उज्जैन। गाय को भारतीय वांग्मय में मां और जीवंत तीर्थ का सम्मान दिया जाता है। अब यही मध्य प्रदेश के उज्जैन में गौ पर्यटन का नया राष्ट्रीय तीर्थ बनकर उभरेगी।वस्तुत: ज्योतिर्लिंग महाकाल की नगरी में एक ऐसी अत्याधुनिक व सर्वसुविधासंपन्न गोशाला तैयार की जाने वाली है, जहां देश-दुनिया से आकर महाकाल का दर्शन करने वाले श्रद्धालु गोमाता का भी दर्शन, पूजन और सेवा कर सकेंगे। यहां गाय के गोबर, गोमूत्र, दूध और गाय की उपस्थिति से कैसे मनुष्य का मन निर्मल हो जाता है, जैसे विषयों पर गहन शोध और प्रशिक्षण भी होगा।

शनिवार को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने यहां आयोजित गो संवर्धन कार्यक्रम में गोशाला की कार्ययोजना साझा की और विस्तारित कार्य का भूमिपूजन किया। यहां तालाब किनारे नीम, पीपल, बरगद, आम, आंवला के दो हजार पौधे रोपे गए।

यह गोशाला सिंहस्थ-2028 से पहले पर्यटन के राष्ट्रीय केंद्र की तरह तैयार कर ली जाएगी। उज्जैन में प्रसिद्ध चिंतामण गणेश मंदिर के समीप गांव रत्नाखेड़ी में स्थित गोशाला का नाम सनातन धर्म में पवित्र और पूज्य मानी गई कपिला गाय के नाम पर है।

यहां नगर निगम द्वारा वर्ष 2014 से गोशाला संचालित है, जिसे अब राज्य शासन राष्ट्रीय तीर्थ के रूप में विस्तारित करेगा। यहां 5000 गायों को रखने की क्षमता बनाई जाएगी। साथ ही ऐसी व्यवस्था होगी कि गाय, उसके दूध, गोमूत्र, गोबर आदि पर किए गए शोध के निष्कर्षों का समाज को लाभ मिल सके। यहां गोबर से दीवारों पर रंग करने वाला पेंट तैयार करने और गोमूत्र से उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।

धर्मसम्मत होगा मुख्यमंत्री का यह ड्रीम प्रोजेक्ट

उज्जैन धर्मनगरी तो है ही, मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव का गृहनगर भी है। इसी के चलते उज्जैन में गाय के माध्यम से मनुष्यता को धर्म, अध्यात्म, सेवा, साधना और सहिष्णुता का पाठ पढ़ाने के लिए यह गोशाला तैयार की जा रही है। यह मुख्यमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट है इसलिए नगर निगम के अधिकारी धर्माचार्यों, विद्वानों और पंडित-पुरोहित वर्ग से भी धर्मसम्मत सलाह लेकर इसे तैयार करवाएंगे।

गोशाला का नाम कपिला इसलिए

सनातन धर्म में गाय के रूप में कामधेनु के बाद कपिला गाय की भी मान्यता है। देसी नस्ल की यह गाय वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी श्रेष्ठ है। इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत अच्छी होती है और भोजन भी अपेक्षाकृत कम करती है। इसके चलते इसे पालना सस्ता और कम श्रमसाध्य है। इसका दूध शिशुओं के लिए भी सुपाच्य होता है। लोक-जीवन में मान्यता है कि शिव मंदिरों में प्रतिष्ठित नंदी की तर्ज पर कपिला गाय के कान में भी अपनी मन्नत कह देने से वह पूरी हो जाती है।

 

ऐसी विशिष्ट होगी यह गोशाला

 

गाय से जुड़ी आर्थिकी पर शोध और प्रशिक्षण होगा। – इसे इस तरह विकसित करेंगे कि श्रद्धालु महाकाल के दर्शन के बाद यहां भी जाएं। – गाय के दूध, गोबर और गोमूत्र से अनेक उत्पाद बनवाकर खुले बाजार में बेचे जाएंगे।

Previous articleडॉ अलका पांडेय को मिला जीवन गौरव सारस्वत सम्मान
Next articleगौरीशंकर चौबे ने की शताब्दी हॉस्पिटल में आईसीयू बेड बढ़ाने की मांग

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here