फिल्म समीक्षा: “तुम लौट आना जिंदगी”
प्रेजेंटर: जय भोलेनाथ आर्ट्स
लेखक, निर्माता निर्देशक: प्रदीप अग्रवाल
कलाकार: आदित्य शर्मा, दीप्ति जयप्रकाश, विशाल शर्मा, गौरव बाजपेयी, अनुपमा शुक्ला, अमिता विश्वकर्मा, अजय कुमार सोलंकी
अवधि: 1 घंटा 53 मिनट
सेंसर: U/A
रेटिंग: 3 स्टार्स
सिनेमा सिर्फ एक मनोरंजन का साधन नहीं है अपितु कुछ फिल्मकार आंचलिक क्षेत्र की समस्याओं को पर्दे पर प्रस्तुत करके जनमानस को अवगत कराने का प्रयास करते हैं। वास्तविकता पर आधारित फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफलता के लिए तरस जाती है मगर एक दूरदर्शी निर्देशक अपनी विचार को दिखाकर संतुष्ट हो जाता है। मानव जीवन ईश्वर का अमूल्य वरदान है जिसमें भावनाएं जागृत रहती है। मनुष्य अपने जीवनकाल में पति पत्नी, संतान, सगे संबंधी, मित्र, पालतू पशु पक्षी का सानिध्य प्राप्त करता है। इनमें से किसी एक के भी बिछोह की पीड़ा उसके शोक का कारण बनती है।
हिंदी फिल्म तुम लौट आना जिंदगी का शीर्षक एक कविता का मुखड़ा है। पूरी फिल्म में इसके गहरे अर्थ देखने समझने को मिलते हैं। फिल्म का मुख्य पात्र एक हिन्दू सेवानिवृत शिक्षक है जो अपनी पत्नी के वियोग में चिंतित है। मानवता के नाते एक बार उसने एक मुस्लिम व्यक्ति को अपना खून देकर उसकी जान बचाई। वही मुस्लिम व्यक्ति स्वस्थ होने के बाद शिक्षक को अपना बड़ा भाई का दर्जा देकर उसकी सेवा करता है जिससे अकेलेपन के शिकार शिक्षक की चिंता कम हो जाती है और दोनों सृजनात्मक कार्य में जुटकर एक कहानी लिखते हैं जो शिक्षक की दूरदर्शी सोच पर आधारित है। कहानी में एक सुखा ग्रस्त गांव है जहां छुआछूत, बेरोजगारी की समस्या तो है साथ ही जल संकट की विकट समस्या से लोग परेशान है। उस ग्रामीण क्षेत्र का जनप्रतिनिधि चुनावी वादे के बाद सब भूल बैठा है।
दूसरी तरफ फिल्म के मुख्य पात्र की बेटी नर्स है और अपने डॉक्टर से मन ही मन प्रेम करती है क्योंकि दोनों की मां ने बचपन में ही उनका रिश्ता तय कर रखा है। दो युवा पात्र हैं जो बेरोजगार हैं, एक अविवाहित अधेड़ धनी व्यक्ति है और एक वफादार नौकर है। सबकी जिंदगी में कुछ न कुछ कमी है और उन्हें प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से किसी के लौट आने की प्रतीक्षा है।
लेखक, निर्माता और निर्देशक प्रदीप अग्रवाल की जय भोलेनाथ आर्ट्स के बैनर तले निर्मित फिल्म “तुम लौट आना जिंदगी” समाज के कई मुद्दों पर बात करती है और सांप्रदायिक एकता पर जोर देती है।
फिल्म कविता की पंक्तियों से शुरू होती है “शाम ढले, इसी छत के तले तुम लौट आना जिंदगी” और इसी कविता पर समाप्त होती है। फिल्म को कलात्मक और रचनात्मक रूप देनी की कोशिश की गई है।
ऋषिकेश मुखर्जी से प्रभावित निर्माता निर्देशक प्रदीप अग्रवाल ने एक सामाजिक और पारिवारिक सिनेमा का निर्माण किया है। फिल्म के कई संवाद बढ़िया हैं जैसे कि “बेरोजगारी युवा पीढ़ी को बर्बाद कर देगी”, ये डायलॉग हमारे समाज का कड़वा सच उजागर करता है। दूसरा संवाद “इंसानियत का धर्म सबसे बड़ा धर्म है”, सभी समुदाय को जोड़ने के लिए है।
फिल्म “तुम लौट आना जिंदगी” में सेवानिवृत्त शिक्षक के रूप में आदित्य शर्मा ने अपनी भूमिका से आत्मसात किया है। उनका हावभाव, चेहरे का एक्सप्रेशन और संवाद अदायगी प्रभावी है। उनकी स्वर्गवासी पत्नी के रोल में दीप्ति जयप्रकाश की भूमिका संक्षिप्त है। शिक्षक के विशेष मित्र असलम के रोल को विशाल शर्मा ने बड़ी सच्चाई से निभाया है। फिल्म में डॉक्टर का चरित्र गौरव ने और नर्स की भूमिका अनुपमा शुक्ला ने बेहतर ढंग से निभाई है। बेरोजगार युवती के रोल मे अमिता विश्वकर्मा और एक बेरोजगार लड़के की भूमिका में अजय कुमार सोलंकी ठीक ठाक हैं।
फिल्म मे एक ही गीत है जिसका संगीत प्रदीप रंजन ने दिया है और गीत सीमा अग्रवाल ने लिखा है। फिल्म के डीओपी अशोक त्रिवेदी का कैमरा वर्क अच्छा है, वहीं कृष्णा का एडिटिंग में बढ़िया प्रयास है। फिल्म वितरक राजकेश भदौरिया प्रचारक संजय भूषण पटियाला हैं।
फिल्म “तुम लौट आना जिंदगी” से दर्शक भावनामयी संसार में खो जाएंगे और हृदय की गहराई में जाकर अपनों का स्मरण करेंगे।
– संतोष साहू