गाय, भैंस के पेट में पलने वाले अदृश्य आंतरिक परजीवी जेसै फीताकृमि, गोलकृमि,लिवर फ्लयूक इत्यादि दुधारू पशुओं का दूध उत्पादन प्रति ब्यांत 100 लीटर तक या प्रतिदिन आधा से 1.0 लीटर कम कर देते हैं । एवं समय पर दवा न देने से दूध उत्पादकता में 5 प्रतिशत तक की कमी हो जाती हैं।
यही नहीं आन्तरिक कीड़े /पशु शरीर में पल रहे कृमि मादा गो पशुओं की प्रजनन/ग्याभिन होने की क्षमता भी 14 से 17 प्रतिशत तक कम कर देते है।
देशी पशुओं के कम दूध उत्पादन तथा कम होती प्रजनन क्षमता का कारण भी नियमित अंतराल पर कृमि नाशक दवा नहीं देना ही प्रतीत होता है।

साधारणतया नवम्बर, दिसंबर, जनवरी माह में रिजका,बरसीम, सरसों जैसे हरे चारे खिलाएं जाते हैं,इनके साथ विभिन्न प्रकार के कृमि तथा एफिड,जेसिड आदि कीट चारे के साथ पशु के पेट में चले जाते हैं,इनके निदान के लिए फरवरी माह में दवा दी जानी चाहिए।

इसी प्रकार जुलाई, अगस्त माह में बरसाती पानी एवं बरसाती घांस,हरा चारा आदि खाना पीना पड़ता है जिनके साथ बरसाती कीड़े भी पशु के पेट में जाकर अपना डेरा जमा कर खून चूसना शुरू कर देते हैं। इनको समाप्त करने के लिए अक्टूबर माह में दवा दी जानी चाहिए।

मई, जून में पशु के पेट में पल रहे कृमियों का प्रजनन काल होता है इसलिए जून माह में भी दवा दी जानी चाहिए।

इस प्रकार से मवेशियों को पेट के कीड़ों से मुक्त रखने के लिए फरवरी, जून एवं अक्टूबर माह में प्रति व्यस्क पशु अन्तः कृमि नाशक दवा एलबेंडाजोल या आईवरमेक्टीन या आक्सीकलोजेनाईड 100 एम एल दवा या अपने क्षेत्र के पशु चिकित्सक की सलाह अनुसार कोई भी एक दवा दलिया, गुड में मिलाकर लड्डू बनाकर दे देते हैं तो मवेशी स्वस्थ्य तो रहेगा ही ,दूध उत्पादन में होने वाले उपरोक्त अदृश्य नुकसान से भी बच सकेगें ।
अतः समस्त गाय ,भेंस ,बछड़ों को समय-समय पर अन्तः कृमि नाशक दवा अवश्य देवें। तथा दवा देने की तिथि का ध्यान रखने के लिए उपरोक्त फ्लेक्स बनवाकर अपनी गोशाला में लगावें। ‌ पशु शरीर पर पलने वाले ब्राह्य कृमि जेसे चिंचडे, जूं एवं पिस्सू इत्यादि भी काफी नुकसान पंहुचाते है। पशुओं को इनसे भी बचाये रखना आवश्यक है। एक चिंचडा प्रति दिन 1.5 एम एल खून चूस जाता है। बाजार में प्रचलित ब्यूटोक्स दवा को एक लीटर पानी में 5.0 एम एल मिला कर या कोई अन्य दवा का पशु चिकित्सक की सलाह अनुसार पशु शरीर पर पोंछा लगाना या छिड़काव करना चाहिए। बची हुई दवा को पशु शाला में भी छिड़क देना चाहिए।

सभी पशुओं को उनकी इच्छा अनुसार सेंधा या साधारण नमक भी नियमित रूप से बिना नागा के पीने के पानी में या अलग से चारे की ठान में या प्लास्टिक के आधे कटे ड्रम में भरकर पशु के सामने रख कर उपलब्ध कराते रहें।
साधारण तया प्रति व्यस्क मवेशी 30 से 35 ग्राम नमक प्रति दिन अवश्य ही देना चाहिए। ‌‌ ‌ डॉ महेंद्र गर्ग ‌ पशु पालन वैज्ञानिक,
पूर्व सलाहकार, राष्ट्रीय कामधेनु आयोग,नई दिल्ली
सेवानिवृत्त प्रोफेसर, कृषि विश्वविद्यालय ,कोटा

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