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प्लास्टिक ज़िंदगी में घोल रही ज़हर

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प्लास्टिक के बढ़ते चलन से भले ही लोग इसका इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रहें हैं लेकिन सस्ते प्लास्टिक के नुकसान के बारे में लखनऊ के डॉक्टर विवेक अग्रवाल जनरल फीजिशियन बताते हैं, ”प्लास्टिक के डिब्बों में खाने पीने का सामान रखने से पहले उसे ठंडा रखना चाहिए वरना प्लास्टिक के रासायनिक पदार्थ खाने में मिल जाते हैं और शरीर के अंदर पहुंच कर कैंसर, आंत संबधी कई बीमारी पैदा कर सकते हैं। इन बर्तनों की सफाई का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए इन्हें हमेशा गर्म पानी में धोकर ही इस्तेमाल करना चाहिए वरना ये नुकसान पहुंचा सकते हैं।”

सस्ते और प्लास्टिक के ज्यादा प्रयोग से पर्यावरण और मानव जीवन पर क्या असर पड़ सकता है, इस विषय पर भीमराव अम्बेडकर के प्रोफेसर और वैज्ञानिक डॉ नवीन अरोड़ा कहते हैं, प्लास्टिक एक पालीमर है, जो कि कई पदार्थों के मिश्रण से बना होता है। प्लास्टिक बनाने में नायलॉन, फिनोलिक, पौलीसट्राइन, पौलीथाईलीन, पौलीविनायल, क्लोराइड, यूरिया फार्मेलीडहाइड व अन्य पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है। उदाहरण के लिए कुछ तरह के जूते चप्पल पहनने से हमारे पैरों में एलर्जी और त्वचा में खुजली और जलन होती है। ऐसा इसलिए होता है कि उन जूते चप्पलों में इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक घटिया किस्म का होता है। इतने सारे रसायनों से बने पदार्थ में जब हम खाने पीने क़ी चीजें रखेंगे तो जाहिर है कि इन रसायनों के कुछ पदार्थ खाने पीने की चीजों में मिल जाएंगे। प्लास्टिक का पुन:चक्रीकरण नहीं हो पाता। कूड़े में पड़े प्लास्टिक को जानवर खाकर मर जाते हैं।

प्लास्टिक की बोतल-टिफिन से कैंसर का भी खतरा,

रिसर्च से ये बात सामने आई है कि प्लास्टिक के बोतल और कंटेनर के इस्तेमाल से कैंसर हो सकता है। प्लास्टिक के बर्तन में खाना गर्म करना और कार में रखे बोतल का पानी कैंसर की वजह हो सकते हैं। कार में रखी प्लास्टिक की बोतल जब धूप या ज्यादा तापमान की वजह से गर्म होती है तो प्लास्टिक में मौजूद नुकसानदेह केमिकल डाइऑक्सिन का रिसाव शुरू हो जाता है। ये डाईऑक्सिन पानी में घुलकर हमारे शरीर में पहुंचता है। इसकी वजह से महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के डॉ. वीरसिंह ने एक प्रेस कांफ्रेन्स में बताया कि सिर्फ पन्नी ही नहीं, बल्कि रिसाइकिल किए गए रंगीन या सफेद प्लास्टिक के जार, कप या इस तरह के किसी भी उत्पाद में खाद्य पदार्थ या पेय पदार्थ का सेवन स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। इनमें मौजूद बिसफिनोल ए नामक जहरीला पदार्थ बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए खतरनाक है। प्लास्टिक के घातक तत्वों के खाद्य पदार्थों एवं पेय पदार्थों के माध्यम से शरीर में पहुंचने से मस्तिष्क का विकास बाधित होता है। इसका बच्चों की स्मरण शक्ति पर सर्वाधिक विपरीत असर पड़ता है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने वक्त-वक्त पर प्लास्टिक और पॉलिथीन के इस्तेमाल के बारे में कई आदेश जारी किए हैं। इनमें एक आदेश पिछले साल दिसंबर का है। ट्रिब्यूनल ने दिल्ली में प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए नॉन डिस्पोजेबल प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया था। एनजीटी ने 50 माइक्रोन से पतली प्लास्टिक पर बैन कर दिया है। 50 माइक्रोन से नीचे की प्लास्टिक की न तो मैन्युफैक्चरिंग और न ही सेल की जा सकती है।

इस बैन में प्लास्टिक के वे डिस्पोजेबल कप और गिलास भी आते हैं जिन पर पतली पॉलिथीन की लेयर होती है या पतली प्लास्टिक से बने होते हैं। 50 माइक्रोन से ज्यादा के प्लास्टिक को री-साइकल किया जा सकता है, जबकि 50 माइक्रोन से पतले प्लास्टिक के साथ ऐसा नही किया जा सकता। इस वजह से पर्यावरण को काफी नुकसान होता है।

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