Fertilizer Benefit: रबी सीजन की बुवाई चल रही है. किसान गेहूं समेत अन्य फसलों की बुवाई मेें लगे हुए हैं. सरकारी ब्लॉक और निजी केेंद्रों पर जाकर खाद की खरीदारी कर रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि फसल की ग्रोथ में सही खाद का उपयोग बेहद महत्वपूर्ण है. कुछ किसान आर्गेनिक तरीके से खेती करते हैं. अधिकांश जल्दी उपज के कारण अनआर्गेनिक खेती करना पसंद करते हैं. उत्तर प्रदेश के जिलों में भी फसल की उपज बढ़ाने के लिए ऐसा ही प्रयोग कर रहे हैं.

ABP News – खबर के अनुसार यूपी के रामपुर में हो रहा गोबर और गौमूत्र का ट्रायल 

उत्तर प्रदेश के किसान फसलों की उपज बढ़ाने के लिए देसी तरीकों का सहारा ले रहे हैं. रामपुर जिले में इसी कड़ी में एक प्रयोग किया जा रहा है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, देसी गाय के गोबर और गौमूत्र से किसानों की आय दो गुनी करने की प्लानिंग है. इससे बंजर जमीन पर भी खेती की जा सकेगी. कृषि विज्ञान केंद्र धनोरा के स्तर से यह पहल की गई है. हालांकि कुछ जगहों पर इसका परीक्षण किया गया तो वहां फसलें भी लहलहाने लगी हैं.

इस तरह किया जा सकता है तैयार

एक्सपर्ट के अनुसार, 15 किलो देसी गाय का गोबर और 5 लीटर गोमूत्र, इतना नहीं है तो जितना संभव हो सके. इसी तरह 1 किलो चना, मसूर या मटर की दाल, 1 किलो गुड़, सारी चीजों को किया बर्तन में मिला दिया जाए. इससे घोल तैयार हो जाएगा. एक मुट्ठी पीपल, बरगद, आम के पेड़ के नीचे की मिट्टी मिलानी होगी. घोल में एक मुट्ठी नीम की पत्तियों को डाल दें. डालने के बाद इसे आठ दिन तक रख दिया जाए. यही खाद के रूप में तैयार हो जाएगा. इसी घोल को बाद में खेत में खाद के रूप में डाल दिया जाए. इससे बंपर फसल पैदा होगी. इस खाद को तैयार करने में एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के अफसर भी लगे हुए हैं.

प्रयोग सफल रहा तो अन्य जिलों में होगा इस्तेमाल

उत्तर प्रदेश में 75 जिले हैं. उत्तर प्रदेश के रामपुर में देसी गाय के गोबर और गोमूत्र पर यह अनूठा प्रयोग किया जा रहा है. इसके प्राइमरी नतीजे उत्साहजनक रहे हैं. अधिकारियों का कहना है कि प्रयोग के तौर पर नतीजे अच्छे आए हैैं. जल्द ही पूरी जिले में इसी तरह की बुवाई के लिए प्रोत्साहन किया जा सकता है. परिणामों के आधार पर प्रदेश के अन्य जिलों में बुवाई की जा सकती है.

धान, गेहूं सभी के लिए हो सकता है इस्तेमाल

धान, गेहूं, दलहन, तिलहन में इस खाद का प्रयोग किया जा सकता है. विशेषज्ञों ने बताया कि इस तरह के खाद के इस्तेमाल किसी तरह की बीमारी होने का खतरा भी कम हो जाएगा. उत्पादन भी अधिक हो जाएगा. भूमि की उर्वरकता भी बनी रहेगी.

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