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सुरेश वाडेकर के प्रतिभावान शिष्य रवि त्रिपाठी ने सजाया ‘संत तुकाराम’ फिल्म का संगीत

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मुंबई। प्रसिद्ध गायक रवि त्रिपाठी, जिन्होंने बॉलीवुड फिल्म ‘चाँदनी चौक टू चाइना’ में अपने सशक्त गायन से पहचान बनाई, अब उन्होंने बतौर संगीत निर्देशक एक नई पारी की शुरुआत किया है। हालिया प्रदर्शित फिल्म ‘संत तुकाराम’ में वे न सिर्फ गायिकी किये, बल्कि इस फिल्म के संगीत निर्देशन की जिम्मेदारी भी खुद निभाई है। इस फिल्म में उनका भक्ति गीत ‘माउली माउली’ रिलीज से पहले ही चर्चा में रहा है।

रवि त्रिपाठी ने बताया कि संत तुकाराम पर पहले भी अनगिनत गीत बन चुके हैं। ऐसे में एक नया और प्रभावशाली गीत रचना बहुत बड़ी चुनौती होती है। उन्होंने आगे कहा, “मेरे मन में भगवान विट्ठल के प्रति गहरा विश्वास है। शायद उसी विश्वास की वजह से ‘माउली माउली’ गीत एक ही टेक में रिकॉर्ड हो गया और सभी को पसंद आया।”

रवि त्रिपाठी बताते हैं कि एक फिल्मी गीत केवल गायन नहीं होता, वह निर्देशक, गायक, गीतकार और संगीतकार की सामूहिक सोच का परिणाम होता है। “हर बार संगीत और गीत के बोलों में बदलाव करना पड़ता है, लेकिन इस बार जैसे सब कुछ सहज रूप से हो गया।

रवि त्रिपाठी का संगीत सफर कोई नया नहीं है। उन्होंने ‘गीत नागेन्द्र हराय त्रिलोचनाय’, ‘शिरडी के साईं बाबा – ओम जय साई राम’, ‘बागपत’ और ‘चाँदनी चौक टू चाइना’ जैसी फिल्मों में गाने गाए हैं। इसके अलावा वे देश-विदेश में सैकड़ों लाइव शो कर चुके हैं। विशेष बात यह है कि उन्होंने चीन में सबसे ज्यादा लाइव शो करने का रिकॉर्ड भी अपने नाम किया है।

रवि त्रिपाठी हिंदी, चाइनीज़, तेलुगू, तमिल, कन्नड़, मराठी और भोजपुरी जैसी कई भाषाओं में गा चुके हैं। उनका संगीत सफर विविधता और समर्पण का प्रतीक है। सुरेश वाडेकर और रविंद्र जैन जैसे दिग्गज उनके गुरु रहे हैं। साथ ही वह लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, मुकेश, किशोर कुमार और सुरेश वाडेकर जैसे महान गायकों को अपना प्रेरणा स्रोत मानते हैं।

उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जिले से आने वाले रवि त्रिपाठी के परिवार का फिल्मों और संगीत से कोई लेना-देना नहीं रहा। संगीत के प्रति उनके प्रेम को पहले उनके पिता समझ नहीं पाए। लेकिन एक दिन उन्होंने कहा कि हम एक अच्छे संस्कारी परिवार से हैं, इसलिए परिवार की छवि को कभी धूमिल मत करना। और यही वाक्य रवि के जीवन का संकल्प बन गया।

रवि ने मुंबई आकर सुरेश वाडेकर के सान्निध्य में न केवल गायन सीखा, बल्कि जीवन के संस्कार भी पाए। वे लंबे समय तक वाडेकर के मुंबई के जुहू स्थित आजीवासन निवास में रहे, जिसे वे अपना दूसरा घर मानते हैं। वहीं रहते हुए उन्हें कई दिग्गज गायकों, संगीतकारों और कलाकारों से मिलने और सीखने का अवसर मिला।

रवि त्रिपाठी की संगीत यात्रा बताती है कि समर्पण, श्रद्धा और अनुशासन के साथ चलने पर मंज़िल चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो, रास्ते खुद बनते जाते हैं।
वैसे ‘संत तुकाराम’ फिल्म के माध्यम से में उनका नया अवतार दर्शकों और संगीत प्रेमियों के दिलों पर जादू कर गया है।

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