– डॉ. वेदप्रकाश

वसुधैव कुटुंबकम् और सर्वे भवंतु सुखिनः सार्वभौमिक विचार की ही उद्घोषणा करते हैं। भारतीय चिंतन स्व से समष्टि की ओर जाता है, इसका अर्थ यह है कि यहाँ अपने साथ-साथ समूची मानवता के कल्याण की चिंता रही है। अग्नि, जल, वायु, मिट्टी और आकाश इन्हें पंच भूतों के नाम से जाना जाता है और इन्हीं से मिलकर प्रकृति एवं पर्यावरण की संकल्पना आकार लेती है। यह प्रकृति और पर्यावरण ही जीवन को संभव बनाते हैं।

आज विकास की अंधी दौड़ प्रकृति और पर्यावरण के संतुलन को बिगड़ रही है। जलवायु परिवर्तन आज न केवल भारत अपितु समूचे विश्व के सामने एक बड़ी चुनौती बनकर उभर रहा है, विडंबना यह है कि हानिकारक गैसों का सर्वाधिक उत्सर्जन करने वाले संपन्न देश हैं। चीन, अमेरिका और यूरोपीय संघ के देशों की इसमें सर्वाधिक भागीदारी है। यह भी चिंता का विषय है कि अभी तक पर्यावरण सुधार की कार्य योजना और घोषणा में अमेरिका, चीन जापान सहित 56 देश ही आगे आए हैं, जबकि पेरिस समझौते पर लगभग 175 देशों ने हस्ताक्षर किए थे। विश्व के सभी देशों का एक साथ एकजुट न होना आज चिंता को बढ़ा रहा है।

आज भी भारत एकमात्र जी-20 देश है जो पेरिस समझौते के अनुसार 2030 के लिए तय लक्ष्य के अनुरूप जलवायु परिवर्तन से लड़ने के प्रयासों में आगे बढ़ रहा है। आज वर्ष 2020 के आंकड़ों के अनुसार वैश्विक स्तर पर उद्योगों में ऊर्जा के स्रोतों की स्थिति का आंकलन भी आवश्यक है- तरल ईंधन 25.6 फीसद, प्राकृतिक गैस 24.1 फीसद, कोयला 26.7 फीसद, बिजली 15.0 फीसद, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत 8.9 फीसद है। आंकड़ों से स्पष्ट है कि आज भी नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर विश्व समुदाय गंभीर नही है। पिछले दिनों अंतरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन सम्मेलन काॅप 27 में ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए कड़ी कार्रवाई करने पर बल दिया गया है। ग्लोबल वार्मिंग के लिए गरीब देशों ने धनी देशों और तेल कंपनियों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा है कि प्रदूषकों को जलवायु परिवर्तन के लिए हर्जाना देना होगा। लेकिन क्या यह विचार लागू हो पाएगा?

मिशन लाइफ पर सबसे पहले वर्ष 2021 में ग्लासगो में आयोजित काॅप 26 सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने विचार रखे थे। हाल ही में उन्होंने गुजरात के केवडिया से मिशन लाइफ अभियान की शुरुआत की है। इस वैश्विक कार्य योजना का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभाव से धरती को बचाना है। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि- जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए सभी को एकजुटता दिखानी होगी, भारत जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने के लिए प्रतिबद्ध है। इस अवसर पर उपस्थित रहे यूएन प्रमुख गुटेरस ने भी कहा कि- जलवायु परिवर्तन विश्व की सबसे बड़ी समस्या है, इसके संरक्षण के लिए हमें सामूहिक प्रयास करना होगा। कुदरत के संसाधनों का हमें विवेक पूर्वक उपयोग करना चाहिए।

निश्चित रूप से आज भारत सहित समूचे विश्व को यह समझना होगा कि जिन संसाधनों का हम सभी अंधाधुंध और अविवेकपूर्ण उपयोग कर रहे हैं वे मानवता के लिए कितने आवश्यक हैं। आज यह भी आवश्यक है कि हम सभी अपनी आदतों में बदलाव करें, क्योंकि प्रकृति और पर्यावरण का संकट हमारी बिगड़ी आदतों के कारण उपज रहा है। ऊर्जा की बचत, खाद्य प्रणाली से जुड़ी आदतों में सुधार, स्वच्छता, पानी बचाने की आदत,सिंगल यूज़ प्लास्टिक को छोड़ना,ई- वेस्ट को सही तकनीक से प्रोसेस करना और स्वस्थ जीवन शैली अपनाते हुए पेड़- पौधों का संरक्षण- संवर्धन,ऑर्गेनिक खेती, जल संरक्षण, बायोगैस, सूर्य ऊर्जा, जल ऊर्जा आदि का अधिकाधिक उपयोग आदि ऐसी बातें हैं जिनसे हम पर्यावरण को बचा सकते हैं।

हाल ही में शिक्षा मंत्रालय ने सराहनीय पहल करते हुए प्रधानमंत्री मोदी के मिशन लाइफ को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने का निर्णय भी लिया है, इससे नई पीढ़ी जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों और उससे निबटने के लिए जागरूक होगी। आज हमें प्रकृति और पर्यावरण को बचाने के लिए समझ के साथ खपत व की आवश्यकता है। यजुर्वेद के 36 वें अध्याय में- द्यौ: शांतिरन्तरिक्ष शान्ति: पृथिवी शान्ति… के माध्यम से प्रकृति और पर्यावरण के चिंतन का आवाह्न मिलता है। क्या आज हमें मानवता के कल्याण के लिए पुन: वैदिक चिंतन की ओर लौटने की आवश्यकता नहीं है?
आइए, वैदिक जीवन पद्धति की ओर लौटें व समूची मानवता के कल्याण के लिए मिशन लाइफ के मंत्र एवं विचार पर चिंतन करें।(युवराज)

डॉ. वेदप्रकाश
असिस्टेंट प्रोफेसर, हंसराज कॉलेज, दिल्ली

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