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जोशीमठ में इमारतें बनाने में तोड़े गए कानून

जोशीमठ की दरकती इमारतों ने पहाड़ में बेतरतीब निर्माण की हकीकत को बेपर्दा कर दिया। जहां 12 मीटर से ऊपर की इमारत बनाने पर रोक हो। भूस्खलन क्षेत्र, 30 डिग्री स्लोप पर निर्माण प्रतिबंधित हो, वहां न कोई नियम चला और न कायदा। नगर पालिका से सेटिंग-गेटिंग कर अनुमति जारी होती रही और जोशीमठ की धरती पर बोझ बढ़ता चला गया।

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इमारतें बनाने में तोड़े गए कानून, जोशीमठ ने बेपर्दा कर दिया पहाड़ में बेतरतीब निर्माण का सच

जोशीमठ की दरकती इमारतों ने पहाड़ में बेतरतीब निर्माण की हकीकत को बेपर्दा कर दिया। जहां 12 मीटर से ऊपर की इमारत बनाने पर रोक हो। भूस्खलन क्षेत्र, 30 डिग्री स्लोप पर निर्माण प्रतिबंधित हो, वहां न कोई नियम चला और न कायदा। नगर पालिका से सेटिंग-गेटिंग कर अनुमति जारी होती रही और जोशीमठ की धरती पर बोझ बढ़ता चला गया।
आज तक विनियमित नहीं हुआ जोशीमठ
इतिहास के पन्नों को खंगालें तो जोशीमठ जैसे महत्वपूर्ण शहर को लेकर यूपी से लेकर उत्तराखंड तक की सरकारों की बेपरवाही नजर आती है। उत्तर प्रदेश सरकार ने उत्तराखंड के कुछ क्षेत्रों को विनियमित किया था लेकिन इसमें जोशीमठ नहीं था। राज्य बनने के बाद 2011 में भवन निर्माण एवं विकास विनियम आया। इसके बाद राज्य ने 2013 में अपने बायलॉज जारी किए। लेकिन आज तक जोशीमठ विनियमित नहीं हो पाया। हालात यह हैं कि यहां कैसे निर्माण हो, इसे समझने, देखने और लागू करने वाला कोई नहीं।
सात मंजिला भवनों के जिम्मेदारों पर कार्रवाई कब
केंद्रीय बिल्डिंग बायलॉज और उत्तराखंड के 2011 व 2013 में जारी हुए बायलॉज को देखें तो पर्वतीय क्षेत्रों में 12 मीटर यानी चार मंजिल से अधिक ऊंचाई के भवन का निर्माण नहीं किया जा सकता। इतनी ऊंचाई भी तभी संभव है जबकि निर्माण वाले क्षेत्र का अध्ययन हुआ हो। जोशीमठ में इन कायदों को दरकिनार कर सात-सात मंजिला भवन बनाने के लिए संबंधित निकाय ने अनुमति जारी कर दी। सवाल यह है कि इतने बेतहाशा और बेतरतीब निर्माण का जिम्मेदार कौन है।
मास्टर प्लान होता तो हालात ऐसे न होते
जोशीमठ का मास्टर प्लान अब तैयार हो रहा है। अगर इससे पहले मास्टर प्लान बना होता तो शायद हालात ये न होते। दरअसल, किसी भी शहर का मास्टर प्लान तैयार करने के लिए उसकी भौगोलिक, भूगर्भीय, जल स्त्रोत, सड़क, वनस्पतियों का ध्यान रखा जाता है। इसके अलावा उस शहर की मिट्टी की जांच वैज्ञानिकों से कराके यह देखा जाता है कि वह कितना भार वहन कर सकती है। यह भी देखा जाता है कि जनसंख्या घनत्व के हिसाब से आने वाले 10 या 20 वर्षों में शहर पर कितना बोझ बढ़ सकता है। इसे नियंत्रित रखने के लिए क्या प्रयास किए जा सकते हैं। मास्टर प्लान से इतर निर्माण करने वालों पर प्राधिकरण कार्रवाई भी कर सकते हैं।
इन नियमों का भी खुला उल्लंघन
केंद्र व राज्य के नियमों के हिसाब से जो भी इलाका भू-स्खलन प्रभावित हो, वहां निर्माण करने पर रोक है। 1976 में मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट में इस क्षेत्र को भूस्खलन से प्रभावित करार दिया गया था। इसके बावजूद निर्माण जारी रहे। दूसरा नियम यह है कि 30 डिग्री से अधिक स्लोप वाली जगह पर कोई निर्माण नहीं किया जा सकता। जोशीमठ में इस नियम की भी धज्जियां उड़ाई गईं। जहां मौका मिला, बड़ी इमारतें खड़ी होती चली गईं।
जिला स्तरीय विकास प्राधिकरण आया और गया
त्रिवेंद्र सरकार ने 2017 में जिला स्तरीय विकास प्राधिकरण का गठन करते हुए जोशीमठ जैसे क्षेत्रों को विनियमित करने का प्रयास किया लेकिन विरोध के चलते सरकार को इसे वर्ष 2021 में स्थगित करना पड़ा। चार साल तक इन प्राधिकरणों में डीएम को उपाध्यक्ष और एडीएम को सचिव की जिम्मेदारी देकर जिंदा रखा गया लेकिन इन्हें चलाने के लिए इंजीनियर व अन्य विभाग मजबूती से तैयार ही नहीं हो पाए। लिहाजा, जोशीमठ के विकास का कोई रोडमैप तैयार नहीं हो पाया।
पहाड़ी शहरों को बचाने के लिए यह हो सकती है कवायद
-प्रदेश के सभी संवेदनशील शहरों का चिन्हिकरण किया जाए।
-फिलहाल तत्काल इन शहरों में किसी भी तरह के निर्माण पर रोक लगाई जाए।
-आवास विभाग को तत्काल मास्टर प्लान बनाने के निर्देश दिए जाएं।
-बिल्डिंग बायलॉज को लागू करने के लिए प्राधिकरण या समकक्षीय व्यवस्था हो।
-अगर प्राधिकरण हों तो वहां मैन पावर आदि की पूरी व्यवस्था की जाए।
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