जैविक कीटनाशक बनाने में गौमूत्र का सबसे अधिक उपयोग होता है। जिन किसानों के पास गौ वंशीय मवेशी नहीं हैं उन्हें गौ मूत्र नहीं मिल पा रहा था। इसीलिए कुछ ग्रामीणों को गौ मूत्र संग्रहित करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। हमारे प्रयास के शुरुआती दिनों में ही अच्छे परिणाम मिलने शुरू हो गए हैं।
ज्ञानेंद्र तिवारी, फील्ड क्वार्डिनेटर समर्थन
प्राकृतिक खेती ,जैविक कीटनाशक और उर्वरक के गांव में ही निर्माण के लिए किसानों की कार्यशाला और प्रशिक्षण के कार्यक्रम दिसंबर माह में प्रस्तावित हैं। सरकार की ओर से भी किसानों को प्राकृतिक खेती करने के लिए प्रोत्साहि करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
डॉ. पीएन त्रिपाठी, वरिष्ट कृषि वैज्ञानिक व प्रभारी कृषि विज्ञान केंद्र पन्ना
इस सीजन में करीब ५०० किसानों द्वारा ६०० हेक्टेयर क्षेत्रफल में प्राकृतिक खेती का लक्ष्य रखा गया है। इसे प्रमोट करने के लिए किसानों को प्रशिक्षत किया जाएगा। सरकार की ओर से किसानों को प्रति गौवंशीय मवेशी पालन के लिए ९०० रुपए देने की भी घोषणा की गई है।
केपी सुमन, उप संचालक कृषि

पन्ना. प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकारी प्रयास भले ही अभी तक जमी पर नहीं दिख रहे हों लेकिन सामाजिक संगठनों के सहयोग से रहुनियां, पलथरा और बिलहा सहित आसपास के गांव के किसानों ने इस दिशा में काम शुरू कर दिया है। गांवों के दो दर्जन से भी अधिक किसान घरों में ही जैविक खाद तैयार करने के बाद कीटनाशक भी तैयार कर रहे हैं। जिसके लिए उन्हें बड़ी मात्रा में गौ मूत्र की जरूरत पड़ रही है। इसी को देखते हुए सामाजिक संस्था के समझाइश और प्रोत्साहन पर किसानों ने गौ मूत्र का संग्रह भी शुरू कर दिया है। जिन किसानों के घरों में मवेशी नहीं है उन्हें नाम मात्र की कीमत पर गांव के लोग ही अब गौमूत्र उपलब्ध कराएंगे।

ग्राम बिलहा की राजाबाई पटेल, बिलख्ुारा की कीर्तन देवी और पुष्पा पटेल ने बताया हम लोगों को घरों में ही जैविक कीटनाशक तैयार करने का प्रशिक्षण दिया गया था। जिससे २५-३० किसान गांव में ही कीटनाशक तैयार कर रहे हैं। जैविक कीटनाशक तैयार करने में सबसे अधिक गौमूत्र का ही उपयोग होता है। इसलिए जिन किसानों के घरों में मवेशी नहीं हैं उन्हें मौमूत्र देने के लिए गांव के लोगों ने समर्थन संस्था की समझाइश के बाद गौ मूत्र का संग्रह भी करना शुरू कर दिया है। महज तीन-चार दिनों में ही किसानों ने करीब डेढ़ सौ लीटर गौमूत्र एकत्रित कर लिया है। जिन किसानों को इसकी जरूरत है उन्हें नाम मात्र की कीमत पर गौमूत्र दिया जा रहा है। इससे किसानों को घरों में ही जैविक खाद तैयार करने में परेशानी नहीं होगी। साथ ही किसानों को अतिरिक्त आय का एक बड़ा साधन भी मिल जाएगा।

प्राकृतिक खेती के लिए छोड़ा एक-एक खेत
विक्रमपुर की राधारानी, बिलख्ुारा की कीर्तन देवी, पलथरा के गुलाब सिंह और शिव सिंह ने बताया, प्राकृतिक तरीके से खेती करने के लिए आसपास के गांव के दो दर्जन से अधिक किसानों ने अपने-अपने एक-एक खेत छोड़ दिए हैं। इनमें खेती करने के लिए गोबर की खाद का उपयोग किया जा रहा है। साथ ही इसमें पूरी फसल सामाजिक संस्था के कार्यकर्ताओं की देख रेख में की जाएगी। कीटनाकश के रूप में जैविक रूप से बनाए गए कीटनाशक अग्नियास्त्र, जीवामृत सहित अन्य जैविक कीटनाशकों का उपयोग किया जा रहा है।

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