जयदेब गुप्ता मनोज – 

भारतीय शास्त्रीय संगीत को हमेशा देश विदेशों में सम्मान मिला है। हमारे देश में हमेशा शुरू से अच्छे-अच्छे
संगीतकारों गायक गायिकाओं एवं गीतकारों ने भारतीय गीत संगीत में भरपूर योगदान भी दिया है। भारतीय संगीत
के आरंभिक काल में चमकने वाले भारतीय संगीतकारों में न्यू थियेटर्स की संगीत आत्मा कहे जाने वाले संगीतकार
स्वर्गीय रायचंद बोराल, श्रीमती सरस्वती देवी (प्रथम भारतीय महिला संगीतकार) स्वर्गीय नौशाद, पंकज मलिक,
मदनमोहन, खान मस्ताना, हेमंत कुमार, सी, रामचंद्र, ओ.पी. नैयर, हुसन लाल मंगतराम, (प्रथम भारतीय
संगीतकार जोड़ी) स्वर्गीय जयदेव, शंकर जयकिशन, रोशन, एसएन त्रिपाठी, सचिनदेव बर्मन्, राहुल देव बर्मन
प्यारेलाल, कल्याणजी-आनंदजी,बप्पी लाहेरी, के नाम सदा अमर रहेंगे इन संगीतकारों ने एक से बढ़कर धुनें तैयार
की है जो आज भी घर-घर में सुनी जाती है उस समय गीतकारों ने भी अच्छे अच्छे गीतों की रचना की थी जरा याद
कीजिए उन गीतों को। सन 1933 में न्यू थियेटर्स के बैनर में बनी फिल्म पूर्ण भगत प्रदर्शित हुई थी। इस फिल्म में
स्वर्गीय गायक कृष्ण चंद्र डे (मन्ना डे के चाचा) ने एक गीत गाया था- जाओ जाओ ऐ मेरे साथी रहो गुरु के संग, काफी
लोकप्रिय हुआ था। इसी फिल्म में अमर गायक व नायक कुंदन लाल सहगल ने एक अमर गीत गाया था, जगत में
प्रेम की बांसुरी बजे।

सन 1934 में संगीत से सजी फिल्म चंडीदास में अमर गीतप्रेम नगर में बसाऊंगी घर ने काफी लोकप्रियता पाई थी।
इन सभी गीतों को संगीत से सजाया था स्वर्गीय बोराल साहब ने। जब भारतीय फिल्मों ने बोलना ही शुरू किया था तब
उन्होंने पहली बार बंगला फिल्म चंडीदास में पृष्ठभूमि संगीत का प्रयोग किया था तथा संगीत को एक नई दिशा प्रदान
की थी।

भारतीय फिल्म संगीत का प्रारंभ करने वाले स्वर्गीय बोराल साहब का इस क्षेत्र में योगदान नहीं भुलाया जा सकता।
स्वर्गीय पंकज मलिक ने भी कई फिल्मों में मधुर धुन उपहार स्वरूप दी है, न्यू थियेटर्स के लिए अन्य कई महत्वपूर्ण
संगीतकारों ने संगीत दिया था। जिसमें तिमिर बरन, मिहिर किरण, पहाड़ी सानयाल का नाम सदा याद रहेगा।
स्वर्गीय मास्टर कृष्णा राव ने प्रभात फिल्म कंपनी के लिए सन 1934 में फिल्म धर्मात्मा का संगीत दिया था। इनकी
अन्य कुछ फिल्में अमरज्योति, आदमी, पड़ोसी आदि है।

अपने दौर के इस महान संगीतकार और गायक को भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया था। प्रथम
भारतीय महिला संगीतकार सरस्वती देवी को माना जाता है इन्होंने मुंबई टॉकीज के लिए एक से बढ़कर एक फिल्मों
में संगीत दिया था इनकी प्रथम फिल्म 1935 में बनी थी। जवानी की हवा नामक इस फिल्म की सफलता से सरस्वती
देवी का नाम गली गली में गूंजने लगा इसके बाद संगीत से सजी फिल्म अछूत कन्या बनी थी इस फिल्म का एक युगल गीत देविका रानी एवं अशोक कुमार के स्वर ''मैं वन की चिडिय़ा बनकर, अमर हो गया। आज इतने वर्षों बाद भी घर-घर में यह गीत सुनने को मिलता है।

सरस्वती देवी ने मुंबई टॉकीज के बैनर में बनी लगभग 19 फिल्मों में सफल संगीत दिया। फिल्म प्रार्थना में डॉक्टर
सिकंदर शाह लिखित गीत। ''यह संसार है काफी लोकप्रिय हुआ था। खान मस्ताना जब फिल्म उद्योग में आए उस  समय पंकज मलिक, के एल सहगल इत्यादि कलाकारों का बोलबाला था।

खान मस्ताना ने गायक की हैसियत से फिल्मोद्योग में पदार्पण किया। बाद में संगीतकार बने खान मस्ताना के
संगीत में सजाए हुए कई ऐसे खूबसूरत गीत हैं जो आज भी सुने जाते हैं। शुरू शुरू में खान मस्ताना को रेडियो स्टेशन
में गाने का मौका मिला सन 1938 में बहादुर किसान में संगीतकार मीर साहब के निर्देशन में उन्होंने पहला गीत
गाया, बालम गए परदेस रे सजनी काहे नीर बहाए। यह गीत काफी लोकप्रिय हुआ था

इसी गीत के बाद मीर साहब ने इनके मस्त स्वभाव को देखकर खान मस्ताना नाम दिया। खान मस्ताना आवाज के
बादशाह मोहम्मद रफी के साथ फिल्म शहीद में वतन की राह में वतन के नौजवान शहीद हो गीत भी गाया।

चौथे दशक में इनके गायन तथा संगीत का बोलबाला था किंतु 1973 में जब खान मस्ताना का माहिम मुंबई में निधन
हुआ उस वक्त वह एक सीलन भरी कोठरी में घोर दरिद्रता व असहाय अवस्था में रहते थे। फिल्म उद्योग के लिए यह
कलंक की बात है कि जो कलाकार दो दशकों तक फिल्म संगीत पर छाया रहा और अंत में घुटन भरी जिंदगी जीने पर
मजबूर हुआ।

रामचंद्र, सचिन देव बर्मन, रोशन, ,मदन मोहन, जयदेव, राहुल देव बर्मन, एसएन त्रिपाठी रवि, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल,
कल्याणजी-आनंदजी एवं शंकर जयकिशन ने फिल्म संगीत पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है किंतु आज के संगीत और
संगीतकार अश्लीलता से जुड़ गए हैं जिससे अलग होना असंभव है तभी आज हर फिल्म में एक अभद्र भाषा में
लिखित अश्लील गीत रहते हैं। अगर भारतीय गीत संगीत का यही दौर चलता रहे तो वह दिन दूर नहीं जब हर श्रोता
पुराने गीतों का प्रशंसक बन जाएगा। (विभूति फीचर्स)

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