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दलबदल का नया कीर्तिमान बनाते नीतीश कुमार

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दलबदल का नया कीर्तिमान बनाते नीतीश कुमार
(राकेश अचल-विनायक फीचर्स)
नीतीश बाबू जयप्रकाश नारायण की ‘ सम्पूर्ण क्रांति ‘ का उत्पाद है।  उनके साथ ही अनेक लोग थे जो इसी आंदोलन के जरिये राजनीति में आकर शीर्ष तक पहुंचे ।  लालू यादव ,रामविलास पासवान ,शरद यादव सब उसी आंदोलन से बाहर निकले ,लेकिन सबने समय के साथ अलग-अलग रास्ते से सत्ता के शीर्ष तक पहुँचने का करिश्मा कर दिखाया। लालू जी भ्रष्टाचार और परिवारवाद की मिसाल बने तो रामविलास पासवान और शरद यादव ने दलबदल के कीर्तिमान बनाये और नीतीश कुमार  ने इन दोनों  को भी पीछे छोड़ दिय।  नीतीश के ऊपर लालू प्रसाद यादव की तरह भ्रष्टाचार और परिवारवाद के आरोप  नहीं लगे ।  उलटे उन्हें बिहार के कायाकल्प के लिए सुशासन बाबू कहा गया ,लेकिन नीतीश ने सुशासन करने के लिए राजनीति की तमाम मर्यादाएं और आचरण संहिताएं  बलाये ताक रख दी। वैसे तो राजनीति के थलचरों में गिरगिट का कोई जबाब नहीं ।  राजनीति में अधिकाँश नेता समय-समय पर गिरगिट की तरह अपना रंग बदलते हैं ,लेकिन कुछ नेताओं को रंग बदलने में महारथ हासिल  है। बिहार  के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार इस युग के सबसे बड़े गिरगिट है।  उन्होंने रंग बदलने में असल गिरगिट को भी पीछे छोड़ दिया है ,इसलिए आप अपनी सुविधा के लिए उन्हें ‘गिरगिटराज ‘ भी कह सकते हैं।  मेरे शब्दकोश में नीतीश के लिए कोई दूसरी उपमा  है ही नहीं।
आगामी 01  मार्च  को 73  साल के होने जा रहे नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में एक-दो मर्तबा नहीं बल्कि पूरे आठ बार शपथ ली और अब उनका मन फिर विचलित है ।  वे नौवीं बार शपथ लेने के लिए अपने पद से इस्तीफा देने का मन बना चुके हैं। बिहार में दल और गठबंधन बदलने में नीतीश कुमार से पहले राम विलास पासवान का नाम हुआ करता था। पासवान राजनीति का मौसम भांपकर रंग बदलते थे किन्तु नीतीश कुमार ने पासवान के कीर्तिमान को भी भंग कर दिया। नीतीश कुमार को अपने फैसलों के बारे में शायद खुद भी पता नहीं होता। मजे की बात ये है कि वे लगातार अविश्वसनीय होने के बाद भी  भाजपा के लिए भी अंत समय में विश्वसनीय हो जाते हैं और धर्म निरपेक्ष कांग्रेस और राजद के लिए भी।
इन दिनों जब पूरा विपक्ष देश में गैर भाजपा वाद की राजनीति  के लिए एकजुट होने में लगा था तब नीतीशकुमार ने गठबंधन के साथ चलते-चलते अचानक अपना रास्ता बदल लिया  है।  वे अचानक भाजपा के गठबंधन एनडीए की ओर झुक गए है। पिछले दो साल से वे जिस राजद के साथ मिलकर’  चाचा-भतीजे ‘ की सरकार चला रहे थे  उसी राजद में उन्हें परिवारवाद सताने लगा है।  उन्हें अचानक पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की याद आ गयी है।  ठाकुर को  जैसे ही भाजपा की केंद्र सरकार ने 24  जनवरी को ‘ भारत रत्न ‘ सम्मान देने की घोषणा की ,नीतीश बाबू का भाजपा से पुराना प्रेम उमड़ने लगा।
निश्चित ही रंग और पाला बदलकर मरे हुए जमीर के स्वामी नीतीश कुमार नौवीं बार भी बिहार के मुख्यमंत्री बन जायेंगे ,लेकिन नौवीं बार पद और गोपनीयता की शपथ लेते वक्त उनके चेहरे से जो काइयाँपन और निर्लज्जता झलकेगी उसे देखने के लिए कम से कम मैं तो आतुर हूँ। क्योंकि ऐसा दुर्लभ क्षण मुमकिन है कि मेरे जीवन में दोबारा न आये। मेरी दृष्टि में नीतीश बाबू भारतीय राजनीति में निर्लज्जता के सर्वोच्च प्रतिमान हो चुके हैं। वे जनादेश के साथ खिलवाड़ करने वाले सबसे बड़े और सिद्धहस्त खिलाड़ी बन चुके हैं। उनका कीर्तिमान अब शायद ही कोई दूसरा नेता तोड़ पाए। कल के बच्चे जब भारतीय राजनीति का इतिहास पढ़ेंगे तो नीतीश  बाबू का नाम एक ‘ गाली ‘ की तरह लिया जाएगा।
लोकसभा चुनाव  से पहले विपक्षी गठबंधन को लंगड़ा करने वालों में आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल और बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी के बाद नीतीश बाबू तीसरे नेता है। वे राजनीति में अपने हमउम्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ही तरह अप्रत्याशित फैसले करने में माहिर  है।  कल तक वे धर्मनिरपेक्षता का ध्वज उठाकर चल रहे थे। पिछले साल राम नवमी के जुलूस पर  पत्थरबाजी और कई हिंदुओं के मरने तथा घायल होने की कई घटनाओं को नजर अंदाज करते हुए उसी वक्त इफ्तार पार्टी का आयोजन किया। इसके लिए हिंदुओं ने उनकी काफी आलोचना भी की , यहां तक कि उनकी तुलना रोम के नीरो से भी की गई। भाजपा ने भी उन पर तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप लगाया था लेकिन आज फिर नीतीश बाबू भाजपा के लिए ‘ मिशन 400  पार ‘ को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण बन गए हैं।
भारतीय लोकतंत्र में इस समय  एक पाले में भाजपा और उसके सहयोगी दल हैं और दूसरी तरफ कांग्रेस और भाजपा की राजनीति से घृणा करने वाले दल। लेकिन अब भाजपा विरोधी दलों में बिखराव हो रहा है। सबसे पहले बसपा  ने कांग्रेस और उसके गठबंधन से दूरी  बनाई। फिर आप ने धोखा दिया ,फिर ममता बनर्जी के सुर बिगड़े और अब नीतीश बाबू गैर-भाजपा वाद के इस अभियान में आखिरी कील ठोंक  रहे हैं। नीतीश  बाबू मौजूदा राजनीति के सबसे बड़े खलनायक बनने जा रहे हैं ,किन्तु उन्हें इसकी  कोई चिंता  नहीं है क्योंकि वे सत्ता प्रतिष्ठान के बगलगीर बनकर खड़े हैं। हमारे गांव  में इस तरह के संयोग को केर -बेर  का संग या  सांप -नेवले   की मित्रता  कहा जाता  है।
गिरगिटराज नीतीश बाबू के निर्णय से विपक्षी एकता को भारी  नुकसान तो होगा ही साथ ही नीतीश बाबू के निर्णय से भारतीय राजनीति में पहले से मौजूद  विश्वास  का संकट  और गहरा  होगा। लोग नेताओं पर भरोसा  करने से पहले सौ  बार सोचेंगे । फिर भी देश भी  चलेगा और राजनीति भी। लेकिन नीतीश कुमार भुला  दिए  जायेंगे ,या फिर याद किये  जायेंगे तो उपहास के साथ(विनायक फीचर्स)
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