समाज में कड़ी मेहनत के प्रतीक के तौर पर अक्सर बैल का उदाहरण दिया जाता है. वहीं जब आक्रामकता और ताकत का उदाहरण देना होता है तो सांड़ का जिक्र किया जाता है. सांड और बैल गाय के नर बच्चे यानी बछड़े के रूप हैं. लेकिन, समाज में दोनों की भूमिका अलग-अलग है. वैसे तो ग्रामीण पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाले हममें से अधिकतर लोग को सांड और बैल के बीच अंतर के बारे में जानकारी होगी, लेकिन ऐसा काफी हद तक संभव है कि शहरी युवा पीढ़ी इस बारे में नहीं जानती होगी. आज हम आपको इसी बारे में बताते हैं. आखिर एक ही गाय के नर संतान यानी बछड़े कैसे सांड और बैल दो अलग-अलग भूमिकाओं में आ जाते हैं.
दरअसल, यह एक रोचक सवाल है. इंसान शुरू से ही अपने स्वार्थ के लिए पशुओं का इस्तेमाल करता रहा है. वह दूध के लिए गाय और कृषि कार्यों के लिए उसके बछड़े को बैल के रूप में इस्तेमाल करता है. इंसान अपनी बुद्धि के दम पर सृष्टि से बेहद खतरनाक और ताकतवर जानवरों को भी अपनी काबू में कर लेता है. यही इंसान सैकड़ों लोगों के बराबर ताकत रखने वाले जीव हाथी की सवारी करता है. यानी इंसान अपने दिमाग से ताकतवर जीवों पर काबू पाता है. यही कहानी सांड और बैल के पीछे है. गाय के नर बच्चे बछड़े ही बाद में बैल और सांड़ दो रूपों में अपनी भूमिका निभाते हैं. बैल का इस्तेमाल आमतौर पर खेती के कार्यों के लिए किया जाता है. किसान खेत जोतने के लिए बैल पालते थे.
इस तरह बनाए जाते हैं बैल
दरअसल, इंसान अपने स्वार्थ के लिए बछड़े को बैल बना देता है. सृ्ष्टि ने इस दुनिया में हर जीव के दो रूप नर और मादा बनाए है. ऐसे में गाय का नर बच्चा या बछड़ा जब बड़ा होता है तो वह पशुपालक के लिए किसी काम का नहीं रह जाता. पहले से जमाने में किसान इन बछड़ों को खेत जोतने के लिए हल में इस्तेमाल करते थे. लेकिन, समस्या यह होती थी कि इंसान को इन बछड़ों को काबू करने में मुश्किल आती थी. फिर उन्होंने एक तरकीब निकाली. इंसानों ने बछड़ों की जवानी को कुचलने का फैसला किया. इससे बछड़े की आक्रमकता खत्म हो जाती है. इसको बधियाकरण कहा जाता है.
इस प्रक्रिया के दौरान ढाई-तीन साल के बछड़े के अंडकोष को दबाकर उसे खत्म कर दिया जाता है. आधुनिक युग में यह काम मशीनों के द्वारा किया जाता है जबकि पहले के दौर में इसे बाकायदा कुचला जाता था. इस प्रक्रिया में बछड़े को बेइंतहा दर्द होती थी. कई बार तो इस दौरान बछड़े की मौत हो जाती थी. अंडकोष कुचल दिए जाने या खत्म कर दिए जाने के बाद बछड़ा किसी गाय के साथ संभाग नहीं कर पाता है. बधियाकरण की इस प्रक्रिया को आधुनिक युग में बर्डिजो कास्टरेटर यंत्र से अंजाम दिया जाता है. इसमें अंडकोष की कोशिकाएं पूरी तरह नष्ट हो जाती हैं. इस तरह बछड़े को पूरी तरह नपुंसकर बना दिया जाता है.
दूसरी तरह सांड होते हैं. वे ऐसे बछड़े होते हैं जिनका बधियाकरण नहीं किया जाता है. बधियाकरण नहीं होने के कारण बछड़ा जब बड़ा होता है तो वह ताकत से भरपूर होता है. उसमें आक्रमकता होती है. इसी कारण आक्रमकता और पावर के प्रतीक के रूप में सांड का उदाहरण दिया जाता है. बधियाकरण के वक्त ही बछड़े के नाक को छेदकर नकेल डाल दी जाती है. इस तरह वह किसान का गुलाम बन जाता है. वहीं सांड़ छुट्टा घूमता है. वह आजादी की प्रतीक है.
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