१ जुलाई १८२२ को पहला अंक प्रकाशित हुआ था ,यह अखबार अपने आपमें इतिहास का महत्वपूर्ण दस्तावेज तो है ही, इसकी यह इमारत भी अब हैरिटेज बिल्डिंग का दर्जा पा चुकी है। इसके चार साल पहले १८१८ में देश की क्षेत्रीय भाषाओं में पहला अखबार ‘समाचार दर्पण’ बंगला भाषा में ‘ प्रकाशित होना शुरु हुआ था। आज उस बंगाली अखबार का कोई अता -पता नहीं है किन्तु मगर मुंबई समाचार न सिर्फ मौजूद है बल्कि लगातार नयी-नयी मंजिलें तय कर रहा है।
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– राजेश झा

प्रिंट मीडिया के लड़खड़ाते परिवेश में दो सौ वर्ष पुराना हुआ दैनिक ‘मुंबई समाचार ‘नामक गुजराती अखबार अपने आपमें एक करिश्मा है । एक ऐसे दौर में जब खबरों की तरह ही प्रिंट मीडिया विशेषकर अखबारों की भी उम्र लगातार कम हो रही हो ,एक -से -बढ़कर एक स्थापित अखबारों से लगातार पत्रकारों की छंटनियों, उनके साप्ताहिक परिशिष्टों के खात्मे के साथ-साथ खुद उनके अस्तित्व पर मंडराते संकट की सूचनाएं मिल रही हों इतना ही नहीं मीडिया के राजस्व में प्रिंट मीडिया की हिस्सेदारी पिछले एक दशक में लगातार कम हो रही है – ऐसी असंख्य निराशाजनक बातों के बीच मुंबई से प्रकाशित गुजराती अखबार ‘मुंबई समाचार’ के प्रकाशन के २०१ वें वर्ष में प्रवेश की बात अनूठी है।‘मुंबई समाचार’ अकेले हिंदुस्तान का ही नहीं बल्कि पूरे एशिया का लगातार प्रकाशित सबसे पुराना अखबार है। यह सब देश की भाषाई पत्रकारिता के लिए किसी गौरवगाथा से कम नहीं है।

यह तथ्य सुनने में ही बहुत रोमांचक लगता है कि २०१ वर्ष पहले यानी १ जुलाई १८२२ को मुंबई समाचार, मुंबई के जिस हार्निमन सर्कल स्थित बिल्डिंग से छपना शुरु हुआ था, आज भी यह इसी दो मंजिल की लाल रंग वाली बिल्डिंग से छप रहा है। बिल्डिंग के एक हिस्से में आज भी वे मशीनें रखी हुई हैं जिनसे एक सदी पहले अखबार छपा करता था। यह अखबार अपने आपमें इतिहास का महत्वपूर्ण दस्तावेज तो है ही, इसकी यह इमारत भी अब हैरिटेज बिल्डिंग का दर्जा पा चुकी है। अपने आपमें दो सदियों का इतिहास समेटे मुंबई समाचार १८२२ में एक पारसी कारोबारी फर्दूंजी मर्जबान के द्वारा साप्ताहिक ‘मूंबिना समाचार’ के रूप में प्रकाशित होना शुरु हुआ था। जब गुजराती भाषा में यह साप्ताहिक प्रकाशित होना शुरु हुआ। इसके चार साल पहले १८१८ में देश की क्षेत्रीय भाषाओं में पहला अखबार ‘समाचार दर्पण’ बंगला भाषा में ‘ प्रकाशित होना शुरु हुआ था। हालांकि आज इस बंगाली अखबार का कोई नामोनिशान नहीं बाकी। मगर मुंबई समाचार न सिर्फ मौजूद है बल्कि लगातार नयी-नयी मंजिलें तय कर रहा है।

इस तरह देखा जाए तो मुंबई समाचार सिर्फ इतिहास ही नहीं है,अपने आपमें एक सतत इतिहास है, जो इस बात की गवाही होता है कि वह कुछ खास है तभी अभी तक उसका अस्तित्व है। जिस दौर में देश के बड़े से बड़े अखबारों ने अपनी तमाम साप्ताहिक परिशिष्टों को अखबार के नियमित पन्नों में बदल दिया हो, उस दौर में भी मुंबई समचार अकेला ऐसा अखबार है जो आज भी सप्ताह के सातों दिन मुख्य अखबार के साथ एक साप्ताहिक परिशिष्ट का प्रकाशन करता है, जिसमें सिर्फ गुजराती भाषा के ही तमाम प्रतिष्ठित लेखक, पत्रकार और विद्वान ही नहीं छपते बल्कि अलग-अलग भाषाओं के विद्वान भी यहां नियमित रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। यह अखबार की पाठकीय साख का प्रमाण है कि डेढ़ लाख से अधिक की संख्या में हर दिन छपने वाले इस अखबार को गुजराती समाज में न सिर्फ बहुत गंभीरता से लिया जाता है बल्कि आज भी जब सूचनाओं के अनंत माध्यम विकसित हो गये हैं, मुंबई समाचार के पाठक सूचना पाने के लिए अपने इस प्रिय अखबार पर भरोसा करते हैं।

देश की प्रिंट मीडिया और खासकर क्षेत्रीय भाषाओं की प्रिंट मीडिया इस ऐतिहासिक अखबार से क्या सीख सकते हैं? निश्चित रूप से अपना अस्तित्व बनाये रखने की कला जो कि एक नियमित अनुशासन से आती है। अखबार के मौजूदा युवा संपादक नीलेश दवे का कहना है, ‘निश्चित रूप से यह गर्व का विषय है कि मुंबई समाचार दुनिया के उन गिने -चुने अखबारों में से है, जिन्होंने यह इतिहास बनाया है। लेकिन महत्वपूर्ण सिर्फ अखबार का अस्तित्व होना भर नहीं है बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि इतने साल गुजर जाने के बाद आज भी ‘ मुुंबई समाचार ‘ अत्यंत प्रासंगिक है। उनके मुताबिक, ‘हम आज भी अपने संस्थापकों की उन नीतियों का पालन करते हैं, जिन नीतियों को मजबूत बनाने के लिए इस अखबार की दो शताब्दियों पहले नींव पड़ी थी। आज जब ज्यादातर अखबार बड़े कार्पोरेट विज्ञापनदाताओं को अपने प्रथम पेज में जगह देते हैं, तब भी हम अपने छोटे विज्ञापनदाताओं को अपने पहले पेज में जगह देते हैं। यह महज कारोबार नहीं है, यह उनके और हमारे बीच एक सम्मान और भावनाओं का रिश्ता है।

हमारे अखबार की संपादकीय नीति हमेशा से सनसनीखेज मामलों को उछालने से बचने की रही है। हम कभी भी हंगामों पर भरोसा नहीं करते। हमने हमेशा अपनी स्वतंत्र संपादकीय नीति को महत्व दिया है। हम घटनाओं की ईमानदारी से तथ्यात्मक रिपोर्टिंग पर बल देते हैं।’देश की आजादी के लिए लड़े गये पहले स्वतंत्रता संग्राम १८५७ से भी पहले प्रकाशित होना शुरु हुए ‘मुंबई समाचार’ की हमेशा से प्राथमिकता, गुजराती भाषा, समाज और संस्कृति को मजबूती देना रहा है।अखबार शुरु में १०साल तक साप्ताहिक के रूप में निकला था और फिर अगले लगभग दो दशकों तक पाक्षिक रूप में निकला था। अखबार का वर्तमान स्वरूप १८५५ से अभी तक एक समान है, जो न केवल संस्थान की नीतियों में स्थिरता बल्कि पाठकों के साथ विश्वसनीयता भरे रिश्तों का भी सबूत है। अखबार की स्थापना एक पारसी कारोबारी ने किया था और आज भी संस्थान के मालिक कामा परिवार के लोग हैं जो पारसी समुदाय से रिश्ता रखते हैं।

मुंबई समाचार से देश के तमाम अखबार खासकर क्षेत्रीय भाषाओं के अखबार बहुत कुछ सीख सकते हैं। सबसे पहली बात तो उन्हें मुंबई समाचार से यह मजबूत सीख मिलती है कि कोई भी अखबार अपने पाठकों के विश्वसनीय रिश्ते के बिना स्थिरता और मजबूती नहीं हासिल कर सकता। पाठकों के बीच किसी भी मीडिया प्रकाशन की विश्वसनीयता तभी बनती है, जब वह उन्हें लगातार सजग रहते हुए ईमानदार सूचनाएं और विश्लेषण मुहैय्या कराता है। अपने तात्कालिक कारोबारी फायदों के लिए जब मीडिया प्रकाशन अपने पाठक समुदाय का ख्याल नहीं रखते, उनके साथ इज्जत और ईमानदारी का बरताव नहीं करते तो किसी भी प्रकाशन का चाहे वह जिस माध्यम का प्रकाशन हो, उसके पाठक भी उसके साथ स्थायी रिश्ता नहीं रखते।

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