आशीष वशिष्ठ
हमारे देश में प्राचीनकाल से ही विभिन्न प्रकार की चिकित्सा पद्धतियां प्रचलित हैं जिनमें होम्योपैथी, आयुर्वेदिक और एलोपैथी शामिल हैं। कोरोना महामारी के वैश्विक संकट में पूरी दुनिया ने भारत की प्राचीन और परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों में से एक आयुर्वेद की महत्ता को स्वीकार किया। करोड़ों देशवासियों ने घरेलु और पारंपरिक तरीकों से अपने प्राणों की रक्षा की। आयुर्वेद के प्रति न केवल देश बल्कि दुनिया में अलग ही रुझान देखने को मिल रहा है।

कुछ समय के लिए तत्काल आराम पहुंचाने वाली चिकित्सा प्रणाली एलोपैथी का अपना महत्व है। परंतु उससे होने वाले दुषप्रभाव भी किसी से छिपे नहीं हैं। वहीं आयुर्वेद व योग के माध्यम से असाध्य बीमारियों को भी बिना किसी दुष्परिणाम के आसानी से ठीक किया जा सकता है, लेकिन जन-साधारण की ऐसी मान्यता हो गई है कि जितना महंगा उपचार होता है, चिकित्सक की फीस जितनी ज्यादा होती है, उतना ही उपचार को प्रभावशाली मानते हैं। वास्तव में एलोपैथी चिकित्सा प्रणाली का आधार वैज्ञानिक तो है ही, साथ ही विज्ञापन पर ज्यादा केंद्रित है।

आयुर्वेद न केवल बीमार व्यक्ति का इलाज करता है अपितु यह स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करके उसे बीमार ही न होने दिया जाए, इस बात पर ज्यादा जोर देता है। कोरोनाकाल में आयुर्वेद को संजीवनी मिली है। लोगों ने भी इसे दिल से अपनाया है। आयुष मंत्रालय ने भी संक्रमणकाल में आयुर्वेदिक औषधियों के उपयोग पर मोहर लगाई है। वेदों में भी आयुर्वेद औषधियों का वर्णन है। जब एंटीवायरल दवाएं बेअसर हुई तो लोगों का रुझान आयुर्वेद पर बढ़ा, जिसके बेहतर परिणाम मिले हैं। कई प्रदेशों ने तो आयुर्वेद से कोरोना संक्रमण को मात दी है। इसीलिए अभी लोग आयुर्वेद का भरपूर उपयोग कर रहे हैं।

भारत जैसे विशाल देश में जहां विभिन्न वनस्पति प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, यहां पर आयुर्वेद के फलने-फूलने की असीम संभावनाएं हैं। विविधताओं से भरे हमारे देश में केवल आयुर्वेद व योग के माध्यम से ही लोगों को स्वस्थ रखा जा सकता है।

जिस प्रकार प्राचीन समय में भारतीय चिकित्सा आयुर्वेद पद्धति का डंका बजता था, वो आज भी संभव है। खास बात है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस पद्धति को विश्वव्यापी आंदोलन बनाने का सुझाव दिया है। पर अफसोस इस बात का है कि परम्परागत भारतीय चिकित्सा पद्धतियां हानिरहित एवं सुरक्षित होने के बावजूद उपेक्षा के कारण दम तोड़ती नजर आ रही हैं।

आज की पीढ़ी को परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों के खजाने के बारे में जानकारी ही नहीं है। इसके बारे में जागरूकता फैलाई जाए और इन चिकित्सा पद्धतियों के चिकित्सालयों पर भी ध्यान दिया जाए। प्रत्येक जिले में परंपरागत चिकित्सा पद्धति की शिक्षा देने वास्ते कॉलेज खोले जाने चाहिए। सरकार परंपरागत चिकित्सा का व्यवस्थित पाठ्यक्रम बनाने की पहल कर, इसे लागू करे। प्रशिक्षण की भी विशेष व्यवस्था की जाए। विद्यार्थियों एवं शिक्षको को समय समय पर प्रशिक्षण दिया जाए। साथ ही मेडिक्लेम पॉलिसी में इसे कवर करते हुए इसका लाभ बीमा धारक को मिलना चाहिए।

दुनिया भर मे परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों को प्रोत्साहित करने के लिए गुजरात के जामनगर में पारंपरिक चिकित्सा के वैश्विक केन्द्र की शुरूआत की गई है। यह कदम पुरातन आयुर्वेद चिकित्सा के साथ, अन्य देशों की परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों के लिए सकारात्मक साबित होगा। इन चिकित्सा पद्धतियों को जन-जन तक पहुंचाया जाना आज के समय की मांग है। आयुष अभियान में आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी आदि पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को शामिल किया जाता है।

आयुष चिकित्सा पद्धति न केवल एलोपैथिक पद्धति से हानिकारक असर आदि के मामले में सुरक्षित है बल्कि सस्ती भी है। कोविड काल में दुनिया ने भारतीय परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों को जाना। ऐसे में सरकार को इनके संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए। जगह-जगह शिविरों का आयोजन कर भारतीय प्राचीन चिकित्सा ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया जाए। (युवराज)

आशीष वशिष्ठ

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