New Delhi – आदरणीय  आज का ये दिवस लोकतंत्र की एक महान परंपरा का महत्वपूर्ण दिवस है। सत्रहवीं लोकसभा ने पांच वर्ष देश सेवा में जिस प्रकार से अनेक विविध महत्वपूर्ण निर्णय किए। अनेक चुनौतियों को सबने अपने सामर्थ्य से देश को उचित दिशा देने का प्रयास, एक प्रकार से ये आज का दिवस हम सबकी उन पांच वर्ष की वैचारिक यात्रा का, राष्ट्र को समर्पित उस समय का, देश को फिर से एक बार अपने संकल्पों को राष्ट्र के चरणों में समर्पित करने का ये अवसर है। ये पांच वर्ष देश में रिफॉर्म, परफॉर्म एंड ट्रांसफॉर्म, ये बहुत rare होता है, कि रिफार्म भी हो, परफॉर्म भी हो और हम ट्रांसफॉर्म होता अपनी आंखों के सामने देख पाते हों, एक नया विश्वास भरता हो। ये अपने आप में सत्रहवीं लोकसभा से आज देश अनुभव कर रहा है। और मुझे पक्का विश्वास है कि देश सत्रहवीं लोकसभा को जरूर आशीर्वाद देता रहेगा। इन सभी प्रक्रियाओं में सदन के सभी माननीय सदस्यों का बहुत महत्वपूर्ण रोल रहा है, महत्वपूर्ण भूमिका रही है। और ये समय है कि मैं सभी माननीय सांसदों का इस ग्रुप के नेता के नाते भी और आप सबको एक साथी के नाते भी आप सबका अभिनंदन करता हूं।

विशेष रूप से आदरणीय अध्यक्ष जी,
मैं आपके प्रति भी हृदय से बहुत-बहुत आभार व्यक्त करता हूं। पांचों वर्ष कभी-कभी सुमित्रा जी मुक्त हास्य करती थीं। लेकिन आप हर पल आपका चेहरा मुस्कान से भरा रहता था। यहां कुछ भी हो जाए लेकिन कभी भी उस मुस्कान में कोई कमी नहीं आई। अनेक विविध परिस्थितियों में आपने बहुत ही संतुलित भाव से और सच्चे अर्थ में निष्पक्ष भाव से इस सदन का मार्गदर्शन किया, सदन का नेतृत्व किया। मैं इसके लिए भी आपकी भूरी-भूरी प्रशंसा करता हूं। आक्रोश के पल भी आए, आरोप के भी पल आए, लेकिन आपने पूरे धैर्य के साथ इन सभी स्थितियों को संभालते हुए और एक सूझबूझ के साथ आपने सदन को चलाया, हम सबका मार्गदर्शन किया इसके लिए भी मैं आपका आभारी हूं।
आदरणीय सभापति जी,
इस पांच वर्ष में इस सदी का सबसे बड़ा संकट पूरी मानव जाति ने झेला। कौन बचेगा? कौन बच पाएगा? कोई किसी को बचा सकता है कि नहीं बचा सकता? ऐसी वो अवस्था थी। ऐसे में सदन में आना ये भी, अपना घर छोड़कर के निकलना ये भी संकट का काल था। उसके बाद भी जो भी नई व्यवस्थाएं करनी पड़ी, आपने उसको किया, देश के काम को रुकने नहीं दिया। सदन की गरिमा भी बनी रहे और देश के आवश्यक कामों को जो गति देनी चाहिए, वो गति भी बनी रहे और उस काम में सदन की जो भूमिका है, वो रत्ती भर भी पीछे न रहे, इसको आपने बड़ी कुशलता के साथ संभाला और दुनिया के लिए एक उदाहरण के रूप में।
आदरणीय सभापति जी,
मैं माननीय सांसदों का भी इस बात के लिए एक बार आभार व्यक्त करना चाहता हूं कि उस कालखंड में देश की आवश्यकताओं को देखते हुए सांसद निधि छोड़ने का प्रस्ताव माननीय सांसदों के सामने रखा और एक पल के विलंब के बिना सभी माननीय सांसदों ने सांसद निधि छोड़ दी। इतना ही नहीं एक देशवासियों को पॉजिटिव मैसेज देने के लिए अपने आचरण से समाज को एक विश्वास देने के लिए सांसदों ने अपनी सैलरी में से 30 प्रतिशत कटौती का निर्णय सबने खुद ने किया। ताकि देश को भी विश्वास हुआ कि ये सबसे पहले छोड़ने वाले लोग हैं।
और आदरणीय सभापति जी,
हम सभी सांसद बिना कारण साल में दो बार हिंदुस्तान के मीडिया के किसी न किसी कोने में गाली खाते रहते थे कि ये सांसदों को इतना मिलता है और कैंटीन में इतने में खाते हैं। बाहर इतने में मिलता है, कैंटीन में इतने में मिलता है यानी पता नहीं बाल नोच लिए जाते थे। आपने निर्णय किया सबके लिए समान रेट होंगे कैंटीन में और सांसदों ने कभी भी विरोध नहीं किया, शिकायत भी नहीं की और सभी सांसदों की बिना कारण इतनी फजीहत करने वाले लोग मजे लेते थे। उससे हम सबको आपने बचा लिया, इसके लिए भी मैं आपका आभार व्यक्त करता हूं।
आदरणीय सभापति जी,
ये बात सही है कि हमारे कई लोकसभा के चाहे सत्रहवीं हो, सोलहवीं हो, पंद्रहवीं हो, संसद का नया भवन होना चाहिए। इसकी चर्चा सबने की सामूहिक रूप से की, एक स्वर से की, लेकिन निर्णय नहीं होता था। ये आपका नेतृत्व है जिसने निर्णय किया, चीजों को आगे बढ़ाया,  सरकार के साथ विविध मीटिंगे की, और उसी का परिणाम है कि आज देश को ये नया संसद भवन प्राप्त हुआ है।
आदरणीय सभापति जी,
संसद के नए भवन में एक विरासत का अंश और जो आजादी का पहला पल था उसको जीवंत रखने का हमेशा-हमेशा हमारे मार्गदर्शक रूप में ये सेंगोल को यहां स्‍थापित करने का काम और अब प्रति वर्ष उसको सेरेमोनियल इवेंट के रूप में उसको हिस्‍सा बनाने का एक बहुत बड़ा काम आपके नेतृत्‍व में हुआ है जो भारत की आने वाली पीढ़ियों को हमेशा-हमेशा हमें आजादी के उस प्रथम पल के साथ जोड़ कर रखेगा। और आजादी का वो पल क्‍यों था, हमें वो याद रहेगा तो देश को आगे ले जाने की वो प्रेरणा भी बनी रहेगी, उस पवित्र काम को आपने किया है। 
आदरणीय सभापति जी,
ये भी सही है, इस कालखंड में जी 20 की अध्यक्षता का भार तो मिला, भारत को बहुत सम्मान मिला, देश के हर राज्य ने विश्व के सामने भारत का सामर्थ्य और अपने राज्‍य की पहचान बखूबी प्रस्‍तुत की, जिसका प्रभाव आज भी विश्व के मंच पर है। उसके साथ आपके नेतृत्‍व में जी 20 की तरह पी 20 का जो सम्मेलन हुआ और विश्व के अनेक देशों के स्‍पीकर्स यहां आए और Mother of democracy, भारत की इस महान परंपरा को ले करके, इस democratic values को ले करके सदियों से हम आगे बढ़े हैं। व्‍यवस्‍थाएं बदली होंगी लेकिन democratic मन भारत का हमेशा बना रहा है, उस बात को आपने विश्‍व के स्‍पीकर्स के सामने बखूबी प्रस्तुत किया और भारत को लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में भी एक प्रतिष्ठा प्राप्‍त कराने का काम आपके नेतृत्व में हुआ।
आदरणीय सभापति जी,
मैं एक बात के लिए आपका विशेष अभिनंदन करना चाहता हूं, शायद हमारे सभी माननीय सांसदों का और मीडिया का भी उस तरफ ध्‍यान नहीं गया है। हम संविधान सदन जिसको कहते हैं, जो पुरानी संसद, जिसमें महापुरुषों के जन्मजयंती के निमित्त उनकी प्रतिमा को पुष्प चढ़ाने के निमित्त हम लोग एकत्र होते हैं। लेकिन वो एक 10 मिनट का ईवेंट होता था और हम लोग चले जाते थे। आपने देशभर में इन महापुरुषों के लिए वक्‍तव्‍य स्पर्धा, निबंध स्पर्धा का एक अभियान चलाया है। उसमें से जो बेस्ट ऑरेटर होते थे और बेस्ट Essays होते थे और राज्‍य से दो-दो बालक उस दिन दिल्‍ली आते थे और उस महापुरुष की जन्म-जयंती के समय पुष्प वर्षा में वो मौजूद रहते थे, देश के नेता भी, और बाद में पूरा दिन रह करके उस पर अपना व्‍याख्‍यान देते थे। वे दिल्‍ली के अन्‍य स्‍थान पर जाते थे, वो सांसद की गतिविधियों को समझते थे यानी आपने जो निरंतर प्रक्रिया चला करके देश के लाखों विद्यार्थियों को भारत की संसदीय परम्परा से जोड़ने का बहुत बड़ा काम किया है। और ये परम्‍परा, ये आपके खाते में रहेगी और आने वाले समय में हर कोई बड़े गर्व के साथ इस परम्परा को आगे बढ़ाएगा। मैं इसके लिए भी आपका अभिनंदन करता हूं।
आदरणीय अध्‍यक्ष जी,
संसद की लाइब्रेरी, जिसको उपयोग करना चाहिए वो कितना कर पाते थे, वो तो मैं नहीं कह सकता, लेकिन आपने उसके दरवाजे सामान्‍य व्‍यक्ति के लिए खोल दिए। ज्ञान का ये खजाना, परम्‍पराओं की विरासत, उसको आपने जनसामान्‍य के लिए खोल करके बहुत बड़ी सेवा की है, इसके लिए भी आपका हृदय से अभिनंदन करता हूं। पेपरलेस पार्लियामेंट, डिजिटलाइजेशन, आपने आधुनिक टेक्नोलॉजी हमारी व्यवस्था में कैसे बने, शुरू में कुछ साथियों को दिक्‍कत रही लेकिन अब सब इसके आदी हो गए हैं। जब मैं देखता हूं जब यहां बैठे हैं तो कुछ न कुछ करते रहते हैं, अपने-आप में एक बहुत बड़ा काम आपने किया है, ये एक स्थायी व्‍यवस्‍थाएं आपने निर्माण की हैं। मैं इसके लिए बहुत आभार व्यक्त करता हूं।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
आपकी कुशलता और इन माननीय सांसदों की जागरूकता, उन सबका संयुक्त प्रयास मैं कह सकता हूं कि जिसके कारण 17वीं लोकसभा की productivity करीब-करीब 97 परसेंट रही है। 97 परसेंट productivity अपने-आप में प्रसन्‍नता का विषय है लेकिन मुझे विश्‍वास है कि आज जब हम 17वीं लोकसभा की समाप्ति की तरफ हम बढ़ रहे हैं तब एक संकल्‍प ले करके 18वीं लोकसभा प्रारंभ होगी कि हम हमेशा शत-प्रतिशत से ज्‍यादा productivity वाली हमारी कार्यवाही रहेगी। और इसमें भी सात सत्र 100 प्रतिशत से भी ज्‍यादा productivity वाले रहे, ये भी। और मैंने देखा आपने रात-रात भर बैठ-बैठ करके हर सांसदों के मन की बात को आपने सरकार के ध्‍यान में लाने का भरपूर प्रयास किया। मैं इन सफलताओं के लिए सभी माननीय सांसदों का और सभी फ्लोर लीडर्स का भी हृदय से आभार और अभिनंदन व्‍यक्‍त करता हूं। पहले सत्र में, 17वीं लोकसभा के पहले सत्र में दोनों सदन ने 30 विधेयक पारित किए थे,   ये अपने-आप में रिकॉर्ड है। और एक नए-नए बेंचमार्क 17वीं लोकसभा में बनाए हैं।
आदरणीय अध्‍यक्ष जी,
आजादी के 75 वर्ष पूरा होने का उत्‍सव, हम सबको कितना बड़ा सौभाग्य मिला है कि ऐसे अवसर पर हमारे सदन ने अत्यंत महत्वपूर्ण कामों का नेतृत्व किया है, हर स्‍थान पर हुआ। शायद ही कोई सांसद ऐसा होगा कि जिसने आजादी के 75 वर्ष को लोकोत्सव बनाने में अपने-अपने क्षेत्र में भूमिका अदा न की हो। यानी सचमुच में आजादी के 75 वर्ष को देश ने जी भर करके उत्सव से मनाया और उसमें हमारे माननीय सांसदों की और इस सदन की बहुत बड़ी भूमिका रही है। हमारे संविधान लागू होने के 75 वर्ष, ये भी अवसर इसी समय इसी सदन को मिला है, इसी सभी माननीय सांसदों को मिला है और संविधान की जो भी जिम्मेदारियां हैं उनकी शुरुआत यहां से होती है और उनके साथ ही जुड़ना, ये अपने-आप में बहुत बड़ी प्रेरक है।
आदरणीय अध्‍यक्ष जी,
इस कार्यकाल में बहुत ही Reforms हुए हैं और game-changer है। 21वीं सदी के भारत की मजबूत नींव उन सारी बातों में नजर आती है। एक बड़े बदलाव की तरफ तेज गति से देश आगे बढ़ा है और इसमें भी सदन के सभी साथियों ने बहुत ही उत्तम मार्गदर्शन किया है, अपनी हिस्‍सेदारी जताई है और देश…हम संतोष से कह सकते हैं कि हमारी अनेक पीढ़ियां जिन बातों का इंतजार करती थीं, ऐसे बहुत से काम इस 17वीं लोकसभा के माध्यम से पूरे हुए, पीढ़ियों का इंतजार खत्म हुआ। अनेक पीढ़ियों ने एक संविधान, इसके लिए सपना देखा था। लेकिन हर पल वो संविधान में एक दरार दिखाई देती थी, एक खाई नजर आती थी। एक रुकावट चुभती थी। लेकिन इसी सदन ने धारा 370, आर्टिकल 310 हटा करके संविधान के पूर्ण रूप को इसके पूर्ण प्रकाश के साथ उसका प्रकटीकरण हुआ। और मैं मानता हूं जब संविधान के 75 वर्ष हुए हैं…जिन-जिन महापुरुषों ने संविधान को बनाया है उनकी आत्मा जहां भी होगी, जरूर हमें आशीर्वाद देते होंगे, ये काम हमने पूरा किया है। कश्मीर के भी जम्मू-कश्मीर के लोगों को सामाजिक न्याय से वंचित रखा गया था। आज हमें संतोष है कि सामाजिक न्‍याय का हमारा जो कमिटमेंट है, वो हमारे जम्मू-कश्‍मीर के भाई-बहनों को भी पहुंचा करके हम आज एक संतोष की अनुभूति कर रहे हैं। 
आदरणीय अध्यक्ष जी,
आतंकवाद नासूर बनकर देश के सीने पर गोलियां चलाता रहता था। मां भारती की धरा आए दिन रक्तरंजित हो जाती थी। देश के अनेक वीर होनहार लोग, आतंकवाद के कारण बलि चढ़ जाते थे। हमने आतंकवाद के विरुद्ध सख्त कानून बनाए, इसी सदन ने बनाए। मुझे पक्का विश्वास है कि उसके कारण, जो लोग ऐसी समस्याओं के लिए जूझते हैं उनको एक बल मिला है। मानसिक रूप के अनुसार Confidence बढ़ा है। और भारत को पूर्ण रूप से आतंकवाद से मुक्ति का उसमें एक एहसास हो रहा है। और वो सपना भी सिद्ध हो कर रहेगा। हम 75 साल तक अंग्रेजों की दी हुई दंड संहिता में जीते रहे हैं। हम गर्व से कहेंगे देश को, नई पीढ़ी को कहेंगे, आप अपने पोती-पोती को कह सकेंगे गर्व से कि देश 75 साल भले ही दंड संहिता में जिया है लेकिन अब आने वाले पीढ़ी न्याय संहिता में जियेगी। और यही सच्चा लोकतंत्र है।
आदरणीय अध्यक्ष जी, 
मैं आपको एक बात के लिए और अभिनंदन करना चाहूंगा कि नया सदन, इसकी भव्यता वगैरह तो है ही लेकिन उसका प्रारंभ एक ऐसे काम से हुआ है जो भारत को मूलभूत मान्यताओं को बल देता है और वो नारी शक्ति वंदन अधिनियम है। जब भी इस नए सदन की चर्चा होगी तो नारी शक्‍ति वंदन अधिनियम इसका जिक्र, यानि एक और भले जी वो छोटा सत्र था लेकिन दूरगामी निर्णय करने वाला सत्र था। इस नए सदन की पवित्रता का एहसास उसी पल शुरू हो गया था जो हम लोगों को एक नई शक्ति देने वाला है और उसी का परिणाम है कि आने वाले समय जब बहुत बड़ी मात्रा में यहां हमारी माताएं-बहनें बैठी होंगी, देश गौरव की अनुभूति करेगा। तीन तलाक कितने उतार-चढ़ाव से हमारी मुस्लिम बहनें इंतजार कर रही थीं। अदालत ने उनके पक्ष में निर्णय किए थे, लेकिन वो हक उनको प्राप्त नहीं हो रहा था। मजबूरियों से गुजारा करना पड़ा रहा था। कोई प्रकट रूप से कहे, कोई अप्रकट रूप से कहे। लेकिन तीन तलाक से मुक्ति का बहुत महत्वपूर्ण और नारी शक्ति के सम्मान का काम 17वीं लोकसभा ने किया है। सभी माननीय सांसद उनके विचार कुछ भी रहे हों, उनका निर्णय कुछ भी रहा हो, लेकिन कभी न कभी तो वो कहेंगे कि हां इन बेटियों का न्याय देने का काम भी करने में हम यहां प्रस्तुत रहे। पीढ़ियों से होता ये अन्याय हमने पूरा किया है और वो बहने हमें आशीर्वाद दे रही हैं। 
आदरणीय अध्यक्ष जी, 
आने वाले 25 वर्ष हमारे देश के लिए हमारे देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। राजनीति की गहमागहमी अपनी जगह पर है। राजनीति क्षेत्र के लोगों की आशा-आकांक्षा अपनी जगह पर है। लेकिन देश की अपेक्षा, देश की आशंका, देश की सपना, देश का संकल्प, ये बन चुका है… 25 साल हो गए हैं तो देश इच्छित परिणाम प्राप्त करके रहेगा। 1930 में जब महात्मा गांधी जी ने दांडी की यात्रा की थी, जब नमक का सत्याग्रह था। घोषणा होने के पहले लोगों को सामर्थ्‍य नजर नहीं आया था। चाहे स्वदेशी आंदोलन हो, चाहे सत्याग्रह की परंपरा हो, चाहे नमक का सत्याग्रह हो। उस समय तो घटनाएं छोटी लगती थी लेकिन 1947, वो 25 साल का कालखण्ड, उसने देश के अंदर वो जज्बा पैदा कर दिया था। हर व्यक्ति के दिल में वो जज्बा पैदा कर दिया था कि अब तो आजाद होकर रहना है। मैं आज देख रहा हूँ कि देश में वो जज्बा पैदा हो रहा है। हर गली-मोहल्ले में हर बच्चे के मुंह से निकला है कि 25 साल में हम विकसित भारत बना के रहेंगे। इसलिए ये 25 साल मेरी देश की युवा शक्ति के अत्यंत महत्वपूर्ण कालखंड हैं। और हम में से कोई ऐसा नहीं होगा जो नहीं चाहता होगा कि 25 साल में देश विकसित भारत न बने। हर किसी का सपना है, कुछ लोगों ने सपने को संकल्प बना लिया है, कुछ लोगों को शायद संकल्प बनाते देर हो जाएगी, लेकिन जुड़ना तो हरेक को होगा और जो जुड़ भी नहीं पाएंगे और जीवित होंगे तो फल तो जरूर खाएंगे, ये मेरा विश्‍वास है।  
आदरणीय अध्यक्ष जी, 
ये 5 वर्ष युवाओं के लिए बहुत ही ऐतिहासिक कानून के भी बने हैं। व्यवस्था में पारदर्शिता लाकर युवाओं को नए मौके दिए गए हैं। पेपर लीक जैसी समस्या जो हमारे युवाओं को चिंतित करती थी। हमने बहुत ही कठोर बनाया है ताकि उनके मन में जो सवाल या निशान है और उनको व्यवस्था के प्रति उनका गुस्सा था उसको एड्रेस करने का सभी माननीय सांसदों ने देश के युवाओं के मन के भाव को समझ करके बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय किया है। 
आदरणीय अध्यक्ष जी, 
ये बात सही है कि कोई भी मानव जाति अनुसंधान के बिना आगे नहीं बढ़ सकती है। उसको नित्य परिवर्तन के लिए अनुसंधान अनिवार्य होते हैं। और मानव जाति का लाखों साल का इतिहास गवाह है कि हर कालखंड में अनुसंधान होते रहे हैं, जीवन बढ़ता चला गया है, जीवन का विस्तार होता गया है। इस सदन ने विधिवत रूप से कानूनी व्यवस्था खड़ी करके अनुसंधान को प्रोत्साहन देने का बहुत बड़ा कार्य किया है। National Research Foundation, ये कानून आम तौर पर रोजमर्रा की राजनीति की चर्चा का विषय बन नही पाता, लेकिन इसके परिणाम बहुत दूरगामी होने वाले हैं और इतना बड़ा महत्वपूर्ण काम इस 17वीं लोकसभा ने किया है। मुझे पक्का विश्वास है देश की युवा शक्ति में… इस व्यवस्था के कारण दुनिया का रिसर्च का एक हब हमारा देश बन सकता है। हमारे देश के युवा के talent ऐसी है, आज भी दुनिया की बहुत कंपनियां ऐसी हैं जिनकी innovation के काम आज भी भारत में हो रहे हैं। लेकिन ये बहुत बड़ा हब बनेगा, ये मेरा पूरा विश्‍वास है। 
आदरणीय अध्यक्ष जी, 
21वी सदी में हमारी basic needs पूरी तरह बदल रही हैं। कल तक जिसका कोई मूल्य नहीं था, कोई ध्यान नहीं था वो आने वाले समय में बहुत अमूल्य बन चुका है जैसे डेटा… पूरी दुनिया में चर्चा है डेटा का सामर्थ्य क्या होता है। हमने Data Protection Bill लाकर के पूरी भावी पीढ़ी को सुरक्षित कर दिया है। पूरी भावी पीढ़ी को एक नया शस्त्र हमने उसके हाथ मे दिया है जिसके आधार पर वो अपने भविष्य को बनाने के लिए इसका सही इस्तेमाल भी करेंगे। और Digital Personal Data Protection Act, ये हमारी 21वी सदी की पीढ़ी को और दुनिया के लोगों को भी भारत के इस एक्ट के प्रति रुचि बनी हुई है। दुनिया के देश उसका अध्ययन करते हैं। अपने-अपने नई-नई व्यवस्था अनुकूल करने के लिए प्रयास कर रहे हैं। और डेटा का उपयोग कैसे हो, उसकी भी उसमें गाइडलाइंस हैं। यानि एक प्रकार से प्रोटेक्‍शन का पूरा प्रबंध करते हुए इसका सामर्थ्य कैसे आए, जिस डेटा को लोग गोल्ड माइन कहते हैं, new oil कहते हैं। मैं समझता हूँ वो सामर्थ्य भारत को प्राप्त है और भारत इस शक्ति का इसलिए विशेष है, क्योंकि विविधताओं से भरा हुआ देश है। हमारे पास जिस प्रकार की जानकारियां और हमारे साथ जुड़ा हुआ डेटा जो जनरेट होता है, सिर्फ हमारे रेलवे पेसेंजर्स का डेटा कोई देख लें, दुनिया के लिए बहुत बड़ा शोध का विषय बन सकता है।  उसकी ताकत को हमनें पहचान करके इस कानूनी व्यवस्था को दिया है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
जल थल नभ ये सदियों से इन क्षेत्रों की चर्चा चली है। लेकिन अब समुद्री शक्ति और स्पेस की शक्ति और साइबर की शक्ति, ये ऐसी त्रिविध शक्तियों का मुकाबला करने की आवश्यकता खड़ी हुई है, और विश्व जिस प्रकार के संकटों से गुजर रहा है। और विश्व जिस प्रकार की विचारीय प्रभाव पैदा करने का प्रयास कर रहे है तब इन क्षेत्रों में हमें सकारात्मक सामर्थ्य भी पैदा करना है और नकारात्मक शक्तियों से अपने आप को हर चुनौतियों से चुनौती लेने का सामर्थ्य भी बनाना है। और उसके लिए आवश्यक स्पेस से जुड़े रिफॉर्म्स बहुत अनिवार्य थे और बहुत दूरगामी दृष्टि के साथ स्पेस के रिफार्म का काम हमारे यहां हुआ है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
देश ने जो आर्थिक रिफॉर्म किए हैं उसमें सत्रहवीं के लोकसभा के सभी माननीय सांसदों की बहुत बड़ी भूमिका रही है। बीते वर्षों में हजारों compliances ने बेवजह हम जनता जनार्दन को ऐसी चीजों में उलझाए रखा। ये गर्वनेंस की ऐसी विकृत व्यवस्थाएं विकसित हो गई उसमें से मुक्ति दिलाने का बहुत बड़ा काम हमारे यहां हुआ है और इसके लिए भी इस सदन का मैं आभारी हूं। यानी इस प्रकार के compliances के बोझ में सामान्य व्यक्ति तो दब जाता है। और मैंने तो एक बार लाल किले से भी कहा था। हम जब minimum government, maximum governance कहते हैं। मैं दिल से मानता हूं कि लोगों की जिंदगी में से जितना जल्द सरकार निकल जाए, उतना ही लोकतंत्र का सामर्थ्य बढ़े़गा। रोजमर्रा की जिंदगी में हर डगर पर सरकार टांग क्यों अड़ा रही है? हां जो अभाव में है उसके लिए सरकार हर पल मौजूद होगी। लेकिन सरकार का प्रभाव उसकी जिंदगी को ही रुकावट बना दे ऐसी लोकतंत्र नहीं हो सकता है। और इसलिए हमारा मकसद है सामान्य मानवीय की जिंदगी से सरकार जितनी हट जाए, कम से कम उसकी जिंदगी में सरकार का नाता रहे वैसा समृद्ध लोकतंत्र दुनिया के सामने हमने आगे बढ़ाना चाहिए। उस सपने को पूरा करेंगे।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
Companies Act, Limited Liability Partnership Act, साठ से अधिक गैर जरूरी कानूनों को हमनें हटाया है। Ease of doing business इसके लिए ये बहुत बड़ी आवश्यकता थी क्योंकि अब देश को आगे बढ़ना है तो बहुत सारी रूकावटों से बाहर आने पड़ेगा। हमारे कई कानून तो ऐसे थे छोटे-छोटे कारणों से जेल में भर दो बस। यहां तक की फैक्ट्री है और उसके शौचलय को छह महीने में एक बार अगर व्हाइट पोस्ट नहीं किया तो उसके लिए जेल थी। वो कितनी बड़ी कंपनी का मालिक क्यों न हो। अब ये जो एक प्रकार की जो अपने आप को बड़े लेफ्ट लिबरल कहते हैं उन लोगों की ideology और देश में ये कुमार शाही का जमाना, उन सारों से मुक्ति दिलाने का हमें भरोसा होना चाहिए भई। वो करेगा लोगों के घरो में लीप पोत के। वो सोसाइयटी फ्लैट वाले लोग अपनी लिफ्ट नीचे ऊपर करते ही हैं जी। हर चीज कर लेते हैं। तो ये जो समाज पर नागरिक पर भरोसा करने का काम, बहुत तेजी से बढ़ाने का काम सत्रहवीं लोकसभा ने किया है। और भी चलिए- जन विश्वास एक्ट। मैं समझता हूं 180 से ज्यादा प्रावधान decriminalize करने का काम किया है। जो मैंने कहा छोटी-छोटी बात के लिए जेल में डाल देना। ये decriminalize करके हमनें नागरिक को ताकत दी है। वो इसी सदन ने किया है, यही माननीय सांसदों ने किया है। कोर्ट के चक्कर से जिंदगी बचाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण काम कोर्ट के बाहर विवादों से मुक्ति उस दिशा में महत्वपूर्ण काम मध्यस्थता का कानून उस दिशा में भी इसी माननीय सांसदों ने बहुत बड़ी भूमिका अदा की है। जो हमेशा हाशिये पर थे, किनारे पर थे, जिनको कोई पूछता नहीं था। सरकार होने का उनको एहसास हुआ है। हां सरकार अहम है जब कोविड में मुफ्त इंजेक्शन मिलता था ना, उसको भरोसा होता था चलिए जान बच गई। सरकार होने का उसको एहसास होता था और यही तो सामान्य मानवीय की जिंदगी में बहुत आवश्यक है। वो असहायता का अनुभव अब क्या होगा, ये स्थिति पैदा नहीं होनी चाहिए।
ट्रांसजेंडर समुदाय अपमानित महसूस करता था। और जब बार-बार वो अपमानित होता था तो उसके अंदर भी विकृतियों की संभावना बढ़ती रहती थी…और ऐसे विषयों से हम लोग दूर भागते थे। 17वीं लोकसभा के सभी माननीय सांसदों ने ट्रांसजेंडर्स के प्रति भी संवेदना जताई और उनके जीवन में भी बेहतरीन जिंदगी बने। और आज दुनिया के अंदर जब भारत ने ट्रांसजेंडर के लिए किए हुए काम और जो निर्णय किए हैं, इनकी चर्चा है। दुनिया को बड़ा, दुनिया को बड़ा, जब हम कहते हैं ना हमारे यहां…ईवन हमारी माता-बहनों के लिए प्रेगनेंसी के लिए 26 वीक की डिलीवरी के समय की छुट्टी…दुनिया के समृद्ध देशों को भी आश्चर्य होता है, अच्‍छा ! यानी ये progressive निर्णय यहीं पर हुए हैं, इसी 17वीं लोकसभा में हुए हैं। हमने ट्रांसजेंडर को एक पहचान दी है। अब तक करीब 16-17 हजार ट्रांसजेंडर को उनका identity card दिया गया है ताकि उनके जीवन को, और मैंने देखा है अब तो मुद्रा योजना से पैसे ले करके छोटा-मोटा वो बिजनेस करने लगी हैं, कमाने लगी हैं। पदमा अवार्ड हमने ट्रांसजेंडर्स को दिया है, एक सम्‍मान की जिंदगी जीने के लिए। सरकार से जुड़ी अनेक योजनाओं का लाभ उन्‍हें जब तक मिलता रहेगा, मिलना प्रारंभ हुआ है वो सम्‍मान की जिंदगी जीने लगे हैं। 
आदरणीय अध्‍यक्ष जी,
बहुत विकट काल में हमारा समय गया क्‍योंकि डेढ़-दो साल कोविड ने हमारे ऊपर बहुत बड़ा दबाव किया था, लेकिन उसके बावजूद भी 17वीं लोकसभा देश के लिए बहुत उपकारक रही है, बहुत अच्‍छे काम किए हैं। लेकिन इस समय हमने कई साथियों को भी खो दिया है। हो सकता है अगर आज वो हमारे बीच होते तो आज इस विदाई समारोह में मौजूद होते। लेकिन बीच में ही कोविड के कारण हमें बहुत होनहार साथियों को खोना पड़ा है। उसका दुख हमेशा-हमेशा हमें रहेगा।
आदरणीय अध्‍यक्ष जी,
17वीं लोकसभा का ये अंतिम सत्र और अंतिम hour ही समझ लीजिए, है। लोकतंत्र और भारत की यात्रा अनंत है। अनेक और ये देश किसी purpose के लिए है, उसका कोई लक्ष्‍य है वो पूरी मानव जाति के लिए है। ऐसे ही अरविंद ने देखा हो, चाहे स्‍वामी विवेकानंद जी ने देखा हो। लेकिन आज उन शब्‍दों में, उस विज़न में सामर्थ्‍य था वो हम आंखों के सामने देख पा रहे हैं। दुनिया जिस प्रकार से भारत के महात्‍मय को स्‍वीकार कर रही है, भारत के सामर्थ्‍य को स्‍वीकारने लगी है, और इसको, इस यात्रा को हमें और शक्ति के साथ आगे बढ़ाना है।
आदरणीय अध्‍यक्ष जी,
चुनाव बहुत दूर नहीं हैं। कुछ लोगों को थोड़ी घबराहट रहती होगी, लेकिन ये लोकतंत्र का सहज, आवश्‍यक पहलू है। हम सब उसको गर्व से स्‍वीकार करते हैं। और मुझे विश्‍वास है कि हमारे चुनाव भी देश की शान बढ़ाने वाले, लोकतंत्र की हमारी जो परंपरा है, पूरे विश्‍व को अचंभित करने वाले अवश्‍य रहेंगे, ये मेरा पक्‍का विश्‍वास है।
आदरणीय अध्‍यक्ष जी,
मैं सभी माननीय सांसदों का जो सहयोग मिला है, जो निर्णय हम कर पाए हैं, और कभी-कभी हमले भी इतने मजेदार हुए हैं कि हमारे भीतर की शक्ति भी खिल करके निकली है। और मेरा तो परमात्‍मा की कृपा रही कि जब चुनौती आती है तो जरा और आनंद आता है। हर चुनौती का हम सामना कर पाए हैं, बड़े आत्‍मविश्‍वास और विश्‍वास के साथ हम चले हैं। आज राम मंदिर को ले करके इस सदन ने जो प्रस्‍ताव पारित किया है, वो देश की भावी पीढ़ी को, इस देश की मूल्‍य पर गर्व करने की संवैधानिक शक्ति देगा। ये सही है कि हर किसी में ये सामर्थ्‍य नहीं होता है कि ऐसी चीजों में कोई हिम्‍मत दिखाते हैं, कुछ लोग मैदान छोड़कर भाग जाते हैं। लेकिन फिर भी भविष्‍य के रिकॉर्ड को देखेंगे तो आज जो व्‍याख्‍यान हुए हैं, जो बातें रखी गई हैं, उसमें संवेदना भी है, संकल्‍प भी है, सहानुभूति भी है और सबका साथ-सबका विकास के मंत्र को आगे बढ़ाने का उसमें तत्‍व भी है। ये देश, बुरे दिन कितने ही क्‍यों न गए हों, हम भावी पीढ़ी के लिए कुछ न कुछ अच्‍छा करते रहेंगे। ये सदन हमें वो प्रेरणा देता रहेगा और हम सामूहिक संकल्‍प से, सामूहिक शक्ति से उत्तम से उत्तम परिणाम, भारत की नौजवान पीढ़ी की आशा-आकांक्षा के अनुसार करते रहेंगे।
इसी विश्‍वास के साथ फिर एक बार आपका आभार प्रकट करता हूं, सभी माननीय सांसदों का आभार प्रकट करता हूं।
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