पं. विशाल दयानंद शास्त्री –
विवाह पश्चात् सभी ग्रहस्थ दंपत्ति की यह चिर-अभिलाषा रहती है कि उनके यहां सुसंतति का जन्म हो। उन्हें सृजन
का सौभाग्य प्राप्त हो तथा सांसारिक जीवन में माता-पिता होने का गौरव प्राप्त हो।
आचार-शास्त्र के प्रणेता महाराज मनु ने भी संतान प्राप्ति की इच्छा को तीन नैसर्गिक इच्छाओं में से एक माना है तथा
संतान प्राप्ति को पूर्व जन्मों के कर्मों का सुफल माना है।
नि:संतान होना किसी दंपत्ति के लिये अपार मानसिक पीड़ा का कारण बन जाता है। होता यह है कि कई बार बात
बनते-बनते बिगड़ जाती है या कहें कि कश्ती किनारे पंहुचते-पंहुचते अटक जाती है। ऐसे में जरूरत होती है किसी
सहारे की। ईश्वर अनुग्रह, गुरु कृपा, तंत्र-मंत्र-यंत्र के प्रयोग, कोई अनुष्ठान या व्रत-उपवास ये ऐसे ही सहारे हैं जो
मंजिल के करीब पंहुची गाड़ी को धकेल कर मंजिल तक पंहुचा देते हैं। ऐसा ही एक अति सरल किन्तु आजमाया हुआ प्रयोग या टोटका कुछ इस तरह से हैं।
संतान प्राप्ति का प्रयोग- किसी बालक के पहली बार टूटे हुए दूध के दांत को लेकर, जो स्त्री इसे श्वेत वस्त्र में लपेट कर
बाईं भुजा से बांधती है उसे संतान प्राप्ति के योग बनते हैं। मनोकामना पूर्ण होने तक प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व बाल-
कृष्ण का 15 मिनिट तक नियमित ध्यान अनिवार्य है। (विभूति फीचर्स)