राजेश झा
महेंद्र मिश्र का समय गाँधी के उदय का समय है. बिहार स्वतंत्रता सेनानी संघ के अध्यक्ष विश्वनाथ सिंह तथा इस इलाके के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी श्री तापसी सिंह ने अपने एक लेख में यह दर्ज किया है कि महेंद्र मिश्र स्वतंत्रता सेनानियों की आर्थिक मदद किया करते थे. इस सन्दर्भ में अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मलेन के चौदहवें अधिवेशन, मुबारकपुर, सारण ‘इयाद के दरपन में’ देखा जा सकता है. सारण के इलाके के कई स्वतंत्रता सेनानी और कालांतर में सांसद भी (बाबू रामशेखर सिंह और श्री दईब दयाल सिंह) ने यह बात कही है कि महेंद्र मिश्र का घर स्वंतंत्रता संग्राम के सिपाहियों का गुप्त अड्डा हुआ करता था. उनके घर की बैठकों में संगीत और गीत गवनई के अलावा राजनीतिक चर्चाएँ भी खूब हुआ करती थी. उनके गाँव के अनेक समकालीन बुजुर्गों ने इस बात की पुष्टि की है कि महेंद्र मिश्र स्वाधीनता आन्दोलन के क्रांतिकारियों की खुले हाथों से सहायता किया करते थे. आखिर उनके भी हिस्से वह दर्द तो था ही कि
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हमरा नीको ना लागे राम गोरन के करनी
रुपया ले गईले,पईसा ले गईलें,ले सारा गिन्नी
ओकरा बदला में दे गईले ढल्ली के दुअन्नी
पूरबी सम्राट महेंद्र मिश्र के साथ यह अजब संयोग ही है कि उनकी रचनाएँ अपार लोकप्रियता के सोपान तक पहुँची. भोजपुरी अंचल ने टूट कर उनके गीतों को अपने दिलों में जगह दी किन्तु साहित्य इतिहासकारों की नजर में महेंद्र मिश्र अछूत ही बने रहे. किसी ने उनपर ढंग से बात करने की कोशिश नहीं की. अलबता एकाध पैराग्राफ में निपटाने की कुछ सूचनात्मक कोशिशें हुई जरुर. रामनाथ पाण्डेय लिखित भोजपुरी उपन्यास ‘महेंदर मिसिर’ और पाण्डेय कपिल रचित उपन्यास ‘फूलसुंघी’ पंडित जगन्नाथ का ‘पूरबी पुरोधा’ और जौहर सफियाबादी द्वारा लिखित ‘पूरबी के धाह’ लिखी है. प्रसिद्ध नाटककार रवीन्द्र भारती ने ‘कंपनी उस्ताद’ नाम से एक नाटक लिखा है जिसे वरिष्ठ रंगकर्मी संजय उपाध्याय ने खूब खेला भी है.
भोजपुरी मैथिली के फिल्मकार नितिन नीरा चंद्रा भी महेंद्र मिश्र पर एक फिल्म की तैयारी में हैं. रत्नाकर त्रिपाठी ने आर्ट कनेक्ट में ‘टू लाइफ ऑफ़ महेंद्र मिश्र’ नाम से के शानदार लेख लिखा है. इधर जैसी कि सूचना है बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् जल्दी ही महेंद्र मिश्र की रचनावली का प्रकाशन करने जा रहा है.