(डॉ. हरिप्रसाद दुबे – विनायक फीचर्स)

प्रेम की होली ऐसी है जिसका रंग कभी नहीं छूटता। अन्य सारे रंग कच्चे रंग हैं। होली बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है। यह प्रेम के रंग में रंगकर आनन्द लुटाने आती है। होली प्रेम के विस्तार का पर्व है।  बसन्तोत्सव, कामोत्सव अथवा मदनोत्सव या होली सभी काम के उदात्तीकरण के उत्सव हैं।
फाल्गुन मास की पूर्णिमा को अनंग उत्सव मनाने की परम्परा ही होलिका दहन के रूप में परिवर्तित हो गई। होली प्रकृति का रसीला पर्व है। बसंत के मुख्य मास चैत्र, बैसाख ‘मधुमाधव  है। बसन्त में मधु रस वर्षण होता है। कवि कालिदास ऋतुसंहार में कहते हैं बसन्त आगमन पर सभी वृक्ष फूलों से लदे हैं जल में कमल खिले हैं। स्त्रियां मतवाली हो चली हैं। सांझ सुहावनी दिन सुन्दर हो गए हैं।  मानव की मूल प्रवृत्ति काम को देवत्व प्रदान करना भारतीय मनीषा द्वारा ही संभव है। काम का संदर्भ ऋग्वेद से लेकर उपनिषद तक सर्वत्र प्राप्त होता है। महाकाव्य परम्परा और पौराणिक परंपरा में कामदेव वेशभूषा के देवता के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनके लिए पूजा, यज्ञ, मंत्र का विधान है। कामदेव पूजा का पात्र बनते हैं। शिशिर से ठिठुरी प्रकृति जब बसन्त में अंगड़ाई लेकर जाग जाती है तब उसकी अनुभूति अधिक ही होती है। यही कारण है कि संस्कृत परम्परा में बसन्त को कामदेव का सहचर मित्र कहा गया है। मनुष्य ही नहीं प्रकृति भी काम से झंकृत होती है। होली भेद मिटाने आती है। काम उल्लास, उमंग आनन्द के गीत गाता अपने मित्र बसन्त सहित होली में आता है।
इसी बसन्तोत्सव में काम, मदन या मदन गोपाल कृष्ण की तो कहीं कामदेव रूप में प्रद्युम्न आदि की अर्चना स्त्री, पुरुष करने लगे। आम्रमज्जरी देव को समर्पित किया जाता था। इसका प्रसाद रूप ग्रहण करते थे। पूजा के साथ-साथ यज्ञ भी होता था। पुष्प पराग, कस्तूरी चन्दन से परस्पर खेलने की परम्परा थी। जीवन ऊर्जा, प्राण-ऊर्जा काम से है। मानव ने इस काम ऊर्जा को ग्रहण कर अपना धर्म मानते हुए सृष्टि संवर्धन में सहयोग दिया।  गीता में कृष्ण धर्मानुकूल काम की उपादेयता स्वीकारते हैं। काम अर्थ लोकोपकारक है भोग का अधिक आश्रय विनष्ट करता है। भारतीय संस्कृति में काम त्यागभावना पर आधारित रहा है। पार्वती तप करते करते जब अपर्णा बनती हैं, शिव जब तीसरे नेत्र की अग्रि से कामदेव को भस्म कर देते हैं तब काम अनंग बनकर मंगलमय बनता है। इसी समय असुर विनाशक कुमार संभव कुमार का अवतरण होता है। ‘काम’ प्रेम-सौन्दर्य की अभिव्यक्ति करता है। कामदेव कामनाओं का देव, प्रेम का देव, सुन्दरता का देव है। जिसे ईश्वर सृजन की कामना से रचता है, वह सत्यं-शिवं-सुन्दरम्ï है। सृष्टिï मूल सनातन तत्व काम अपने देवत्व में सत्य-शिव है। सत्य-शिव कभी असुन्दर नहीं हो सकता। अत: काम मात्र भोग दमन नहीं है बल्कि जागरण ज्ञान है। बसन्त उत्सव विद्या की देवी सरस्वती के जन्मोत्सव का भी पर्व है। ज्ञान से काम आत्मसात करने पर कला मर्मज्ञ बनेंगे। संस्कृति की चौसठ कलाओं में मानवता को समाविष्ट करने पर ही होली, काम का दर्शन पूर्णता पाएगा। होली की रात मंत्र जाप सिद्ध ही नहीं होता बल्कि विशेष फलदायक और सुरक्षा कवच बनता है। होली कामदेव की पूजा का उत्सव है। (विनायक फीचर्स)
Previous articleइम्पा की पहल के बाद सरकारी भूमि पर मुफ्त होगी फिल्मों की शूटिंग, महाराष्ट्र सरकार ने की घोषणा
Next articleमध्य प्रदेश तमाशा -ए -आईएएस बेलगाम अफसर, शिष्टाचार होता तार-तार

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here