अंजनी सक्सेना
ऐसा कहा जाता है कि खुदा जब हुस्न देता है, तो नजाकत आ ही जाती है लेकिन पर्दे की रानी वीनस माने जाने वाली मधुबाला के साथ ऐसा कुछ भी नहीं था। उनके जीवन से जुड़े हर पहलू में आज भी सादगी की महक बरकरार है। मुगल ए आजम, महल, हाफ टिकट, अमर, फागुन, चलती का नाम गाड़ी और हावड़ा ब्रिज जैसी अनेक फिल्मों में अपने सौंदर्य और अभिनय का जलवा बिखेरने वाली मधुबाला ने महज 36 साल की उम्र में ही दुनिया को अलविदा कह दिया था।
मधुबाला ने अपने कैरियर की शुरुआत के केवल चार वर्षों में करीब 24 फिल्मों में काम किया, क्योंकि उन्हें अपनी और परिवार की माली हालत को सुधारना था। जिसके चलते फिल्मों के चयन में उनसे कई गलत फैसले भी हुए। एक अभिनेत्री के रूप में उन्होंने सभी ऊँचाइयों को छुआ और उस समय के सभी मशहूर अभिनेता व अभिनेत्रियों के साथ काम किया। जिसमें अशोक कुमार, राज कपूर, रहमान, प्रदीप कुमार, शम्मी कपूर, दिलीप कुमार, सुनील दत्त, देवानंद, कामिनी कौशल, सुरैया, गीता बाली, नलिनी जयवंत और निम्मी शामिल थे। इसके अलावा उन्हें मशहूर निर्माता निर्देशक महबूब खान, गुरुदत्त, कमाल अमरोही और के. आसिफ के साथ काम करने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। वह प्रोडक्शन के क्षेत्र में भी पीछे नहीं रही और उन्होंने फिल्म नाता (1955) बनाई। जिसमें उन्होंने अभिनय भी किया था।
हिन्दी सिनेमा की रुहानी शख्सियत मानी जाने वाली मधुबाला ने जिस सादगी और सच्चाई के साथ जीवन संघर्ष किया, वह आज भी बेमिसाल है। वैसे, मधुबाला के अभिनय के दीवानों की आज भी कोई कमी नहीं है। उनके सशक्त अभिनय के चलते ही लंबे समय तक उनका जादू लोगों के दिलों-दिमाग में बसा रहा है। पचास और साठ के दशक में मधुबाला को प्रतिभाशाली और प्रभावी अभिनेत्रियों की श्रेणी में गिना जाता है। जिसमें मीना कुमारी और नर्गिस के नाम भी शामिल हैं। दिल्ली के पठान परिवार में जन्मी मधुबाला का असली नाम मुमताज जेहन बेगम देहलवी था, लेकिन पारिवारिक स्थिति अच्छी न होने के कारण जल्दी उनका पूरा परिवार दिल्ली से मुंबई आ गया।
अपनी परिस्थितियों से लड़ते हुए मधुबाला ने मात्र 9 वर्ष की उम्र में ही अभिनय शुरू कर दिया था। उन्होंने बाल कलाकार के तौर पर कई फिल्मों में काम किया। जिसमें उनकी पहली फिल्म बसंत थी। जिसमें उनके अभिनय की गहराई से मशहूर कलाकार देविका रानी बहुत प्रभावित हुई और उन्होंने उन्हें अपना नाम बदल कर मुमताज से मधुबाला रखने को कहा। इसके बाद उनको पहला बड़ा ब्रेक केदार शर्मा ने राजकपूर के साथ फिल्म नील कमल में दिया था। उस समय उनकी उम्र सिर्फ 14 वर्ष थी। हालांकि यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर ज्यादा सफल तो नहीं हुई लेकिन, उनकी प्रतिभा ने सब को प्रभावित किया और दर्शकों ने उन्हें पर्दे की रानी वीनस का खिताब दिया। इसके बाद फिल्म महल इनके कैरियर के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित हुई।
फिल्मों में अपने सशक्त अभिनय से अब तक मधुबाला सभी की पसंद बन चुकी थी, लेकिन किस्मत उनका साथ देती नहीं दिखी और 1950 में उनमें दिल की बीमारी सामने आई, जिसका असर जल्द ही उनकी शरीर पर भी दिखने लगा था और फिल्म बहुत दिन हुए की शूटिंग के दौरान उन्हें खून की उल्टी हुई और उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया। उस दौरान वासन परिवार ने उनका बखूबी खयाल रखा। जिसके बदले उन्होंने 1955 में वासन के लिए एक और फिल्म इंसानियत भी की थी।
मधुबाला निर्देशक विमल राय का काफी सम्मान करती थी और उनकी फिल्म विराज बहू में काम करने की इच्छुक थी, क्योंकि उन्होंने वह नॉवेल पढ़ रखा था, लेकिन विमल राय ने उनकी ऊंची कीमत को देखते हुए उस समय संघर्षरत अभिनेत्री कामिनी कौशल को वह रोल दे दिया। जब मधुबाला को यह बात पता चली, तब उन्होंने कहा कि वह तो इस रोल के लिए एक रुपए में भी राजी हो जाती।
उनके सफल कैरियर में एक पड़ाव ऐसा भी आया, जहां उनकी कुछ फिल्में आर्थिक रूप से इस तरह असफल हुई कि उन्हें बॉक्स पॉइजन के नाम से जाना जाने लगा था, लेकिन इस दौर को उन्होंने जल्द ही खत्म करने की