गोपाष्टमी का पर्व विशेष रूप से गायों के सम्मान, महत्ता और उनके अद्वितीय योगदान को समर्पित होता है। यह जानकारी देते हुए प्राचीन सूर्यकुंड मंदिर के आचार्य त्रिलोक शास्त्री महाराज ने बताया कि इस बार गोपाष्टमी का पर्व 9 नवंबर को मनाया जाएगा। यह सनातन धर्म का एक प्रमुख पर्व है।

उन्होंने बताया कि गोपाष्टमी का दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को आता है। इस दिन गायों की पूजा करके उनकी सेवा करने से समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। उन्होंने बताया कि विशेष रूप से गोपाष्टमी व्रत विधि के तहत गोमाता और उनके बछड़े की पूजा करके उन्हें विभिन्न प्रकार के पकवान खिलाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि गायों के साथ दुर्व्यवहार कदापि न करेंं। उन्होंने कहा कि गायों को भी झूठा खाद्य पदार्थ नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि गोपाष्टमी पर्व हमें गौसेवा, गौसंरक्षण और गौसंवर्धन का संदेश देता है। भारतीय संस्कृति में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। आचार्य त्रिलोक ने कहा कि गौ पूजन करने वालों को कभी भी दुख का सामना नहीं करना पड़ता। गो सेवा करने वालों व इसे घर में रखने वालों के यहां सुख-समृद्धि व बरकत रहती है।

आचार्य के अनुसार मान्यता है कि गाय में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास होता है। इसकी आराधना से जीवन में नवग्रहों के दोष दूर होते हैं, धन संकट की समस्या खत्म होती है। उन्होंने बताया कि गोपाष्टमी मथुरा, वृंदावन और ब्रज के अन्य क्षेत्रों में प्रसिद्ध त्योहार है। मान्यता है कि इसी दिन से भगवान श्रीकृष्ण और बलराम ने गौ चरण की लीला शुरू की थी। आचार्य त्रिलोक महाराज ने बताया कि 8 नवंबर को रात 11 बजकर 56 मिनट पर अष्टमी तिथि शुरू होगी और यह 9 नवंबर रात 10 बजकर 45 तक रहेगी।

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