सुभाष बुड़ावनवाला – विभूति फीचर्स
ओलंपिक में दो बार स्वर्ण पदक जीत चुके जेम्स क्रैकनेल न सूंघ सकते हैं और नही किसी चीज का स्वाद ले सकते हैं।
एक दिमागी चोट के कारण उनकी सूंघने और स्वाद लेने की शक्ति कमजोर हो गई है- जिंदगी कैसी हो, अगर हमारी
ये महत्वपूर्ण इंद्रियां काम करना बंद कर दें?
इसी तरह डंकन बोक 2005 में गिरने से दिमाग में लगी गंभीर चोट के कारण अपनी सूंघने की शक्ति खो बैठे थे। कहा
जाता है कि खाने का स्वाद 80 प्रतिशत तक उसकी खुशबू से होता है। ऐसे में सूंघने की शक्ति के चले जाने का डंकन के जीवन पर व्यापक असर हुआ।
डंकन कहते हैं सूंघने की शक्ति खोने के बाद व्यक्ति अपने जीवन में ही एक दर्शक बन कर रह जाता है। यह उसी तरह है जैसे आप सभी चीजों के शीशे के पीछे से देख रहे हैं। ऐसा महसूस होता है कि जैसे आप जीवन में पूरी तरह से रम नहीं पा रहे हैं और जिंदगी के रंग उड़ गए हैं। हम दूसरों से अलग और अकेले हो जाते हैं।‘
जेम्स क्रैकनेल को अमरीका में बाइक चलाते हुए पेट्रोल टैंकर ने टक्कर मार दी थी। रेडियो टाइम्स को दिए एक
साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि वे अब न सूंघ सकते हैं और नही स्वाद ले सकते हैं। वे अब बस जीवित रहने के लिए ही
खाते हैं। खाना उनके लिए ऐसे ही जैसे कार के लिए पेट्रोल।
बेशकीमती खुशबू स्वाद न ले पाने की बीमारी को एजोसिया (अस्वाद) कहा जाता है। यह बहुत ही असाधारण लेकिन दुर्लभ बीमारी है, हालांकि इसका असर बहुत व्यापक नहीं होता।
अधिकतर लोग जिन्हें लगता है कि वे स्वाद नहीं महसूस कर पा रहे हैं, वे असल में अपनी सूंघने की क्षमता खो चुके
होते है। इस बीमारी को अनोसमिया (गंधज्ञानाभाव) कहते हैं और इसका मनोवैज्ञानिक और शारीरिक प्रभाव भयानक
हो सकता है।
सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सेंसेज के सह-निदेशक प्रोफेसर बैरी सी स्मिथ कहते है, 'अध्ययनों से पता चला है कि जो लोग सूंघने की क्षमता खो देते हैं, वह अंधे हो गए लोगों से भी ज्यादा अवसाद के शिकार हो जाते हैं और लंबे समय तक
इसमें रहते हैं।
स्थिम का कहना है, सूंघने की शक्ति को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती है। लेकिन इसे खो देना न सिर्फ खाने का मजा
छीन लेता है बल्कि कोई भी व्यक्ति या जगह भी जानी पहचानी नहीं लगती। यह स्मृति से भी बहुत ही बारीकी से जुड़ी
हुई है। जीवन से इस भावनात्मक गुण को खो देने का बहुत ही व्यापक दुष्प्रभाव होता है और इससे निपटना भी
मुश्किल होता है।‘ फ्लू के कारण सुई माउनफील्ड अपनी सूंघने की शक्ति खो बैठी थीं। वे कहती हैं कि जिन गंधों की कमी वे सबसे ज्यादा महसूस करती हैं, वो भोजन से जुड़ी हुई नहीं हैं।
वे कहती हैं,मैं अपने बच्चों, अपने घर और अपने बगीचे की खुशबू की कमी महसूस करती हूं। जब ये नहीं होती तब हमें अहसास होता है कि यह खुशबू कितनी आरामदायक और बेशकीमती थीं। ये आपको व्यवस्थित और जमीन से जुड़े होने का अहसास देती है। इन खुशबुओं के बिना मुझे लगता है कि मैं अपने जीवन को देख तो रही हूं लेकिन उसमें हिस्सा नहीं ले पा रही हूं।‘
न सूंघ पाने के खतरे
सूंघने की शक्ति खो देना दुनिया को और भी खतरनाक जगह बना देता है, स्मिथ कहते हैं, 'गंध और स्वाद उस
चौकीदार का काम करते हैं जो विषैले पदार्थों को हमारे शरीर में घुंसने से रोक देते हैं।‘ एलनकर जब आठ साल के थे
तब जिम में गिरने के कारण वह अपनी सूंघने की शक्ति खो बैठै थे। इसके कारण वह कई बार खतरे उठा चुके हैं।
गंध और स्वाद
– स्वाद ग्रंथियां जीभ के ऊपर, नीचे और बगल में और तथा मुंह में ऊपर और पीछे बनी होती हैं।
– यह ग्रंथियां भोजन के अणुओं के साथ मिलकर दिमाग को संदेश भेजती हैं।
– इन संदेशों से हमारा मस्तिष्क जो छवि बनाता है वही स्वाद होता है जिसे नमकीन, कड़वा, मीठा, तीखा या नीरस
कहा जा सकता है।
– जब मुंह के पिछले हिस्से से भोजन के अणु नाक में चले जाते हैं तब मुंह के जरिये भी हमें भोजन की गंध मिलती है।
स्मिथ बताते हैं, 'जब मैं यूनिवर्सिटी में था, तब दुर्घटनावश गैस खुली छोड़ गया। मैं पूरा दिन घर पर ही था लेकिन
मुझे पता ही नहीं चल पाया। तीन बजे के करीब जब मेरे साथ रहने वाले छात्र आए तब उन्हें गंध आई और गैस खुली
होने का पता चल सका। मैं थोड़ा असहज तो था लेकिन यह नहीं जान पा रहा था कि क्यों ऐसा हो रहा था।‘
वहीं बोक कहते हैं कि दुर्घटना के छह साल बाद उन्हें अवसाद का कारण पता चला। सूंघने की शक्ति के बारे में पढऩे के
बाद उन्हें जीवन बदल जाने जैसा अनुभव हुआ। उन्हें पता चला कि वह अवसाद में क्यों रहते हैं। अनोसमिया के
मरीजों की मदद के लिए उन्होंने अब ब्रिटेन का पहला सहायता समूह 'फिक्थ सेंस’ शुरू किया है। इस बात के कोई
अधिकारिक आंकड़े नहीं है कि ब्रिटेन में कितने लोग सूंघने की शक्ति खो देने की बीमारी से ग्रसित हैं लेकिन यूरोप
और अमरीका के आंकड़ों को एक साथ रखने पर यह कुल आबादी का करीब पांच प्रतिशत है।
नजरअंदाज करते हैं डॉक्टर सूंघने की शक्ति कई कारणों से चली जाती है। कुछ लोग जन्म से ही गंध नहीं ले पाते हैं। कईबार यह दिमाग में चोट लगने तो कई बार इंफेक्शन के कारण भी चली जाती है। बुढ़ापा भी इस बीमारी का एक कारण है। 75 वर्ष की उम्र के बाद सूंघने और स्वाद लेने की क्षमता तेजी से कम होती है।
सूंघने और स्वाद लेने में आने वाली अबूझ दिक्कतें कईबार स्लेरोसिस, पार्किंसस और अलजाइमर जैसी गंभीर
बीमारियों का भी संकेते होती हैं। यह इन बीमारियों को ज्ञात संकेतों से सालों पहले ही सामने आ जाती हैं।
स्मिथ कहते हैं, 'स्वाद और गंध लेने में आ रही दिक्कतें इसबात का संकेत होती हैं कि कहीं कुछ गलत है। लोगों को इसका परीक्षण करवाना चाहिए लेकिन वे ऐसा नहीं करते। कई बार चिकित्सा विशेषज्ञ भी ऐसी दिक्कतों को
नजरअंदाज कर देते हैं।‘
ग्रसित लोग बताते हैं कि डॉक्टर इस बीमारी को अजीब बताते हुए उन्हें यह कहकर लौटा देते हैं कि इसका कोई इलाज
ही नहीं है। माउनफील्ड कहती हैं, 'चूंकि इसमें दर्द नहीं होता है, इसलिए बहुत से डॉक्टर मरीजों को इस बीमारी के साथ जीना सीख लेने की सलाह देते हैं।‘
वहीं चिकित्सा जगत से बाहर के लोग इस बीमारी को मनोरंजक मानते हुए एक विषमता के रूप में देखते हैं।
इस बीमारी के भौतिक परिणाम भी घातक हो सकतह्य है। ग्रसित लोगों का वजन कम हो जाता है। क्योंकि उन्हें खाने
में मजा नहीं आता। बोक बताते हैं कि उनसे ऐसे लोगों ने भी संपर्क किया है जिन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा
क्योकि उनके लिए भोजन करना एक मुश्किल काम हो गया था।
अनोसमिया को ठीक किया जा सकता है या नहीं, यह इस बीमारी के होने की वजह पर निर्भर करता है। कुछ लोगों की
गंध लेने की क्षमता में सुधार होता है तो कुछ लोग जीवन भर के लिए इससे वंचित रह जाते हैं।
अगर सुधार होता है भी है तब भी चीजों का स्वाद पहले जैसा नहीं रह जाता क्योंकि दिमाग गंधों की पहचान अलग रूप
में बना लेता है। ऐसे में चॉकलेट का स्वाद मांस जैसा लग सकता है।
जर्मनी की यूनिवर्सिटी ऑफ ड्रेस्डेन के 'स्मैल एंड टेस्ट क्लीनिक’ के प्रोफेसर थॉमस हम्मल के अध्ययन से पता चला है कि 12 हफ्तों तक रोज ऑयल, नींबू और लौंग जैसी तीव्र गंधों को लेने से सूंघने की क्षमता में सुधार होता है।
बोक की स्वाद ग्रंथियां अब भी काम कर रही हैं। जो रह गया है, वे उसी से काम चला रहे हैं। वे नमकीन या मीठे में फर्क कर पाते हैं। चीजों की बनावट भी उनके लिए महत्वपूर्ण हो गई है। वे बताते हैं, 'अब मैं बनावट के जरिए ही टमाटरों में फर्क कर सकता हूं। सूघने की शक्ति खोने से पहले मैं इस बारे में सोच भी नहीं सकता था।‘ (विभूति फीचर्स)