लखीमपुर : आधुनिकता और परंपरा के बीच जब कोई पुल बनता है, तो वह न सिर्फ सांस्कृतिक पुनर्जागरण लाता है, बल्कि समाज को भी नई दिशा देता है. ऐसा ही एक उदाहरण लखीमपुर खीरी जिले में देखने को मिला है, जहां के रहने वाले अतुल कुमार ‘गौ परंपरा’ नाम से एक समूह चला रहे हैं. इस समूह के माध्यम से वे महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रहे हैं. समूह की महिलाएं गाय के गोबर से गौ कटोरी, उपले और “समरानी कप” तैयार कर रही हैं. यह कप धार्मिक और घरेलू वातावरण को शुद्ध करने में इस्तेमाल होता है और अब तेजी से लोगों के बीच लोकप्रिय हो रहा है.

समरानी कप पूरी तरह देशी गाय के गोबर से बनाया जाता है. इसके अंदर लोबान, गूगल जैसी पारंपरिक सामग्रियां डाली जाती हैं, जो जलने पर भीनी-भीनी सुगंध के साथ वातावरण को शुद्ध करती हैं. यह न केवल धार्मिक कार्यों में उपयोगी है, बल्कि घरों में सकारात्मक ऊर्जा फैलाने का भी काम करता है. पहले लोग कंडे पर धूनी देते थे, लेकिन आज के समय में वह न तकनीकी रूप से संभव है और न ही व्यावहारिक. इसलिए उन्होंने इसे एक कप के रूप में ढाल दिया जिसे कोई भी आसानी से जला सकता है.

महिलाएं बन रही आत्मनिर्भर
अतुल कुमार ने बताया कि बड़े-बड़े शहरों में गाय का गोबर नहीं मिल पाता है. हिंदू समाज में लोग गाय के गोबर को पवित्र मानते हैं और पूजा के रूप में इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में समूह की महिलाएं गौ कटोरी, उपले आदि तैयार करती हैं और फिर पैकिंग कर मार्केट में बेचती हैं, जिससे महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं और उन्हें अच्छा फायदा हो रहा है.

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