रुस्तम ने बताया कि उसकी गाय ने कुछ समय पहले बछड़ी को जन्म दिया था. लेकिन उसके बाद बछड़ी की मौत हो गई और गाय ने दूध देना बंद कर दिया. गाय से वापस दूध निकलवाने के लिए वो एक बछड़ी की खाल लाया और उसमें भूसा भरकर गाय के पास रख दिया. इसके बाद गाय वापस दूध देने लगी. लेकिन कुछ दिन पहले हुई बारिश में भूसा भीग गया, जिसकी वजह से उससे बदबू आने लगी.
देविदास श्रावण नाईकरे द्वारा आयोजित अल्टीमेट मिलेनियर ब्लूप्रिंट इवेंट में व्यवसायी हुए सम्मानित
मुंबई। नेक इरादे और कर्म की शक्ति से असंभव भी संभव बन जाता है। यह मंत्र देविदास श्रावण नाईकरे ने न सिर्फ आत्मसात किया, बल्कि पिछले 18 वर्षों में लाखों उद्यमियों के जीवन में अमृत बनकर बहाया है।
देविदास ग्रुप ऑफ कंपनी के संस्थापक के रूप में उन्होंने यह सिद्ध किया कि असली सफलता केवल आर्थिक लाभ नहीं, बल्कि आंतरिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा और समाज में योगदान का समागम है। उनका यही दर्शन चार दिन चले अल्टीमेट मिलेनियर ब्लूप्रिंट “Ultimate Millionaire Blueprint” कार्यक्रम में उजागर हुआ, जिसे लोनावला की मनोहारी वादियों में आयोजित किया गया।
कार्यक्रम के चौथे दिन मंच पर चमकता रहा एक भव्य अवॉर्ड समारोह, जिसमें पूरे महाराष्ट्र से चुनिंदा व्यवसाइयों को उनके नवाचार, साहसिक दृष्टिकोण और समाजपरक योगदान के लिए सम्मानित किया गया। इस यादगार शाम की शोभा तब और बढ़ी जब बॉलीवुड अभिनेता मुश्ताक खान ने विजेताओं को बधाई दी और कहा, यह पुरस्कार आपकी मेहनत और सोच का प्रतीक है; आगे बढ़ते रहिए!”
नाईकरे मानते हैं कि सफलता का असली मापदंड मुनाफे से कहीं आगे जाता है। उनकी कोचिंग पद्धति में आधुनिक व्यवसायिक रणनीतियाँ माइंडसेट शिफ्ट, मेडिटेशन सेशन और वैदिक साधनाओं के साथ मिलकर एक ऐसा समग्र अनुभव तैयार करती हैं, जिससे प्रतिभागी न केवल आर्थिक रूप से प्रगति करते हैं, बल्कि स्वास्थ्य, संबंध और आंतरिक संतुलन में भी सुधार महसूस करते हैं।
उन्होंने उद्यमीयों कों प्रेरित करने के लिए हिंदी और अंग्रेज़ी में डेरिंग’ यानी जोखिम लेने की कला पर महारत हासील करने के लिए 12 प्रेरणादायक पुस्तकें लिखी हैं।
अपने कार्यकाल में नाईकरे को 30 से अधिक राष्ट्रीय पुरस्कारों से अलग अलग संस्थाओं से सम्मानित किया जा चुका है, जिनमें श्री महात्मा गांधी राष्ट्रीय अभिमान पुरस्कार (2023) प्रमुख हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण उद्यमिता में उनका योगदान यह दर्शाता है कि जब समाज सशक्त होता है, तभी वास्तविक सफलता पूरी होती है।
आज देविदास नाईकरे केवल एक कोच नहीं, बल्कि विचारों के क्रांतिकारी हैं। उनका संदेश स्पष्ट है: “जब आपके अंदर विश्वास, आपकी सोच में स्पष्टता, और आपके कर्मों में समर्पण हो, तो कोई भी सीमा आपको रोक नहीं सकती।”
देवीदास नाइकरे के व्यावसायिक यात्रा के बारे यहां जानकारी प्राप्त किया जा सकता है।www.devidasnaikare.in