विवेकानंद एजुकेशन सेल फिल्म्स की नवीनतम प्रस्तुति ‘जगतगुरु श्री रामकृष्ण’ का पोस्ट प्रोडक्शन इन दिनों मुम्बई में तेजगति से जारी है। अब बहुत जल्द ही यह फिल्म सिनेदर्शकों तक पहुँचने वाली है। झारखंड की धरती से जुड़ी इस फिल्म के निर्माता व निर्देशक क्रमशः गजानंद पाठक एवं डा. बिमल कुमार मिश्र हैं। इस आध्यात्मिक एजुकेशनल फिल्म में शामिल गानों को संगीतकार अजय मिश्रा के संगीत निर्देशन में स्वर दिया है अनूप जलोटा, सुरेश वाडेकर और महालक्ष्मी अय्यर ने। डीओपी राहुल पाठक के कलात्मक सिनेमेटोग्राफी से सजी इस फिल्म में हजारीबाग (झारखंड) के नवोदित प्रतिभाशाली कलाकार स्क्रीन पर फिल्म के सभी पात्रों को जीवंत करते नज़र आएंगे। इस फिल्म में रामकृष्ण परमहंस की जीवनी एवं शिक्षाओं को उसके वास्तविक स्वरूप में दिखाया गया है। स्वामी विवेकानन्द के गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस जगतगुरु है, उन्होंने पूरे जगत के लिए महत्वपूर्ण संदेश दिया है और दुनिया को राह दिखाने का काम किया है। उन्होंने अपने तपस्या के बल पर अध्यात्म की सबसे ऊंची अवस्था को प्राप्त किया है। मूलरूप से आध्यात्मिक गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस की जीवन गाथा को ही इस फिल्म की कथावस्तु का आधार बनाया गया है। यूँ तो हजारीबाग (झारखण्ड) की धरती फिल्मी गतिविधियों के मामले में काफी उर्वरक रही है। 70 व् 80 के दशक में सुभाष घई, ऋषिकेश मुख़र्जी, प्रदीप कुमार, अभिभट्टाचार्य, उत्तम कुमार व् तनूजा जैसी शख्सियतों का इस धरती पे आगमन हजारीबाग के इतिहास में दर्ज है।
50 व 60 के दशक को भी भुलाया नहीं जा सकता है क्योंकि आई जी हमीद और ज़रीना बेगम की दास्तान के साथ गुजरे ज़माने की चर्चित अदाकारा नरगिस की माँ जहद्दन बाई और मशहूर अभिनेत्री विजया चौधरी की कई यादें हजारीबाग शहर (झारखंड) के आग़ोश में दफ़न है। शायद यही वजह है कि यहाँ के स्थानीय प्रतिभाओं के द्वारा आम लीक से हट कर कुछ नया कर दिखाने का प्रयास किया जाता रहा है और यहाँ की फिल्मी गतिविधियों की गूंज निरंतर बॉलीवुड तक पहुँचती रही है। हजारीबाग की धरती से जुड़े कई लोग फ़िल्मविधा के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए झारखण्ड का परचम लहराने में कामयाबी हासिल कर चुके हैं। 21वीं सदी  में फ़िल्म मेकिंग प्रयोगात्मक दौर में प्रवेश कर गया है और इस दौर में फिल्म निर्माता गजानंद पाठक के द्वारा जनहित में आध्यात्मिक एजुकेशनल फिल्म ‘जगतगुरु श्री रामकृष्ण’ का निर्माण किया जाना प्रयोगात्मक सुखद संकेत है। उम्मीद की जारही है कि उनके द्वारा उठाए गए इस साहसिक कदम के बाद अन्य फिल्म निर्माताओं के सोच को एक नई दिशा मिलेगी।
प्रस्तुति : काली दास पाण्डेय
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