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नारायण सेवा संस्थान द्वारा रविवार को मुंबई में 419 दिव्यांगों को मिलेगा निःशुल्क कृत्रिम हाथ-पैर

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मुंबई। दिव्यांगजनों और मानव सेवा के लिए पहचाने जाने वाले उदयपुर के नारायण सेवा संस्थान द्वारा मुंबई के दिव्यांगों के सेवार्थ रविवार 8 जून को निःशुल्क नारायण लिम्ब एवं कैलीपर्स फिटमेंट शिविर आयोजित होगा। यह शिविर निको हॉल, नायगाँव क्रॉस रोड, वडाला उद्योग भवन के पास, दादर पूर्व, मुंबई में 8 जून को प्रातः 8:00 से सायं 6:00 बजे तक चलेगा। जिसमें पूर्व चयनित दिव्यांगों को नि:शुल्क लाभ मिलेगा।
संस्थान की मुंबई शाखा के अध्यक्ष महेश अग्रवाल ने जानकारी देते हुए कहा कि संस्थान विभिन्न राज्यों के दिव्यांग बन्धुओं को उनके घर शहर के नजदीक लाभान्वित करने के लिए विगत 40 वर्षों से प्रयासरत है। इसी शृंखला में नारायण सेवा ने मुंबई में 23 मार्च को निःशुल्क नारायण लिंब मेजरमेंट कैंप का आयोजन किया था। जिसमें 500 से अधिक रोगी आए थे। इनमें से 419 जन ऐसे थे जो सड़क दुर्घटना या अन्य हादसे में हाथ-पैर खोकर दिव्यांगता का शिकार हो गए थे। उनका चयन करते हुए निःशुल्क नारायण लिम्ब के लिए कास्टिंग व मेजरमेंट लिया था।
उन्होंने बताया कि मुंबई में संस्थान एक साथ सैकड़ों दिव्यांगों को जर्मन टेक्नोलॉजी से निर्मित नारायण लिम्ब पहनाकर उन्हें नई जिंदगी देगा। यह सभी दिव्यांगताभरी जिंदगी के चलते अपने परिवार पर बोझ बन गए थे। संस्थान उन्हें आत्मनिर्भर बनाकर समाज की मुख्यधारा में ला रहा है। एक समृद्ध समाज के लिए हर नागरिक का सशक्त होना जरूरी है। दिव्यांगों के सशक्तिकरण से देश की गति प्रगति को रफ्तार मिलेगी।
प्रेस वार्ता के दौरान महेश अग्रवाल, शिविर प्रभारी हरिप्रसाद लढ्ढा, स्थानीय आश्रम प्रभारी ललित लोहार व रमेश शर्मा, रमेश मनेरिया, आनंद सिंह सोलंकी (मुंबई इनचार्ज), मुकेश सैन (भायंदर इनचार्ज), महेंद्र जाटव ने शिविर का पोस्टर भी जारी किया।
पत्रकारों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देते हुए अग्रवाल ने कहा कि नारायण सेवा संस्थान भारत ही नहीं अपितु विदेश में साउथ अफ्रीकी देशों केन्या, युगांडा, मेरु, तंजानिया, नेपाल में भी शिविर कर चुका है। हर माह करीब 1500 लोगों को आर्टिफिशियल हाथ-पैर लगाए जा रहे हैं। शिविर के उद्घाटन में गणमान्य और संस्थान के सहयोगियों को आमंत्रित किया गया है।
अग्रवाल ने कहा शिविर में आने वाले दिव्यांगों के लिए निःशुल्क भोजन की व्यवस्था रहेगी। इन दिव्यांगों को नारायण लिम्ब फिटमेंट के बाद चलने की सुव्यस्थित ट्रेनिंग दी जाएगी। इस हेतू संस्थान की 40 सदस्यीय टीम सेवाओं में तत्पर रहेगी।
शिविर में पूर्व लाभांवित दिव्यांग भी आयेंगे। जो नव लाभांवित दिव्यांगों को अपने अनुभव बताते हुए उनका उत्साहवर्धन करेंगे।
नारायण सेवा संस्थान 1985 से नर सेवा-नारायण सेवा की भावना से काम कर रहा है। संस्थापक कैलाश मानव को राष्ट्रपति ने मानव सेवा के लिए पद्मश्री अलंकरण से सम्मानित किया है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में 30 मई को दिल्ली में कैलाश मानव को सामुदायिक सेवा एवं सामाजिक उत्थान श्रेणी में सम्मानित किया है। संस्थान के अध्यक्ष प्रशान्त अग्रवाल दिव्यांगों के लिए मेडिकल, शिक्षा, कौशल विकास और खेल अकादमी के माध्यम से मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक दृष्टि से मजबूत कर लाखों दिव्यांगों को समाज की मुख्यधारा में ला चुके हैं। वर्ष 2023 में अग्रवाल को राष्टृपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। संस्थान अब तक 40 हजार से अधिक कृत्रिम अंग लगा चुका है। संस्थान अब मुंबई के दिव्यांगों को निःशुल्क कृत्रिम अंग प्रदान कर उनकी रुकी जिन्दगी को फिर से शुरू करने के लिए बड़े स्तर पर काम करेगा।

10 ग्राम घी से होने वाले हवन से एक टन ऑक्सीजन मिलती है

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विश्व विश्व पर्यावरण दिवस पर जोधपुर में प्रभारी मंत्री मदन दिलावर ने पत्रकार वार्ता की और पर्यावरण संरक्षण को लेकर लंबी चौड़ी बातें कही। इस दौरान उन्होंने एक ऐसी बात कह दी, जिससे हर कोई आश्चर्यचकित हो गया। मंत्री ने कहा कि देसी गाय के 10 ग्राम घी से होने वाले हवन से एक टन ऑक्सीजन मिलती है। उन्होंने कहा कि गौ माता को बचाना है तो प्लास्टिक से तौबा करना होगा। मदन दिलावर ने कहा कि ऊंचे कंधे वाली गाय ही गौ माता कहलाती है।

वहीं उन्होंने आगे कहा कि राजस्थान में 100 एमएम तक बारिश होती है। ऐसे में धरती में पानी पूरी तरीके से रिचार्ज नहीं हो पाता। जितनी आवश्यकता है उतना पानी नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में जल संरक्षण की और आवश्यकता बढ़ जाती है और लोगों को इसे समझना होगा भूजल स्तर निरंतर कम हो रहा है

मैं स्वयं किसान परिवार से हूं किसान का दर्द जानता हूं – केंद्रीय कृषि मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान

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केंद्रीय मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने किसान चौपाल में किसानों से संवाद कर सुनीं समस्याएं, सुझाए कई समाधान

देहरादून जनपद के डोईवाला ब्लॉक के पाववाला सौड़ा गांव में ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ के तहत लगी किसान चौपाल  

उत्तराखंड को हार्टिकल्चर का हब बनाएंगे : केंद्रीय कृषि मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान

उत्तराखंड की भूमि को खेती-किसानी की नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया गया। केंद्रीय कृषि मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने शुक्रवार को देहरादून के डोईवाला ब्लॉक अंतर्गत पाववाला सौड़ा गांव में आयोजित किसान चौपाल में भाग लिया। खेतों के मध्य खाट पर बैठकर उन्होंने किसानों से आत्मीय संवाद किया और जमीनी स्तर की समस्याओं को समझा। इस दौरान उन्होंने एक पेड़ माँ के नाम अभियान के तहत पौधरोपण भी किया।

इस अवसर पर उत्तराखंड सरकार के कृषि मंत्री श्री गणेश जोशी सहित कृषि विभाग के वरिष्ठ अधिकारीगण भी उपस्थित रहे। चौपाल में किसानों ने बीज, सिंचाई, विपणन, फसल बीमा योजना और कृषि उत्पादों के उचित मूल्य से जुड़ी अपनी बातें रखीं। लीची, बासमती चावल, कटहल और सब्जी उत्पादकों ने भी अपनी समस्याएं साझा कीं और समाधान हेतु सुझाव दिए।

श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार किसानों की आय को दोगुना करने और ‘विकसित भारत’ की परिकल्पना को साकार करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा, “मैं स्वयं किसान परिवार से हूं, किसान का दर्द जानता हूं। इसी कारण आज सीधे खेत में आकर खाट पर बैठा हूं, ताकि यह जान सकूं कि सरकार की योजनाओं का लाभ जमीन तक पहुंच रहा है या नहीं। किसानों से सीधा संवाद ही उनकी सशक्त भागीदारी सुनिश्चित करता है।”

केंद्रीय मंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि किसानों की बताई समस्याओं का समयबद्ध समाधान सुनिश्चित किया जाए।  केंद्रीय कृषि मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार मिलकर उत्तराखंड को हार्टिकल्चर (बागवानी) का राष्ट्रीय हब बनाएंगी। उत्तराखंड के फल, अनाज और सब्जियों की गुणवत्ता अद्वितीय है और उनमें वैश्विक स्तर पर पहचान बनाने की पूरी क्षमता है। मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा पवित्र देवभूमि में आकर मन, बुद्धि और आत्मा एक नई ऊर्जा से भर जाती है। मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में राज्य सरकार खेती के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य कर रही है। भारत सरकार उत्तराखंड सरकार के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करेगी कि यहां के किसानों को न केवल आधुनिक कृषि तकनीकों का लाभ मिले, बल्कि उनके उत्पादों के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाज़ार भी उपलब्ध हो। श्री चौहान ने यह भी कहा कि प्राकृतिक खेती, तकनीकी नवाचार और जल संरक्षण पर विशेष बल देकर खेती को भविष्य में और अधिक लाभकारी बनाया जाएगा।

गौ-आश्रय स्थलों की बदहाल व्यवस्था पर जिलाधिकारी का सख्त एक्शन

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Prayagraj – जिले के गौ-आश्रय स्थलों में निराश्रित गोवंशों के लिए आवश्यक सुविधाओं और व्यवस्थाओं को लेकर जिलाधिकारी रविन्द्र कुमार माँदड़ की अध्यक्षता में एक महत्वपूर्ण समीक्षा बैठक सर्किट हाउस सभागार में सम्पन्न हुई। बैठक में गम्भीर लापरवाही उजागर होने पर कई अधिकारियों व कर्मचारियों पर कड़ी कार्रवाई की गई।

मेजा ब्लॉक के ग्राम भटौती स्थित गौ-आश्रय स्थल में अव्यवस्थाएं मिलने पर डीएम प्रयागराज द्वारा ग्राम सचिव को निलंबित कर ग्राम प्रधान का खाता फ्रीज किया गया। साथ ही गौपालक को हटाकर नया गौपालक नियुक्त करने तथा चौकीदार की सेवा समाप्त कर दी गई है। साथ ही खंड विकास अधिकारी, उप मुख्य पशुचिकित्साधिकारी और एडीओ पंचायत को प्रतिकूल प्रविष्टि देने और एक वेतन वृद्धि रोके जाने के निर्देश दिए गए।
08 जून तक सभी व्यवस्थाएं सुनिश्चित करने का अल्टीमेटमजिलाधिकारी रविन्द्र कुमार माँदड़ ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि 08 जून तक सभी गौशालाओं में मानक के अनुसार व्यवस्थाएं सुनिश्चित कर ली जाएं। निर्धारित तिथि के बाद यदि किसी भी स्थल पर खामियां पाई गईं, तो संबंधित अधिकारियों पर सामूहिक जिम्मेदारी तय करते हुए कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने चेताया कि किसी भी प्रकार की लापरवाही या उदासीनता क्षम्य नहीं होगी।

व्यवस्थाओं की निगरानी के लिए सीसीटीवी और नोडल अधिकारी तैनातबैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि सभी स्थायी गौशालाओं में पक्की चारदीवारी, अस्थायी गौशालाओं में पिलर व जाली की बैरिकेटिंग, और गेट की अनिवार्यता सुनिश्चित की जाएगी। गौवंशों के लिए छायादार शेड, बीमार पशुओं के लिए पृथक स्थान, और गौवंशों की मृत्यु पर विधिवत अंतिम क्रिया का पालन अनिवार्य होगा।

जिलाधिकारी रविन्द्र कुमार माँदड़ ने सीसीटीवी कैमरे लगवाकर उनकी जिला स्तर से निगरानी करने के निर्देश दिए, साथ ही हर गौशाला में एक नोडल अधिकारी की साप्ताहिक तैनाती की व्यवस्था की जाएगी जो रिपोर्ट तैयार कर प्रस्तुत करेंगे।
गोवंशों के लिए चारे की व्यवस्था पर विशेष जोर 

जिलाधिकारी ने निर्देश दिए कि गौशालाओं में चुनी-चोकर, भूसा व हरे चारे की मानक अनुसार मात्रा और समय का विवरण स्थायी रूप से दीवार पर पेंट करवाया जाए। जहां भूमि उपलब्ध हो वहां हरे चारे की बुवाई, और जहां संभव न हो, वहां साइलेज की व्यवस्था की जाए। जरूरत पड़ने पर हरा चारा क्रय भी किया जाए।

गौपालकों की जवाबदेही तय, रिकॉर्ड का अभिलेखीयकरण अनिवार्य 

बैठक में स्पष्ट किया गया कि यदि कोई गौपालक लापरवाही बरतता है या अयोग्य पाया जाता है, तो उसे तत्काल हटाया जाए। गौशालाओं से जुड़े सभी विवरणों का अभिलेखीयकरण किया जाए, और प्रत्येक स्थल पर गौवंश की संख्या वास्तविकता के अनुसार दर्शाई जाए, अन्यथा गौवंश संरक्षण अधिनियम के तहत कार्यवाही की जाएगी।

बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की पहचान और सुरक्षा की योजना 

आगामी वर्षा ऋतु को देखते हुए जिलाधिकारी ने निर्देश दिए कि संभावित बाढ़ प्रभावित गौशालाओं की पहचान कर प्रमाणित सूची तैयार की जाए। किसी गौशाला में पानी भरने की स्थिति में संबंधित वीडीओ के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी।

उपस्थित रहे ये अधिकारीगण 

इस महत्वपूर्ण बैठक में मुख्य विकास अधिकारी हर्षिका सिंह, जिला विकास अधिकारी भोलानाथ कनौजिया, मुख्य पशुचिकित्साधिकारी डॉ. शिवनाथ, जिला पंचायतीराज अधिकारी रविशंकर द्विवेदी, सहित अन्य संबंधित अधिकारी उपस्थित रहे।

7 जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस पर विशेष लेख – खाद्य पदार्थों का खेत से थाली तक हो सुरक्षित सफ़र

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  • डॉ. शैलेश शुक्ला

हर साल 7 जून को मनाया जाने वाला विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस न केवल उपभोक्ताओं को सुरक्षित भोजन के प्रति जागरूक करने का अवसर है, बल्कि यह पूरी वैश्विक खाद्य प्रणाली की समीक्षा करने का भी क्षण है। आज जब विज्ञान और तकनीक का स्तर चाँद तक पहुँच गया है, तब भी करोड़ों लोग या तो दूषित भोजन के कारण बीमार पड़ रहे हैं या असुरक्षित खाद्य उत्पादों का शिकार बन रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर साल लगभग 42 लाख लोग असुरक्षित खाद्य के सेवन से मर जाते हैं, जिसमें से बच्चों की संख्या चिंताजनक रूप से अधिक है। ऐसे में यह दिवस सिर्फ सूचना देने या कार्यक्रम आयोजित करने का दिन नहीं, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए वैश्विक और स्थानीय स्तर पर ठोस नीति निर्माण का दिन बनना चाहिए। भारत जैसे विकासशील देशों में जहां जनसंख्या घनत्व अधिक है और खाद्य श्रृंखला की निगरानी सीमित है, वहाँ यह मुद्दा और भी गंभीर हो जाता है।

भोजन की गुणवत्ता केवल स्वाद और पोषण का मामला नहीं, बल्कि यह एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है।  आजकल बाजार में आसानी से उपलब्ध हो जाने वाले पैक्ड फूड, स्ट्रीट फूड और प्रोसेस्ड सामग्री में भारी मात्रा में कीटनाशकों, रसायनों, प्रिज़र्वेटिव्स और मिलावट का प्रयोग हो रहा है। फलों पर वैक्सिंग, दूध में डिटर्जेंट, मावा में सिंथेटिक पदार्थ और तेल में खतरनाक रसायनों की मिलावट आम होती जा रही है। खाद्य सुरक्षा केवल बड़ी कंपनियों की ज़िम्मेदारी नहीं हो सकती, इसके लिए स्थानीय विक्रेताओं से लेकर रेस्तरां मालिकों, होटलों और यहां तक कि आम गृहणियों तक को जागरूक करना होगा। उपभोक्ता को भी यह जानने का अधिकार है कि उसके भोजन में क्या मिलाया गया है और किस प्रक्रिया से वह उनके घर तक पहुँचा है। यह पारदर्शिता तभी संभव है जब खाद्य सुरक्षा के नियम सख्त हों और उनका पालन सुनिश्चित करने के लिए एक स्वतंत्र और जवाबदेह व्यवस्था स्थापित की जाए।

भारत में FSSAI (भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण) इस दिशा में कई सकारात्मक कदम उठा रहा है, जैसे ‘ईट राइट इंडिया’, ‘फूड लाइसेंसिंग’ और ‘स्वच्छ भारत मिशन’ से जोड़कर खाद्य मानकों को बेहतर करना।  लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि गाँवों, कस्बों और यहां तक कि बड़े शहरों में भी खाद्य निरीक्षण तंत्र बेहद कमजोर है। कई रेस्तराँ बिना लाइसेंस के कार्यरत हैं, खुलेआम अस्वास्थ्यकर खाना परोसा जा रहा है और ग्रामीण क्षेत्रों में तो खाद्य प्रयोगशालाएं ही उपलब्ध नहीं हैं। यही कारण है कि हर साल फूड पॉइज़निंग, डायरिया, हेपेटाइटिस और अन्य बीमारियों के हज़ारों मामले सामने आते हैं। यह सवाल पूछना ज़रूरी है कि जब भोजन जीवन की पहली आवश्यकता है, तो उसके सुरक्षित होने की गारंटी क्यों नहीं है? क्या यह समय नहीं है कि खाद्य सुरक्षा को भी स्वास्थ्य सेवा की तरह एक मौलिक अधिकार घोषित किया जाए?

खाद्य सुरक्षा केवल स्वच्छता और रसायन मुक्त भोजन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह खाद्य श्रृंखला के हर चरण – उत्पादन, संग्रहण, परिवहन, प्रसंस्करण, बिक्री और उपभोग – में गुणवत्ता की निगरानी से जुड़ी है।  उदाहरण के लिए, यदि कोई किसान कीटनाशक का अत्यधिक प्रयोग कर रहा है या अनाज को प्लास्टिक में खुले में रख रहा है, तो वह खाद्य असुरक्षा की शुरुआत है। उसी प्रकार, यदि गोदाम में रखे अनाज में नमी के कारण फफूंदी लग रही है या ट्रांसपोर्टेशन के दौरान खुले ट्रकों में खाद्य सामग्री धूल और धूप में प्रभावित हो रही है, तो वह स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है। इसलिए यह ज़रूरी है कि खाद्य श्रृंखला के हर स्तर पर प्रशिक्षण, लाइसेंसिंग और सतत निगरानी की व्यवस्था हो। डिजिटल ट्रैकिंग, QR कोड आधारित खाद्य ट्रेसिंग और उपभोक्ता फीडबैक जैसे तकनीकी उपायों को अनिवार्य किया जाना चाहिए।

खाद्य सुरक्षा की बात करते समय हमें स्कूलों, आंगनवाड़ियों और सामुदायिक भोजन केंद्रों को भी नहीं भूलना चाहिए। ये वे स्थान हैं जहाँ लाखों बच्चे और महिलाएं प्रतिदिन खाना खाते हैं और यदि यहां की गुणवत्ता खराब हो, तो इसके गंभीर सामाजिक परिणाम हो सकते हैं।  मिड डे मील योजना में अक्सर ख़बरें आती हैं कि बच्चों को कीड़े लगे भोजन दिए गए, या रसोईघर में स्वच्छता का अभाव है। यह महज़ लापरवाही नहीं, बल्कि अपराध है। इसके अलावा, सरकारी अस्पतालों, जेलों और वृद्धाश्रमों में दिया जाने वाला भोजन भी गुणवत्ता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। ये संस्थागत स्थान सरकार की सीधी ज़िम्मेदारी हैं और यदि यहाँ खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकती, तो फिर सार्वजनिक स्वास्थ्य की बातें खोखली लगती हैं। खाद्य निरीक्षण दलों को इन जगहों पर नियमित और औचक जांच करने का अधिकार तथा संसाधन मिलना चाहिए।

आज की वैश्विक परिस्थितियों में खाद्य सुरक्षा का संबंध केवल स्वास्थ्य से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, पर्यावरणीय स्थिरता और सामाजिक न्याय से भी जुड़ गया है।  जलवायु परिवर्तन, असंतुलित कृषि नीति, जल संकट और जैव विविधता की क्षति भी अब खाद्य गुणवत्ता को प्रभावित कर रही हैं। यदि मछलियों में पारा की मात्रा बढ़ रही है, तो वह समुद्र की गंदगी का परिणाम है। यदि सब्जियों में नाइट्रेट की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुँच रही है, तो वह ज़मीन की रासायनिक थकावट का संकेत है। इन समस्याओं से निपटने के लिए केवल खाद्य मंत्रालय नहीं, बल्कि पर्यावरण, जल संसाधन, ग्रामीण विकास और शहरी नियोजन विभागों को मिलकर काम करना होगा। बहुस्तरीय नीति और क्रॉस सेक्टोरल प्लानिंग के बिना खाद्य सुरक्षा एक सपना ही बनी रहेगी।

विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस 2025 का विषय है “Safe Food Now for a Healthy Tomorrow” –  यानी ‘आज का सुरक्षित भोजन ही कल का स्वस्थ भविष्य तय करेगा’। यह नारा अपने आप में एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है। यदि हम आज बच्चों को दूषित खाना खिलाते हैं, तो हम एक बीमार और कमजोर पीढ़ी की नींव रख रहे हैं। यदि हम आज किसानों को केवल रासायनिक खेती की ओर धकेलते हैं, तो हम कल की ज़मीन को बंजर बना रहे हैं। यह समय है जब सरकार, उद्योग, किसान, उपभोक्ता और शिक्षा जगत – सभी मिलकर खाद्य सुरक्षा को एक राष्ट्र-निर्माण की प्राथमिकता बनाएं। केवल विज्ञापन, पोस्टर और एक दिन के उत्सव से कुछ नहीं बदलेगा। बदलाव तभी आएगा जब हर थाली में आने वाले कौर के पीछे एक ईमानदार और पारदर्शी प्रक्रिया होगी।

आख़िर में, खाद्य सुरक्षा केवल ‘क्या खा रहे हैं’ का सवाल नहीं, बल्कि ‘कैसे, कहाँ और किसके माध्यम से खा रहे हैं’ – इसका भी उत्तर मांगता है।  जब तक समाज का हर व्यक्ति इस जिम्मेदारी को साझा नहीं करता, तब तक लाखों लोगों की सेहत, भविष्य और ज़िन्दगी असुरक्षित बनी रहेगी। विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस 2025 हमें यही याद दिलाने आया है कि सुरक्षित भोजन कोई विशेषाधिकार नहीं, बल्कि एक सार्वभौमिक मानवीय अधिकार है। और यह अधिकार तब तक अधूरा है जब तक उसे समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति तक

सुनिश्चित न किया जाए।

( लेखक डॉ. शैलेश शुक्ला वैश्विक स्तर पर ख्याति प्राप्त वरिष्ठ लेखक, पत्रकार, साहित्यकार, भाषाकर्मी होने के साथ-साथ ‘सृजन अमेरिका’, ‘सृजन ऑस्ट्रेलिया’, ‘सृजन मॉरीशस’, ‘सृजन मलेशिया’, ‘सृजन कतर’, ‘सृजन यूरोप’ जैसी विभिन्न अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं के वैश्विक प्रधान संपादक हैं। डॉ. शुक्ला द्वारा लिखित एवं संपादित 25 पुस्तकें प्रकाशित हैं। डॉ. शैलेश शुक्ला भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा प्रदत्त ‘राजभाषा गौरव पुरस्कार (2019-20)’  और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की हिंदी अकादमी द्वारा ‘नवोदित लेखक पुरस्कार (2004)’ सहित विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सम्मनो एवं पुरस्कारों से सम्मानित हैं। )

 

धर्म का मर्म समझना है ज़रूरी

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(डॉ. फौज़िया नसीम शाद-विभूति फीचर्स)

यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आज के समय में धर्म पर बात करना, उस पर लिखना या किसी भी प्रकार की टिप्पणी करना अत्यंत संवेदनशील विषय बन चुका है। स्थिति ऐसी हो गई है कि धर्म से संबंधित कोई भी विचार अभिव्यक्त करने से पहले बार-बार सोचना पड़ता है। यूँ कहें तो धर्म की इस अतिसंवेदनशीलता ने लोगों से उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तक छीन ली है।

पर यह भी एक वास्तविकता है कि जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारा जीवन धर्म से गहराई से जुड़ा होता है। हम जिस धर्म में जन्म लेते हैं, प्रायः उसी के साथ अपना जीवन बिताते हैं। अपनी आस्था और संस्कारों के कारण हमें अपना धर्म ही सबसे श्रेष्ठ प्रतीत होता है ठीक वैसे ही जैसे हमें अपनी माँ सबसे प्रिय लगती है। इसमें कोई बुराई नहीं। समस्या तब शुरू होती है जब हम सिर्फ इंसान नहीं रह जाते, बल्कि ‘हिंदू’, ‘मुस्लिम’, ‘सिख’, ‘ईसाई’ जैसे संकीर्ण पहचान बन जाते हैं। इससे भी दुःखद बात यह है कि जो लोग खुद को धार्मिक कहते हैं, वे अक्सर धर्म के मर्म को ही नहीं समझते।
वे यह नहीं जानते कि धर्म, जिसे वे अपनी नफ़रतों और भेदभाव का माध्यम बना रहे हैं, वास्तव में तो जोड़ने, संगठित करने और प्रेम से रहने की शिक्षा देता है। धर्म का उद्देश्य पूजा-पाठ या इबादत में लिप्त रहना भर नहीं है – बल्कि आत्मविकास और परमार्थ का मार्ग प्रशस्त करना है। ईश्वर हो या अल्लाह, वह हमारी आराधना का भूखा नहीं है। इसके लिए उसके पास फ़रिश्तों की कोई कमी नहीं।

इबादत और पूजा की सारी विधियाँ हमें अनुशासन, मानसिक शांति और स्वास्थ्य प्रदान करने के लिए हैं,
ताकि हम एक संतुलित और सहानुभूति-पूर्ण जीवन जी सकें।

धर्म की मूल भावना यह है कि हम एक अच्छे इंसान बनें। हमारे कर्म और व्यवहार ही हमारे धार्मिक होने का प्रमाण हैं। अगर हम इंसान होकर दूसरे इंसानों से घृणा करते हैं, उन्हें नीचा दिखाते हैं, तो हम केवल उन्हें नहीं, बल्कि अपने ही रचयिता का अपमान कर रहे होते हैं। वह तो हम सबको एक ही दृष्टि से देखता है फिर हम कौन होते हैं भेदभाव करने वाले ?

”धार्मिक होने से पहले अच्छा इंसान होना ज़रूरी है।”

क्योंकि जो व्यक्ति भीतर से मानवता से खाली है, वह न इंसान कहलाने योग्य है, न धार्मिक। हर धर्म चाहे वह किसी भी पंथ से जुड़ा हो – शांति, अहिंसा, दया, करुणा, सच्चाई और समता की शिक्षा देता है। घृणा, वैमनस्य, ऊँच-नीच और भेदभाव का तो किसी भी धर्म में स्थान नहीं है। तो फिर यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि हम किस ‘धर्म’ का अनुसरण कर रहे हैं?

मुझे आज तक इन विभाजनों का कोई अर्थ समझ नहीं आया। पूजा और इबादत के तरीके अलग हो सकते हैं, पर लक्ष्य एक ही होता है – ईश्वर की निकटता और आत्मा की शुद्धता। हम सभी एक ही रब, एक ही परमात्मा को मानते हैं – फिर आपस में नफ़रतें क्यों?

अगर हम सब केवल अच्छे इंसान बन जाएँ, तो मरने के बाद स्वर्ग की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं रहेगी – यह धरती ही स्वर्ग बन जाएगी। बस इतना प्रयास करें कि हम धार्मिक बनने से पहले, दिल से इंसान बनें – अपने लिए, और अपने रब के लिए। (विभूति फीचर्स)

धर्मेंद्र प्रधान ने ‘एक पेड़ मां के नाम 2.0’ पहल में जन-भागीदारी का आग्रह किया

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 केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान ने आज एक वीडियो संदेश जारी कर लोगों से आगे बढ़कर एक पेड़ मां के नाम 2.0 पहल में भाग लेने का आग्रह किया। उन्होंने नागरिकों से 5 जून 2025 को विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के ‘मिशन लाइफ’ के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने का आह्वान किया। एक पेड़ मां के नाम 2.0 पहल का लक्ष्य 5 जून से 30 सितंबर, 2025 की अवधि में 10 करोड़ पेड़ लगाना है।

 

श्री प्रधान ने अपने संदेश में कहा कि यह पहल पेड़ों की संख्याओं से कहीं बढ़कर प्रकृति के प्रति प्रेम और जिम्मेदारी की प्रतीक है। उन्होंने, खासकर छात्रों सहित सभी को अपनी मां के नाम पर एक पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित किया ताकि वे अपनी मां और प्रकृति दोनों के प्रति श्रद्धा व्यक्त कर सकें।

केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि सरकार की यह पहल प्रत्येक नागरिक को पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करने के लिए है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि 2024 में इसकी शुरुआत के बाद से यह पहल एक जन आंदोलन बन गयी है। उन्होंने याद दिलाया कि किस प्रकार पिछले साल 5 जून को प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी मां की याद में एक पेड़ लगाया था। श्री प्रधान ने बताया कि देश भर में अब तक 5.5 करोड़ से ज़्यादा पेड़ लगाए जा चुके हैं। उन्होंने सीड बॉल, बायो फेंसिंग आदि जैसी अभिनव पहल करने वाले छत्तीसगढ़, त्रिपुरा और राजस्थान के बच्चों और माताओं के प्रयासों की भी सराहना की।

श्री प्रधान ने जोर दिया कि यह पहल प्रकृति के प्रति प्रेम को हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बनाने वाले भविष्य के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है। श्री प्रधान ने यह भी बताया कि वैश्विक सतत विकास प्रयासों का मार्गदर्शन करने वाले संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार जलवायु परिवर्तन का समाधान न केवल नई तकनीकों में बल्कि बदलती जीवनशैली में भी निहित है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने के लिए, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने मिशन लाइफ की शुरुआत की थी।

केंद्रीय मंत्री ने छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों को उनकी सक्रिय भागीदारी और जिम्मेदारी तथा संवेदनशीलता के साथ बदलाव लाने के लिए बधाई दी। उन्होंने यह भी बताया कि 29 लाख से अधिक छात्रों ने अपने लगाए गए पेड़ों के लिए 50 लाख से अधिक क्यूआर कोड तैयार किए हैं। इस प्रकार भारत के लिए एक विशाल, डिजिटल और सुलभ पर्यावरण डेटाबेस बनाने में योगदान मिला है।

श्री प्रधान ने सभी से आग्रह किया कि वे अपनी मां के नाम पर एक पेड़ लगाएं, उसकी देखभाल करें, उसे बढ़ते हुए देखें और उसकी कहानी दुनिया के साथ साझा करें। उन्होंने कहा कि लगाया जाने वाला प्रत्येक पौधा प्रकृति और उसकी सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता का एक शक्तिशाली संदेश है। प्रत्येक पौधा आशा का बीज भी बोता है – जो एक हरे-भरे कल की शुरुआत का प्रतीक है।

एक पेड़ मां के नाम

विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान की शुरुआत की थी, जो पर्यावरण की जिम्मेदारी के साथ-साथ माताओं को आदर देने वाली एक अनूठी पहल है। इस अभियान की शुरुआत 5 जून 2024 को प्रधानमंत्री द्वारा नई दिल्ली के बुद्ध जयंती पार्क में पीपल का पेड़ लगाने के साथ की गयी थी। प्रधानमंत्री ने पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए सामूहिक प्रयासों के महत्व पर जोर दिया और पिछले दशक में वन क्षेत्र बढ़ाने में भारत की प्रगति के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि यह अभियान सतत विकास के लिए देश की आवश्यकता के अनुरूप की गई पहल है।

‘एक पेड़ मां के नाम’ पहल का सार प्रतीकात्मक रूप से अपनी मां के नाम पर एक पेड़ लगाना है। यह सरल कार्य दोहरे उद्देश्य को पूरा करता है: जीवन को पोषित करने और धरती के स्वास्थ्य में योगदान देने के लिए माताओं की भूमिका का सम्मान करना। पेड़ जीवन का आधार हैं और एक मां की तरह वे अगली पीढ़ी के लिए पोषण, सुरक्षा और भविष्य प्रदान करते हैं। इस पहल के माध्यम से, लोग अपनी माताओं के लिए आदर स्वरूप एक पेड़ लगाकर एक स्थायी स्मृति प्रतीक बनाने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण की तत्काल आवश्यकता को भी पूरा कर सकते हैं।

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केंद्रीय कृषि मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ‘नेशनल एग्रो-आर ई समिट 2025’ में शामिल हुए

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कृषि और नवीकरणीय ऊर्जा के तालमेल से नए मॉडल विकसित करने पर चर्चा हुई

अन्नदाता के साथ-साथ ऊर्जादाता भी बन सकते हैं हमारे किसान– श्री शिवराज सिंह

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के पदभार संभालने के बाद उत्पादन 40 प्रतिशत बढ़ा– श्री चौहान

पर्यावरण बचाने में सौर ऊर्जा मील का पत्थर साबित हो सकती है– श्री शिवराज सिंह चौहान

सीमांत किसानों के लिए इंटीग्रेटेड फार्मिंग को प्रोत्साहित करना होगा– श्री शिवराज सिंह

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान आज नई दिल्ली में नेशनल सोलर एनर्जी फेडरेशन ऑफ इंडिया (एनएसईएफआई) द्वारा आयोजित ‘राष्ट्रीय कृषि-नवीकरणीय ऊर्जा शिखर सम्मेलन 2025’ में शामिल हुए। इस अवसर पर उन्होंने फेडरेशन द्वारा तैयार कृषि और नवीकरणीय ऊर्जा पर रिपोर्ट एवं वार्षिक संदर्भ पुस्तिका का विमोचन भी किया। कृषि क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा के समावेश को लेकर देश के नीति-निर्माताओं, विशेषज्ञों और किसानों के बीच संवाद व सहयोग के लिए सम्मेलन आयोजित किया गया।

इस अवसर पर श्री शिवराज सिंह चौहान ने संबोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री जी ने मुझे कृषि व किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्रालय का दायित्व सौंपा है। जो दायित्व मुझे मिलता है मैं उसे निष्ठापूर्वक निभाने की कोशिश करता हूं। 29 मई से 15 दिवसीय ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ जारी है जिसके तहत अब-तक मैं ओडिशा, जम्मू, हरियाणा, उत्तर-प्रदेश, पटना और महाराष्ट्र का दौरा कर चुका हूं और आगे भी पूरे देश की परिक्रमा कर किसान भाई-बहनों से मिलूंगा। किसानों को समृद्ध बनाने कि लिए छह कारगर उपाय जिसमें उत्पादन बढ़ाना, उत्पादन की लागत घटाना, उत्पादन के सही दाम सुनिश्चित करना, नुकसान की स्थिति में भरपाई की व्यवस्था, विविधिकरण और उर्वरकों के संतुलन प्रयोग से आने वाले पीढ़ी के लिए भी धरती को सुरक्षित रखना हमारे मुख्य उद्देश्यों में शामिल हैं। मिट्टी की उर्वरकता को बचाए रखने के लिए जैविक खेती भी अत्यधिक जरूरी है।

श्री शिवराज सिंह ने बताया कि 2014-15 के बाद प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। उत्पादन 40 प्रतिशत बढ़ चुका है। गेहूं, चावल, मक्का, मूंगफली में उत्पादन बढ़ रहा है लेकिन अब हमें दलहन-तिलहन के उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए कदम उठाने होंगे।

श्री शिवराज सिंह ने कहा कि बिना कृषि के भारत का काम नहीं चल सकता। 50 प्रतिशत लोगों को आज भी कृषि से रोजगार मिलता है। बदलते समय के अनुसार अब इंटीग्रेटेड फार्मिंग यानी एकीकृत कृषि प्रणाली को भी अपनाना होगा, इसके माध्यम से सीमांत किसान अपनी जमीन के हर एक हिस्से का सही उपयोग कर समृद्धि के मार्ग पर तेजी से बढ़ सकते हैं।

श्री शिवराज सिंह ने कहा कि किसानों को बिजली उपलब्ध कराने के लिए सोलर पैनल बड़ा माध्यम बन सकता है। किसानों के लिए ऊर्जा सुनिश्चित करने हेतु पीएम कुसुम योजना इसी दिशा में काम कर रही है।

श्री शिवराज सिंह चौहान ने खेतों में ऊंचाई पर सोलर पैनल और उसी के नीचे खेती के मॉडल पर भी विचार रखें। उन्होंने कहा कि ऐसा कदम हमारे छोटे और मध्यम स्तर के किसानों को अन्नदाता के साथ-साथ ऊर्जादाता भी बना देगा। इस मॉडल को और अधिक विकसित करने के साथ-साथ इस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। भविष्य में अगर इसका कारगर और आधुनिकतम मॉडल संज्ञान में लाया जाता है तो निश्चित तौर पर सरकार इसे आगे बढ़ाने में मदद करेगी।

अंत में श्री चौहान ने उन्होंने कल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस को सार्थक बनाने का आह्वान किया और कहा कि पर्यावरण बचाने में सौर ऊर्जा मील का पत्थर साबित हो सकती है।

5 जून विश्व पर्यावरण दिवस विशेष दुनिया भर के लिए मुसीबत बनता प्लास्टिक और उससे होने वाला प्रदूषण

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(विवेक रंजन श्रीवास्तव-विभूति फीचर्स)

हर वर्ष 5 जून को मनाया जाने वाला विश्व पर्यावरण दिवस हमें प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का स्मरण कराता है। यह प्रश्न विचारणीय है कि पर्यावरण के प्रति हम कितने जागरूक हैं? जलवायु परिवर्तन, वायु प्रदूषण और वनों की कटाई जैसे मुद्दों पर चर्चा होती रही है। स्कूलों, मीडिया और सरकारी अभियानों ने पर्यावरण शिक्षा को बढ़ावा दिया है। कई लोग अब पेड़ लगाने, पानी बचाने और कचरा कम करने का प्रयास भी करते दिखते हैं। किन्तु प्लास्टिक प्रदूषण एक ऐसा गंभीर संकट है जहाँ हमारी जागरूकता अभी भी अपर्याप्त है ।

आंकड़े के अनुसार भारत हर दिन लगभग 26,000 टन प्लास्टिक कचरा पैदा कर रहा है, जिसका एक बड़ा हिस्सा लैंडफिल्स में या नदियों-समुद्रों में जाकर जमा हो रहा है। प्लास्टिक न सिर्फ पर्यावरण को दशकों तक प्रदूषित करता है, बल्कि यह माइक्रोप्लास्टिक के रूप में हमारी खाद्य श्रृंखला और पानी में प्रवेश कर स्वास्थ्य के लिए भी भयावह खतरा बन रहा है। जानवर इसे खाकर मर रहे हैं, नदियाँ और समुद्र डंपिंग ग्राउंड बन रहे हैं।
प्लास्टिक के खतरे के प्रति सामूहिक जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है। स्कूली पाठ्यक्रम में पर्यावरण विज्ञान और प्लास्टिक के दुष्प्रभावों को अनिवार्य रूप से शामिल करना चाहिए ।
ग्राम पंचायतों, रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन और स्थानीय संगठनों द्वारा प्लास्टिक उपयोग पर नियंत्रण के लिए नियमित बैठकें, स्ट्रीट प्ले, और प्लास्टिक मुक्त मेलों का आयोजन , प्रभावी वीडियो और डॉक्यूमेंटरी दिखाना कुछ जागरूकता फैलाने के उपाय बन सकते हैं। उन लोगों और समुदायों की कहानियाँ सार्वजनिक करना वांछित है, जिन्होंने प्लास्टिक का उपयोग कम किया है या विकल्प अपनाए हैं ।
“सिंगल-यूज प्लास्टिक मुक्त” बाजारों, दुकानों और कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए कपड़े के थैले, स्टील/काँच के बर्तन, मिट्टी के कुल्हड़, परंपरागत पत्तल-दोने आदि जैसे विकल्पों को सुलभ करने में भूमिका निभाई जा सकती है।
सख्त कानूनों (जैसे सिंगल-यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध) के कार्यान्वयन पर सामाजिक संस्थाओं को नज़र रखना और उद्योगों को रिसाइकिलिंग और वैकल्पिक पैकेजिंग में निवेश के लिए प्रोत्साहित करना होगा।
आम लोगों को यह समझाना कि गीले सूखे कचरे का अलगाव (सेग्रिगेशन) कितना ज़रूरी है। प्लास्टिक को रिसाइकिल बिन में डालने की आदत विकसित करना आवश्यक है।
प्लास्टिक प्रदूषण अब सिर्फ कूड़े की समस्या नहीं, बल्कि एक वैश्विक मुसीबत है। विश्व पर्यावरण दिवस केवल एक दिन का प्रतीक नहीं, बल्कि सतत प्रयासों का आह्वान है। जागरूकता तभी सार्थक होगी जब वह व्यवहार परिवर्तन और सामूहिक कार्रवाई में प्रयास हों। हर व्यक्ति एक कदम उठाए , प्लास्टिक की थैली में सामान लेने से मना करके, पानी की बोतल साथ लेकर चले, रिसाइकिलिंग को अपना कर हम खुद का योगदान तो दे ही सकते हैं। सामूहिक जागरूकता और प्रतिबद्धता से ही हम प्लास्टिक के बढ़ते खतरे को रोक सकते हैं और धरती को बेहतर बना सकते हैं। प्लास्टिक के प्रयोग में कमी लाना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी और भविष्य के लिए अनिवार्य कदम है। (विभूति फीचर्स)

भ्रष्टाचार पर धामी सरकार का कड़ा प्रहार

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भ्रष्टाचार पर धामी सरकार का कड़ा प्रहार
डीएम, पूर्व नगर आयुक्त, एसडीएम पर गिरी गाज
3 जून 2025,मंगलवार,देहरादून
संजय बलोदी प्रखर
मीडिया समन्वयक उत्तराखंड प्रदेश

हरिद्वार नगर निगम जमीन घोटाला प्रकरण में मुख्यमंत्री धामी के निर्देश पर दो आईएएस, एक पीसीएस सहित कुल दस अधिकारी निलंबित, दो का सेवा विस्तार समाप्त

देहरादून/3 जून ,मंगलवार , मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने नगर निगम हरिद्वार में हुए जमीन घोटाले पर सख्त रुख अपनाते हुए, दो आईएएस, एक पीसीएस अधिकारी सहित सात अधिकारियों को निलंबित करने के निर्देश दिए हैं, इस मामले में तीन अधिकारी पूर्व में निलंबित हो चुके हैं, जबकि दो की पूर्व में सेवा समाप्त की जा चुकी है। इस तरह इस प्रकरण में अब तक 10 अधिकारी निलंबित किए जा चुके हैं।
हरिद्वार नगर निगम द्यारा ग्राम सराय में कूड़े के ढेर के पास स्थित अनुपयुक्त 2.3070 हैक्टेयर भूमि को करोड़ों रुपये में खरीदने पर सवाल उठने के बाद, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस प्रकरण की जांच के आदेश दिए थे। जिसके बाद सचिव रणवीर सिंह चौहान ने मामले की प्रारंभिक जांच कर, रिपोर्ट 29 मई को ही शासन को सौंपी थी। इसी जांच रिपोर्ट के आधार पर मुख्यमंत्री ने कार्मिक विभाग को दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए थे। जिस पर कार्मिक एवं सतर्कता विभाग ने मंगलवार को सभी सात आरोपित अधिकारियों को निलंबित करने के आदेश जारी कर दिए।
मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद, कार्मिक विभाग ने मंगलवार को हरिद्वार नगर निगम के तत्कालीन प्रशासक और मौजूदा डीएम कर्मेंद्र सिंह, तत्कालीन नगर आयुक्त वरुण चौधरी, हरिद्वार के तत्कालीन एसडीएम अजयवीर सिंह, वरिष्ठ वित्त अधिकारी निकिता बिष्ट, वरिष्ठ वैयक्तिक सहायक विक्की, रजिस्ट्रार कानूनगो राजेश कुमार, हरिद्वार तहसील के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी कमलदास को निलंबित कर दिया है।

अब तक हुई कार्रवाई

कर्मेन्द्र सिंह – जिलाधिकारी और तत्कालीन प्रशासक नगर निगम हरिद्वार (निलंबित)
वरुण चौधरी – तत्कालीन नगर आयुक्त, नगर निगम हरिद्वार (निलंबित)
अजयवीर सिंह- तत्कालीन, उपजिलाधिकारी हरिद्वार (निलंबित)
निकिता बिष्ट – वरिष्ठ वित्त अधिकारी, नगर निगम हरिद्वार (निलंबित)
विक्की – वरिष्ठ वैयक्तिक सहायक (निलंबित)
राजेश कुमार – रजिस्ट्रार कानूनगो, तहसील हरिद्वार (निलंबित)
कमलदास –मुख्य प्रशासनिक अधिकारी, तहसील हरिद्वार (निलंबित)

पूर्व में हो चुकी कार्रवाई
रविंद्र कुमार दयाल- प्रभारी सहायक नगर आयुक्त (सेवा समाप्त)
आनंद सिंह मिश्रवाण- प्रभारी अधिशासी अभियंता (निलंबित)
लक्ष्मी कांत भट्ट्- कर एवं राजस्व अधीक्षक (निलंबित)
दिनेश चंद्र कांडपाल- अवर अभियंता (निलंबित)
वेदपाल- सम्पत्ति लिपिक (सेवा विस्तार समाप्त)

हमारी सरकार ने पहले ही दिन से स्पष्ट किया है कि लोकसेवा में “पद’ नहीं बल्कि ‘कर्तव्य’ और ‘जवाबदेही’ महत्वपूर्ण हैं। चाहे व्यक्ति कितना भी वरिष्ठ हो, अगर वह जनहित और नियमों की अवहेलना करेगा, तो कार्रवाई निश्चित है। हम उत्तराखंड में भ्रष्टाचार मुक्त नई कार्य संस्कृति विकसित करना चाहते हैं। सभी लोक सेवकों को इसके मानकों पर खरा उतरना होगा।
-पुष्कर सिंह धामी, (मुख्यमंत्री,उत्तराखण्ड )