-डा. वीरेन्द्र भाटी मंगल

राजस्थान सहित देशभर के सोशल मीडिया पर एक संत के डायलॉग बहुत तेजी के साथ वायरल हो रहे है-’धको देर बार काड’ ’आप कौन सी लैंग्वेज समझेंगे, ये बोलो, तंबू ने आग लगाते टेम कोनी लागे, श्रवण सेन…..ध्यान राखजे….ध्यान देना, दस सालों सूं थै काम करो, बॉस रो स्वभाव ठा कोनी कांई, उकसा रिया हो थे माने, सरीखे अनेक डायलाॅग आज लोगों की जुबां पर छाये हुए है। इन डायलाग के प्रणेता है विश्व स्तरीय गौ-चिकित्सालय नागौर के संस्थापक, गौपालक, महामण्डलेश्वर स्वामी कुशालगिरीजी महाराज।

अपने डायलाग, युवाओं में जबरदस्त क्रेज के चलते व विशिष्ट कार्यों के लिए हमेशा चर्चित रहने वाले यह संत गौ-सेवा व मानव सेवा के लिए समर्पित है। देश-भर में सोशल मीडिया पर बहुत तेजी से वायरल इस संत के बारे में हर कोई जानना चाहता है। आखिर यह संत कौन है? उनका क्या व्यक्तित्व है।

नागौर से आठ किलोमीटर दूर जोधपुर मार्ग पर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 65 पर स्थित देश का सबसे बड़ा व प्रथम विश्वस्तरीय गौ-चिकित्सालय के माध्यम से स्वामी कुशालगिरी जी महाराज पांच हजार से भी अधिक गौवंश व अन्य प्राणियों की सेवा के लिए प्राण-प्रण से जुटे हुए है। बहुत कम समय तक स्कूली शिक्षा प्राप्त संत कुशाल गिरी महाराज एक मेधावी संत व प्रवचनकार है। इनके माता-पिता द्वारा बचपन से ही गौ-सेवा एवं धार्मिक गतिविधियों के कारण इनको संतों की संगति में रखा, जिसके कारण इन्होंने रामायण, महाभारत, गीता, पुराण आदि धर्म-शास्त्रों का गहन अध्ययन कर जीवन को गौ-माता की सेवा के लिए समर्पित कर दिया।
बजरंग व्यायाम के नाम से नागौर में वर्षों तक अखाड़ा चलाते रहे जिसमें मलयुद्ध से लेकर लाठी व अन्य अस्त्र-शस्त्र चलाने तक का प्रशिक्षण स्वयं देते थे। राममंदिर कार सेवा के दौरान 6 दिसंबर 1992 में कुशाल गिरी महाराज ने अयोध्या में सबसे कम उम्र के कार सेवक बनकर शामिल होकर कीर्तिमान स्थापित किया। कुशाल गिरी जी महाराज संस्कार, संस्कृति एवं अनेक धार्मिक संगठनों से भी निरन्तर जुड़े रहे।
एक घटना के कारण स्वामी कुशालगिरी महाराज का सम्पूर्ण जीवन बदल गया। एक बार स्वामीजी को अपने कर्म क्षेत्र में गायों की तस्करी होने की सूचना मिली, जानकारी मिलते ही स्वामी जी ने अपने साथियों के साथ घटना स्थल पर पहुंचकर कटने के लिए जा रही गायों को बड़ी बहादुरी के साथ बचाया। उस दिन के बाद स्वामी जी ने संकल्प ग्रहण किया कि अब से मेरा जीवन गौ-सेवा के लिए समर्पित रहेगा। इसके बाद इन्होंने गायों को बचाने व उनके संरक्षण का अभियान प्रारम्भ कर दिया, हजारों गायों को कटने से बचाने के कारण गौ-सेवक के रूप में चर्चित व्यक्ति बन गये। इसके बाद स्वामी जी ने गौशाला के माध्यम से कमजोर, पीड़ित विशेषकर दुर्घटना में घायल गौ की सेवा करने का बीड़ा उठा लिया। स्वामी जी के इस कार्य को देखते हुए लोगों ने भरपूर सहयोग प्रदान किया।
बॉस के नाम से सुप्रसिद्ध स्वामी कुशालगिरी महाराज अपने डायलाग व दबंग छवि के कारण आम जन-मानस सहित युवाओं के बीच अपनी विशिष्ठि पहचान रखते है। पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 क्षमारामजी महाराज और श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर अरुणगिरी जी महाराज से दीक्षा प्राप्त संतश्री कुशालगिरी को 2013 में प्रयागराज में महामंडलेश्वर की उपाधि प्रदान की गई। पंच दशनाम जूना अखाड़ा के महामण्डलेश्वर पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानन्दगिरी महाराज ने महामण्डलेश्वर पदवी का पट्टाभिषेक किया। बचपन से ही कुशालसिंह सांखला (कुशालगिरी जी) धर्म, संस्कृति, अध्यात्म व गौ-सेवा को समर्पित रहे है।
आपका जन्म गुरु पूर्णिमा विक्रम संवत 2032 के पावन दिन ब्रह्म मुहूर्त में 24 जुलाई 1975 को नागौर जिले के राठौड़ी कुआं मौहल्ला में हुआ। आपकेे पिता का नाम जयनारायण सांखला (माली) तथा माता का नाम भंवरी देवी है, स्वामी जी गृहस्थ संत है, लेकिन कभी घर का मोह नहीं रहा। हमेशा अपने कर्मपथ पर बढते रहे। इनके दो पुत्र तथा दो पुत्रियां हैं .बड़ी बेटी ममता सुप्रसिद्ध कथावाचक है वहीं छोटी बेटी मोनिका अध्ययनरत है। महाराज श्री के दोनों पुत्र महेंद्र तथा मूलचंद घर के कामकाज सहित अनेक सेवा कार्यों से सक्रियता से जुटे हुए है।
कुशाल गिरी जी महाराज ने 23 फरवरी 2008 को इस विश्व स्तरीय गौ-चिकित्सालय की नींव रखी, वर्तमान में चिकित्सालय की गौशाला में 5000 से भी अधिक गायें है, जिनकी सेवा मनुष्य की भांति की जा रही है। इस चिकित्सालय में दर्जनों एम्बुलेंस है जो राजस्थान के अलावा अन्य आप-पास के राज्यों से भी बीमार तथा पीड़ित पशुओं को यहां लाकर उनका बेहतर तरीके से इलाज किया जाता है, इस विश्व स्तरीय गौ-चिकित्सालय में आधुनिक टेक्नोलॉजी के साथ ऑपरेशन थिएटर और एक्सरे रूम सहित अनेक सुविधायें मौजूद है।
इस चिकित्सालय में 400 से अधिक कर्मचारी कार्य करते है, प्रतिदिन गौशाला का खर्च करीब 6 लाख रूपये है। गाय की सेवा को समर्पित इस संत की बढती लोकप्रियता को देखते हुए इन पर समाजकंटको द्वारा विविध आरोप भी लगाये गये, लेकिन स्वामी जी ने दृढता से उनका मुकाबला किया। आरोप बाद में बिल्कुल निराधार निकले। स्वामी जी के पास अपनी कोई व्यक्तिगत सम्पत्ति नहीं हैं। सही मायने में देश के सबसे बडे़ गौ-सेवा के उपक्रम को संचालित करने वाले इस संत को उस समय गुस्सा आ जाता है, जब कोई सेवक गाय की सेवा में कोताही दिखाता है। सैकड़ों कर्मचारियों की स्वयं की प्रशासन व्यवस्था देखते है, जिससे कई बार उनको डाटने के वीडियो भी वायरल हो जाते है लेकिन सही मायने में नेकदिन, सबके प्रति स्नेहभाव रखने वाले संत कुशालगिरी जी का जीवन गौ-सेवा व प्राणी सेवा को प्रति समर्पित है।

 

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