Home Religion वीर सावरकर के कारण लता दीदी ने गायकी नहीं छोड़ी

वीर सावरकर के कारण लता दीदी ने गायकी नहीं छोड़ी

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लता मंगेशकर देश की सेवा के लिए किशोरावस्था में ही राजनीति से जुड़ना चाहती थीं और इसके लिए उन्होने गायकी तथा अभिनय दोनों को छोड़ने का निर्णय लिया था। लेकिन उनके पारिवारिक अभिभावक वीर विनायक दामोदर मंगेशकर ने लता मंगेशकर को रोक दिया और विश्व को कालांतर में अप्रतिम गायिका मिली।सावरकर  ने लता से कहा, 'आप एक ऐसे पिता की संतान हैं, जिनका शास्त्रीय संगीत में बहुत बड़ा नाम है। अगर आपको  देश की सेवा करनी है तो संगीत के जरिए भीआप ऐसा कर सकती हो।’ इसी के बाद लता मंगेशकर का मन बदल गया था।' यतींद्र मिश्रा ने लता मंगेशकर की जीवनी ' लता सुर गाथा 'में लता मंगेशकर और वीर सावरकर  को लेकर इस अत्यंत रोचक घटना का उल्लेख किया है।उन्होने फिल्मों के स्टीरियो टाइप सोच से लता दीदी के प्रभावित होने और गायिका के रूप में करियर बनाये रखने के लिए लता दीदी द्वारा अपना नाम बदलने का वर्णन किया है। 

वीर सावरकर को 'भारत रत्न " देने के विषय को लेकर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी में कई सालों से तलवारें खिंची हुई हों, उसके शुरुआती दौर में ही स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने न सिर्फ वीर सावरकर का खुल कर समर्थन किया था, बल्कि विरोध करने वालों की अज्ञानता पर सवाल उठाते हुए उनको अज्ञानी  तक कह दिया था। गत वर्ष  28 मई को सावरकर की जयंती के मौके पर लता ने ट्वीट किया था-" जो लोग सावरकर जी के विरोध में बोल रहे हैं वे नहीं जानते कि सावरकर जी कितने बड़े देशभक्त और स्वाभिमानी थे"। उस समय लता मंगेशकर के ट्वीट के बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने लता जी के समर्थन में ट्वीट किया था। 

लता मंगेशकर का एक और गुण यह था कि उन्हें रिऐलिटी शोज और फिल्में बहुत पसंद थे। हालांकि उन्होंने थिएटर जाना बंद कर दिया था लेकिन अगर उन्हें किसी की परफॉरमेंस अच्छी लगती थी तो वह उन्हें लड्डू, मिठाई और फूल भेजती थीं। वह अपने देश से बहुत प्यार करती थीं और देश को सम्मान दिलाने वाले लोगों को खुद कॉल कर उन्हें बधाई दिया करती थीं।' 

यतीन्द्र  लिखते हैं- लता मंगेशकर ने अपनी किशोरावस्था में समाज सेवा का प्रण लिया था और वह राजनीति में आना चाहती थीं और देश सेवा के प्रति उनका जुनून देखने लायक था। इसके लिए वह क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर के साथ विचार-विमर्श और परामर्श कर रहीं थी। एक समय ऐसा भी आया जब लता समाज के लिए गायन छोड़ने जा रही थीं। उस वक्त सावरकर ने उनसे मिलकर उन्हें समझाया और उन्हें उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर की याद दिलाई जो उस समय भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रसिद्धि पर थे।सावरकर ने ही लता को समझाया था कि संगीत और गायन के प्रति समर्पित होकर भी वो समाज की सेवा कर सकती हैं। इसके बाद लता मंगेशकर ने संगीत में करियर बनाने को लेकर अपनी धारणाओं को बदला। गाठ वर्ष वीर सावरकर को भारत रत्न देने के विषय में जब विवाद बढ़ा तो 28 मई को सावरकर की जयंती के मौके पर लता ने ट्वीट किया था ' जो लोग सावरकर जी के विरोध में बोल रहे हैं वे नहीं जानते कि सावरकर जी कितने बड़े देशभक्त और स्वाभिमानी थे। 
नाम बदलने का किस्‍से का जिक्र लता मंगेशकर पर किताब लिखने वाले यतींद्र मिश्रा ने लता सुर गाथा में किया है। वे किताब के चैप्‍टर आज फिर जीने की तमन्ना है में लिखते हैं- एक समय लता मंगेशकर ने ‘आनन्दघन’ के उपनाम से मराठी फिल्‍मों के लिए संगीत- निर्देशन भी किया है। यह शायद साठ के दशक के अन्त की बात है, जब मराठी फिल्‍मों के बड़े निर्माता-निर्देशक भालजी पेंढारकर शिवाजी महाराज की ऐतिहासिक कथा पर ‘मोहित्यांची मंजुला’ नाम की फिल्‍म बना रहे थे। उन्होंने अपनी पसंद के संगीत निर्देशकों से संपर्क किया। लेकिन उस समय किसी के पास समय नहीं था। भालजी पेंढारकर को जल्दी थी और वे इस फिल्‍म का प्रोडक्शन संगीत निर्देशकों के खाली होने तक रोक नहीं सकते थे।

ऐसे में उनकी पारिवारिक मित्र और बेटी सरीखी लता मंगेशकर ने यह सुझाव दिया कि अगर भालजी बाबा चाहें, तो वे संगीत बनाने में सहयोग कर सकती हैं। निर्देशक ने इसलिए मना कर दिया क्‍योंक‍ि तब तक लता का बड़ा नाम हो चुका था। उन्हें डर था कि कहीं फिल्‍म के संगीत ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया, तो लता मंगेशकर का नाम खराब होगा। एक बार फिर से लता मंगेशकर ने उन्हें सुझाव दिया कि यदि भालजी बाबा चाहें, तो वे छद्म नाम से संगीत दे सकती हैं। यह बात उनको कुछ जम सी गयी। इस तरह एक नाम तय हुआ ‘जटाशंकर’।लता जी बताती हैं कि उन्हें यह नाम पसंद नहीं आया था और मराठी के ही एक संत कवि रामदास स्वामी की कविता से निकालकर एक शब्द चुना गया ‘आनन्दघन’। इसका अर्थ उनको भा गया था- ‘आनन्द के बादल’। इस तरह लता मंगेशकर ने अपने निर्देशक को यह बताया था कि वे ‘आनन्दघन’ के नाम से संगीत देंगी, जिसके लिए उनको सहर्ष अनुमति भी मिल गई थी।

लता दी ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि बाल ठाकरे को अपने आखिरी दिनों का आभास अपने निधन से काफी पहले हो चुका था। लता ने इंटरव्यू में बताया था, 'जब मुझे पता चला कि वह बीमार हैं, तो मैं उनसे मिलने गई थी। उन्होंने फोन पर मुझसे मिलने को कहा। जब मैं मातोश्री (ठाकरे परिवार का आवास) गई उन्होंने कहा कि अरे जिंदगी भर मैं अलग-अलग शहरों में घूमता रहा हूं, लोगों से मिलता रहा, अब मुझे बिस्तर में पड़े रहना अच्छा नहीं लग रहा। मैंने उनसे कहा कि कुछ खा लीजिए। बहुत जोर दिया तो उन्होंने सूप पिया। मेरे जाने से पहले उन्होंने मुझे खूब आशीर्वाद दिया।'लता मंगेशकर ठाकरे परिवार की भी काफी निकट थीं ।लता मंगेशकर ने एक साक्षात्कार में बताया था कि 'बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे अच्छे गायक हैं और वायलिन भी बहुत अच्छा बजाते हैं। उनके पिता श्रीकांत प्रबोधनकार ठाकरे स्वयं बहुत अच्छे संगीतकार थे। मोहम्मद रफी ने श्रीकांत ठाकरे की फिल्म के लिए मराठी गाना गाया था जो काफी हिट हुआ था।' शनिवार को जब लता की हालत गंभीर हो गई तो उनसे सबसे पहले मिलने पहुंचने वालों में राज ठाकरे भी शामिल थे।

वरिष्ठ पत्रकार भारती एस प्रधान ने अपने एक लेख में लता मंगेशकर और बालासाहेब के खास रिश्ते का जिक्र किया था। वह लिखते हैं, 'वह 90 का दौर था जब बॉलीवुड की म्यूजिक इंडस्ट्री में टी-सीरीज के मालिक गुलशन कुमार और अनुराधा पौडवाल के साथ उनकी पार्टनरशिप की तूती बोलती थी। उस समय मार्केट में टी-सीरीज के कैसेट्स की भरमार थी जिनमें ओरिजनल सिंगर की आवाज को अनुराधा पौडवाल की आवाज के साथ डब करके बेचा जाता था।वर्ष 1992 में गोविंदा और जूही चावला स्टारर फिल्म 'राधा का संगम' रिलीज हुई थी। फिल्म के गानों के लिए कंपोजर अनु मलिक लता मंगेशकर की आवाज चाहते थे। यह फिल्म के हीरो की डिमांड थी जो फिल्म के प्रोड्यूसर भी थे हालांकि गुलशन कुमार ने अनुराधा पौडवाल को जगह देने के लिए फिल्म के म्यूजिक राइट्स ही खरीद लिए।जब इसकी जानकारी बाल ठाकरे को लगी तो उन्होंने गुलशन कुमार को फोन करके कहा, 'तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?' बाल ठाकरे ने कहा कि लता मंगेशकर महाराष्ट्र का गौरव हैं। उनकी आवाज को हटाकर किसी और से रिप्लेस करने की बेअदबी कैसी की जा सकती है।नतीजा यह हुआ कि 'राधा का संगम' उस दौर की उन दुर्लभ फिल्मों में शामिल है जो अनुराधा पौडवाल के डब गानों के बिना रिलीज हुई थी। फिल्म का म्यूजिक पहले लता मंगेशकर की आवाज के साथ आधिकारिक रूप से रिलीज किया गया। उसके बाद ही अनुराधा पौडवाल का वर्जन जारी हो पाया।

साल 2013 में लता मंगेशकर ने अपने दिवंगत पिता दीनानाथ मंगेशकर की याद में सुपर-स्पेशियलिटी अस्पताल बनवाया था। इस अस्पताल का उद्घाटन करने के लिए तत्कालीन गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया। कार्यक्रम के दौरान मंगेशकर ने कहा था कि मैं भगवान से प्रार्थना करती हूं कि हम नरेंद्र भाई को पीएम के रूप में देखें। ये बात सितंबर 2013 की थी। जब नरेंद्र मोदी को 2014 के आम चुनावों के लिए प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने की घोषणा की गई थी उस वक्त लता मंगेशकर को बहुत ट्रोल भी किया गया था। लता मंगेशकर ने लगभग 36 भारतीय भाषाओं में 5 हजार से ज्यादा गानों को अपनी आवाज दी थी। ऐसे में अगर उनके आखिरी रिलीज गाने की बात की जाए तो यह 'सौगंध मुझे इस मिट्टी की' था जिसे मयूरेश पई ने कंपोज किया था। यह गाना 30 मार्च 2019 को रिलीज किया गया था। यह गाना राष्ट्र और भारतीय सेना के सम्मान के लिए प्रस्तुत किया गया था।लता मंगेशकर के कई गाने ऐसे भी थे जो कभी रिलीज ही नहीं हुए। ऐसा ही एक गाना म्यूजिक कंपोजर, डायरेक्टर और प्रड्यूसर विशाल भारद्वाज ने लता मंगेशकर के जन्मदिन के मौके पर सितंबर 2021 में सोशल मीडिया पर शेयर किया था। 'ठीक नहीं लगता' टाइटल वाले इस गाने को 90 के दशक में रिकॉर्ड किया गया था। इस गाने को गीतकार गुलजार ने लिखा था।

राजेश झा
विश्व संवाद केंद्र
मुंबई
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