जबलपुर: मध्य प्रदेश के संस्कारधानी जबलपुर में हर साल गोवर्धन पूजा के दिन एक अनोखी परंपरा का निर्वहन किया जाता है, जिसमें गाय को बहू की तरह चांदी के आभूषणों से सजाया जाता है. खासकर यादव समाज और ग्वाल समाज के लोग इस दिन अपने घर की गाय को चांदी के मुकुट, माला, पायल और अन्य आभूषणों से अलंकृत करते हैं. इस परंपरा में गाय को एक विशेष रूप से सजाया जाता है, उसे स्नान करवाया जाता है और सुंदर कपड़े पहनाए जाते हैं. यह अनूठी परंपरा जहां स्थानीय संस्कृति को दर्शाती है, वहीं गोवर्धन पूजा के ऐतिहासिक महत्व को भी प्रकट करती है.
10 साल से सज रही है “गौरी”
जबलपुर के निवासी अजय यादव पिछले 10 सालों से अपनी गाय “गौरी” को इस परंपरा के अनुसार सजाते आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि वे हर साल दिवाली पर गाय के लिए नए चांदी के आभूषण खरीदते हैं, जिससे अब उनके पास करीब 1 से सवा किलो तक चांदी के जेवर हो चुके हैं. यह आभूषण गोवर्धन पूजा के अवसर पर गौरी को पहनाए जाते हैं, जिसमें चांदी का मुकुट, छत्र, माला, पायल और अन्य आभूषण शामिल हैं. इस तरह गौरी को बहू की तरह सजाया जाता है, और गोवर्धन पूजा के दौरान उसे नचाकर, उसकी विशेष पूजा की जाती है.
गोवर्धन पूजा की परंपरा का महत्व
गोवर्धन पूजा का त्यौहार दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है. यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा द्वापर युग में गोवर्धन पर्वत उठाकर इंद्र देव के प्रकोप से ब्रजवासियों और पशुओं की रक्षा करने की घटना से जुड़ा हुआ है. इस दिन यादव समाज और अन्य लोग गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं और गायों को सजाकर उनकी पूजा करते हैं. इस पूजा में “अन्नकूट” का प्रसाद तैयार किया जाता है, जो कि विभिन्न प्रकार के व्यंजनों से मिलकर बनता है और भगवान कृष्ण को भोग के रूप में अर्पित किया जाता है. यह पर्व न केवल आस्था और परंपरा का प्रतीक है, बल्कि पशुधन के महत्व को भी प्रकट करता है.
यादव समाज में गोमाता का महत्व
यादव समाज में गोमाता की पूजा विशेष महत्व रखती है. उनके लिए गाय केवल एक पशु नहीं है, बल्कि परिवार का हिस्सा है. इसलिए गोवर्धन पूजा के दिन विशेषकर गोमाता को सजा-संवार कर पूजा की जाती है. जबलपुर में यह परंपरा हर साल बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है, जिसमें परिवार के सभी सदस्य मिलकर गाय के लिए नए आभूषण खरीदते हैं. आभूषणों में चांदी की पायल, छत्र, मुकुट और माला शामिल होती है, जो गाय के सौंदर्य को और बढ़ा देते हैं.