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“अनोखा बंधन” की समस्त शूटिंग संपन्न

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ब्रह्मवादिनी फिल्म्स के बैनर तले निर्माणाधीन भोजपुरी फिल्म “अनोखा बंधन” का सात दिवसीय आखिरी शूटिंग शेड्यूल हाल ही में संपन्न हुआ। इस शूटिंग शैड्यूल के दौरान उत्तर प्रदेश के चंदौली जनपद स्थित राइस मिल, जसूरी, सकलडींहा और जसौली के विभिन्न रमणीय स्थलों पर महत्वपूर्ण दृश्यों व गीतों का फिल्मांकन किया गया। इस शूटिंग शैड्यूल के साथ ही फिल्म की समस्त शूटिंग पूरी हो गई है। इस फिल्म के निर्माता मदन चौरसिया हैं, जिन्होंने इस फिल्म की कहानी भी लिखी है। फिल्म के निर्देशक अशोक अत्री, पटकथा संवादकार ए बी मोहन व वशिष्ठ नारायण सिंह, संगीतकार मनोज भास्कर, कोरियोग्राफर संतोष सर्वदर्शी व मनोज भास्कर, सिनेमाटोग्राफर अजय रौनियार हैं। इस भोजपुरी फिल्म के मुख्य कलाकार आनंद देव मिश्रा (एडीएम पावर), तनुश्री, ग्लोरी मोहंतो, सृष्टि भंडारी, आशा चौहान, सिमरन, रमन श्रीवास्तव, यादवेंद्र यादव, संजना, देव सिंह राजपूत एवं बेबी नैना चौरसिया।
भोजपुरी फिल्म “अनोखा बंधन” के निर्माता और कहानीकार मदन चौरसिया जी बताते हैं कि, ‘इस फिल्म का नायक शराब के नशे में धुत होकर एक गरीब परिवार के युवक को अपनी कार से कुचल देता है। लिहाजा उस युवक की मौत हो जाती है। अदालत में नायक को सजा सुनाई जाती है कि, नायक 3 वर्ष तक गांव में रहकर मेहनत मजदूरी करके मृतक परिवार का भरण पोषण करे और नायक को मृतक परिवार का भरण पोषण करना पड़ता है। इस फिल्म के माध्यम से जन जागरण में जागरूकता लाने की कोशिश की गई है। इसमें बहुत ही मधुर और कर्णप्रिय 6 गाने हैं। इस फिल्म की प्रचार की जिम्मेदारी समरजीत (पी आर ओ) निभा रहे हैं।

बसंत पंचमी की पूर्व संध्या पर कवि गोष्ठी

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नागपुर। यहां के क्लार्क टाउन गोकुल हरे कृष्णा अपार्टमेंट स्थित श्रीकृष्ण धाम में वसंतपंचमी की पूर्व संध्या पर काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें नागपुर सहित मुंबई से आए कवियों ने एक से बढ़कर एक रचनाएं सुनाएं। वीर रस के साथ हास्य व्यंग्य और गीत-गजल में डूबी शाम का मजा उपस्थित लोगों ने खूब जी भरकर लिया।

कार्यक्रम का शुभारंभ सरल गीता के रचनाकार व वरिष्ठ पत्रकार अजय भट्टाचार्य ने सरल गीता के दोहों के साथ किया। इसके बाद नागपुर की युवा कवयित्री श्रद्धा पोफली ने वीररस की कविता से समा बांध दी। उन्होंने ‘हे विरहणी व्यर्थ के अलाप गाना छोड़ दे, वेदना के फिर वही संताप गाना छोड़ दे… पढ़कर उपस्थित लोगों का मन मोह लिया। इसके बाद सुप्रसिद्ध शाय़र शमशाद शाद ने ‘क्या विसात गैरों की, अपना ही गिराता है। दुश्मनी पर आए तो भाई भी गिराता है, डालियों पर देखें हैं हमने जर्द पत्ते भी, वक्त पूरा होता है वो तभी गिराता है।’ शेर के साथ खूब तालियां बटोरी। सुप्रसिद्ध ग़ज़लकार मधु गुप्ता की ‘खिलते हुए गुलाब किताबों में रख दिए, हमने सभी जवाब किताबों में रख दिए, वो आयेंगे ये कहेंगे वो कहेंगे हम, दिल के सभी हिसाब किताबों में रख दिए… इन पंक्तियों ने काव्य गोष्ठी को शिखर की ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। इसी तरह उर्दू के प्रख्यात शाय़र शमशाद शाद की शायरी ‘सेहरा की विरानी से मर जाते हैं, कुछ बेचारे पानी से मर जाते हैं। कितनी मुश्किल में जीते हैं लोग यहां, कितनी आसानी से मर जाते हैं… ने समां बांध दिया।

प्रा.मनीष वाजपेई ने एक से बढ़कर रचनाएं सुनाकर लोगों को लोटपोट कर दिया। जो लगती थी कभी चंद्रमुखी वो ज्वालामुखी सा अहसास करवा रही है, जिंदगी अनुभव के नए – नए पाठ पढ़ा रही है… खूब सराही गई।

देश की जानीमानी कवियित्री डॉ वसुन्धरा राय, कवयित्री सरिता सरोज, कवियित्री गौरी कनोजे व पत्रकार विजय यादव ने भी अपनी रचनाएं सुनाकर वाहवाही लूटी। इस मौके पर स्व. विश्वनाथ राय बहुउद्देशीय संस्था की ओर से आयोजक डॉ वसुंधरा राय ने सभी सम्मानित अतिथियों का स्मृति उपहार देकर सम्मानित कर सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।

वीर सावरकर के कारण लता दीदी ने गायकी नहीं छोड़ी

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लता मंगेशकर देश की सेवा के लिए किशोरावस्था में ही राजनीति से जुड़ना चाहती थीं और इसके लिए उन्होने गायकी तथा अभिनय दोनों को छोड़ने का निर्णय लिया था। लेकिन उनके पारिवारिक अभिभावक वीर विनायक दामोदर मंगेशकर ने लता मंगेशकर को रोक दिया और विश्व को कालांतर में अप्रतिम गायिका मिली।सावरकर  ने लता से कहा, 'आप एक ऐसे पिता की संतान हैं, जिनका शास्त्रीय संगीत में बहुत बड़ा नाम है। अगर आपको  देश की सेवा करनी है तो संगीत के जरिए भीआप ऐसा कर सकती हो।’ इसी के बाद लता मंगेशकर का मन बदल गया था।' यतींद्र मिश्रा ने लता मंगेशकर की जीवनी ' लता सुर गाथा 'में लता मंगेशकर और वीर सावरकर  को लेकर इस अत्यंत रोचक घटना का उल्लेख किया है।उन्होने फिल्मों के स्टीरियो टाइप सोच से लता दीदी के प्रभावित होने और गायिका के रूप में करियर बनाये रखने के लिए लता दीदी द्वारा अपना नाम बदलने का वर्णन किया है। 

वीर सावरकर को 'भारत रत्न " देने के विषय को लेकर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी में कई सालों से तलवारें खिंची हुई हों, उसके शुरुआती दौर में ही स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने न सिर्फ वीर सावरकर का खुल कर समर्थन किया था, बल्कि विरोध करने वालों की अज्ञानता पर सवाल उठाते हुए उनको अज्ञानी  तक कह दिया था। गत वर्ष  28 मई को सावरकर की जयंती के मौके पर लता ने ट्वीट किया था-" जो लोग सावरकर जी के विरोध में बोल रहे हैं वे नहीं जानते कि सावरकर जी कितने बड़े देशभक्त और स्वाभिमानी थे"। उस समय लता मंगेशकर के ट्वीट के बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने लता जी के समर्थन में ट्वीट किया था। 

लता मंगेशकर का एक और गुण यह था कि उन्हें रिऐलिटी शोज और फिल्में बहुत पसंद थे। हालांकि उन्होंने थिएटर जाना बंद कर दिया था लेकिन अगर उन्हें किसी की परफॉरमेंस अच्छी लगती थी तो वह उन्हें लड्डू, मिठाई और फूल भेजती थीं। वह अपने देश से बहुत प्यार करती थीं और देश को सम्मान दिलाने वाले लोगों को खुद कॉल कर उन्हें बधाई दिया करती थीं।' 

यतीन्द्र  लिखते हैं- लता मंगेशकर ने अपनी किशोरावस्था में समाज सेवा का प्रण लिया था और वह राजनीति में आना चाहती थीं और देश सेवा के प्रति उनका जुनून देखने लायक था। इसके लिए वह क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर के साथ विचार-विमर्श और परामर्श कर रहीं थी। एक समय ऐसा भी आया जब लता समाज के लिए गायन छोड़ने जा रही थीं। उस वक्त सावरकर ने उनसे मिलकर उन्हें समझाया और उन्हें उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर की याद दिलाई जो उस समय भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रसिद्धि पर थे।सावरकर ने ही लता को समझाया था कि संगीत और गायन के प्रति समर्पित होकर भी वो समाज की सेवा कर सकती हैं। इसके बाद लता मंगेशकर ने संगीत में करियर बनाने को लेकर अपनी धारणाओं को बदला। गाठ वर्ष वीर सावरकर को भारत रत्न देने के विषय में जब विवाद बढ़ा तो 28 मई को सावरकर की जयंती के मौके पर लता ने ट्वीट किया था ' जो लोग सावरकर जी के विरोध में बोल रहे हैं वे नहीं जानते कि सावरकर जी कितने बड़े देशभक्त और स्वाभिमानी थे। 
नाम बदलने का किस्‍से का जिक्र लता मंगेशकर पर किताब लिखने वाले यतींद्र मिश्रा ने लता सुर गाथा में किया है। वे किताब के चैप्‍टर आज फिर जीने की तमन्ना है में लिखते हैं- एक समय लता मंगेशकर ने ‘आनन्दघन’ के उपनाम से मराठी फिल्‍मों के लिए संगीत- निर्देशन भी किया है। यह शायद साठ के दशक के अन्त की बात है, जब मराठी फिल्‍मों के बड़े निर्माता-निर्देशक भालजी पेंढारकर शिवाजी महाराज की ऐतिहासिक कथा पर ‘मोहित्यांची मंजुला’ नाम की फिल्‍म बना रहे थे। उन्होंने अपनी पसंद के संगीत निर्देशकों से संपर्क किया। लेकिन उस समय किसी के पास समय नहीं था। भालजी पेंढारकर को जल्दी थी और वे इस फिल्‍म का प्रोडक्शन संगीत निर्देशकों के खाली होने तक रोक नहीं सकते थे।

ऐसे में उनकी पारिवारिक मित्र और बेटी सरीखी लता मंगेशकर ने यह सुझाव दिया कि अगर भालजी बाबा चाहें, तो वे संगीत बनाने में सहयोग कर सकती हैं। निर्देशक ने इसलिए मना कर दिया क्‍योंक‍ि तब तक लता का बड़ा नाम हो चुका था। उन्हें डर था कि कहीं फिल्‍म के संगीत ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया, तो लता मंगेशकर का नाम खराब होगा। एक बार फिर से लता मंगेशकर ने उन्हें सुझाव दिया कि यदि भालजी बाबा चाहें, तो वे छद्म नाम से संगीत दे सकती हैं। यह बात उनको कुछ जम सी गयी। इस तरह एक नाम तय हुआ ‘जटाशंकर’।लता जी बताती हैं कि उन्हें यह नाम पसंद नहीं आया था और मराठी के ही एक संत कवि रामदास स्वामी की कविता से निकालकर एक शब्द चुना गया ‘आनन्दघन’। इसका अर्थ उनको भा गया था- ‘आनन्द के बादल’। इस तरह लता मंगेशकर ने अपने निर्देशक को यह बताया था कि वे ‘आनन्दघन’ के नाम से संगीत देंगी, जिसके लिए उनको सहर्ष अनुमति भी मिल गई थी।

लता दी ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि बाल ठाकरे को अपने आखिरी दिनों का आभास अपने निधन से काफी पहले हो चुका था। लता ने इंटरव्यू में बताया था, 'जब मुझे पता चला कि वह बीमार हैं, तो मैं उनसे मिलने गई थी। उन्होंने फोन पर मुझसे मिलने को कहा। जब मैं मातोश्री (ठाकरे परिवार का आवास) गई उन्होंने कहा कि अरे जिंदगी भर मैं अलग-अलग शहरों में घूमता रहा हूं, लोगों से मिलता रहा, अब मुझे बिस्तर में पड़े रहना अच्छा नहीं लग रहा। मैंने उनसे कहा कि कुछ खा लीजिए। बहुत जोर दिया तो उन्होंने सूप पिया। मेरे जाने से पहले उन्होंने मुझे खूब आशीर्वाद दिया।'लता मंगेशकर ठाकरे परिवार की भी काफी निकट थीं ।लता मंगेशकर ने एक साक्षात्कार में बताया था कि 'बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे अच्छे गायक हैं और वायलिन भी बहुत अच्छा बजाते हैं। उनके पिता श्रीकांत प्रबोधनकार ठाकरे स्वयं बहुत अच्छे संगीतकार थे। मोहम्मद रफी ने श्रीकांत ठाकरे की फिल्म के लिए मराठी गाना गाया था जो काफी हिट हुआ था।' शनिवार को जब लता की हालत गंभीर हो गई तो उनसे सबसे पहले मिलने पहुंचने वालों में राज ठाकरे भी शामिल थे।

वरिष्ठ पत्रकार भारती एस प्रधान ने अपने एक लेख में लता मंगेशकर और बालासाहेब के खास रिश्ते का जिक्र किया था। वह लिखते हैं, 'वह 90 का दौर था जब बॉलीवुड की म्यूजिक इंडस्ट्री में टी-सीरीज के मालिक गुलशन कुमार और अनुराधा पौडवाल के साथ उनकी पार्टनरशिप की तूती बोलती थी। उस समय मार्केट में टी-सीरीज के कैसेट्स की भरमार थी जिनमें ओरिजनल सिंगर की आवाज को अनुराधा पौडवाल की आवाज के साथ डब करके बेचा जाता था।वर्ष 1992 में गोविंदा और जूही चावला स्टारर फिल्म 'राधा का संगम' रिलीज हुई थी। फिल्म के गानों के लिए कंपोजर अनु मलिक लता मंगेशकर की आवाज चाहते थे। यह फिल्म के हीरो की डिमांड थी जो फिल्म के प्रोड्यूसर भी थे हालांकि गुलशन कुमार ने अनुराधा पौडवाल को जगह देने के लिए फिल्म के म्यूजिक राइट्स ही खरीद लिए।जब इसकी जानकारी बाल ठाकरे को लगी तो उन्होंने गुलशन कुमार को फोन करके कहा, 'तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?' बाल ठाकरे ने कहा कि लता मंगेशकर महाराष्ट्र का गौरव हैं। उनकी आवाज को हटाकर किसी और से रिप्लेस करने की बेअदबी कैसी की जा सकती है।नतीजा यह हुआ कि 'राधा का संगम' उस दौर की उन दुर्लभ फिल्मों में शामिल है जो अनुराधा पौडवाल के डब गानों के बिना रिलीज हुई थी। फिल्म का म्यूजिक पहले लता मंगेशकर की आवाज के साथ आधिकारिक रूप से रिलीज किया गया। उसके बाद ही अनुराधा पौडवाल का वर्जन जारी हो पाया।

साल 2013 में लता मंगेशकर ने अपने दिवंगत पिता दीनानाथ मंगेशकर की याद में सुपर-स्पेशियलिटी अस्पताल बनवाया था। इस अस्पताल का उद्घाटन करने के लिए तत्कालीन गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया। कार्यक्रम के दौरान मंगेशकर ने कहा था कि मैं भगवान से प्रार्थना करती हूं कि हम नरेंद्र भाई को पीएम के रूप में देखें। ये बात सितंबर 2013 की थी। जब नरेंद्र मोदी को 2014 के आम चुनावों के लिए प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने की घोषणा की गई थी उस वक्त लता मंगेशकर को बहुत ट्रोल भी किया गया था। लता मंगेशकर ने लगभग 36 भारतीय भाषाओं में 5 हजार से ज्यादा गानों को अपनी आवाज दी थी। ऐसे में अगर उनके आखिरी रिलीज गाने की बात की जाए तो यह 'सौगंध मुझे इस मिट्टी की' था जिसे मयूरेश पई ने कंपोज किया था। यह गाना 30 मार्च 2019 को रिलीज किया गया था। यह गाना राष्ट्र और भारतीय सेना के सम्मान के लिए प्रस्तुत किया गया था।लता मंगेशकर के कई गाने ऐसे भी थे जो कभी रिलीज ही नहीं हुए। ऐसा ही एक गाना म्यूजिक कंपोजर, डायरेक्टर और प्रड्यूसर विशाल भारद्वाज ने लता मंगेशकर के जन्मदिन के मौके पर सितंबर 2021 में सोशल मीडिया पर शेयर किया था। 'ठीक नहीं लगता' टाइटल वाले इस गाने को 90 के दशक में रिकॉर्ड किया गया था। इस गाने को गीतकार गुलजार ने लिखा था।

राजेश झा
विश्व संवाद केंद्र
मुंबई

लता मंगेशकर पर विशेष | लता : भूतो न भविष्यति

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(विश्व संवाद केंद्र) भारतरत्न सुश्री लता मंगेशकर देश की सबसे लोकप्रिय एवं आदरणीय गायिका हैं। प्रारंभिक काल में उन्होने कुछ मराठी और हिंदी फिल्मों में अभिनय तथा फिल्मोद्योग में पैर सुदृढ़ता से जम जाने पर कुछ मराठी फिल्मों व हिंदी फिल्मों का निर्माण भी किया,पांच फिल्मों का संगीतनिर्देशन भी किया, जनस्वास्थ्य के क्षेत्र में अत्याधुनिक अस्पताल भी उन्होने बनवाये लेकिन उनकी पहचान “भारतीय सिनेमा में एक पार्श्वगायिका ” के रूप में ही की जाती है।उन्होने हिंदी, मराठी एवं बांग्ला सहित 36 से अधिक भाषाओं में फिल्मी तथा गैर-फिल्मी गाने गाये हैं।उनकी मनमोहिनी आवाज में ऐसा जादू है जो हर सुननेवाले को मंत्रमुग्ध कर देती है।लता की जादुई आवाज़ के भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ पूरी दुनिया में दीवाने हैं। टाईम पत्रिका ने उन्हें भारतीय पार्श्वगायन की अपरिहार्य और एकछत्र साम्राज्ञी स्वीकार किया है। उनको संगीत के क्षेत्र में अनुपम योगदान के लिए ‘पद्मभूषण’ , ‘पद्मविभूषण’ तथा ‘भारत रत्न’ ,दादा साहेब फाल्के चारों नागरिक सम्मानों से अलंकृत किया गया है।

पुरा नाम- लता दीनानाथ मंगेशकर
जन्म- 28 सितंबर, 1929
स्थान- मध्य प्रदेश, इन्दौर
पिता- दीनानाथ मंगेशकर
माता- शेवंती मंगेशकर
मृत्यु -६ फरवरी २०२२

प्रारंंभिक जीवन

लता मंगेशकर का जन्म 28 सितम्बर 1929 को भारत स्थित मध्य प्रदेश जिला के इन्दौर में हुआ था। वे पंडित दीनानाथ मंगेशकर और शेवंती की बड़ी बेटी है। लता के पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर एक मराठी संगीतकार, शास्त्रीय गायक और थिएटर एक्टर थे जबकि माँ गुजराती थी और शेवंती उनकी दूसरी पत्नी थी। उनकी पहली पत्नी का नाम नर्मदा था जिसकी मृत्यु के बाद दीनानाथ ने नर्मदा की छोटी बहन शेवंती को अपनी जीवन संगिनी बनाया।गोआ में मंगेशी के मूल निवासी होने के कारण पंडित दीनानाथ हार्डीकर ने अपना उपनाम ( सरनेम )बदलकर उन्होंने मंगेशकर कर लिया। उनकी और शेवंती की पहली संतान थीं हेमा थीं जिसे बदलकर लता कर दिया गया। यह नाम दीनानाथ को अपने नाटक ‘भावबंधन’ के एक महिला किरदार लतिका के नाम से मिला। लता के बाद मीना, आशा और हृदयनाथ का जन्म हुआ। बचपन से ही लता को घर में गीत-संगीत और कला का वातावरण मिला और वे स्वभावतः उसी की तरफ आकर्षित हुई।लता मंगेशकर ने अपना कला क्षेत्र का पहला पाठ अपने पिता से सीखा था। पाँच साल की उम्र में लता ने अपने पिता के म्यूजिकल नाटक के लिये एक्ट्रेस का काम करना शुरू किया था । स्कूल के पहले दिन से ही उन्होंने बच्चो को गाने सिखाने शुरू कर दिये थे। जब शिक्षको ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो वह बहुत गुस्सा हो गयी थी , लेकिन अपनी छोटी बहन आशा को भी स्कूल ले जाने पर जब शिक्षको ने उन्हें बैठने की अनुमति नहीं दी तो इससे लता को बहुत दुःख हुआ और उन्होने भी स्कूल जाना ही छोड़ दिया । दीनानाथ मंगेशकर की मृत्यु 1942 में हो गई तब लता मात्र 13 साल की थीं। वे अपने सभी भाई और बहनों में सबसे बड़ी थीं तो उनपर घर का आर्थिक दायित्व आ गया और उन्होने अभिनय तथा गायन दोनों के द्वारा धनार्जन प्रारम्भ कर दिया। एक मराठी फिल्म के लिए उनकी आवाज में एक गाना रिकॉर्ड किया गया , लेकिन जब फिल्म रिलीज हुई तो उसमें लता का गाया गाना नहीं था, इस बात से लता बहुत आहत हुई।दीनानाथ के अच्छे मित्र विनायक दामोदर एक फिल्म कंपनी के मालिक थे, जिन्होने दीनानाथ की मृत्यु के बाद लता जी के परिवार को बहुत सहारा दिया।

1945 में लता मंगेशकर जी मुंबई आ गई और इसके बाद उनका करियर धीरे -धीरे आकार लेने लगा।लता मंगेशकर ने संगीत की शिक्षा उस्ताद अमानत अली खान से संगीत की शिक्षा लेना शूरू कर दिया। वर्ष 1947 में विभाजन के बाद उस्ताद अमानत अली खान पाकिस्तान चले गये इसलिए वो भतीजे अमानत खा से शास्त्रीय संगीत सीखने लगीं। 1948 में विनायक की मौत के बाद गुलाम हैदर उनके संगीत गुरु बने। लता मंगेशकर ने विनायक दामोदर की दूसरी हिंदी फिल्म सुभद्रा , फिर फिल्म “बड़ी माँ” (1945) में भजन गाये। उनके गाए भजन ‘माता तेरे चरणों में’ 1946 में रिलीज हुई। वर्ष 1947 में हिंदी फिल्म ‘आप की सेवा में’ के लिए भी एक गाना गया, लेकिन सफलता लता से अब भी बहुत दूर थी । गुलाम हैदर ने लता मंगेशकर की मुलाकात शशधर मुखर्जी से कराई जो उन दिनों फिल्म “शहीद” पर काम कर रहे थे लेकिन मुखर्जी ने यह कहकर मना कर दिया कि उनकी आवाज पतली है।उस समय गायिका नूरजहाँ,शमशाद बेगम, जोह्राबाई अम्बलेवाली का दबदबा था, उनकी आवाज भारी व अलग थी, उनके सामने लता की आवाज काफी पतली और दबी हुई लगती थी।उसके बाद गुलाम हैदर ने लता जी को फिल्म ” मजबूर” में मौका दिया जिसमे उन्होंने “दिल मेरा तोडा ,मुझे कही का न छोड़ा ” गाना गाया जो उनके जीवन का पहला हिट गाना बना यही कारण है कि लता जी गुलाम हैदर साहब को ही अपना गॉडफादर मानती है। समय बदला , 1949 में लता जी ने लगातार 4 हिट फिल्मों में गाने गए और सभी गानें बहुत पसंद किये गए ‘ बरसात’, ‘दुलारी’, ‘अंदाज’ व ‘महल’ फिल्में हिट थी, इसमें से ‘महल’ फिल्म का गाना ‘आएगा आनेवाला’ सुपर हिट हुआ और लता के पैर हिंदी सिनेमा जगत जम गए ।

लता मंगेशकर ने उस समय के सभी प्रसिद्ध संगीतकारों के साथ काम किया। अनिल बिस्वास, सलिल चौधरी, शंकर जयकिशन, एस. डी. बर्मन, आर. डी. बर्मन, नौशाद, मदनमोहन, सी. रामचंद्र इत्यादि सभी संगीतकारों ने इनकी प्रतिभा का लोहा माना। लता ने ‘दो आँखें बारह हाथ’, ‘दो बीघा जमीन’,’ मदर इंडिया’, ‘मुगल ए आजम’ आदि महान फिल्मों में गाने गाये। “एक थी लड़की”, “बड़ी बहन” आदि फिल्मों की लोकप्रियता लता के गाये गीतों ने चार चाँद लगाए। इस दौरान आपके कुछ प्रसिद्ध गीत थे “ओ सजना बरखा बहार आई” (परख-1960), “आजा रे परदेसी” (मधुमती-1958), “इतना ना मुझसे तू प्यार बढा़” (छाया- 1961), “अल्ला तेरो नाम”, (हम दोनों -1961), “एहसान तेरा होगा मुझ पर”, (जंगली-1961), “ये समां” (जब जब फूल खिले-1965) इत्यादि।
बाद के वर्षों में उन्होंने संगीत के हर क्षेत्र में अपनी कला ऐसी बिखेरी जैसे कि गीत, गजल, भजन सब विधा में उनका वर्चस्व बढ़ने लगा। गीत चाहे शास्त्रीय संगीत पर आधारित हो, पाश्चात्य धुन पर हो या फिर लोकधुन की खुशबू से सराबोर हो-हर गीत को लता ने ऐसे जीवंत रूप में पेश किया कि सुनने वाला मंत्रमुग्ध हो जाय । उन्होने मन्ना डे , मुहम्मद रफी, किशोर कुमार, महेंद्र कपूर आदि के साथ-साथ दिग्गज शास्त्रीय गायकों पं भीमसेन जोशी, पं जसराज इत्यादि के साथ भी मनोहारी युगल-गीत गाए। गजल के बादशाह जगजीत सिंह के साथ एलबम “सजदा” ने लता को अद्वितीय , अतुलनीय बना दिया।

लता मंगेशकर ने 1953 में सबसे पहले मराठी फिल्म ‘वाडई‘ बनाई फिर इसी वर्ष उन्होंने संगीतकार सी. रामचंद्र के साथ मिलकर हिंदी फिल्म ‘झांझर‘ का निर्माण किया था। तत्पश्चात 1955 में हिंदी फिल्म ‘कंचन‘ बनाई। उपरोक्त तीनों औसत फिल्में थीं। 1990 में उनकी फिल्म ‘लेकिन‘ हिट होने के बाद लता जी ने पांच फिल्मों में संगीत निर्देशन दिया था। सभी फिल्में मराठी थीं और 1960 से 1969 के बीच बनी थीं। बतौर संगीत -निर्देशक उनकी पहली फिल्म राम और पाव्हना (1960) थी। अन्य फिल्में मराठा टिटुका मेलेवा (1962), साहित्यांजी मंजुला (1963), साधु मानसे (1955) व तबाड़ी मार्ग (1969) थीं।

लता मंगेशकर की शादी नहीं हो पाई। बचपन से ही परिवार का बोझ उन्हें उठाना पड़ा। इस दुनियादारी में वे इतना उलझ गईं कि शादी के बारे में उन्हें सोचने की फुर्सत ही नहीं मिली। बताया जाता है कि संगीतकार सी. रामचंद्र ने लता मंगेशकर के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा था, लेकिन लता जी ने इसे ठुकरा दिया था। हालांकि लता ने इस बारे में कभी खुल कर नहीं कहा, परंतु बताया जाता है कि सी. रामचंद्र के व्यक्तित्व से लता बहुत प्रभावित थीं और उन्हें पसंद भी करती थीं। सी. रामचंद्र ने कहा था कि लता उनसे शादी करना चाहती थीं, परंतु उन्होंने इंकार कर दिया क्योंकि वह पहले से शादीशुदा थे।

देश-भक्ति गीत :

1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिये एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी उपस्थित थे। इस समारोह में लता जी के द्वारा गाए गये गीत “ऐ मेरे वतन के लोगों” को सुन कर सब लोग भाव-विभोर हो गये थे। पं नेहरू की आँखें भी भर आईं थीं। ऐसा था आपका भावपूर्ण एवं मर्मस्पर्शी स्वर। आज भी जब देश-भक्ति के गीतों की बात चलती है तो सब से पहले इसी गीत का उदाहरण दिया जाता है। लता मंगेशकर के कौन से गीत पसंद किए गए या लोकप्रिय रहे इसकी सूची बहुत लंबी है।लता के गाये यादगार गीतों में इन फिल्मों के नाम विशेष उल्लेखनीय है – अनारकली, मुगले आजम अमर प्रेम, गाइड, आशा, प्रेमरोग, सत्यम् शिवम् सुन्दरम्।  उम्र बढ़ने के बादभी लता की आवाज पहले की तरह न केवल सुरीली है, बल्कि उसमे और भी निखार आ गया है, जैसे हिना, रामलखन, आदि ।एक समय उनके गीत ‘बरसात’, ‘नागिन’, एवं ‘पाकीजा’ जैसी फिल्मों में भी लता ने ढेर सारे गाने गाए जिनमें से अधिकांश पसंद किए गए। किसी को मदन मोहन के संगीत में लता की गायकी पसंद आई तो किसी को नौशाद के संगीत में। सब की अपनी-अपनी पसंद रही। लता  का कहना है कि मैं नहीं जानती कि उन्होंने कितने गाने गाए क्योंकि उन्होंने कोई रिकॉर्ड नहीं रखा। गिनीज बुक में भी उनका नाम शामिल किया गया था, लेकिन इसको लेकर खासा विवाद है। लगभग 6 से 7 हजार गीतों को लता ने अपनी आवाज दी है ऐसा माना जाता है।

पुरस्कार और सम्मान

लता मंगेशकर को ढेरों पुरस्कार और सम्मान मिले। जितने मिले उससे ज्यादा के लिए उन्होंने मना कर दिया। 1970 के बाद उन्होंने फिल्मफेअर को कह दिया कि वे सर्वश्रेष्ठ गायिका का पुरस्कार नहीं लेंगी और उनकी बजाय नए गायकों को यह दिया जाना चाहिए। लता को मिले प्रमुख सम्मान और पुरस्कार इस तरह से हैं।

पुरस्कार

  1. फिल्म फेयर पुरस्कार (1958, 1962, 1965, 1969, 1993 and 1994)
  2. राष्ट्रीय पुरस्कार (1972, 1975 and 1990)
  3. महाराष्ट्र सरकार पुरस्कार (1966 and 1967)
  4. 1969 – पद्म भूषण
  5. 1974 – दुनिया मे सबसे अधिक गीत गाने का गिनीज़ बुक रिकॉर्ड
  6. 1989 – दादा साहब फाल्के पुरस्कार
  7. 1993 – फिल्म फेयर पुरस्कार (1958, 1962, 1965, 1969, 1993 and 1994)
  8. 1996 – स्क्रीन का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
  9. 1997 – राजीव गान्धी पुरस्कार
  10. 1999 – एन.टी.आर. पुरस्कार
  11. 1999 – पद्म विभूषण
  12. 1999 – ज़ी सिने का का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
  13. 2000 – आई. आई. ए. एफ. का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
  14. 2001 – स्टारडस्ट का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
  15. 2001 – भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत रत्न”
  16. 2001 – नूरजहाँ पुरस्कार
  17. 2001 – महाराष्ट्र भूषण 1. फिल्म फेर पुरस्कार (1958, 1962, 1965, 1969, 1993 and 1994)

1972 – महिला पार्श्व गायिका राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (फिल्म-परी)
1974 – महिला पार्श्व गायिका राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (फिल्म-कोरा कागज)
1990 – महिला पार्श्व गायिका राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (फिल्म-लेकिन)
1959 – फिल्मफयर अवार्ड्स ‘आजा रे परदेसी’ (फिल्म-मधुमती)
1963 – फिल्मफयर अवार्ड्स ‘काहे दीप जले कही दिल (फिल्म-बीस साल बाद)
1966 – फिल्मफयर अवार्ड्स ‘तुम मेरे मंदिर तुम मेरी पूजा’ (फिल्म-खानदान)
1970 – फिल्मफयर अवार्ड्स ‘आप मुझसे अच्छे लगने लगे’ (फिल्म-जीने की राह से)

1994 – विशेष पुरस्कार ‘दीदी तेरा देवर दीवाना’ (फिल्म-हम आपके हैं कौन)
2004 – फिल्मफेयर स्पेशल अवार्ड 50 साल पूरे करने पर
इसके साथ ही भारत में अनेक राज्यों द्वारा पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त किया।