राधिकापति भगवान श्रीकृष्ण के मन में दूध पीने की इच्छा होने लगी। तब भगवान ने अपने वामभाग से लीलापूर्वक सुरभि गौ को प्रकट किया। उसके साथ बछड़ा भी था जिसका नाम मनोरथ था। उस सवात्सा गौ को सामने देख श्रीकृष्ण के पार्षद सुदामा ने एक रत्नमय पात्र में उसका दूध दुहा और उस सुरभि से दुहे गए स्वादिष्ट दूध को स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने पीया।
मृत्यु तथा बुढ़ापा हरने वाला वह दुग्ध अमृत से भी बढ़कर था। सहसा दूध का वह पात्र हाथ से छूटकर गिर पड़ा और पृथ्वी पर सारा दूध फैल गया। उस दूध से वहां एक सरोवर बन गया जो गोलोक में क्षीरसरोवर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गोपिकाओं और श्रीराधा के लिए वह क्रीड़ा सरोवर बन गया। उस क्रीड़ा सरोवर के घाट दिव्य रत्नों द्वारा निर्मित थे। भगवान की इच्छा से उसी समय असंख्य कामधेनु गौएं प्रकट हो गईं जितनी वे गौएं थीं, उतने ही बछड़े भी उस सुरभि गौ के रोमकूप से निकल आए। इस प्रकार उन सुरभि गौ से ही गौओं की सृष्टि मानी गई है। भगवान श्रीकृष्ण सांदीपनि मुनि के आश्रम में विद्याध्ययन के लिए गए। वहां उन्होंने गौसेवा की। भगवान श्रीकृष्ण को केवल गायों से ही नहीं अपितु गोरस दूध, दही, मक्खन, आदि से अद्भुत प्रेम था। श्रीकृष्ण द्वारा ग्यारह वर्ष की अवस्था में मुष्टिक, चाणूर, कुवलयापीड हाथी और कंस का वध गोरस के अद्भुत चमत्कार के प्रमाण हैं और इसी गोदुग्ध का पान कर भगवान श्रीकृष्ण ने दिव्य गीतारूपी अमृत संसार को दिया।
भगवान श्रीकृष्ण सांदीपनि मुनि के आश्रम में विद्याध्ययन के लिए गए। वहां उन्होंने गौसेवा की। भगवान श्रीकृष्ण को केवल गायों से ही नहीं अपितु गोरस दूध, दही, मक्खन, आदि से अद्भुत प्रेम था। श्रीकृष्ण द्वारा ग्यारह वर्ष की अवस्था में मुष्टिक, चाणूर, कुवलयापीड हाथी और कंस का वध गोरस के अद्भुत चमत्कार के प्रमाण हैं और इसी गोदुग्ध का पान कर भगवान श्रीकृष्ण ने दिव्य गीतारूपी अमृत संसार को दिया।
गौ रक्षक भगवान श्रीकृष्ण ने गौमाता की रक्षा के लिए क्या-क्या नहीं किया? उन्हें दावानल से बचाया, इंद्र के कोप से गायों और ब्रजवासियों की रक्षा के लिए गिरिराज गोवर्धन को कनिष्ठिका उंगली पर उठाया। तब देवराज इंद्र ने ऐरावत हाथी की सूंड के द्वारा लाए गए आकाशगंगा के जल से तथा कामधेनु ने अपने दूध से उनका अभिषेक किया और कहा कि जिस प्रकार देवों के राजा देवेन्द्र हैं उसी प्रकार आप हमारे राजा गोविंद हैं।

भगवान श्रीकृष्ण का बाल्यजीवन गौसेवा में बीता, इसीलिए उनका नाम गोपाल पड़ा

भगवान श्रीकृष्ण का बाल्यजीवन गौसेवा में बीता, इसीलिए उनका नाम गोपाल पड़ा। पूतना के वध के बाद गोपियां श्रीकृष्ण के अंगों पर गोमूत्र, गोरज व गोमय लगा कर शुद्धि करती हैं क्योंकि उन्होंने पूतना के मृत शरीर को छुआ था और गाय की पूंछ को श्रीकृष्ण के चारों ओर घुमाकर उनकी नजर उतारती हैं। तीनों लोकों के कष्ट हरने वाले श्रीकृष्ण के अनिष्ट हरण का काम गाय करती है। जब-जब श्रीकृष्ण पर कोई संकट आया नंदबाबा और यशोदा माता ब्राह्मणों को स्वर्ण, वस्त्र तथा पुष्पमाला से सजी गायों का दान करते थे। यह है गौमाता की महिमा और श्रीकृष्ण के जीवन में उनका महत्व।
नंद बाबा के घर सैंकड़ों ग्वालबाल सेवक थे पर श्रीकृष्ण गायों को दुहने का काम भी स्वयं करना चाहते थे। कन्हैया ने आज माता से गाय चराने के लिए जाने की जिद की और कहने लगे कि भूख लगने पर वे वन में तरह-तरह के फलों के वृक्षों से फल तोड़कर खा लेंगे। पर मां का हृदय इतने छोटे और सुकुमार बालक के सुबह से शाम तक वन में रहने की बात से डर गया और वह कन्हैया को कहने लगीं कि तुम इतने छोटे-छोटे पैरों से सुबह से शाम तक वन में कैसे चलोगे, लौटते समय तुम्हें रात हो जाएगी। तुम्हारा कमल के समान सुकुमार शरीर कड़ी धूप में कुम्हला जाएगा परन्तु कन्हैया के पास तो मां के हर सवाल का जवाब है। वह मां की सौगंध खाकर कहते हैं कि न तो मुझे धूप लगती (गर्मी) है और न ही भूख और वह मां का कहना न मानकर गोचारण की अपनी हठ पर अड़े रहे।
मोरमुकुटी, वनमाली, पीताम्बरधारी श्रीकृष्ण यमुना में अपने हाथों से मल-मल कर गायों को स्नान कराते, अपने पीताम्बर से ही गायों का शरीर पोंछते, सहलाते और बछड़ों को गोद में लेकर उनका मुख पुचकारते और पुष्पगुच्छ गुंजा आदि से उनका शृंगार करते। तृण एकत्र कर स्वयं अपने हाथों से उन्हें खिलाते। गायों के पीछे वन-वन वह नित्य नंगे पांव, कुश, कंकड़, कण्टक सहते हुए उन्हें चराने जाते थे। गाय तो उनकी आराध्य हैं और आराध्य का अनुगमन पादत्राण (जूते) पहनकर तो होता नहीं। परमब्रह्म श्रीकृष्ण गायों को चराने के लिए जाते समय अपने हाथ में कोई छड़ी आदि नहीं रखते थे। केवल वंशी लिए हुतेए ही गाएं चराने जाते थे। वह गायों के पीछे-पीछे ही जाते हैं और गायों के पीछे-पीछे ही लौटते हैं वह गायों को मुरली सुना हैं।
सुबह गोसमूह को साष्टांग प्रणिपात (प्रणाम) करते और सायंकाल गायों के खुरों से उड़ी धूल से उनका मुख पीला हो जाता था। इस अद्भुत दृश्य को देखने के लिए देवी-देवता अपने लोकों को छोड़कर ब्रज में चले आते और आश्चर्यचकित रह जाते कि जो परमब्रह्म श्रीकृष्ण बड़े-बड़े योगियों के समाधि लगाने पर भी ध्यान में नहीं आते, वे ही श्रीकृष्ण गायों के पीछे-पीछे नंगे पांव वनों में हाथ में वंशी लिए घूम रहे हैं। मोहन गाएं चराकर आ रहे हैं। उनके मस्तक पर नारंगी पगड़ी है जिस पर मयूरपिच्छ का मुकुट लगा है, मुख पर काली-काली अलकें बिखरी हुई हैं जिनमें चम्पा की कलियां सजाई गई हैं।
गोप बालकों की मंडली के बीच मेघ के समान श्याम श्रीकृष्ण रसमयी वंशी बजाते हुए चल रहे हैं और सखामंडली उनकी गुणावली गाती चल रही है। गेरु आदि से चित्रित सुंदर नट के समान भेस में ये नवल-किशोर मस्त चलते हुए आ रहे हैं। चलते समय उनकी कमर में करधनी के किंकणी और चरणों के नुपूरों के साथ गायों के गले में बंधी घंटियों की मधुर ध्वनि सब मिलकर कानों में मानो अमृत घोल रहे हों।

श्री कृष्ण ने धरती पर रहते हुए इस दुनिया को जीने का सलीका बताया.

भगवान श्री कृष्ण की महिमा का गुणगान जितना किया जाए उतना कम है. श्री कृष्ण ने धरती पर रहते हुए इस दुनिया को जीने का सलीका बताया. द्वापरयुग में भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को श्री कृष्ण का जन्म हुआ था. श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को ही जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं. श्री कृष्ण को आज पूरी दुनिया पूजती है. श्री कृष्ण के साथ-साथ गौ माता का भी लोग बहुत आदर करते हैं और उनका भी पूजन किया जाता है. ऐसे में आइए जानते हैं आज श्री कृष्ण और गौ माता के रिश्ते के बारे में .
आप गोपाष्टमी के त्यौहार से श्री कृष्ण और गौ माता के रिश्ते के बारे में जान सकते हैं. बताया जाता है कि गोपाष्टमी के दिन ही पहली बार श्री कृष्ण ग्वाला बने थे और उन्होंने गाय चराना शुरू किया था. यह त्यौहार कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन मनाया जाता है. इस दिन गौ माता के पूजन का विधान है.
गौ माता से भगवान श्री कृष्ण का ख़ास लगाव और जुड़ाव है. श्री कृष्ण के कारण ही आज गाय को माता की संज्ञा दी जाती है. ऐसे भी मान्यता है कि जिस स्थान पर गौ माताएं होती है या वे भ्रमण करती है वहां सांप-बिच्छू जैसे जहरीले जीव देखने को नहीं मिलते हैं. सच्चे दिल से गौ माता की भक्ति, सेवा और पूजा करने वाला व्यक्ति आने वाली समस्याओं से छुटकारा पा लेता है. साथ ही उस पर भगवान श्री कृष्ण की कृपा भी बनी रहती है. एक प्रचलित धार्मिक मान्यता इस प्रकार से भी है कि गौ माता में 33 कोटि देवी-देवता निवास करते हैं. अतः गौ माता का पूजन करने से 33 कोटो देवी-देवताओं की पूजा का फल भी हमें मिलता है. जब भी कभी गौ माता के बात होती है, तो श्री कृष्ण का नाम भी जुबान पर आ ही जाता है.
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