मनचाहे वरदान पा लिए भगवान शिव से
सुदर्शन भाटिया-
सुगमता से कृपा कर देने वाले भगवान शिव विंध्य पर्वत की तपस्या पर तो प्रसन्न होते ही थे, हुए भी। प्रकट होकर
कहा- विंध्य, तुम पिछले छह महीने से लगातार तप में लीन हो। मांगो, आ गया समय मनवांछित फल पाने का। यहां
उपस्थित अनेक ऋषि-मुनियों की उपस्थिति में तुम्हारी मनोकामना पूर्ण करना चाहता हूं। प्रभु! आपके दर्शन हो गए,
क्या यह कम है। फिर भी मेरी हर मनोकामना से आप परिचित तो हैं ही। मेरे से क्या पूछना। ठीक है! मैं तुम्हारी हर
कामना को पूरा होने का वर देता हूं। साथ ही साथ अपने इस ओंकारेश्वर रूप को दो भागों में बांट रहा हूं- एक तो
ओंकारेश्वर ही कहलाएगा, दूसरा अमलेश्वर। अलग-अलग होते हुए भी इसकी सत्ता एक ही होगी। युगों-युगों तक
नर्मदा में स्नान कर, इन दोनों रूपों के दर्शन तथा परिक्रमा करने के लौकिक-पारलौकिक, दोनों फलों की प्राप्ति होगी।
ये दोनों लिंग आज के मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी के तट पर स्थित हैं। यहां नर्मदा दो भागों में विभक्त होकर बीचों बीच
मान्धता टापू बन गया है। विंध्य पर्वत की अर्चना से काफी पूर्व महाराज मान्धता ने भी शिव को प्रसन्न कर दर्शन पाए
थे। अब सारा का सारा पर्वत ही शिवपुरी के नाम से जाना तथा पूजा जाता है। बहुत मान्यता है इस क्षेत्र की। (विभूति
फीचर्स)

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