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सूर्या रोशनी के डायनामिक लाइटिंग सोल्यूशंस से जगमगा रहा है भारत का सबसे लंबा समुद्र सेतु

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मुंबई। सूर्या रोशनी अपने कारोबार के 50वें वर्ष में भारत के सबसे नामी और भरोसेमंद लाइट, पंखे, घरेलू उपकरण, स्टील पाइप और पीवीसी पाइप ब्रांडों में से एक है। भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई इन्फ्रास्ट्रक्चर के नए दौर में है और सूर्या रोशनी अपने अत्याधुनिक लाइटिंग सोल्यूशंस से इस नई राह को रोशन करते हुए एक बुनियादी भूमिका निभा रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रगति और नवाचार की मिसाल मुंबई ट्रांस हार्बर लिंक (एमटीएचएल ) का 12 जनवरी को उद्घाटन किया। भूतपूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सम्मान में इसे अटल सेतु नाम दिया गया है। शानदार 22 किमी लंबा सेतु दुनिया का 12वाँ सबसे लंबा समुद्र सेतु है। सूर्या रोशनी ने इसकी अत्याधुनिक फसाड लाइटिंग कर इस ऐतिहासिक प्रोजेक्ट में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह इनोवेटिव प्रोफेशनल लाइटिंग कम्पनी के अथक प्रयास से अनुसंधान और विकास का परिणाम है। इस तरह देश के सबसे महत्वाकांक्षी और महंगे इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में से एक के अंडरडेक और पिलर आज सूर्या की रोशनी से जगमगा रहे हैं।
इस अवसर पर बोलते हुए सूर्या रोशनी के प्रेसिडेंट- प्रोफेशनल लाइटिंग, व्रजेन्दर सेन ने बताया, ‘‘अटल सेतु पर प्रोफेशनल लाइटिंग की व्यवस्था करना न केवल हमारे लिए ऐतिहासिक उपलब्धि है, बल्कि यह देश के इन्फ्रास्ट्रक्चर का नाम रोशन करने में लगी हमारी टीम के समर्पण का भी प्रतीक है।’’
यह देश को अत्याधुनिक बनाने के उद्देश्य से सूर्या का एक अन्य प्रोजेक्ट है। कम्पनी अपने अभियान ‘मैं सूर्या हूँ’ के माध्यम से सूर्या को नई ऊँचाई देने में कामयाब रही है। मुंबई वासियों को यातायात का अभूतपूर्व अनुभव देने के संकल्प के साथ सूर्या मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन डेवेलपमेंट (एमएमआरडी) के साथ मिल कर काम करती रही है। कम्पनी 50 वर्षों से अधिक समय से निरंतर देश की विकास परियोजनाओं के अनुरूप काम कर रही है और विभिन्न क्षेत्रों में सफलतापूर्वक लाइटिंग सोल्यूशन दिए हैं।
भारत के सबसे लंबे समुद्र सेतु के लिए सूर्या का प्रोफेशनल लाइटिंग सोल्यूशन देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर के नए दौर में एक अहम कदम है। इसका लाभ अनगिनत यात्रियों को मिलेगा। देखने में इसकी सुंदरता और उपयोगिता बेमिसाल है। मुंबई शहर नई ऊँचाइयों को छू रहा है और सूर्या रोशनी अपने इनोवेटिव और सस्टेनेबल लाइटिंग सोल्यूशंस से इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रही है।

देश के स्वाभिमान की पुनर्स्थापना है श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा

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डॉ.मोहन यादव- 

आज सौभाग्य का पावन अवसर है। सैकड़ों वर्षों बाद यह शुभ घड़ी आई है…अयोध्या में अपने जन्मस्थान पर रामलला विराजमान हो रहे हैं। पूरे संसार के सनातनी हर्षित, आनंदित और प्रफुल्लित हैं। समूचे विश्व में जयश्रीराम गुंजायमान है। हम सभीसौभाग्यशाली हैं कि हमें यह सुखद दृश्यदेखने का अवसर मिला है।श्रीरामजी की गरिमा के अनुरूप मंदिर निर्माण के लिये पीढ़ियों ने पांच सौ वर्ष तक संघर्ष किया इसमें अनगिनत बलिदान हुए।
राम मंदिर हमारी संस्कृति, हमारी आस्था, राष्ट्रीयत्व और सामूहिक शक्ति का प्रतीक है। यह सनातन समाज के संकल्प, संघर्ष और जिजीविषा का ही परिणाम है कि आज प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में श्रीराम मंदिर निर्माण का सपना साकार हो रहा है। यह उमंग और उत्सव का अवसर है,समूचा समाज उल्लास के साथ खुशियां मना रहा है।
राजा राम प्रत्येक भारतीय और विश्व में व्याप्त सनातनियों के आदर्श हैं। वे सत्यनिष्ठा के प्रतीक, सदाचरण और आदर्श पुरुष के साकार रूप मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। श्रीराम जन्मस्थान मंदिर निर्माण के हर्षोल्लास के साथ हमें भगवान राम के जीवन से प्रेरणा भी लेनी चाहिए।कर्तव्यपथ पर प्रतिबद्ध श्रीराम के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता है कि वे सबके थे और सबको साथ लेकर चलते थे। सबका विश्वास अर्जित करने के लिये अपने सुखों का भी त्याग कर देते थे। वे जितने वीर थे, मेधावी थे उतने ही सहनशील भी। उन्होंने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया और विपरीत परिस्थिति कभी उन्हें विचलित नहीं कर सकती थीं।
प्रजावत्सल राजा राम के लिये न्याय और राजधर्म सर्वोपरि था। इन्हींअद्भुत विशिष्टताओं के कारण श्रीराम को आदर्श राजा कहा जाता है। उनकी राज व्यवस्था में न कोई छोटा था न कोई बड़ा था,सभी समान सम्मान के अधिकारी थे। सबको उनकी योग्यता, क्षमता और मेधा के अनुसार काम के अवसर प्राप्त थे। भेदभाव रहित समाज व्यवस्था के लिए रामराज्य का उदाहरण दिया जाता है।
रामराज्य में प्रजा की सुखद स्थिति का रामचरित मानस के उत्तरकांड मेंउल्लेख है-“दैहिक दैविक भौतिक तापा,राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।”अर्थात् रामराज्य मेंशासन व्यवस्था इतनी आदर्श थी कि प्रजा समृद्ध, रोग रहित और आपदा रहित थी।
राष्ट्र के सांस्कृतिक एकत्व के लिए श्रीराम जी ने उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक पूरे भारत को एक सूत्र में पिरोया। वे अपना वनवासकाल पूर्ण करके लंका से सीधे अयोध्या नहीं आये। वे उन सभी स्थानों पर गये जो उनका वन गमन मार्ग था। लौटते समय निषाद, किरात, केवट और वनवासी समाज के सभी प्रमुख बंधुओं को अपने साथ लाये थे। अपने राजकाल में श्रीरामजी ने एक-एक व्यक्ति का विश्वास अर्जित किया और उन्हें संगठित किया। उनका पूरा जीवन राष्ट्र और समाज के लिये समर्पित रहा।हमें ऐसेही राष्ट्र का निर्माण करना है।
लगभगपांच सौ वर्षों की दीर्घ प्रतीक्षा और धैर्य के बाद रामलला पूर्व प्रतिष्ठा के साथ अयोध्या आ रहे हैं। यह प्रगति और परंपरा का उत्सव है। इसमें विकास की भव्यता और विरासत की दिव्यता है। यही भव्यता और दिव्यता हमें प्रगति पथ पर आगे ले जाएगी। माननीय प्रधानमंत्री जी के संकल्प के साथ समाज के संघर्ष और आत्मशक्ति का परिणाम है कि आज रामलला विराजमान हो रहे हैं।प्रधानमंत्री जी ने देशवासियों से आग्रह किया है कि “जब अयोध्या में प्रभु राम विराजमान हों, तब हर घर में श्रीराम ज्योति जलाएं, दीपावली मनाएं।”रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा अवसर.

लेखक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं

अयोध्या के पुनर्प्राकट्य पर विशेष -श्री रामराज की स्थापना से ही संपूर्ण विश्व का कल्याण संभव

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अयोध्या के पुनर्प्राकट्य और श्री राम मंदिर के उद्घाटन समारोह पर विशेष
श्री रामराज की स्थापना से ही संपूर्ण विश्व का कल्याण संभव
(डॉ राघवेंद्र शर्मा-विनायक फीचर्स)
अयोध्या के श्री राम मंदिर निर्माण और श्री रामलला की मूर्तियों के प्राण प्रतिष्ठा समारोह ने दुनिया भर में आस्था एवं उमंग का वातावरण निर्मित कर दिया है। देश-विदेश के समाचार पत्रों से लेकर न्यूज़ और एंटरटेनमेंट चैनल तक राम मंदिर की भव्यता और दिव्यता पर चर्चा कर रहे हैं। जब बात राम मंदिर की चल रही है तो फिर रामराज का विषय भी चर्चाओं का केंद्र बन चुका है। भारत के भीतरी क्षेत्रों में ही नहीं अपितु बाहर भी शोध हो रहे हैं, कि रामराज कैसा था। क्यों भारत में बार-बार आदर्श राजसत्ता के रूप में रामराज का उदाहरण प्रस्तुत किया जाता है। क्यों भारत की और उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकारों ने अयोध्या के पुनर्निर्माण में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
इन सभी परिदृष्यों का अवलोकन करने के पश्चात विश्व भर के लोग यह मानने लगे हैं कि भारतीयों के मन में समानता, सदाचार, परोपकार, क्षमा और सहयोग जैसे सकारात्मक मूल्यों का भाव रामराज में व्याप्त आचार व्यवहार से ही पल्लवित हुआ है। अतः यह माना जा सकता है कि विश्व भर में रहने वाले सनातनी तो राम मंदिर को श्रद्धा और विश्वास के साथ निहार ही रहे हैं, इससे बढ़कर बात यह है कि विभिन्न धर्मों, मतों, संप्रदायों की विश्व बिरादरी भी अयोध्या तथा राम मंदिर पर टकटकी लगाए हुए है।
यहां एक बात का उल्लेख करना आवश्यक प्रतीत होता है, वह यह कि कांग्रेस एवं उसके सहयोगी दलों ने श्री रामलला की मूर्तियों के प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर नकारात्मक रवैया अपना रखा है। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण एवं अफसोस की बात है। ऐसे शुभ प्रसंग के बीच राजनेताओं का इस प्रकार का आचरण मन को व्यथित करता है। जबकि देश भर में उक्त उत्सव को लेकर भारी उत्साह और उमंग का वातावरण निर्मित है। कोई गांव, कस्बा, नगर, जिला अथवा राज्य ऐसा शेष नहीं, जहां अयोध्या स्थित श्री राम मंदिर के उद्घाटन समारोह को लेकर धार्मिक अनुष्ठान और सामाजिक समारोह आयोजित ना हो रहे हों। इन्हें देखकर कहीं भी ऐसा लगता है क्या, कि अयोध्या में होने जा रहे महा उत्सव केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी अथवा विश्व हिंदू परिषद के ही हैं।
यह बात और है कि उपरोक्त संगठन अपने प्रादुर्भाव काल से ही हिंदू एवं हिंदुत्व के लिए संघर्ष करते आए हैं। चूंकि केंद्र और उत्तर प्रदेश में सरकारें भी भारतीय जनता पार्टी की ही हैं, तो उनके द्वारा राम मंदिर एवं अयोध्या के पुनरुद्धार में बढ़-चढ़कर सहयोग किया जाना स्वाभाविक ही है। ऐसे में यदि जनसाधारण ही अयोध्या के पुनरुद्धार और श्री राम मंदिर निर्माण का श्रेय भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद को देता दिखाई दे रहा है तो इसमें गलत भी क्या है? जो जैसा करता है वह वैसा ही पाता है। यदि जनता जनार्दन राष्ट्रीय स्तर पर संघ, भाजपा और विहिप को अपना स्नेह और आशीर्वाद प्रदान कर रहे हैं तो यह इन संगठनों के सदाचार और सदकृत्यों का ही प्रतिफल है।
स्मरण रहे कि एक समय महात्मा गांधी रामराज की स्थापना को लेकर पहल किया करते थे। वे सदैव कहते रहे कि रामराज की परिकल्पना ही इस देश को एकरूपता और सदाशयता के भाव में बांधकर रख सकती है। वर्तमान में उक्त स्वप्न को साकार करने का कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संरक्षण में भारतीय जनता पार्टी की नरेंद्र मोदी सरकार करती दिखाई दे रही है। लेकिन सपना तो हमारे पूर्वजों का ही साकार हो रहा है ना! और फिर श्री राम तो हैं ही संपूर्ण सनातन के। फिर क्या भाजपा और क्या कांग्रेस? सभी को बढ़-चढ़कर श्री रामलला की मूर्तियों के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग लेना चाहिए।
जहां तक रामराज की बात है तो कौन नहीं जानता कि यही वह राज्य सत्ता व्यवस्था है जिसकी सकारात्मक विचारधारा के चलते किष्किंधा और लंका को जीता तो जाता है। वहां के अतिवादी शासको का नाश भी किया जाता है। फिर भी उन देशों अथवा राज्यों पर श्री राम अथवा उनके शासकीय सूत्र कब्जा नहीं करते। बल्कि वहां की सत्ता के सूत्र उस देश के नैसर्गिक उत्तराधिकारियों को ही सहर्ष सौंप देते हैं।
यानि रामराज की संकल्पना है कि विश्व को जीतो, मगर अस्त्रों – शस्त्रों की बजाय प्यार से। साथ में यह संदेश भी राम मंदिर निर्माण और रामराज की स्थापना में निहित है कि देश के भीतर और बाहर अथवा पड़ोस में, जहां पर भी लोग अतताइयों अर्थात आतंकवादियों, विस्तार वादियों से परेशान है, वहां न्यायोचित दखल दिया जाए और वैश्विक जनमानस को राक्षसी प्रवृत्तियों से मुक्ति दिलाकर सत्ता के सूत्र वहीं के योग्य देशवासियों को सौंप दिए जाएं। इसी को कहते हैं वसुधैव कुटुंबकम अर्थात समस्त विश्व एक परिवार का भाव। बड़े ही संतोष की बात है कि भारत का यह मूलमंत्र दुनिया की समझ में आ रहा है। यही वजह है कि सनातनियों के साथ ही पूरा विश्व अयोध्या के पुनरुद्धार और रामलला के भव्य मंदिर के उद्घाटन समारोह को निसंदेह प्रशंसात्मक दृष्टि से निहार रहा है। तो फिर हम सभी भारतवंशियों का दायित्व बन जाता है कि हम इस महा उत्सव के प्रति सकारात्मक आचरण अपनाएं। ताकि समूचे विश्व को यह संदेश दिया जा सके कि रामराज की संकल्पना संपूर्ण विश्व में साकार हो, इस भाव में समूचा भारत भारतीयता और सनातन धर्म एक है।
विश्व के कोने-कोने में बसे सभी भारतवंशियों और सनातन धर्मियों को अयोध्या स्थित श्री राम मंदिर के भव्य निर्माण, श्री राम लला की दिव्यतम मूर्तियों के प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव एवं पावन अयोध्या नगरी के पुनः प्रकटीकरण की अनेक अनेक बधाइयां। जय श्री राम।(विनायक फीचर्स)लेखक मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी के कार्यालय मंत्री हैं।

श्री राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन में महिलाओं की भी रही अविस्मरणीय भूमिका

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(डॉ वंदना गांधी-विनायक फीचर्स)
सिया राममय सब जग जानी….। आज भारत ही नहीं बल्कि पूरा लोक ही राममय हो उठा है। करोड़ों भारतवासियों के आराध्य प्रभु श्री राम अपने मंदिर में पुनः विराजित होने जा रहे हैं। करोड़ों लोगों की आस्था और विश्वास फलीभूत होने जा रहे हैं। उत्सव की इस घड़ी में हर गली-मोहल्ले से श्रीराम संकीर्तन की धुन पर लोग मतवाले हो रहे हैं। शहरों और गाँवों की गली-गली श्रीराम के स्वागत में भगवा पताकाओं से सजाई जा रही हैं। सदियों से श्रीराम की प्रतीक्षा कर रही मातृशक्ति के नयनों की आस पूरी हो रही है। राम आएंगे तो अंगना सजाऊँगी, गीत गाने-गुनगुनाने वाले घर-आँगन, चौक-चौबारे को धो-बुहारकर रंगोली संजाने लगे हैं। रामजी के नए परिधान तैयार करा लिए हैं तो किसी ने पालना सज़ा लिया है भोग के लिए लड्डू तैयार हैं, मंदिरों की साज-सज्जा कर पूजा की तैयारी पूरी कर ली गई है। मातृशक्ति अश्रुपूर्ण नयनों से इस समय के साक्षी बनने का सौभाग्‍य प्राप्‍त कर रही हैं। एक ओर ये अश्रु आनंद के हैं कि हमारे रामलला टेंट-टीनशेड से निकलकर पुनः अपने मंदिर में विराजमान होंगे तो दूसरी ओर ये अश्रु उनके स्‍मरण में भी हैं जिन्होंने रामलला को पुनः अपने मंदिर में प्रतिष्ठि‍त कराने के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। इन्‍हीं के सद्प्रयासों से आज हम इतने  असीम आनंद के पलों के प्रत्‍यक्षदर्शी हो पा रहे हैं। निश्चित ही वे भी स्वर्ग से पुष्‍प वर्षा कर रामलला का स्‍वागत अवश्य कर रहे होंगे।
श्रीराम जी के विग्रह की पुनर्स्थापना के लिए 500 वर्षों की प्रतीक्षा, संघर्ष और तपस्या के पूर्ण होने के क्षण आ गए हैं। इन क्षणों को असंख्‍य कारसेवकों के शौर्य, साहस और समर्पण से प्राप्‍त किया जा सका है। ऐसे में पूरा समाज गौरव से भरा है, जिसने प्राणपण से इस पुण्‍य कार्य के लिए प्रयास किए हैं। भगवान श्रीराम की पुनर्प्रतिष्‍ठा के सद्प्रयासों में मातृशक्ति भी बढ़-चढ़कर सम्मलित रही और अपना अतुलनीय योगदान दिया।
1990 के दशक में जब राम मंदिर आंदोलन चल रहा था तब एक महिला ही थीं जिन्होंने सबसे पहले राम मंदिर निर्माण का प्रस्‍ताव भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में रखा था और वे महिलाएँ ही थीं जिनकी आवाज़ इस आंदोलन का प्रेरक मंत्र बन गई थी। इनमें से एक साध्वी ऋतंभरा जी कहतीं भी हैं- “लंबी प्रतीक्षा का फल है। राम मंदिर विध्वंसकों के आगे हमारा संकल्प जीता। जनता जनार्दन ने असंभव को संभव कर दिया।”
अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए चलाए जा रहे आंदोलन में शीर्ष पर भी मातृशक्ति अपनी महत्वपूर्ण भूमिका में थीं। देशभर में राम मंदिर आंदोलन की अलख जगाने में महिलाओं ने बहुत सक्रिय और महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भाजपा की संस्थापकों में से एक रहीं राजमाता विजयाराजे सिंधिया, साध्वी ऋतंभरा और 30 वर्ष की उम्र में सांसद बनी उमा भारती तो आंदोलन के शीर्ष नेतृत्व में ही सम्मिलित थीं। राजमाता विजया राजे सिंधिया का मार्गदर्शन एवं सहायता आंदोलन में संजीवनी का काम कर रही थी। वे भारतीय जनता पार्टी की संस्थापक सदस्य रहीं और राम मंदिर आंदोलन की प्रमुख चेहरा बन गई थीं। 1988 में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में मंदिर निर्माण के लिए प्रस्ताव लाने वाली राजमाता सिंधिया ही थीं। इसी के बाद राम मंदिर का मुद्दा भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख लक्ष्यों और संकल्पों  में शामिल हो गया। भाजपा नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी ने 1989 में सोमनाथ से अयोध्या  के लिए रथयात्रा निकाली जिसे राजमाता ने पूरा सहयोग दिया। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में उनकी भूमिका विशेष रही और एक प्रमुख नेता के रूप में वे नेतृत्व करने वालों में शामि‍ल थीं। 6 दिसंबर को ऐतिहासिक कारसेवा वाले दिन अयोध्या में रामकथा कुंज के मंच से उन्होंने भी संबोधित किया था।
आंदोलन के उस दौर मे साध्‍वी ऋतंभरा और उमा भारती ने देशभर में सभाएं कीं, रामभक्तों में उत्साह जगाने का कार्य किया। वे दोनों आंदोलन की उत्साही युवा चेहरा बन गई थीं। साध्वी ऋतंभरा की प्रेरक और ओजपूर्ण वाणी घर-घर में गूंजने लगी थी। दोनों के भाषण जनमानस में उत्साह भरने और आंदोलन में तेजी लाने में बहुत सफल रहे। साध्वी ऋतंबरा के भाषण सुनने के लिए सभाओं में भारी संख्या में लोग जुटते, इनमें मातृशक्ति भी सम्मिलित रहती। भाषण पूरा होने तक सभी लोग ‘हम मंदिर वहीं बनाएंगे’ का संकल्प लेकर लौटते़। उनके भाषणों के ऑडियो टेप उस समय बहुत अधिक लोकप्र‍िय थे। दोनों के भाषणों ने समाज जागरण में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई थी। रामकथा कुंज के मंच से संबोधित करने वालों में साध्‍वी ऋतंभरा और उमा भारती भी थीं।
आंदोलन का नेतृत्‍व करने वाली ये प्रमुख महिलाएं ही नहीं बल्कि 1990 के दशक में बड़ी संख्‍या में महिलाओं ने आगे आकर राम जन्म भूमि आंदोलन में सक्रियता से भाग लिया था। एक अनुमान के अनुसार 55 हज़ार महिला कारसेवक राम जन्मभूमि में कारसेवा में सक्रिय रहीं थीं। आंदोलन का नेतृत्‍व कर रहे संगठन विश्‍व हिन्‍दू परिषद की दुर्गावाहिनी की बहनें उस समय देशभर में भगवान श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए राष्ट्र जागरण के कार्य में लगी थीं। नवंबर 1990 और दिसंबर 1992 में कारसेवा में जो माताएं-बहनें नहीं जा सकीं उनका योगदान भी कम नहीं रहा। जाने कितनी मांओं और बहनों ने अपने पिता, पुत्र, पति, भाई के माथे पर तिलक लगाकर बड़ी श्रद्धा और सम्‍मान से उन्‍हें रामकाज में अपनी भागीदारी निभाने के लिए गर्व के साथ अयोध्‍या भेजा जबकि वे जानती थीं कि हो सकता है ये कारसेवक वहां से वापस न लौटें और अपने राम के लिए बलिदान हो जाएं। यहां यह भी स्‍मरण रखा जाना चाहिए कि तब की परिस्थिति‍यां कैसी प्रतिकूल थीं जब कारसेवकों पर गोलियां तक चलवा दी गई थीं। यह सब जानते हुए भी कारसेवकों को विदा करते समय उनके माथे पर अक्षत-रोली सजाते न तो इन महिलाओं के माथे पर शिकन आई न उनकी आंखों से तनिक अश्रु बहे बल्कि उनके हर्ष और गर्व को देख घर से विदा लेते पुरुषों का उत्‍साह कई गुना बढ़ जाता था।
मातृशक्ति ने उस समय अयोध्‍या में उमड़े असंख्‍य कारसेवकों के भोजन से लेकर दवाइयों तक कोई कमी नहीं आने दी थी। राम काज का व्रत लेकर घरों से निकले कार सेवकों की भोजन आदि आवश्‍यकताओं की पूर्ति मातृशक्ति ने पूरे देश में स्‍थान-स्‍थान पर की। इसमें मातृशक्ति का जोश और भाव देखते ही बनता था। कोई मातृशक्ति कारसेवकों का मार्ग प्रशस्‍त करती उन्‍हें पुलिस से छिपते-छिपाते सुरक्षित स्‍थानों पर पहुंचा देती तो कोई कड़ाके की ठंड में मां और बहन की भूमिका में आकर उन्‍हें मातृवत अपने घरों में प्रश्रय देतीं। 6 दिसंबर को कार सेवा के दौरान जहानाबाद की तब 32 वर्ष की उन एक महिला वकील ललि‍ता सिंह की कहानी ही पूरे देश की मातृशक्ति के मन की बात कह देती है जो अपने नन्‍हें शिशु को किसी और को थमा कर गुंबद पर जा चढ़ी थीं। यह भी उल्‍लेखनीय है कि बाबरी ढांचा ढहाए जाने के मामले के मुख्य आरोपियों में भी तीन महिलाएं थीं। यह भारत भूमि की मातृशक्ति है जो देश, धर्म, समाज की आन-बान पर आ पड़े तो अपनी चिंता छोड़ रणभूमि में उत्तर पड़ती है।
   सदियों के अथक संघर्ष के बाद जो आनंद के पल आये हैं उसका उत्‍सव मनाने के लिए मातृशक्ति ने भी खूब तैयारियाँ की है। इन नयनों ने भगवान राम की सदियों प्रतीक्षा की है। भगवान श्रीराम की प्राण-प्रतिष्ठा की मंगल बेला आ गई है। यह एक नये युग का आरंभ है। भगवान श्रीराम का मंदिर हिंदुओं की आस्था का केन्द्र बिंदु है। जब हिन्‍दू समाज के इस संघर्ष की गाथा कही और लिखी जाएगी मातृशक्ति का उल्‍लेख उसमें प्रतिष्‍ठा के साथ होगा।

(विनायक फीचर्स)(लेखिका शिक्षाविद, समाजविज्ञानी एवं कथाकार हैं)

महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस ने किया डॉ. मुस्तफ़ा युसूफ अली गोम को सम्मानित वाग्धारा सम्मान २०२४ दे कर किया सम्मान

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महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस ने किया डॉ. मुस्तफ़ा युसूफ अली गोम को सम्मानित
वाग्धारा सम्मान २०२४ दे कर किया सम्मान
मुंबई। दिनाँक १८ जनवरी को वाग्धारा सम्मान समारोह २०२४ का आयोजन मुक्ति सभागार अँधेरी पश्चिम में वाग्धारा संस्थान द्वारा आयोजित किया गया था। मुख्य अतिथि महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस जी थे। वाग्धारा के अध्यक्ष डॉ बागीश सारस्वत इसके प्रमुख आयोजक थे।
इस सम्मान समारोह में वाग्धारा के द्वारा चयनित विभूतियों का सम्मान किया गया। इस अवसर पर मुंबई के जाने माने उद्योगपति और समाजसेवी तथा केयर टेकर्स एक्सटीरियर एंड इंटीरियर प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक डॉ. मुस्तफ़ा युसूफ अली गोम को उनके द्वारा किए गए समाज सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों के लिए वाग्धारा सम्मान २०२४ महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस के हाथो प्रदान किया गया।
ज्ञात हो कि डॉ. मुस्तफ़ा यूसुफ़ अली गोम, मुंबई के कांदिवली में अंजुमन ए नजमी दाऊदी बोहरा जमात के सचिव हैं। अपनी अंजुमन के माध्यम से वह सामाजिक कार्य भी करते हैं। कोरोना काल में डॉ. मुस्तफ़ा यूसुफ़ अली गोम की संस्था ने बड़े पैमाने पर लोगो की मदद की और कम्युनिटी किचेन के माध्यम से जरूरत मंद लोगो तक खाने और पीने की व्यवस्था करवाई थी। साथ ही साथ डॉ. मुस्तफ़ा यूसुफ़ अली गोम द्वारा शिक्षा , चिकित्सा के क्षेत्र में काम कर रही संस्थाओ को समय – समय पर मदद और उनका मागर्दर्शन करते रहे है।
उनके अच्छे सामाजिक कार्यों के लिए कई सम्मान मिल चुके हैं। महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने उन्हें “गऊ भारत भारती” के सर्वोत्तम सम्मान के साथ-साथ केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान द्वारा पूर्व में वाग्धारा सम्मान से सम्मानित किया है साथ ही साथ पश्चिम बंगाल के राज्यपाल डॉ. सी.वी. आनंद बोस ने भी राजभवन में डॉ. बीआर अंबेडकर पुरस्कार देकर सम्मानित किया है। इसके अलावा अन्य बहुत सी सामाजिक संस्थाओ ने उन्हें सम्मानित किया है।
सुप्रसिद्ध समाजसेवी मुस्तफा गोम की कंपनी केयर टेकर्स एक्सटीरियर एंड इंटीरियर प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक हैं जो पुरानी ईमारतों के मरम्मत का काम करती है। डॉ मुस्तफा गोम को इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरप्रेन्योरशिप एंड मैनेजमेंट स्टडीज द्वारा प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया है। इसके अतिरिक्त श्री गोम वर्ल्ड ह्यूमन राईट प्रोटेक्शन कमीशन से भी जुड़ कर देश की सेवा कर रहे हैं।
वाग्धारा सम्मान २०२४ से सम्मानित अन्य लोगो में से सिनेमा से सीमा विस्वास , पत्रकार पराग छापेकर , साहित्य के लिए नन्दलाल पाठक , पत्रकार संपादक नरेंद्र कोठेकर , राजेश बादल , छत्तीगढ़ की ऋतू वर्मा कला के लिए , इत्यादि को सम्मानित किया गया।
वाग्धारा सम्मान २०२४ सम्मान के चयन समिति के अध्यक्ष जयंत देशमुख थे , कार्यकारी अध्यक्ष दुर्गेश्वरी सिंह ‘ महक ‘ ,भार्गव तिवारी , और अन्य इस सम्मान समारोह के सहयोगी रहे।

 

 

 

 

 

 

 

 

जैन श्वेताम्बर सोश्यल ग्रुप प्राइम महिलाओं में कैंसर के अर्ली डिटेक्शन हेतु नि: शुल्क जाँच करेंगे

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जैन श्वेतांबर सोशल ग्रुप इंदौर *प्राइम* का *शपथ समारोह* संपन्न

इंदौर, 18 जनवरी ।फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं प्राइम ग्रुप के मुख्य सरंक्षक *श्री नरेंद्र संचेती* द्वारा
नव निर्वाचित अध्यक्ष *मनोज आशा जैन* को शपथ दिलायी गई. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि फेडरेशन के सरंक्षक *दिलिप सी. जैन , म. प्र. पर्यटन विकास निगम के प्रबंध संचालक *इलइया राजा टी.*, इंदौर नगर निगम महापौर *पुष्य मित्र भार्गव उपस्थित थे. फेडरेशन के संस्थापक अध्यक्ष वीरेन्द्र कुमार जैन, पूर्व अध्यक्ष श्री प्रकाश जी भटेवरा, श्री राजेन्द्र जी जैन, श्री संजय जी नाहर ने नवगठित टीम को आशीर्वाद एवं शुभकामनाएं दी.

फेडरेशन महासचिव श्री नरेंद्र जी भण्डारी ने प्राइम पदाधिकारियों को एवं रीजन चेयरमैन श्री तरुण जी क़ीमती ने कार्यकारिणी सदस्यों को शपथ दिलाई. इस अवसर पर फेडरेशन के पदाधिकारियों एवं इंदौर शहर के अन्य ग्रुप्स के पदाधिकारियों की उपस्थिति भी शानदार रही.नवनिर्वाचित अध्यक्ष मनोज जैन द्वारा अगले दो वर्षों में किये जाने वाले कार्यों की घोषणा की गई जिसमें प्रमुख है महिलाओं में कैंसर के अर्ली डिटेक्शन हेतु नि: शुल्क सोनोगृाफी और आवश्यकतानुसार मैमोग्राफी के साथ श्वेत प्रदर की भी नि: शुल्क जाँच एवं रोकथाम ।
प्रारंभ में स्वागत उद्बोधन राजेंद्र आशा गांधी ने देते दो वर्षों की उपलब्धियों की जानकारी दी। मंगलाचरण के पश्चात संचालन किरण सिरोठिया ने किया ।आभार पवन चौरडिया ने व्यक्त किया ।
प्राइम ग्रुप के सभी सदस्यों ने उपस्थिति दर्ज कर समारोह को भव्य एवं यादगार बनाया.

मायानगरी की रंगीन दुनिया की अदाकारा श्रेया देशमुख

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श्रेया देशमुख एक अदाकारा और नृत्यांगना हैं। इनका जन्म और परवरिश महाराष्ट्र के अमरावती में हुयी है और इन्होंने कॉमर्स में स्नातक और स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की है। बचपन से पेंटिंग्स बनाने का इनका शौक रहा है। श्रेया कागज के पन्नों में रंगीन दुनिया का चित्रण करते हुए आज मायानगरी की रंगीन दुनिया की अदाकारा बन गयी है, यह एक अजीब इत्तेफाक ही है। धारावाहिक ‘कबूल है’ और ‘बेहद’ इनके पसंदीदा शो रहे, जिन्हें देखकर इनके मन में भी अभिनय करने का शौक जागा। भरतनाट्यम, कुकिंग और हॉर्सराइडिंग में माहिर श्रेया देशमुख फिल्म, विज्ञापन फिल्म, वेब सीरीज और धारावाहिकों में काम कर रही है। जल्द ही इनकी मराठी भाषा में बनी फिल्म पर्दे पर प्रदर्शित होगी। इन्होंने टेलीविजन शो ‘मेहंदी है रचने वाली’ और ‘ब्रम्हराक्षस 2’ में भी अभिनय किया है। खंडेलवाल ज्वैलरी, स्कॉट आईवियर जैसे कई विज्ञापन में काम कर चुकी हैं और आगे भी कई प्रोजेक्ट्स इनके पास है जिनमें कुछ वेबसीरीज़ भी हैं।
    श्रेया देशमुख ने अभिनय की बारीकियों को अपनी मेहनत और लगन से सीखा है। इन्होंने शुरुआत छोटी भूमिकाओं से की और आज मुख्य भूमिका भी कर रही है। इनका कहना है कि जिस चीज को आप बारीकी से अध्ययन करते हुए देखते हो, तो उस कौशल में आपकी योग्यता अधिक बढ़ती है और जब आप उसका अभ्यास करते हैं तो आपके कार्य में परिपक्वता और निपुणता आती है।
     श्रेया देशमुख कहती है कि एक कलाकार को अपने कौशल पर विश्वास होना चाहिए ना कि बाह्य प्रदर्शन में, खासकर महिला कलाकारों को अपनी स्वयं की योग्यता और हुनर पर विश्वास होना चाहिए। श्रेया का कहना है कि वह ऐसी भूमिकायें करना चाहती हैं जिसमें उनकी सकारात्मक ऊर्जा दर्शकों तक पहुंचे। जो परिवार के साथ देखने योग्य हो और सारी दुनिया आप पर गर्व कर सके। प्रसिद्धि पाने की महत्वाकांक्षा में आपकी अपनी परछाई और अस्तित्व धूमिल नहीं होना चाहिए। जब भी दर्पण में नज़र टिके आपको आपनी निर्मल और दोषरहित छवि दिखनी चाहिए। इससे आप कभी भी आत्मग्लानि और अवसाद के अंकुश में नहीं फसेंगे।
     श्रेया देशमुख का व्यक्तित्व प्रभावशाली है। वह सकारात्मक सोच रखती हैं। उनका कहना है कि हमेशा इंसान को कुछ ना कुछ नया सीखते रहना चाहिए और अपना कौशल बढ़ाना चाहिए। ज्ञान अथाह है, केवल एक जन्म काफी नहीं इसे बटोरने के लिए इसलिए जितना ज्ञान अर्जित कर सको उतना आपके लिए फायदेमंद होगा। सीखने के लिए उम्र की सीमा नहीं होती और ना ही कोई दायरा होता है। आपको जो सीखना है सीख सकते हैं और ज्ञान अर्जित कर सकते हैं। कभी भी अकेलेपन या अपनी हार से थककर या निराश होकर स्थायी नहीं होना चाहिए बल्कि नदी की तरह हर मुसीबत का सामना करते हुए बहते रहना चाहिए। हमेशा कुछ नया ज्ञान या नई सीख अर्जित कर अपने जीवन में नया पड़ाव और खुशी का समावेश करना चाहिए।
श्रेया को अभिनेत्री रेखा, माधुरी दीक्षित,कीर्ती सुरेश, जेनिफर विंगेट का अभिनय पसंद है। श्रेया अपने अभिनय के माध्यम से अपने कौशल और योग्यता को लोगों तक पहुंचना चाहती है। श्रेया अपने कार्य में आगे बढ़ रही है, आगे उनका भविष्य अवश्य उज्ज्वल होगा।

मणिपुर के राज्यपाल ने राजभवन में ‘गौ सेवा’ के साथ मकर संक्रांति की शुरुआत

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इंफाल: उत्सव की परंपरा को जीवित रखते हुए, मणिपुर की राज्यपाल अनुसुइया उइके ने सोमवार को राजभवन में मकर संक्रांति और ‘गौ सेवा’ मनाई। हर्षोल्लासपूर्ण मकर संक्रांति उत्सव के उपलक्ष्य में, राज्यपाल ने राजभवन मणिपुर में एक हार्दिक समारोह में भाग लिया। मकर संक्रांति एक त्योहार है जो सूर्य के मकर राशि में संक्रमण का जश्न मनाता है, जो सर्दियों के अंत और लंबे दिनों की शुरुआत का प्रतीक है।
उत्सव के हिस्से के रूप में, उन्होंने सूर्य देव को प्रार्थना की और ‘गौ सेवा’ (गाय की सेवा) में शामिल होकर एक सराहनीय कार्य किया, इस अवसर की भावना को अपनाया और सांस्कृतिक समारोहों और सामुदायिक जुड़ाव के प्रति अपने समर्पण का प्रतीक बनाया।
गौ सेवा’ वैदिक संस्कृति और विरासत का एक हिस्सा है जिसमें गायों को भोजन, आश्रय और चिकित्सा देखभाल प्रदान करना शामिल है। राज्यपाल ने इस विश्वास के साथ गाय की सेवा की कि किसी के आसपास गायों की उपस्थिति नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकती है और सकारात्मक ऊर्जा ला सकती है।

एक कलाकार को अपने कौशल पर विश्वास होना चाहिए : श्रेया देशमुख

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श्रेया देशमुख एक अदाकारा और नृत्यांगना हैं। इनका जन्म और परवरिश महाराष्ट्र के अमरावती में हुई है और इन्होंने कॉमर्स में स्नातक और स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की है। बचपन से पेंटिंग्स बनाने का इनका शौक रहा है। श्रेया कागज के पन्नों में रंगीन दुनिया का चित्रण करते हुए आज मायानगरी की रंगीन दुनिया की अदाकारा बन गयी है, यह एक अजीब इत्तेफाक ही है। धारावाहिक ‘कबूल है’ और ‘बेहद’ इनके पसंदीदा शो रहे, जिन्हें देखकर इनके मन में भी अभिनय करने का शौक जागा। भरतनाट्यम, कुकिंग और हॉर्स राइडिंग में माहिर श्रेया देशमुख फिल्म, विज्ञापन फिल्म, वेब सीरीज और धारावाहिकों में काम कर रही है। जल्द ही इनकी मराठी भाषा में बनी फिल्म पर्दे पर प्रदर्शित होगी। इन्होंने टेलीविजन शो ‘मेहंदी है रचने वाली’ और ‘ब्रम्हराक्षस 2’ में भी अभिनय किया है। खंडेलवाल ज्वैलरी, स्कॉट आईवियर जैसे कई विज्ञापन में काम कर चुकी हैं और आगे भी कई प्रोजेक्ट इनके पास है जिनमें कुछ वेबसीरीज़ भी हैं।


श्रेया देशमुख ने अभिनय की बारीकियों को अपनी मेहनत और लगन से सीखा है। इन्होंने शुरुआत छोटी भूमिकाओं से की और आज मुख्य भूमिका भी कर रही है। इनका कहना है कि जिस चीज को आप बारीकी से अध्ययन करते हुए देखते हो, तो उस कौशल में आपकी योग्यता अधिक बढ़ती है और जब आप उसका अभ्यास करते हैं तो आपके कार्य में परिपक्वता और निपुणता आती है।
श्रेया देशमुख कहती है कि एक कलाकार को अपने कौशल पर विश्वास होना चाहिए ना कि बाह्य प्रदर्शन में, खासकर महिला कलाकारों को अपनी स्वयं की योग्यता और हुनर पर विश्वास होना चाहिए। श्रेया का कहना है कि वह ऐसी भूमिकायें करना चाहती हैं जिसमें उनकी सकारात्मक ऊर्जा दर्शकों तक पहुंचे। जो परिवार के साथ देखने योग्य हो और सारी दुनिया आप पर गर्व कर सके। प्रसिद्धि पाने की महत्वाकांक्षा में आपकी अपनी परछाई और अस्तित्व धूमिल नहीं होना चाहिए। जब भी दर्पण में नज़र टिके आपको आपनी निर्मल और दोषरहित छवि दिखनी चाहिए। इससे आप कभी भी आत्मग्लानि और अवसाद के अंकुश में नहीं फसेंगे।
श्रेया देशमुख का व्यक्तित्व प्रभावशाली है। वह सकारात्मक सोच रखती हैं। उनका कहना है कि हमेशा इंसान को कुछ ना कुछ नया सीखते रहना चाहिए और अपना कौशल बढ़ाना चाहिए। ज्ञान अथाह है, केवल एक जन्म काफी नहीं इसे बटोरने के लिए इसलिए जितना ज्ञान अर्जित कर सको उतना आपके लिए फायदेमंद होगा। सीखने के लिए उम्र की सीमा नहीं होती और ना ही कोई दायरा होता है। आपको जो सीखना है सीख सकते हैं और ज्ञान अर्जित कर सकते हैं। कभी भी अकेलेपन या अपनी हार से थककर या निराश होकर स्थायी नहीं होना चाहिए बल्कि नदी की तरह हर मुसीबत का सामना करते हुए बहते रहना चाहिए। हमेशा कुछ नया ज्ञान या नई सीख अर्जित कर अपने जीवन में नया पड़ाव और खुशी का समावेश करना चाहिए।
श्रेया को अभिनेत्री रेखा, माधुरी दीक्षित, कीर्ती सुरेश, जेनिफर विंगेट का अभिनय पसंद है। श्रेया अपने अभिनय के माध्यम से अपने कौशल और योग्यता को लोगों तक पहुंचाना चाहती है। श्रेया अपने कार्य में आगे बढ़ रही है, आगे उनका भविष्य अवश्य उज्ज्वल होगा।

– गायत्री साहू