मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आज 51 वर्ष के हो गए। गोरखपुर सहित पूरे देश में उनके चाहने वाले सीएम का जन्मदिन मना रहे हैं। इंटरनेट मीडिया पर बधाइयों का तांता लगा है। हालांकि योगी आदित्यनाथ नाथ परंपरा के अनुपालन में अपना जन्मदिन नहीं मनाते। आज यानी सोमवार की सुबह रुद्राभिषेक के साथ सीएम योगी ने गोरखनाथ मंदिर में दिन की शुरुआत की। आइए आज मुख्यमंत्री योगी के जन्मदिन के अवसर पर उनके संन्यासी से राजधर्म तक की यात्रा के बारे में जानते हैं…

5 जून सन 1972 को योगी जी का जन्म पौड़ी गढ़वाल के पंचुर गांव उत्तराखंड में हुआ था। योगी जी का असली नाम अजय मोहन सिंह बिष्ट है, उनकी दीक्षा के बाद उन्हें योगी आदित्यनाथ नाम दिया गया। यह एक क्षत्रिय परिवार से है, उनके पिता का नाम आनंद सिंह बिष्ट है जो एक वन रेंजर थे इनकी माता का नाम सावित्री देवी है। वर्ष 2020 में नई दिल्ली एम्स में उनके पिता की पुरानी बीमारी के चलते मृत्यु हो गयी। अपनी माता-पिता के सात बच्चों में तीन बड़ी बहनों व एक बड़े भाई के बाद ये पांचवें थे एवं इनसे और दो छोटे भाई हैं। योगी आदित्यनाथ जी एक ब्रह्मचारी है उन्होंने शादी ना करने का फैसला लिया था .

वर्ष 1977 में टिहरी के गजा स्थानीय स्कूल से इन्होने अपनी पढाई शुरू की और वर्ष 1987 में यहाँ से योगी जी ने दसवीं की कक्षा पास की। सन 1989 में ऋषिकेश के श्री भरत मंदिर इंटर कॉलेज से योगी जी के द्वारा बारहवीं कक्षा पास की गयी। इसी के साथ ग्रेजुएशन की पढाई करते हुए यह 1990 में अखिल भारतीय परिषद से जुड़े। इसी के साथ हेमवंती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय से इन्होने वर्ष 1992 में गणित में बीएससी की परीक्षा पास की। पढाई करने के दौरान कोटद्वार में रहने से इनके कमरे से सामान चोरी हो गया था जिसमें इनके सभी शैक्षणिक प्रमाण पत्र भी चोरी हो गए ,इस कारण वह गोरखपुर से विज्ञान पोस्ट ग्रेजुएशन करने में असफल रहे।

इसके बाद विज्ञान स्नातकोत्तर हेतु उनके द्वारा ऋषिकेश में प्रवेश लिया गया तो राम मंदिर आंदोलन के चलते उनका ध्यान बंट गया। एमएससी की पढ़ाई के दौरान गुरु गोरखनाथ पर शोध करने ये 1993 में गोरखपुर आये थे। इसी दौरान वह गोरखपुर में अपने चाचा महंत अवैधनाथ के शरण में ही चले गए और इनके द्वारा दीक्षा ले ली गयी। जिसके बाद यह पूर्ण रूप से 1994 में संन्यासी बन गए। जिसके बाद इनको अजय मोहन सिंह बिष्ट के नाम से नहीं बल्कि योगी आदित्यनाथ के नाम से जाना जाता है।

इसके बाद वर्ष 2014 ,12 सितंबर को योगी जी महंत अवध नाथ जी के निधन के बाद इन्हे गोरखनाथ मंदिर का महंत बनाया गया। इसी के साथ 2 दिन के बाद नाथ पारंपरिक अनुष्ठान के अनुसार योगी जी को मंदिर का पीठाधीश्वर बनाया गया।

बखूबी निभा रहे गोरक्षपीठाधीश्वर की भूमिका

गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी के तौर पर योगी ने पीठ की लोक कल्याण और सामाजिक समरसता के ध्येय को विस्तारित किया ही, महंत अवेद्यनाथ के ब्रह्मलीन होने के बाद जब 14 सितंबर 2014 को गोरक्षपीठाधीश्वर बने तो यह पूरी तरह से उनके कंधे पर आ गई, जिसे वह बखूबी निभा रहे हैं। इसी भूमिका के तहत ही वह अखिल भारतीय बारह वेश पंथ योगी सभा के अध्यक्ष भी हैं।

मात्र 26 की उम्र में लोकसभा के सबसे कम उम्र के सदस्य बने योगी

मात्र 22 साल की उम्र में अपने परिवार का त्याग कर पूरे समाज को परिवार बना लेने वाले योगी आदित्यनाथ ने लोक कल्याण को ध्येय बनाने के क्रम में ही अध्यात्म के साथ-साथ राजनीति में भी कदम रखा और मात्र 26 की उम्र में लोकसभा के सबसे कम उम्र के सदस्य बन गए। फिर तो राजनीति में उनके कदम जो बढ़े, वह बढ़ते ही गए। गोरखपुर की जनता ने योगी को लगातार पांच बार अपना सांसद चुना। अभी यह सिलसिला चल ही रहा था कि उनकी राजनीतिक क्षमता को देखते हुए 2017 में भाजपा नेतृत्व ने उन्हें प्रदेश के मुख्यमंत्री का दायित्व सौंप दिया।

योगी ने सबसे बड़े राज्य के दोबारा मुख्यमंत्री बनने का रचा इतिहास

मुख्यमंत्री के रूप में योगी ने प्रदेश को जो उपलब्धि दिलाई, वह सर्वविदित है। 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को प्रचंड बहुमत देकर जनता ने उनके नेतृत्व पर मुहर भी लगा दी। संसदीय चुनावों में अजेय रहे योगी आदित्यनाथ पहली बार विधानसभा चुनाव लड़े और एक लाख से अधिक मतों से जीतकर अपनी अपराजेय लोकप्रियता को फिर से प्रमाणित कर दिया। यही वजह है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री की शपथ दिलाया। उन्होंने आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य के दोबारा मुख्यमंत्री बनने का इतिहास रचा।

नोएडा जाने का मिथक तोड़ा

योगी आदित्यनाथ प्रदेश के अबतक के इकलौते मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने प्रदेश के हर जिले का कई बार दौरा करने के साथ नोएडा जाने के मिथक को भी तोड़ा है। पहले मुख्यमंत्री इस मिथक के भय से नोएडा नहीं जाते थे कि वहां जाने से कुर्सी चली जाती है। योगी ने आधा दर्जन से अधिक बार नोएडा की यात्रा कर यह साबित किया है कि एक संत का ध्येय सिर्फ सत्ता बचाए रखना नहीं, बल्कि लोक कल्याण होता है।

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