• अशोक भाटिया
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए जहां सत्ताधारी पार्टी भाजपा  के नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए का कुनबा बढ़ता जा रहा है और एनडीए गठबंधन मिशन-24 से पहले अपने को मजबूत करने में जुटा हुआ है, वहीं इस चुनाव में सभी दलों की नजरें लोकसभा की सबसे अधिक सीटों वाले सूबे उत्तर प्रदेश पर बनी हुई हैं। जहां उत्तरप्रदेश  में भाजपा  मिशन 80 के तहत काम करने में लगी हुई है तो वहीं समाजवादी पार्टी ने भी अपने पूरी ताकत लगा दी है। इसी बीच प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती जिनकी निशानी हाथी है, ने साफ कर दिया है कि वह इस लोकसभा चुनाव में किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेंगी।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने हाल ही में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके एलान किया कि बसपा 2024 के लोकसभा चुनाव में किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं करेंगी । बसपा सुप्रीमो मायावती ने दावा किया है कि- “बसपा को उत्तरप्रदेश  में गठबंधन करके लाभ के बजाय नुकसान ज्यादा उठाना पड़ा है क्योंकि बसपा का वोट स्पष्ट तौर पर गठबंधन वाली दूसरी पार्टी को ट्रांसफर हो जाता है किंतु दूसरी पार्टियां अपना वोट बसपा  उम्मीदवारों को ट्रांसफर कराने की न सही नीयत रखती हैं और न ही क्षमता जिससे अन्ततः पार्टी के लोगों का मनोबल प्रभावित होता है। इस कारण बसपा सत्ता व विपक्ष दोनों गठबंधनों से अलग व दूर रहती है।”
वहीं मायावती ने एनडीए और इंडिया गठबंधन पर निशाना साधते हुए कहा कि एनडीए और विपक्षी गठबंधन अगले लोकसभा चुनाव में जीत के दावे कर रहा है हालांकि इन दोंनों के ज्यादातर वादे सत्ता में आने के बाद खोखले ही साबित हुए हैं। इसके साथ ही मायावती ने बसपा के वरिष्ठ पदाधिकारियों को लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट जाने का आह्वान किया है। इसके साथ ही उन्होंने साफ निर्देश दिया है कि उम्मीदवारों के चयन में खास सावधानी बरती जाए।
पुराना इतिहास खंगाला  जाय तो पहली बार 1993 के विधानसभा चुनावों में बहुजन समाजवादी पार्टी ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा था। 422 सीटों पर चुनाव हुए थे, जिसमें सिर्फ 164 सीटों पर लड़कर बसपा  ने 67 सीटें जीती थीं। जबकि, उसे कुल मिलाकर 11.12% ही वोट मिले थे। इस तरह से 1991 की 12 सीटों के मुकाबले वह पांच गुना से ज्यादा सीटें जीती और उसे करीब 2% वोट भी ज्यादा मिले। दूसरी बार फिर 1996 में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया। पार्टी 296 सीटों पर लड़ी और उसकी 67 सीटें कायम रहीं लेकिन बसपा का वोट शेयर बढ़कर 19.64% हो गया। तीसरी बार मायावती की पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनावों में सारे मतभेद भुलाकर मुलायम सिंह यादव की पार्टी सपा के साथ फिर से गठबंधन में चुनाव लड़ा। पार्टी 10 सीटें जीत गई और अखिलेश यादव की पार्टी को 5 सीटें ही मिलीं जितनी 2014 में मिली थी। बसपा  का वोट शेयर भी ज्यादा रहा।
1996 में पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ी। बसपा ने पंजाब की तीन लोकसभा सीटें जीती थी तो अकाली दल 8 सीटें हासिल कर सकी। इस तरह पंजाब में गठबंधन करना बसपा के लिए फायदेमंद रहा। 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। इस चुनाव में बसपा के एक उम्मीदवार ने जीत दर्ज की। पंजाब में 26 साल के बाद कहीं जाकर बसपा को जीत मिली।2018 में छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी तो कर्नाटक में जेडीएस के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा। छत्तीसगढ़ में बसपा के दो विधायक और कर्नाटक में एक विधायक जीतने में सफल रही थी। इसके बाद 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में बसपा ने छोटे-छोटे दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था जिसमें भी एक विधायक जीतने में सफल रहा।
गठबंधन के बिना क्या हुआ? इसको देखें तो 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा  अकेले दम पर लड़ी थी और एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद मायावती ने फिर से समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ लिया। 2022 विधानसभा चुनावों में बसपा ने फिर से अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया। सभी 403 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। सिर्फ 1 सीट जीती और 287 पर जमानतें जब्त हो गईं।
अब सवाल यह आता है कि क्यों अकेले चुनाव लड़ना चाहती हैं मायावती? इस तरह से साफ है कि गठबंधन में चुनाव लड़ने से बसपा  को फायदा नहीं मिलने का मायावती के दावे में पूरी दम नहीं लग रहा है। फिर वह एनडीए या इंडिया गठबंधन के साथ चुनाव नहीं लड़ना चाहती हैं, इसकी क्या वजह हो सकती है? जानकारों की मानें तो उत्तर प्रदेश के मौजूदा राजनीतिक माहौल में बसपा  सुप्रीमो गठबंधन की राजनीति के लिए मोल-भाव करने की ताकत नहीं जुटा पा रही हैं क्योंकि 2022 में उनकी पार्टी का प्रदर्शन बहुत ही खराब रहा है। दरअसल, मायावती अपनी लाइन तय करने वाली नेता हैं लेकिन, इस समय वह समाजवादी पार्टी के रहते न तो इंडिया गठबंधन में उतनी प्रभावी भूमिका निभा पाएंगी और न ही एनडीए में जाकर वह अपनी पार्टी की राजनीतिक हैसियत के अनुसार सीटों की मांग रख सकती हैं हालांकि अभी भी कांग्रेस और आरएलडी के साथ बसपा  के तालमेल की चर्चाएं खत्म नहीं हुई हैं।

दरअसल मायावती दूसरे दलों के नेता की तरह नहीं है कि वो गठबंधन में शामिल होकर सिर्फ सीट लेकर चुनाव लड़ जाएं। मायावती किसी भी गठबंधन का हिस्सा तभी बनेंगी, जब उन्हें अहम रोल में रखा जाए। विपक्षी गठबंधन इंडिया  का समाजवादी पार्टी हिस्सा है। उत्तरप्रदेश  में विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व अखिलेश यादव के हाथों में है। ऐसे में मायावती कैसे विपक्षी गठबंधन का हिस्सा बन सकती हैं?

बसपा के साथ उत्तरप्रदेश  में कांग्रेस से लेकर आरएलडी तक की गठबंधन की चर्चा चल रही है लेकिन मायावती एक ही बात कर रही हैं कि वो किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेंगी और अकेले चुनाव लड़ेंगे हालांकि, मायावती ने पिछले दिनों एक बात जरूर कही थी कि प्री पोल के बजाय पोस्ट पोल गठबंधन कर सकती हैं।
जानकार लोगों का मानना है कि 2023 में होने वाले राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के बाद मायावती का गठबंधन पर स्टैंड बदल सकता है। इन तीन राज्यों में अगर बसपा को कुछ सीटें मिल जाती हैं और किंगमेकर की भूमिका में आ जाती हैं तो फिर उनकी बार्गेनिंग पावर बढ़ जाएगी। ऐसी स्थिति में मायावती गठबंधन का हिस्सा बनती हैं तो फिर मजबूती के साथ अपनी बातें भी रखेंगी और उनकी भूमिका भी अहम रहेगी। माना जा रहा है कि मायावती 2023 में होने वाले चुनाव के नतीजे का इंतजार कर रही हैं।
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