राजीव दवेपौधे धरती का श्रृंगार है। पेड़-पौधों से ही प्राण वायु ऑक्सीजन मिलती है। उनको काटने से पर्यावरण पर संकट गहरा रहा है। पौधों की कटाई लकड़ी के लिए होती है। इस समस्या का समाधान खोजा गया है। गोशालाओं में गोबर से लकड़ी (गौ काष्ठ) बनाई जाएगी। यह लकड़ी गाय के पवित्र माने जाने वाले गोबर से बनी होने के कारण अंत्येष्टि, पूजन और अन्य कार्यों में उपयोग होगी। खास बात यह है कि इस गौ काष्ठ को तैयार करने में ज्यादा समय नहीं लगता है। गोबर से बनी लकड़ी साधारण लकड़ी की तुलना में सस्ती और कम धुआं छोड़ने वाली होगी। इससे पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं होगा। यह लकड़ी बनाने के लिए गोपाल विभाग की ओर से 600 से अधिक मवेशी वाली प्रदेश की गोशालाओं को अनुदान पर मशीन उपलब्ध करवाई जाएगी।

ऐसे बनती है गौ काष्ठ

गौ काष्ठ बनाने के लिए गोबर को मशीन में डाल दिया जाता है। इसके बाद 4 से 5 फीट लंबी लकड़ी बन कर निकल आती है। उसे सूखा दिया जाता है। एक अनुमान के मुताबिक 1 क्विंटल गोबर से 1 क्विंटल गौ काष्ठ बनाई जा सकती है। मशीनों से 1 दिन में करीब 10 क्विंटल गोबर की गौ काष्ठ बनाई जा सकती है।

इन कार्यों में हो सकता है उपयोग

गौ काष्ठ का उपयोग श्मशान में अंतिम संस्कार के लिए किया जा सकता है। इसके साथ ही होलिका दहन, यज्ञ जैसे धार्मिक आयोजनों सहित फैक्ट्री व रेस्टोरेंट आदि में किया जा सकता है। गांव में गौ काष्ठ का उपयोग कंडों की जगह खाना बनाने में किया जा सकता है। इससे ज्यादा धुआं नहीं निकलता।

कई राज्यों में पहले से बन रही

प्रदेश की गोशालाओं के लिए गौ काष्ठ बनाना नया है, लेकिन देश के कई राज्यों में यह पहले से बनाई जा रही है। मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में कई किसान, पशुपालक, गोशालाएं गौ काष्ठ बना रहे है। प्रदेश में गौ काष्ठ की अनुमानित लागत करीब 8 रुपए प्रति किलोग्राम होगी।

इनका कहना है

पाली की 27 गोशाला में 600 या उससे अधिक मवेशी है। वहां गौ काष्ठ बनाने की मशीन लगाई जा सकती है। गौ काष्ठ का उपयोग धार्मिक रूप से करने के साथ श्मशान में अंतयेष्टी के लिए और उद्योगों में भी किया जा सकता है। इससे पर्यावरण संरक्षण होगा।

डॉ. मनोज पंवार, संयुक्त निदेशक, पशुपालन विभाग, पाली
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