डॉ0 घनश्याम बादल
19 नवंबर 1917 को मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुई इंदिरा गांधी अगर आज जिंदा होती, और कांग्रेस सता में होती तो भी सारा देश उन्हे कमोबेश वैसे ही याद कर रहा होता जैसे अटल या दीनदयाल उपाध्याय याद किये जाते हैं आज । यदि पलट कर भारत के इतिहास पर नजर डालें तथा स्वाधीन भारत को एक मजबूत राष्ट्र के रूप में खड़ा करने वाली लौह महिला के अवदान का मूल्यांकन किया जाए तो इंदिरा गांधी हर सम्मान की हकदार हैं ।
वही इंदिरा , जिसे कामराज जैसे ताकतवर नेताओं ने इसलिए प्रधानमंत्री बनने दिया था ताकि उनका राजनैतिक इस्तेमाल अपने हित साधने के लिए किया जा सकें । मोम की गुड़िया सी दिखती इंदिरा, जिसे नेहरु परिवार ने फूलों की पंखुड़ियों की तरह संभाल कर पाला था । वही इंदिरा, जिसने 1966 में प्रधानमंत्री बनकर, नई कांग्रेस बना ली थी, और समय के साथ जिसने पुरानी कांग्रेस को दफन कर दिया, पाकिस्तान को ऐसा घेरा कि बंगलादेश ही नहीं बनाया वरन् पाक के मन में एक भय भर दिया था ।
इंदिरा ने देश को डरा रहे आतंकियों को धता बताकर ऑप्रेशन ब्ल्यूस्टार से उसकी कमर तोड़, फिर से देश को विकास की राह पर डाल उसे अपने पैरों पर खडे करने का रास्ता बनाया आज उसी इंदिरा की जयंती है ।
बेशक, उस इंदिरा को याद करना तो बनता है आज बिना यह सोचे कि वह किस दल की थी या आज किस दल की सरकार सत्ता में है यही इस देश की संस्कृति भी है, पर संस्कारों एवं संस्कृति की बात करने वाली सरकार अपनी पूर्व कांग्रेसी सरकारों के द्वारा किए गए व्यवहार को आधार बनाकर इंदिरा कोएक हाशिए पर रख रही है बिना यह सोचे कि वह इस देश की पहली महिला प्रधानमंत्री थी और अब तक की आखरी भी।
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प्रियदर्शनी व लौह महिला दोनों विशेषण फिट बैठते हैं इंदिरा पर । जिसे विपक्ष तक ने ‘दुर्गा’ माना था। आनंद भवन में जन्मी, पली बढ़ी जवाहरलाल व कमला नेहरु की इकलौती पुत्री इंदिरा ने कालांतर में भारतीय राजनीति व विश्व राजनीति के क्षितिज पर अमिट प्रभाव छोड़ा








