प्राकृतिक खेती न केवल आर्थिक रूप से लाभकारी है, बल्कि यह पर्यावरण, स्वास्थ्य, और सामाजिक स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह किसानों को आत्मनिर्भर बनाती है और टिकाऊ कृषि की दिशा में एक बड़ा कदम है।
विकसित कृषि संकल्प अभियान 2025 के तहत उत्तर प्रदेश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को प्रशिक्षण और जैविक खाद (जैसे जीवामृत, बीजामृत) के उपयोग की जानकारी दी जा रही है, जिससे लागत कम हो और उत्पादकता बढ़े। यह अभियान 12,000 वैज्ञानिकों के माध्यम से किसानों तक प्राकृतिक खेती के लाभ पहुंचाने पर केंद्रित है।
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पर्यावरण संरक्षण:
मिट्टी की उर्वरता में सुधार: प्राकृतिक खेती में जैविक खाद, गोमूत्र, और कंपोस्ट का उपयोग मिट्टी के सूक्ष्मजीवों को बढ़ावा देता है, जिससे मिट्टी की सेहत दीर्घकालिक रूप से बनी रहती है।जल संरक्षण: यह विधि कम पानी की मांग करती है और मल्चिंग जैसी तकनीकों से जल संरक्षण होता है।कम प्रदूषण: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग न होने से मिट्टी, पानी और वायु प्रदूषण कम होता है।
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कम लागत:
प्राकृतिक खेती में रासायनिक आदानों की आवश्यकता नहीं होती, जिससे किसानों की लागत 50-70% तक कम हो सकती है।स्थानीय संसाधनों जैसे गोबर, गोमूत्र, और जैविक खाद का उपयोग होने से बाहरी खरीद की जरूरत नहीं पड़ती।
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बेहतर स्वास्थ्य:
रासायन-मुक्त खाद्य उत्पादन से उपभोक्ताओं को स्वस्थ और पौष्टिक भोजन मिलता है।किसानों को जहरीले रसायनों के संपर्क में आने से होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं से बचाव होता है।
उच्च गुणवत्ता और स्वाद:प्राकृतिक रूप से उगाए गए उत्पादों का स्वाद और पोषण मूल्य बेहतर होता है, जिससे बाजार में उनकी मांग बढ़ती है।
- जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन:प्राकृतिक खेती जलवायु परिवर्तन के प्रभावों जैसे सूखा, बाढ़, और तापमान में उतार-चढ़ाव के प्रति फसलों को अधिक लचीला बनाती है।कार्बन उत्सर्जन को कम करती है, जिससे जलवायु संरक्षण में योगदान मिलता है।
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जैव विविधता में वृद्धि:
मिश्रित खेती, फसल चक्र, और जैविक कीट नियंत्रण से खेतों में जैव विविधता बढ़ती है, जो पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करती है।
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किसानों की आत्मनिर्भरता:
प्राकृतिक खेती स्थानीय संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान पर आधारित होती है, जिससे किसान बाहरी कंपनियों पर निर्भरता कम करते हैं।
- दीर्घकालिक आय में वृद्धि होती है, क्योंकि लागत कम और उत्पाद की मांग अधिक होती है।
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टिकाऊ आजीविका:
प्राकृतिक खेती दीर्घकालिक मिट्टी और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देती है, जिससे भविष्य की पीढ़ियों के लिए खेती की संभावनाएं बनी रहती हैं।