वास्तु और ज्योतिष में भी है गाय का ऊंचा स्थान, जानें गौ पूजन की महिमा और अचूक उपाय

प्राचीन काल से ही भारत में गोधन को मुख्य धन मानते आए हैं और हर प्रकार से गौरक्षा, गौसेवा एवं गौपालन पर ज़ोर दिया जाता रहा है। हमारे हिन्दू शास्त्रों, वेदों में गौरक्षा, गौ महिमा, गौ पालन आदि के प्रसंग भी अधिकाधिक मिलते हैं। रामायण, महाभारत, भगवद् गीता में भी गाय का किसी न किसी रूप में उल्लेख मिलता है। गाय, भगवान श्री कृष्ण को अतिप्रिय है। गौ पृथ्वी का प्रतीक है। गौमाता में सभी देवी-देवता विद्यमान रहते हैं। सभी वेद भी गौमाता में प्रतिष्ठित हैं।
शुभता और सेहत का वरदान हैं गाय से जुड़ी ये चीजें

गाय से प्राप्त सभी घटकों में जैसे दूध, घी, गोबर अथवा गौमूत्र में सभी देवताओं के तत्व संग्रहित रहते हैं। आपने देखा होगा कि किसी भी धार्मिक कार्य में गाय के गोबर से स्थान को पवित्र किया जाता है एवं गाय के गोबर से बने उपलों से हवनकुंड की अग्नि जलाई जाती है। आज भी गांवों में महिलाएं सुबह उठकर गाय के गोबर से घर के मुख्य द्वार को लीपती हैं। माना जाता है कि इसमें लक्ष्मी का निवास होता है। प्राचीन काल में मिट्टी और गाय का गोबर शरीर पर मलकर साधु-संत भी स्नान किया करते थे।

गौमूत्र में गंगा जी का वास बताया गया है, तभी तो आयुर्वेद में चिकित्सा के लिए गौमूत्र पीने की सलाह दी जाती है। सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु के साथ-साथ वरुण, वायु आदि देवताओं को यज्ञ में दी हुई प्रत्येक आहुति गाय के घी से देने की परंपरा है। जिससे सूर्य की किरणों को विशेष ऊर्जा मिलती है। यही विशेष ऊर्जा वर्षा का कारण बनती है और वर्षा से ही अन्न, पेड़-पौधों आदि को जीवन प्राप्त होता है। वैतरणी पार करने के लिए गौ दान की प्रथा आज भी हमारे देश में मौजूद है। श्राद्ध कर्म में भी गाय के दूध की खीर का प्रयोग किया जाता है क्योंकि इसी खीर से पितरों को तृप्ति मिलती है। पितर, देवता, मनुष्य सभी को शारीरिक बल गाय के दूध और घी से ही मिलता है।

गौमूत्र में गंगा जी का वास बताया गया है, तभी तो आयुर्वेद में चिकित्सा के लिए गौमूत्र पीने की सलाह दी जाती है। सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु के साथ-साथ वरुण, वायु आदि देवताओं को यज्ञ में दी हुई प्रत्येक आहुति गाय के घी से देने की परंपरा है। जिससे सूर्य की किरणों को विशेष ऊर्जा मिलती है। यही विशेष ऊर्जा वर्षा का कारण बनती है और वर्षा से ही अन्न, पेड़-पौधों आदि को जीवन प्राप्त होता है। वैतरणी पार करने के लिए गौ दान की प्रथा आज भी हमारे देश में मौजूद है। श्राद्ध कर्म में भी गाय के दूध की खीर का प्रयोग किया जाता है क्योंकि इसी खीर से पितरों को तृप्ति मिलती है। पितर, देवता, मनुष्य सभी को शारीरिक बल गाय के दूध और घी से ही मिलता है।

— प्रसिद्ध वास्तु ग्रन्थ समरांगण सूत्र के अनुसार, भवन निर्माण का शुभारंभ करने से पूर्व उस भूमि पर ऐसी गाय को लेकर बांधना चाहिए, जो सवत्सा यानि कि बछड़े वाली हो। नवजात बछड़े को गाय जब गाय दुलारकर चाटती है, तो उसका फैन भूमि पर गिरकर उसे पवित्र बनाता है और वहां के समस्त दोषों का निवारण स्वतः ही हो जाता है।

— महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि गाय जहां बैठकर निर्भयतापूर्वक सांस लेती है। वह उस स्थान के सारे पापों को मिटा देती है।

— अत्रि संहिता ने तो यह भी कहा है कि जिस घर में सवत्सा धेनु नहीं हो, उसका मंगल-मांगल्य कैसे होगा? गाय का घर में पालन करना बहुत लाभकारी है। जिन घरों में गाय की सेवा होती है, ऐसे घरों में सर्व बाधाओं और विघ्नों का निवारण हो जाता है। विष्णु पुराण के अनुसार जब श्री कृष्ण पूतना के दुग्धपान से डर गए तो नन्द दम्पति ने गाय की पूंछ घुमाकर उनकी नज़र उतारी और भय का निवारण किया।

— कूर्म पुराण में कहा गया है कि कभी गाय को लांघकर नहीं जाना चाहिए। किसी भी साक्षात्कार, उच्च अधिकारी से भेंट आदि के लिए जाते समय गाय के रंभाने की ध्वनि कान में पड़ना शुभ होता है।

Previous articleटीवरी ग्रामपंचायत , राजावाली , की सड़को को खड्डा मुक़्त करवाएंगे आगरी सेना के महाराष्ट्र राज्य उपाध्यक्ष कैलाश हरी पाटिल
Next articleSankalp Hariyali Gau Sewa Samiti: संकल्प हरियाली गौ सेवा समिति गौ सेवा अपार उत्साह एवं श्रद्धा से कर रहे गौ सेवा

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here